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gazal

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कोई किसी को कितना चाहे कि वह उसको भूल ना पाए |

क्यों रास्तों के फूल कभी दरगाहों पर चढ़ ना

दोस्तों नें मेरे मुझको  सिखाया तो बहुत 

अब  दु

ऐसे भी ख्वाब मेरे यूँ बिखरेगें कभी सोचा ना था |
हर दुआ में मांगा बहुत पर उसे मेरा होन

है यह आरजू की उनसे मेरी एक मुलाकात हो जाए |
शायद पुरानी यादों की मेरी कुछ ना कुछ बात

पूछते-पुछते पहुँचा उस बाजार में जहाँ रौनक- 
ए-महफिलें थी बड़ी |
बिकनें

कुछ थे सवाल तेरे  तो  कुछ थे सवाल मेरें |
कुछ थे जवाब मेरें  तो 

देखो बुजुर्गों की जायदाद से आज हम बेदखल हो गए हैं |</

जाने कब से हम उनको खुदा कह रहे हैं |
और एक वो हैं जो हमको सजा दे रहे हैं ||1||
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उन्हें ना आने के जिद है पर मेरे इंतजार की हद नहीं |
किस को कौन समझाए द

           
शहर-शहर घूमता हूं तेरी एक नजर के लिए |

रात भर जागता हूं मैं जाने क्या-क्या सोचा करता हूं |
जिंदगी रुक सी गई है अब तो हर रोज

जो खुशी है एक बच्चे की तोतली आवाज में |

जाके ढूँढों ये मिलती नहीं किसी भी बाजार में ||1||<


खाके ठोकर जो गिरें वो तो सँभालूँ यारो,

◆◆

मेरे यकीं को न नजरों से तुम गिरा देना,<


◆◆

अपनी कोई भी पुरानी चीज़ उठाकर देखिये,

मुझको वो मेरे गुनाहों की सज़ा देते हैं,
ज़ह्र देते है व

◆◆

भूखे नंगे शहर में हरसूं बसते हैं खलीफे

◆◆

उसको लफ्ज़ ए मुहब्बत सिखाता रहा,

मेरा वजूद है मत मान यूँ फिजूल मुझे..!

न हो यकीन तो बेहतर यही है, भूल मुझे..!!


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