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फुंदने

7 अप्रैल 2022

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कोठी से मुल्हक़ा वसीअ-ओ-अरीज़ बाग़ में झाड़ियों के पीछे एक बिल्ली ने बच्चे दिए थे, जो बिल्ला खा गया था। फिर एक कुतिया ने बच्चे दिए थे जो बड़े बड़े हो गए थे और दिन रात कोठी के अंदर बाहर भौंकते और गंदगी बिखेरते रहते थे। उन को ज़हर दे दिया गया.......एक एक कर के सब मर गए थे। उन की माँ भी....... उन का बाप मालूम नहीं कहाँ था। वो होता तो उस की मौत भी यक़ीनी थी।

जाने कितने बरस गुज़र चुके थे। कोठी से मुल्हक़ा बाग़ की झाड़ियां सैंकड़ों हज़ारों मर्तबा कुतरी ब्योंती, काटी छांटी जा चुकी थीं। कई बिल्लियों और कुत्तियों ने उन के पीछे बच्चे दिए थे जिन का नाम-ओ-निशान भी न रहा था। उस की अक्सर बद-आदत मुर्ग़ियां वहाँ अंडे दे दिया करती थीं जिन को हर सुब्ह उठा कर वो अंदर ले जाती थी।

उसी बाग़ में किसी आदमी ने उन की नौजवान मुलाज़िमा को बड़ी बे-दर्दी से क़त्ल कर दिया था....... उस के गले में उस का फुंदनों वाला सुर्ख़ रेशमी इज़ार-बंद जो उस ने दो रोज़ पहले फेरी वाले से आठ आने में ख़रीदा था, फंसा हुआ था। इस ज़ोर से क़ातिल ने पेच दिए थे कि उस की आँखें बाहर निकल आई थीं।

इस को देख कर उस को इतना तेज़ बुख़ार चढ़ा था कि बे-होश हो गई थी....... और शायद अभी तक बे-होश थी। लेकिन नहीं, ऐसा क्यूँ कर हो सकता था, इस लिए कि इस क़त्ल के देर बाद मुर्ग़ियों ने अंडे, न ही बिल्लियों ने बच्चे दिए थे और एक शादी हुई थी.......कुतिया थी जिस के गले में लाल दुपट्टा था। मुकेशी.......झिलमिल झिलमिल करता। उस की आँखें बाहर निकली हुई नहीं थीं, अंदर धंसी हुई थीं।

बाग़ में बैंड बजा था.......सुर्ख़ वर्दियों वाले सिपाही आए थे जो रंग बिरंगी मश्कीं बग़्लों में दबा कर मुँह से अजीब अजीब आवाज़ें निकालते थे। उन की वर्दियों के साथ कई फुंदने लगे थे। जिन्हें उठा उठा कर लोग अपने इज़ार बंदों में लगाते जाते थे.......पर जब सुब्ह हुई थी तो उन का नाम-ओ-निशान तक नहीं था....... सब को ज़हर दे दिया गया था।

दुल्हन को जाने क्या सूझी, कम-बख़्त ने झाड़ियों के पीछे नहीं, अपने बिस्तर पर सिर्फ़ एक बच्चा दिया....... जो बड़ा गुल गोथना, लाल फुंदना था। उस की माँ मर गई.......बाप भी....... दोनों को बच्चे ने मारा.......उस का बाप मालूम नहीं कहाँ था। वो होता तो उस की मौत भी इन दोनों के साथ होती।

सुर्ख़ वर्दियों वाले सिपाही बड़े बड़े फुंदने लटकाए जाने कहाँ ग़ायब हुए कि फिर न आए। बाग़ में बिल्ले घूमते थे, जो उसे घूरते थे, उस को छेछड़ों की भरी हुई टोकरी समझते थे हालाँ कि टोकरी में नारंगियाँ थीं।

एक दिन उस ने अपनी दो नारंगियां निकाल कर आइने के सामने रख दीं। उस के पीछे होके उस ने उन को देखा मगर नज़र न आईँ। उस ने सोचा इस की वजह ये है कि छोटी हैं.......मगर वो उस के सोचते सोचते ही बड़ी हो गईं और उस ने रेशमी कपड़े में लपेट कर आतिश-दान पर रख दीं।

अब कुत्ते भौंकने लगे.......नारंगियाँ फ़र्श पर लुढ़कने लगीं। कोठी के फ़र्श पर उछलैं, हर कमरे में कूदैं और उछलती कूदती बड़े बड़े बाग़ों में भागने दौड़ने लगीं....... कुत्ते उन से खेलते और आपस में लड़ते झगड़ते रहते।

