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हमेशा सोच समझ कर काम करो

19 जनवरी 2022

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दक्षिण प्रदेश के एक प्रसिद्ध नगर पाटलीपुत्र में मणिभद्र नाम का एक धनिक महाजन रहता था । लोक-सेवा और धर्मकार्यों में रत रहने से उसके धन-संचय में कुछ़ कमी आ गई, समाज में मान घट गया । इससे मणिभद्र को बहुत दुःख हुआ । दिन-रात चिन्तातुर रहने लगा । यह चिन्ता निष्कारण नहीं थी । धनहीन मनुष्य के गुणों का भी समाज में आदर नहीं होता।
उसके शील-कुल-स्वभाव की श्रेष्ठता भी दरिद्रता में दब जाती है । बुद्धि, ज्ञान और प्रतिभा के सब गुण निर्धनता के तुषार में कुम्हला जाते हैं । जैसे पतझड़ के झंझावात में मौलसरी के फूल झड़ जाते हैं, उसी तरह घर-परिवार के पोषण की चिन्ता में उसकी बुद्धि कुन्द हो जाती है। घर की घी-तेल-नकक-चावल की निरन्तर चिन्ता प्रखर प्रतिभा-संपन्न व्यक्ति की प्रतिभा को भी खा जाती है । धनहीन घर श्मसान का रुप धारण कर लेता है । प्रियदर्शना पत्‍नी का सौन्दर्य भी रुखा और निर्जीव प्रतीत होने लगता है । जलाशय में उठते बुलबुलों की तरह उनकी मानमर्यादा समाज में नष्ट हो जाती है ।
निर्धनता की इन भयानक कल्पनाओं से मणिभद्र का दिल कांप उठा । उसने सोचा, इस अपमानपूर्ण जीवन से मृत्यु अच्छी़ है । इन्हीं विचारों में डूबा हुआ था कि उसे नींद आ गई । नींद में उसने एक स्वप्न देखा । स्वप्न में पद्मनिधि ने एक भिक्षु की वेषभूषा में उसे दर्शन दिये, और कहा "कि वैराग्य छो़ड़ दे । तेरे पूर्वजों ने मेरा भरपूर आदर किया था । इसीलिये तेरे घर आया हूँ । कल सुबह फिर इसी वेष में तेरे पास आऊँगा । उस समय तू मुझे लाठी की चोट से मार डालना । तब मैं मरकर स्वर्णमय हो जाउँगा । वह स्वर्ण तेरी ग़रीबी को हमेशा के लिए मिटा देगा ।"
सुबह उठने पर मणिभद्र इस स्वप्न की सार्थकता के संबन्ध में ही सोचता रहा । उसके मन में विचित्र शंकायें उठने लगीं । न जाने यह स्वप्न सत्य था या असत्य, यह संभव है या असंभव, इन्हीं विचारों में उसका मन डांवाडोल हो रहा था । हर समय धन की चिन्ता के कारण ही शायद उसे धनसंचय का स्वप्न आया था । उसे किसी के मुख से सुनी हुई यह बात याद आ गई कि रोगग्रस्त, शोकातुर, चिन्ताशील और कामार्त्त मनुष्य के स्वप्न निरथक होते हैं । उनकी सार्थकता के लिए आशावादी होना अपने को धोखा देना है ।
मणिभद्र यह सोच ही रहा था कि स्वप्न में देखे हुए भिक्षु के समान ही एक भिक्षु अचानक वहां आ गया । उसे देखकर मणिभद्र का चेहरा खिल गया, सपने की बात याद आ गई । उसने पास में पड़ी लाठी उठाई और भिक्षु के सिर पर मार दी । भिक्षु उसी क्षण मर गया । भूमि पर गिरने के साथ ही उसका सारा शरीर स्वर्णमय हो गया । मणिभद्र ने उसका स्वर्णमय मृतदेह छिपा लिया ।
किन्तु, उसी समय एक नाई वहां आ गया था । उसने यह सब देख लिया था । मणिभद्र ने उसे पर्याप्त धन-वस्त्र आदि का लोभ देकर इस घटना को गुप्त रखने का आग्रह किया । नाई ने वह बात किसी और से तो नहीं कही, किन्तु धन कमाने की इस सरल रीति का स्वयं प्रयोग करने का निश्‍चय कर लिया । उसने सोचा यदि एक भिक्षु लाठी से चोट खाकर स्वर्णमय हो सकता है तो दूसरा क्यों नहीं हो सकता । मन ही मन ठान ली कि वह भी कल सुबह कई भिक्षुओं को स्वर्णमय बनाकर एक ही दिन में मणिभद्र की तरह श्रीसंपन्न हो जाएगा । इसी आशा से वह रात भर सुबह होने की प्रतीक्षा करता रहा, एक पल भी नींद नहीं ली ।
