बरसों की आरी हँस रही थी,
घटनाओं के दाँत नुकीले थे।
अकस्मात एक पाया टूट गया,
आसमान की चौकी पर से,
शीशे का सूरज फिसल गया
आँखों में कंकड़ छितरा गए
और नज़र जख़्मी हो गई
कुछ दिखाई नहीं देता
दुनिया शायद अब भी बसती है
22 अक्टूबर 2021
बरसों की आरी हँस रही थी,
घटनाओं के दाँत नुकीले थे।
अकस्मात एक पाया टूट गया,
आसमान की चौकी पर से,
शीशे का सूरज फिसल गया
आँखों में कंकड़ छितरा गए
और नज़र जख़्मी हो गई
कुछ दिखाई नहीं देता
दुनिया शायद अब भी बसती है