जाने क्या हुआ, उन कुत्तों में दो ज़हर खा के मर गए। जो बाक़ी बचे वो उन की अधेड़ उम्र की हट्टी कट्टी मुलाज़िमा खा गई। ये उस नौजवान मुलाज़िमा की जगह आई थी, जिस को किसी आदमी ने क़त्ल कर दिया था, गले में उस के फुंदनों वाले इज़ार-बंद का फंदा डाल कर।

उस की माँ थी। अधेड़ उम्र की मुलाज़िमा से उम्र में छः सात बड़ी बड़ी। उस की तरह हट्टी कट्टी नहीं थी। हर रोज़ सुब्ह शाम मोटर में सैर को जाती थी। और बद-आदत मुर्ग़ियों की तरह दूर दराज़ बाग़ों में झाड़ियों के पीछे अंडे देती थी। उन को वो ख़ुद उठा कर लाती थी न ड्राईवर।

आमलेट बनाती थी। जिस के दाग़ कपड़ों पर पड़ जाते थे। सूख जाते तो उन को बाग़ में झाड़ियों के पीछे फेंक देती थी जहाँ से चीलें उठा कर ले जाती थीं।

एक दिन उस की सहेली आई....... पाकिस्तान मेल, मोटर नंबर 9612 पी एल बड़ी गर्मी थी। डैडी पहाड़ पर थे। मम्मी सैर करने गई हुई थीं.......पसीने छूट रहे थे। उस ने कमरे में दाख़िल होते ही अपना ब्लाउज़ उतारा और पंखे के नीचे खड़ी हो गई। उस के दूध उबले हुए थे जो आहिस्ता आहिस्ता ठंडे हो गए। उस के दूध ठंडे थे जो आहिस्ता आहिस्ता उबलने लगे। आख़िर दोनों दूध हिल हिल के गुंगुने हो गए और खट्टी लस्सी बन गई।

उस सहेली का बैंड बज गया। मगर वो वर्दी वाले सिपाही फुंदने नचाने न आए। उस की जगह पीतल के बर्तन थे, छोटे और बड़े, जिन से आवाज़ें निकलती थीं। गरज-दार और धीमी....... धीमी और गरज-दार।

ये सहेली जब फिर मिली तो उस ने बताया कि वो बदल गई है। सचमुच बदल गई थी। उस के अब दो पेट थे। एक पुराना, दूसरा नया। एक के ऊपर दूसरा चढ़ा हुआ था। उस के दूध फटे हुए थे।

फिर उस के भाई का बैंड बजा....... अधेड़ उम्र की हट्टी कट्टी मुलाज़िमा बहुत रोई। उस के भाई ने उस को बहुत दिलासा दिया। बे-चारी को अपनी शादी याद आ गई थी।

रात भर उस के भाई और उस की दुल्हन की लड़ाई होती रही। वो रोती रही, वो हंसता रहा.......सुब्ह हुई तो अधेड़ उम्र की हट्टी कट्टी मुलाज़िमा इस के भाई को दिलासा देने के लिए अपने साथ ले गई। दुल्हन को नहलाया गया....... उस की शलवार में उस का लाल फुंदनों वाला इज़ार-बंद पड़ा था....... मालूम नहीं ये दुल्हन के गले में क्यूँ न बांधा गया।

उस की आँखें बहुत मोटी थीं। अगर गला ज़ोर से घोंटा जाता तो वो ज़बह किए हुए बकरे की आँखों की तरह बाहर निकल आतीं....... और उस को बहुत तेज़ बुख़ार चढ़ता। मगर पहला तो अभी तक उतरा नहीं.......हो सकता है उतर गया हो और ये नया बुख़ार हो जिस में वो अभी तक बे-होश है।

उस की माँ मोटर ड्राइवरी सीख रही है.......बाप होटल में रहता है। कभी कभी आता है और अपने लड़के से मिल कर चला जाता है। लड़का कभी कभी अपनी बीवी को घर बुला लेता है। अधेड़ उम्र की हट्टी कट्टी मुलाज़िमा को दो तीन रोज़ के बाद कोई याद सताती है तो रोना शुरू कर देती है। वो उसे दिलासा देता है, वो उसे पुचकारती है और दुल्हन चली जाती है।

अब वो और दुल्हन भाभी, दोनों सैर को जाती हैं.......सहेली भी, पाकिस्तान मेल। मोटर नंबर 9612 पी ईल....... सैर करते करते अजंता जा निकलती हैं, जहां तस्वीरें बनाने का काम सिखाया जाता है। तस्वीरें देख कर तीनों तस्वीर बन जाते हैं। रंग ही रंग, लाल, पीले, हरे, नीले.......सब के सब चीख़ने वाले हैं। उन को रंगों का ख़ालिक़ चुप कराता है। उस के लंबे लंबे बाल हैं।

