एन. रघुरामन
मुंबई विश्वविद्यालय से पोस्ट ग्रेजुएट और आई.आई.टी. मुंबई के पूर्व छात्र श्री एन. रघुरामन मँजे हुए पत्रकार हैं। 30 वर्ष से अधिक के अपने पत्रकारिता के कॅरियर में वे ‘इंडियन एक्सप्रेस’, ‘डीएनए’ और ‘दैनिक भास्कर’ जैसे राष्ट्रीय दैनिकों में संपादक के रूप में काम कर चुके हैं। उनकी निपुण लेखनी से शायद ही कोई विषय बचा होगा, अपराध से लेकर राजनीति और व्यापार-विकास से लेकर सफल उद्यमिता तक सभी विषयों पर उन्होंने सफलतापूर्वक लिखा है। ‘दैनिक भास्कर’ के सभी संस्करणों में प्रकाशित होनेवाला उनका दैनिक स्तंभ ‘मैनेजमेंट फंडा’ देश भर में लोकप्रिय है और तीनों भाषाओं—मराठी, गुजराती व हिंदी—में प्रतिदिन करीब तीन करोड़ पाठकों द्वारा पढ़ा जाता है। इस स्तंभ की सफलता का कारण इसमें असाधारण कार्य करनेवाले साधारण लोगों की कहानियों का हवाला देते हुए जीवन की सादगी का चित्रण किया जाता है। श्री रघुरामन ओजस्वी, प्रेरक और प्रभावी वक्ता भी हैं; बहुत सी परिचर्चाओं और परिसंवादों के कुशल संचालक हैं। मानसिक शक्ति का पूरा इस्तेमाल करने तथा व्यक्ति को अपनी क्षमता के अधिकतम इस्तेमाल करने के उनके स्फूर्तिदायक तरीके की बहुत सराहना होती है।
सफल बिजनेस के फंडे
अपने उत्पाद, अपने ग्राहक और अपने कर्मचारियों के प्रति एक विशेष अपनेपन का भाव सफलता पाने का बेसिक फंडा है। इन सबके बीच एक जोरदार सामंजस्य आपके व्यवसाय की सफलता का मार्ग प्रशस्त करता है। आपकी सफलता आपके व्यक्तिगत गुणों के साथ-साथ आपकी टीम की क्षमताओं प
सफल बिजनेस के फंडे
अपने उत्पाद, अपने ग्राहक और अपने कर्मचारियों के प्रति एक विशेष अपनेपन का भाव सफलता पाने का बेसिक फंडा है। इन सबके बीच एक जोरदार सामंजस्य आपके व्यवसाय की सफलता का मार्ग प्रशस्त करता है। आपकी सफलता आपके व्यक्तिगत गुणों के साथ-साथ आपकी टीम की क्षमताओं प
ज़िन्दगी न मिलेगी दोबारा
मानव के रूप में हम न केवल अपनी संतानों की देखभाल करते हैं, बल्कि एक यंत्र ‘बुद्धि’ हमारे अंदर समूचे ग्रह, समूची पारिस्थितिकी, प्रकृति की समूची भेंट की देखभाल करने की शक्ति के रूप में विद्यमान है। और यही यंत्र ‘बुद्धि’ मशीनें बना सकती है, जो किसी को ब
ज़िन्दगी न मिलेगी दोबारा
मानव के रूप में हम न केवल अपनी संतानों की देखभाल करते हैं, बल्कि एक यंत्र ‘बुद्धि’ हमारे अंदर समूचे ग्रह, समूची पारिस्थितिकी, प्रकृति की समूची भेंट की देखभाल करने की शक्ति के रूप में विद्यमान है। और यही यंत्र ‘बुद्धि’ मशीनें बना सकती है, जो किसी को ब
जिंदगी की पाठशाला
चमचमाती इमारतों और अन्य सुविधाओं की बजाय संवेदनशील लोग ही दुनिया को रहने के लिए बेहतर स्थान बनाते हैं। दृढ संकल्पित व्यक्ति को उसके लक्ष्य तक पहुँचने से कोई नहीं रोक सकता। ऐसे लोगों की ईश्वर भी मदद करता है। अगली पीढ़ी को समग्र रूप से मजबूत बनाने के ल
जिंदगी की पाठशाला
चमचमाती इमारतों और अन्य सुविधाओं की बजाय संवेदनशील लोग ही दुनिया को रहने के लिए बेहतर स्थान बनाते हैं। दृढ संकल्पित व्यक्ति को उसके लक्ष्य तक पहुँचने से कोई नहीं रोक सकता। ऐसे लोगों की ईश्वर भी मदद करता है। अगली पीढ़ी को समग्र रूप से मजबूत बनाने के ल
अब हमें बदलना होगा
विगत वर्षों में हमारे अधिकतर आई.टी. कार्यालय निश्चित स्थान पर 9 से 5 के परंपरागत काम के ढर्रे से काफी आगे निकलकर मोबाइल वर्क प्लेस और सुविधानुसार समय तक पहुँच गए हैं। रिक्रूटमेंट और परफॉर्मेंस रेटिंग स्वचालित हो चुके हैं। हाजिरी मोबाइल या हस्तचालित उ
अब हमें बदलना होगा
