कोई किसी को कितना चाहे कि वह उसको भूल ना पाए | क्यों रास्तों के फूल कभी दरगाहों पर चढ़ ना
दोस्तों नें मेरे मुझको सिखाया तो बहुत अब दु
जो खुशी है एक बच्चे की तोतली आवाज में | जाके ढूँढों ये मिलती नहीं किसी भी बाजार में ||1||<
खाके ठोकर जो गिरें वो तो सँभालूँ यारो,
◆◆ मेरे यकीं को न नजरों से तुम गिरा देना,<
अपनी कोई भी पुरानी चीज़ उठाकर देखिये,
◆◆
मुझको वो मेरे गुनाहों की सज़ा देते हैं,
ज़ह्र देते है व
◆◆ भूखे नंगे शहर में हरसूं बसते हैं खलीफे
◆◆ उसको लफ्ज़ ए मुहब्बत सिखाता रहा,
मेरा वजूद है मत मान यूँ फिजूल मुझे..! न हो यकीन तो बेहतर यही है, भूल मुझे..!!
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