सर्दियों और गर्मियों में ओवर कोट पहनता है। अच्छी शक्ल-ओ-सूरत का है। अंदर बाहर हमेशा खड़ाऊं इस्तेमाल करता है....... अपने रंगों को चुप कराने के बाद ख़ुद चीख़ना शुरू कर देता है। उस को ये तीनों चुप कराती हैं और बाद में ख़ुद चिल्लाने लगती हैं।

तीनों अजंत में मुजर्रिद आर्ट के सैंकड़ों नमूने बनाती रहीं। एक की हर तस्वीर में औरत के दो पेट होते हैं। मुख़्तलिफ़ रंगों के....... दूसरी की तस्वीरों में औरत अधेड़ उम्र की होती है। हट्टी कट्टी। तीसरी की तस्वीरों में फुंदने ही फुंदने। इज़ार-बंदों का गुच्छा।

मुजर्रिद तस्वीरें बनती रहीं। मगर तीनों के दूध सूखते रहे....... बड़ी गर्मी थी, इतनी कि तीनों पसीने में शराबोर थीं। ख़स लगे कमरे के अंदर दाख़िल होते ही उन्हों ने अपने ब्लाउज़ उतारे और पंखे के नीचे खड़ी हो गईं। पंखा चलता रहा। दूधों में ठंडक पैदा हुई न गर्मी।

उस की मम्मी दूसरे कमरे में थी। ड्राइवर उस के बदन से मोबिल ऑयल पोंछ रहा था।

डैडी होटल में था जहाँ उस की लेडी स्टेनोग्राफर उस के माथे पर यू-डी क्लोन मल रही थी।

एक दिन उस का भी बैंड बज गया। उजाड़ बाग़ फिर बा-रौनक हो गया। गम्लों और दरवाज़ों की आराइश अजंता स्टूडियो के मालिक ने की थी। बड़ी बड़ी गहरी लिप-स्टिकें उस के बिखरे हुए रंग देख कर उड़ गईं। एक जो ज़्यादा सियाही माइल थी, इतनी उड़ी कि वहीं गिर कर उस की शागिर्द हो गई।

उस के उरूसी लिबास का डिज़ाइन भी स ने तैय्यार किया था। उस ने उस की हज़ारों की सम्तें पैदा कर दी थीं। ऐन सामने से देखो तो वो मुख़्तलिफ़ रंग के इज़ार-बंदों का बंडल मालूम होती थी। ज़रा उधर हट जाओ तो फलों की टोकरी थी। एक तरफ़ हो जाओ तो खिड़की पर पड़ा हुआ फुलकारी का पर्दा। अक़ब में चले जाओ। कुचले हुए तरबूज़ों का ढेर.......ज़रा ज़ाविया बदल कर देखो टमाटो-सॉस से भरा हुआ मर्तबान.......ऊपर से देखो तो यगाना आर्ट। नीचे से देखो तो मीरा जी की मुबहम शायरी।

फ़न शनास निगाहें अश अश कर उठीं....... दूलहा इस क़दर मुतअस्सिर हुआ था कि शादी के दूसरे रोज़ ही उस ने तहय्या कर लिया कि वो भी मुजर्रिद आर्टिस्ट बन जाएगा। चुनांचे अपनी बीवी के साथ वो अजंता गया।

जहाँ उन्हें मालूम हुआ कि उस की शादी हो रही है और वो चंद रोज़ से अपनी होने वाली दुल्हन ही के पास रहता है।

उस की होने वाली दुल्हन वही गहरे रंग की लिप-स्टिक थी जो दूसरी लिप-स्टिकों के मुक़ाबले में ज़्यादा सियाही माइल थी। शुरू शुरू में चंद महीने तक उस के शौहर को स से और मुजर्रिद आर्ट से दिलचस्पी रही, लेकिन जब अजंता स्टूडियो बंद हो गया और उस के मालिक की कहीं से भी सुन-गुन न मिली तो उस ने नमक का कारोबार शुरू कर दिया। जो बहुत नफ़ा बख़्श था।

इस कारोबार के दौरान में उस की मुलाक़ात एक लड़की से हुई। जिस के दूध सूखे हुए नहीं थे। ये उस को पसंद आ गई। बैंड न बजा लेकिन शादी हो गई। पहली अपने बरश उठा कर ले गई और अलग रहने लगी।

