एकांत के क्षणों का लाभ उठाकर
वासना के पुतले बहला-फुसलाकर,
ले जाते हैं मासूम बच्चियों को ,
डाल देते हैं अपनी हवस मिटाकर !!
खिलने से पहले ही ,वो मुरझाती हैं ,
जिन्हें नोच,खसोट कर ,ये करते बरबाद!!
एकांत के क्षणों में ,
लड़की दिखे जो लौटती राहों में ,
धर दबोचते हैं ये वहशी दरिंदे ,
लूट लेते हैं अस्मत ,खींच कर अपने पंजों में !!
एकांत के क्षणों का ,
लाभ , चाचा ,मामा,मौसा,भी उठाते हैं
बहलाते और फुसलाते हैं ,
पकडा़ कर टाॅफी,चाॅकलेट ,गोद में बिठाते हैं,
भर आँखों में वासना ,रिश्तों की आड़ में,
ये पवित्र बंधन कलंकित कर जाते हैं !!
पैदा होते ही ज्यों
लड़कियाँ जवान हो जाती हैं ,
दरिंदों की वासनापूर्ति का ,
सामान हो जाती हैं ।
सुनों बच्चियों के माता-पिता,
करो न विश्वास
अब किसी भी रिश्ते का ,
एकांत के क्षणों के
राज़ बहुत गहरे हैं ,
क्या जानों एक चेहरे के पीछे
,छुपे कितने और चेहरे हैं!!
सुनों लड़कियों
रहो बहुत सावधान,
खुले रखो , अपनी आँखें और कान ,
हर गली चौराहों पर ,
वहशी भेडि़ये छुपे बने हुये इंसान !!
प्रभा मिश्रा 'नूतन'