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गुलकी बन्नो

धर्मवीर भारती

1 अध्याय
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4 पाठक
25 अप्रैल 2022 को पूर्ण की गई
निःशुल्क

यह एक ऐसी कुबड़ी गुलकी की कहानी है जो कि घेघा बुआ के चौतरे पर बैठकर तरकारियाँ बेचकर अपना गुजर-बसर स्वयं करती है। उसके पिता की मृत्यु के पश्चात् से वह अकेली ही रहती है। उसके पति मनसेधू ने उसे छोड़कर दूसरा ब्याह कर लिया। वास्तव में गुलकी का कूबड़ उसके पति की ही देन है। 25-26 की उम्र में ही झुर्रियों से भरे चेहरे और झुककर चलने के कारण वह बूढ़ी नज़र आने लगी। मौहल्ले-भर के बच्चे उसकी दुकान के पास दिनभर खेलते और गुलकी का मज़ाक भी उड़ाते थे। इन्हीं बच्चों में मिरवा और उसकी छोटी बहन मटकी भी खेला करते थे। वे जानकी उस्ताद के बच्चे थे, जो कि किसी रोग के कारण गल-गल कर मरे थे। उनके ये दो बच्चे भी विकलांग और विक्षिप्त तथा रोगग्रस्त पैदा हुए थे। मिरवा को गाना अच्छा लगता था इसीलिए वह गुलकी की दुकान के पास बैठकर 'तुमे बछ याद कलते अम छनम तेली कछम!' जैसे गाने गाया करता था और उसकी बहन गुलकी से कुछ-न-कुछ खाने के लिए ले लिया करती थी। लगातार भारी बारिश से उसका घर भी गिर गया तब वह सत्ती के साथ उसी के घर में रहने लगी। सत्ती ने बुआ का पाँच महीने का बाकी किराया भी चुका दिया। उसने मनसेधू के वापस लौटने पर गुलकी को लाख मना किया कि वह उसके साथ न जाए किंतु गुलकी के लिए पति का साथ और घर ही सबकुछ था अतः वह न मानी। जिस पति के लौटने पर वह इतनी खुश थी वह उसे अपनी नई बीवी तथा उसके बच्चे की देखभाल के लिए लेने आया था 

gulki banno

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