ये नाचाक़ी पहले तो दोनों के लिए तल्ख़ी का मुअज्जिब हुई लेकिन बाद में एक अजीब-ओ-ग़रीब मिठास में तबदील हो गई। उस की सहेली ने जो दूसरा शौहर तबदील करने के बाद सारे यूरोप का चक्कर लगा कर आई थी और अब दिक़ की मरीज़ थी, इस मिठास को क्यूबिक-आर्ट में पेंट किया। साफ़ शफ़्फ़ाफ़ चीनी के बे-शुमार क्यूब थे जो थूहर के पौदों के दरमियान इस अंदाज़ से ऊपर तले रखे थे कि उन से दो शक्लें बन गईं थी। उस पर शहद की मक्खियाँ बैठी रस चूस रही थीं।

उस की दूसरी सहेली ने ज़हर खा कर ख़ुद-कुशी कर ली। जब उस को ये अल्म-नाक ख़बर मिली तो वो बे-होश हो गई। मालूम नहीं बे-होशी नई थी या वही पुरानी जो बड़े तेज़ बुख़ार के बाद ज़हूर में आई थी।

उस का बाप यू-डी क्लोन में था। जहाँ उस का होटल उस की लेडी स्टेनोग्राफर का सर सहलाता था। उस की मम्मी ने घर का सारा हिसाब किताब अधेड़ उम्र की हट्टी कट्टी मुलाज़िमा के हवाले कर दिया था। अब उस को ड्राइविंग आ गई थी मगर बहुत बीमार हो गई थी। मगर फिर भी उस को ड्राइवर के बिन माँ के पिल्ले का बहुत ख़याल था। वो उस को अपना मोबिल ऑयल पिलाती थी।

उस की भाभी और उस के भाई की ज़िंदगी बहुत अधेड़ और हट्टी कट्टी हो गई थी। दोनों आपस में बड़े प्यार से मिलते थे कि अचानक एक रात जब कि मुलाज़िमा और उस का भाई घर का हिसाब किताब कर रहे थे, उस की भाभी नुमूदार हुई, वो मुजर्रिद थी....... उस के हाथ में क़लम था न बरश। लेकिन उस ने दोनों का हिसाब साफ़ कर दिया।

सुब्ह कमरे में से जमे हुए लहू के दो बड़े बड़े फुंदने निकले जो उस की भाभी के गले में लगा दिए गए।

अब वो क़दरे होश में आई। ख़ावंद से नाचाक़ी के बाइस उस की ज़िंदगी तल्ख़ हो कर बाद में अजीबओ-गरीब मिठास में तबदील हो गई थी। उस ने उस को थोड़ा सा तल्ख़ बनाने की कोशिश की और शराब पीना शुरू की, मगर ना-काम रही। इस लिए कि मिक़दार कम थी.......उस ने मिक़दार बढ़ा दी हत्ता कि वो उस में डुबकियाँ लेने लगी.......लोग समझते थे कि अब ग़र्क़ हुई मगर वो सतह पर उभर आती थी। मुँह से शराब पोंछती हुई और क़हक़हे लगाती हुई। सुब्ह को जब उठती तो उसे महसूस होता कि रात भर उस के जिस्म का ज़र्रा ज़र्रा धाड़ें मार मार कर रोता रहा है। उस के वो सब बच्चे जो पैदा हो सकते थे, उन क़ब्रों में जो उन के लिए बन सकती थीं, उस दूध के लिए जो उन का हो सकता था, बिलक बिलक कर रो रहे हैं। मगर उस के दूध कहाँ थे....... वो तो जंगली बिल्ले पी चुके थे।

वो ज़्यादा पीती कि अथाह समुंद्र में डूब जाये मगर उस की ख़्वाहिश पूरी नहीं हुई। ज़हीन थी। पढ़ी लिखी थी। जिन्सी मौज़ूआत पर बगै़र किसी तसन्नो के बे-तकल्लुफ़ गुफ़्तुगू करती थी। मर्दों के साथ जिस्मानी रिश्ता क़ाएम करने में कोई मज़ाएक़ा नहीं समझती थी, मगर फिर भी कभी कभी रात की तन्हाई में उस का जी चाहता था कि अपनी किसी बद-आदत मुर्ग़ी की तरह झाड़ियों के पीछे जाये और एक अंडा दे आए।

बिलकुल खोखली हो गई। सिर्फ़ हड्डियों का ढांचा बाक़ी रह गया तो उस से लोग दूर रहने लगे....... वो समझ गई, चुनांचे वो उन के पीछे न भागी और अकेली घर में रहने लगी। सिगरेट पर सिगरेट फूंकती, शराब पीती और जाने क्या सोचती रहती.......रात को बहुत कम सोती थी। कोठी के इर्द-गिर्द घूमती रहती थी।

