सागर का किनारा आज कितना उदास है ।
तुम बिन ये मचलती लहरें भी हताश हैं ।।
कभी इन लहरों पर मछलियों सी तैरती थी तू
शाम की किरणों से सजकर परी लगती थी तू
तेरे लिये ये हवाएं किस कदर बदहवास हैं
तुम बिन ये मचलती लहरें भी हताश हैं ।।
वो घरोंदा टूट चुका है मेरे सपनों की तरह
जो बनाया था हमने , आशियाने की तरह
दिल का साज सूना है, क्या तुझे अहसास है
तुम बिन ये मचलती लहरें भी हताश हैं ।।
बहारों का मौसम तेरे साथ ही चला गया
आंसुओं का सागर लिये ढूंढते किनारा नया
रंजोगम से चूर हूं, टूट गई हर आस है
तुम बिन ये मचलती लहरें भी हताश हैं ।।
सागर का किनारा आज कितना उदास है।
तुम बिन ये मचलती लहरें भी हताश हैं।।
श्री हरि
22.9.22