विगत वर्षों में हमारे अधिकतर आई.टी. कार्यालय निश्चित स्थान पर 9 से 5 के परंपरागत काम के ढर्रे से काफी आगे निकलकर मोबाइल वर्क प्लेस और सुविधानुसार समय तक पहुँच गए हैं। रिक्रूटमेंट और परफॉर्मेंस रेटिंग स्वचालित हो चुके हैं। हाजिरी मोबाइल या हस्तचालित उ
Positive सोच के फंडे
जो लोग समाधान प्रस्तुत करते हैं, दुनिया उनका सम्मान करती है और जो लोग समस्याएँ पैदा करते हैं, उनकी निंदा करती है। पर समाधान प्रस्तुत करने के लिए पॉजिटिव यानी सकारात्मक सोच बहुत जरूरी है, क्योंकि सकारात्मक से ही विचार प्रक्रिया संचालित होती है और समाध
Positive सोच के फंडे
जो लोग समाधान प्रस्तुत करते हैं, दुनिया उनका सम्मान करती है और जो लोग समस्याएँ पैदा करते हैं, उनकी निंदा करती है। पर समाधान प्रस्तुत करने के लिए पॉजिटिव यानी सकारात्मक सोच बहुत जरूरी है, क्योंकि सकारात्मक से ही विचार प्रक्रिया संचालित होती है और समाध
युवा भारत की नई पहचान
अकसर सुनने को मिलता है—‘युवा भारत की नई पहचान’। अगर आप किसी ऐसे युवा के साथ अपने को शामिल नहीं करते, जो आपके परिवार का न हो या आपके मित्र का पुत्र न हो, पूरी तरह से अपरिचित हो, तो यह पंक्ति हमेशा एक तटस्थ लगाव पैदा करती है। भारत विश्व का सबसे ज्यादा
युवा भारत की नई पहचान
अकसर सुनने को मिलता है—‘युवा भारत की नई पहचान’। अगर आप किसी ऐसे युवा के साथ अपने को शामिल नहीं करते, जो आपके परिवार का न हो या आपके मित्र का पुत्र न हो, पूरी तरह से अपरिचित हो, तो यह पंक्ति हमेशा एक तटस्थ लगाव पैदा करती है। भारत विश्व का सबसे ज्यादा
इरादे हों तो ऐसे
अगर लक्ष्य निर्धारित हों, दृढ़ इच्छाशक्ति हो, सोच स्पष्ट हो तो कम संख्या के लोग भी बदलाव ला सकते हैं, किसी की जिंदगी बदल सकते हैं, भविष्य को सुधार सकते हैं। अगर आप उद्यमी हैं तो आपमें यह दृष्टि होनी चाहिए कि आपका आइडिया किस तरह की शक्ल अख्तियार करेगा
इरादे हों तो ऐसे
अगर लक्ष्य निर्धारित हों, दृढ़ इच्छाशक्ति हो, सोच स्पष्ट हो तो कम संख्या के लोग भी बदलाव ला सकते हैं, किसी की जिंदगी बदल सकते हैं, भविष्य को सुधार सकते हैं। अगर आप उद्यमी हैं तो आपमें यह दृष्टि होनी चाहिए कि आपका आइडिया किस तरह की शक्ल अख्तियार करेगा
लीडरशिप के फंडे
जब कोई टीम जीतती है तो श्रेय पूरी टीम को मिलता है, पर उसमें विशेष योगदान उस टीम के लीडर का होता है। वह भिन्न-भिन्न सोच, क्षमता और प्रकृति के लोगों में एक ऐसे भाव का सूत्रपात करता है कि सबका एक ही लक्ष्य बन जाता है—जीत और सफलता। कंपनी के उत्कर्ष के सफ
लीडरशिप के फंडे
जब कोई टीम जीतती है तो श्रेय पूरी टीम को मिलता है, पर उसमें विशेष योगदान उस टीम के लीडर का होता है। वह भिन्न-भिन्न सोच, क्षमता और प्रकृति के लोगों में एक ऐसे भाव का सूत्रपात करता है कि सबका एक ही लक्ष्य बन जाता है—जीत और सफलता। कंपनी के उत्कर्ष के सफ
जब सोचो, बड़ा सोचो
सुबुद्धि 29 वर्ष की है। बचपन से साहसी और सहानुभूति की भावना रखनेवाली। उसके जीवन में घटित हुई कई घटनाओं ने उसके चरित्र को और मजबूती दी। वह दिल्ली के पास नोएडा में एक आई.टी.फर्म में नौकरी करती है। एक प्राइवेट अस्पताल में उसका इलाज हुआ है। उसने किया क्य
जब सोचो, बड़ा सोचो
सुबुद्धि 29 वर्ष की है। बचपन से साहसी और सहानुभूति की भावना रखनेवाली। उसके जीवन में घटित हुई कई घटनाओं ने उसके चरित्र को और मजबूती दी। वह दिल्ली के पास नोएडा में एक आई.टी.फर्म में नौकरी करती है। एक प्राइवेट अस्पताल में उसका इलाज हुआ है। उसने किया क्य