सामने क्वार्टर में ड्राइवर का बिन माँ का बच्चा मोबिल ऑयल के लिए रोता रहता था मगर उस की माँ के पास ख़त्म हो गया था। ड्राइवर ने एक्सीडेंट कर दिया था।

मोटर गैराज में और उसकी माँ हस्पताल में पड़ी थी। जहां उस की एक टांग काटी जा चुकी थी, दूसरी काटी जाने वाली थी।

वो कभी कभी क्वार्टर के अंदर झांक कर देखती तो उस को महसूस होता कि उस के दूधों की तलछट में हल्की सी लरज़िश पैदा हुई है, मगर इस बद-ज़ाएक़ा से तो उस के बच्चे के होंट भी तर न होते।

उस के भाई ने कुछ अर्से से बाहर रहना शुरू कर दिया था। आख़िर एक दिन उस का ख़त स्वीटज़रलैंड से आया कि वो वहाँ अपना इलाज करा रहा है, नर्स बहुत अच्छी है। हस्पताल से निकलते ही वो उस से शादी करने वाला है।

अधेड़ उम्र की हट्टी कट्टी मुलाज़िमा ने थोड़ा ज़ेवर, कुछ नक़्दी और बहुत से कपड़े जो उस की मम्मी के थे, चुराए और चंद रोज़ के बाद ग़ाएब हो गई। इस के बाद उस की माँ ऑप्रेशन ना-काम होने के बाइस हस्पताल में मर गई।

उस का बाप जनाज़े में शामिल हुआ। इस के बाद उस ने उस की सूरत न देखी।

अब वो बिलकुल तन्हा थी। जितने नौकर थे, उस ने अलाहदा कर दिए, ड्राइवर समेत। उस के बच्चे के लिए उस ने एक आया रख दी....... कोई बोझ सिवाए उस के ख़यालों के बाक़ी न रहा था। कभी कभार अगर कोई उस से मिलने आता तो वो अंदर से चिल्ला उठीती थी। “चले जाओ.......जो कोई भी तुम हो, चले जाओ.......मैं किसी से मिलना नहीं चाहती।”

सेफ में उस को अपनी माँ के बे-शुमार क़ीमती जे़वरात मिले थे। उस के अपने भी थे जिन से उन को कोई रग़्बत न थी। मगर अब वो रात को घंटों आइने के सामने नंगी बैठ कर ये तमाम ज़ेवर अपने बदन पर सजाती और शराब पी कर कुन सुरी आवाज़ में फ़हश गाने गाती थी। आस पास और कोई कोठी नहीं थी इस ले उसे मुकम्मल आज़ादी थी।

अपने जिस्म को तो वो कई तरीक़ों से नंगा कर चुकी थी। अब वो चाहती थी कि अपनी रूह को भी नंगा कर दे। मगर उस में वो ज़बरदस्त हिजाब महसूस करती थी। इस हिजाब को दबाने के लिए सिर्फ़ एक ही तरीक़ा उस की समझ में आया था कि पिए और ख़ूब पिए और इस हालत में अपने नंगे बदन से मदद ले....... मगर ये एक बहुत बड़ा अल्मिया था कि वो आख़िरी हद तक नंगा हो कर सतर-पोश हो गया था।

तस्वीरें बना बना कर वो दिखा चुकी थी.......एक अर्से से उस का पेंटिंग का सामान संदूकचे में बंद पड़ा था। लेकिन एक दिन उस ने सब रंग निकाले और बड़े बड़े प्यालों में घोले। तमाम बरश धो धा कर एक तरफ़ रखे और आइने के सामने नंगी खड़ी हो गई और अपने जिस्म पर नए नए ख़द-ओ-ख़ाल बनाने शुरू किए। उस की ये कोशिश अपने वजूद को मुकम्मल तौर पर उर्यां करने की थी।

वो अपना सामना हिस्सा ही पेंट कर सकती थी। दिन भर वो इस में मसरूफ़ रही। बिन खाए पिए, आइने के सामने खड़ी अपने बदन पर मुख़्तलिफ़ रंग जमाती और टेढ़े बंगे ख़ुतूत बनाती रही। उस के बरश में एतिमाद था....... आधी रात के क़रीब उस ने दूर हट कर अपना ब-ग़ौर जाएज़ा लेकर इत्मिनान का सांस लिया। इस के बाद उस ने तमाम जे़वरात एक एक करके अपने रंगों से लिथड़े हुए जिस्म पर सजाए और आइने में एक बार फिर ग़ौर से देखा कि एक दम आहट हुई।

उस ने पलट कर देखा.......एक आदमी छुरा हाथ में लिए, मुँह पर ढाटा बांधे खड़ा था जैसे हमला करना चाहता है। मगर जब वो मुड़ी तो हमला आवर के हलक़ से चीख़ बुलंद हुई। छुरा उस के हाथ से गिर पड़ा अफ़रा-तफ़री के आलम में कभी उधर का रुख़ क्या कभी इधर....... आख़िर जो रस्ता मिला, उस में से भाग निकला।

वो उस के पीछे भागी। चीख़ती, पुकारती। “ठहरो....... ठहरो में तुम से कुछ नहीं कहूँगी.......ठहरो!”

मगर चोर ने उस की एक न सुनी और दीवार फांद कर ग़ाएब हो गया। मायूस हो कर वापस आई। दरवाज़े की दहलीज़ के पास चोर का ख़ंजर पड़ा था। उस ने उठा लिया और अन्दर चली गई....... अचानक उस की नज़रें आइने से दो चार हुईं। जहाँ उस का दिल था, वहाँ उस ने मियान नुमा चमड़े के रंग का ख़ौल सा बनाया हुआ था। उस ने उस पर ख़ंजर रख कर देखा। ख़ौल बहुत छोटा था। उस ने ख़ंजर फेंक दिया और बोतल में से शराब के चार पाँच बड़े बड़े घूँट पी कर उधर टहलने लगी.......वो कई बोतलें ख़ाली कर चुकी थी। खाया कुछ भी नहीं था।

देर तक टहलने के बाद वो फिर आइने के सामने आई। उस के गले में इज़ार-बंद नुमा गुलू-बंद था जिस के बड़े बड़े फुंदने थे। ये उस ने बरश से बनाया था।

दफ़अतन उस को ऐसा महसूस हुआ कि ये गुलूबंद तंग होने लगा है। आहिस्ता आहिस्ता वो उस के गले के अंदर धंसता जा रहा है....... वो ख़ामोश खड़ी आइने में आँखें गाड़ी रही जो उसी रफ़्तार से बाहर निकल रही थीं....... थोड़ी देर के बाद उस के चेहरे की तमाम रंगें फूलने लगीं। फिर एक दम से उस ने चीख़ मारी और औंधे मुँह फ़र्श पर गिर पड़ी।

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सआदत हसन मंटो की बदनाम कहानियाँ
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वो इंटर क्लास के ज़नाना डिब्बे से निकली उस के हाथ में छोटा सा अटैची केस था। जावेद पेशावर से उसे देखता चला आ रहा था। रावलपिंडी के स्टेशन पर गाड़ी काफ़ी देर ठहरी तो वो साथ वाले ज़नाना डिब्बे के पास से कई

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क़ीमे की बजाय बोटियाँ

20 अप्रैल 2022
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डाक्टर सईद मेरा हम-साया था उस का मकान मेरे मकान से ज़्यादा से ज़्यादा दो सौ गज़ के फ़ासले पर होगा। उस की ग्रांऊड फ़्लोर पर उस का मतब था। मैं कभी कभी वहां चला जाता एक दो घंटे की तफ़रीह हो जाती बड़ा बज़्लास

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ख़ाली बोतलें, ख़ाली डिब्बे

20 अप्रैल 2022
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ये हैरत मुझे अब भी है कि ख़ास तौर पर ख़ाली बोतलों और डिब्बों से मुजर्रद मर्दों को इतनी दिलचस्पी क्यूं होती है?...... मुजर्रद मर्दों से मेरी मुराद उन मर्दों से है जिन को आम तौर पर शादी से कोई दिलचस्पी

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ख़ुवाब-ए-ख़रगोश

20 अप्रैल 2022
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सुरय्या हंस रही थी। बे-तरह हंस रही थी। उस की नन्ही सी कमर इस के बाइस दुहरी होगई थी। उस की बड़ी बहन को बड़ा ग़ुस्सा आया। आगे बढ़ी तो सुरय्या पीछे हट गई। और कहा “जा मेरी बहन, बड़े ताक़ में से मेरी चूड़ियो

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गर्म सूट

20 अप्रैल 2022
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गंडा सिंह ने चूँकि एक ज़माने से अपने कपड़े तबदील नहीं किए थे। इस लिए पसीने के बाइस उन में एक अजीब क़िस्म की बू पैदा होगई थी जो ज़्यादा शिद्दत इख़तियार करने पर अब गंडा सिंह को कभी कभी उदास करदेती थी। उस

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चन्द मुकालमे

20 अप्रैल 2022
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“अस्सलाम-ओ-अलैकुम” “वाअलैकुम अस्सलाम” “कहीए मौलाना क्या हाल है” “अल्लाह का फ़ज़ल-ओ-करम है हर हाल में गुज़र रही है” “हज से कब वापस तशरीफ़ लाए” “जी आप की दुआ से एक हफ़्ता होगया है” “अ

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गोली

20 अप्रैल 2022
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शफ़क़त दोपहर को दफ़्तर से आया तो घर में मेहमान आए हुए थे। औरतें थीं जो बड़े कमरे में बैठी थीं। शफ़क़त की बीवी आईशा उन की मेहमान नवाज़ी में मसरूफ़ थी। जब शफ़क़त सहन में दाख़िल हुआ तो उस की बीवी बाहर निकली

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चूहे-दान

20 अप्रैल 2022
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शौकत को चूहे पकड़ने में बहुत महारत हासिल है। वो मुझ से कहा करता है ये एक फ़न है जिस को बाक़ायदा सीखना पड़ता है और सच्च पूछिए तो जो जो तरकीबें शौकत को चूहे पकड़ने के लिए याद हैं, उन से यही मालूम होता है क

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चोरी

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स्कूल के तीन चार लड़के अलाव के गिर्द हलक़ा बना कर बैठ गए। और उस बूढ़े आदमी से जो टाट पर बैठा अपने इस्तिख़वानी हाथ तापने की ख़ातिर अलाव की तरफ़ बढ़ाए था कहने लगे “बाबा जी कोई कहानी सनाईए?” मर्द-ए-मुअम्म

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ऊपर नीचे और दरमियान

20 अप्रैल 2022
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मियां साहब! बहुत देर के बाद आज मिल बैठने का इत्तिफ़ाक़ हुआ है। बेगम साहिबा! जी हाँ! मियां साहब! मस्रूफ़ियतें... बहुत पीछे हटता हूँ मगर नाअह्ल लोगों का ख़याल करके क़ौम की पेश की हुई ज़िम्मेदारिय

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क़र्ज़ की पीते थे

20 अप्रैल 2022
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एक जगह महफ़िल जमी थी। मिर्ज़ा ग़ालिब वहां से उकता कर उठे, बाहर हवादार मौजूद था। उसमें बैठे और अपने घर का रुख़ किया। हवादार से उतर कर जब दीवानख़ाने में दाख़िल हुए तो क्या देखते हैं कि मथुरादास महाजन बैठ

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कबूतरों वाला साईं

20 अप्रैल 2022
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पंजाब के एक सर्द देहात के तकिए में माई जीवां सुबह सवेरे एक ग़लाफ़ चढ़ी क़ब्र के पास ज़मीन के अंदर खुदे हुए गढ़े में बड़े बड़े उपलों से आग लगा रही है। सुबह के सर्द और मटियाले धुँदलके में जब वो अपनी पानी भर

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काली कली

20 अप्रैल 2022
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जब उस ने अपने दुश्मन के सीने में अपना छुरा पैवस्त किया और ज़मीन पर ढेर होगया। उस के सीने के ज़ख़्म से सुर्ख़ सुर्ख़ लहू का चशमा फूटने लगा और थोड़ी ही देर में वहां लहू का छोटा सा हौज़ बन गया। क़ातिल पास ख

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क़ासिम

20 अप्रैल 2022
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बावर्चीख़ाना की मटमैली फ़िज़ा में बिजली का अंधा सा बल्ब कमज़ोर रोशनी फैला रहा था। स्टोव पर पानी से भरी हुई केतली धरी थी। पानी का खोलाओ और स्टोव के हलक़ से निकलते हुए शोले मिल जुल कर मुसलसल शोर बरपा कररह

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बासित

20 अप्रैल 2022
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बासित बिल्कुल रज़ामंद नहीं था, लेकिन माँ के सामने उसकी कोई पेश न चली। अव्वल अव्वल तो उसको इतनी जल्दी शादी करने की कोई ख़्वाहिश नहीं थी, इसके अलावा वो लड़की भी उसे पसंद नहीं थी जिससे उसकी माँ उसकी शादी

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तीन मोटी औरतें

20 अप्रैल 2022
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एक का नाम मिसेज़ रिचमेन और दूसरी का नाम मिसेज़ सतलफ़ था। एक बेवा थी तो दूसरी दो शौहरों को तलाक़ दे चुकी थी। तीसरी का नाम मिस बेकन था। वो अभी नाकतख़दा थी। उन तीनों की उम्र चालीस के लगभग थी। और ज़िंदगी क

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लालटेन

20 अप्रैल 2022
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मेरा क़ियाम “बटोत” में गो मुख़्तसर था। लेकिन गूनागूं रुहानी मसर्रतों से पुर। मैंने उसकी सेहत अफ़्ज़ा मुक़ाम में जितने दिन गुज़ारे हैं उनके हर लम्हे की याद मेरे ज़ेहन का एक जुज़्व बन के रह गई है जो भुलाये

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क़ुदरत का उसूल

20 अप्रैल 2022
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क़ुदरत का ये उसूल है कि जिस चीज़ की मांग न रहे, वो ख़ुद-बख़ुद या तो रफ़्ता रफ़्ता बिलकुल नाबूद हो जाती है, या बहुत कमयाब अगर आप थोड़ी देर के लिए सोचें तो आप को मालूम हो जाएगा कि यहां से कितनी अजनास ग़ाय

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ख़त और उसका जवाब

20 अप्रैल 2022
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मंटो भाई ! तस्लीमात! मेरा नाम आप के लिए बिलकुल नया होगा। मैं कोई बहुत बड़ी अदीबा नहीं हूँ। बस कभी कभार अफ़साना लिख लेती हूँ और पढ़ कर फाड़ फेंकती हूँ। लेकिन अच्छे अदब को समझने की कोशिश ज़रूर करती हूँ

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ख़ुदा की क़सम

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उधर से मुसलमान और इधर से हिंदू अभी तक आ जा रहे थे। कैम्पों के कैंप भरे पड़े थे। जिनमें ज़रब-उल-मिस्ल के मुताबिक़ तिल धरने के लिए वाक़ई कोई जगह नहीं थी। लेकिन इसके बावजूद उनमें ठूंसे जा रहे थे। ग़ल्ला न

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ख़ुशबू-दार तेल

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“आप का मिज़ाज अब कैसा है?” “ये तुम क्यों पूछ रही हो अच्छा भला हूँ मुझे क्या तकलीफ़ थी ” “तकलीफ़ तो आप को कभी नहीं हुई एक फ़क़त मैं हूँ जिस के साथ कोई न कोई तकलीफ़ या आरिज़ा चिमटा रहता है ” “य

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मम्मी

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नाम उसका मिसेज़ स्टेला जैक्सन था मगर सब उसे मम्मी कहते थे। दरम्याने क़द की अधेड़ उम्र की औरत थी। उसका ख़ाविंद जैक्सन पिछली से पिछली जंग-ए-अ’ज़ीम में मारा गया था, उसकी पेंशन स्टेला को क़रीब क़रीब दस बरस से

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इश्क़-ए-हक़ीक़ी

20 अप्रैल 2022
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इ’श्क़-ओ-मोहब्बत के बारे में अख़लाक़ का नज़रिया वही था जो अक्सर आ’शिकों और मोहब्बत करने वालों का होता है। वो रांझे पीर का चेला था। इ’श्क़ में मर जाना उसके नज़दीक एक अज़ीमुश्शान मौत मरना था। अख़लाक़ तीस

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यज़ीद

20 अप्रैल 2022
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सन सैंतालीस के हंगामे आए और गुज़र गए। बिल्कुल उसी तरह जिस मौसम में ख़िलाफ़-ए-मा’मूल चंद दिन ख़राब आएं और चले जाएं। ये नहीं कि करीम दाद, मौला की मर्ज़ी समझ कर ख़ामोश बैठा रहा। उसने उस तूफ़ान का मर्दाना

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उल्लू का पट्ठा

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क़ासिम सुबह सात बजे लिहाफ़ से बाहर निकला और ग़ुसलख़ाने की तरफ चला। रास्ते में, ये इसको ठीक तौर पर मालूम नहीं, सोने वाले कमरे में, सहन में या ग़ुसलख़ाने के अंदर उसके दिल में ये ख़्वाहिश पैदा हुई कि वो किसी

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अब और कहने की ज़रुरत नहीं

20 अप्रैल 2022
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ये दुनिया भी अ’जीब-ओ-ग़रीब है... ख़ासकर आज का ज़माना। क़ानून को जिस तरह फ़रेब दिया जाता है, इसके मुतअ’ल्लिक़ शायद आपको ज़्यादा इल्म न हो। आजकल क़ानून एक बेमा’नी चीज़ बन कर रह गया है । इधर कोई नया क़ानून बनता

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नया क़ानून

20 अप्रैल 2022
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मंगू कोचवान अपने अड्डे में बहुत अक़लमंद आदमी समझा जाता था। गो उसकी तालीमी हैसियत सिफ़र के बराबर थी और उसने कभी स्कूल का मुँह भी नहीं देखा था लेकिन इसके बावजूद उसे दुनिया भर की चीज़ों का इल्म था। अड्ड

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