सुबह उठकर वह भिक्षुओं की खोज में निकला । पास ही एक भिक्षुओं का मन्दिर था । मन्दिर की तीन परिक्रमायें करने और अपनी मनोरथसिद्धि के लिये भगवान बुद्ध से वरदान मांगने के बाद वह मन्दिर के प्रधान भिक्षु के पास गया, उसके चरणों का स्पर्श किया और उचित वन्दना के बाद यह विनम्र निवेदन किया कि- "आज की भिक्षा के लिये आप समस्त भिक्षुओं समेत मेरे द्वार पर पधारें ।"
प्रधान भिक्षु ने नाई से कहा- "तुम शायद हमारी भिक्षा के नियमों से परिचित नहीं हो । हम उन ब्राह्मणों के समान नहीं हैं जो भोजन का निमन्त्रण पाकर गृहस्थों के घर जाते हैं । हम भिक्षु हैं, जो यथेच्छा़ से घूमते-घूमते किसी भी भक्तश्रावक के घर चले जाते हैं और वहां उतना ही भोजन करते हैं जितना प्राण धारण करने मात्र के लिये पर्याप्त हो । अतः, हमें निमन्त्रण न दो । अपने घर जाओ, हम किसी भी दिन तुम्हारे द्वार पर अचानक आ जायेंगे ।"
नाई को प्रधान भिक्षु की बात से कुछ़ निराशा हुई, किन्तु उसने नई युक्ति से काम लिया । वह बोला- "मैं आपके नियमों से परिचित हूं, किन्तु मैं आपको भिक्षा के लिये नहीं बुला रहा । मेरा उद्देश्य तो आपको पुस्तक-लेखन की सामग्री देना है । इस महान् कार्य की सिद्धि आपके आये बिना नहीं होगी ।" प्रधान भिक्षु नाई की बात मान गया । नाई ने जल्दी से घर की राह ली । वहां जाकर उसने लाठियां तैयार कर लीं, और उन्हें दरवाजे के पास रख दिया । तैयारी पूरी हो जाने पर वह फिर भिक्षुओं के पास गया और उन्हें अपने घर की ओर ले चला । भिक्षु-वर्ग भी धन-वस्त्र के लालच से उसके पीछे-पीछे चलने लगा । भिक्षुओं के मन में भी तृष्णा का निवास रहता ही है । जगत् के सब प्रलोभन छोड़ने के बाद भी तृष्णा संपूर्ण रुप से नष्ट नहीं होती । उनके देह के अंगों में जीर्णता आ जाती है, बाल रुखे हो जाते हैं, दांत टूट कर गिर जाते हैं, आंख-कान बूढे़ हो जाते हैं, केवल मन की तृष्णा ही है जो अन्तिम श्‍वास तक जवान रहती है ।
उनकी तृष्णा ने ही उन्हें ठग लिया । नाई ने उन्हें घर के अन्दर लेजाकर लाठियों से मारना शुरु कर दिया । उनमें से कुछ तो वहीं धराशायी हो गये, और कुछ़ का सिर फूट गया । उनका कोलाहल सुनकर लोग एकत्र हो गये । नगर के द्वारपाल भी वहाँ आ पहुँचे । वहाँ आकर उन्होंने देखा कि अनेक भिक्षुओं का मृतदेह पड़ा है, और अनेक भिक्षु आहत होकर प्राण-रक्षा के लिये इधर-उधर दौड़ रहे हैं
नाई से जब इस रक्तपात का कारण पूछा़ गया तो उसने मणिभद्र के घर में आहत भिक्षु के स्वर्णमय हो जाने की बात बतलाते हुए कहा कि वह भी शीघ्र स्वर्ण संचय करना चाहता था । नाई के मुख से यह बात सुनने के बाद राज्य के अधिकारियों ने मणिभद्र को बुलाया और पूछा कि- "क्या तुमने किसी भिक्षु की हत्या की है ?"
मणिभद्र ने अपने स्वप्न की कहानी आरंभ से लेकर अन्त तक सुना दी । राज्य के धर्माधिकारियों ने उस नाई को मृत्युदण्ड की आज्ञा दी । और कहा---ऐसे 'कुपरीक्षितकारी'- बिना सोचे काम करने वाले के लिये यही दण्ड उचित था । मनुष्य को उचित है कि वह अच्छी़ तरह देखे, जाने, सुने और उचित परीक्षा किये बिना कोई भी कार्य न करे । अन्यथा उसका वही परिणाम होता है जो इस कहानी के नाई का हुआ ।

सीख : अच्छी़ तरह देखे, जाने, सुने और उचित परीक्षा किये बिना कोई भी कार्य न करो ।
   

Khush

Khush

बहुत सुंदर प्रस्तुति 👌👌👌

5 दिसम्बर 2022

14
रचनाएँ
सम्पूर्ण पंचतंत्र भाग 5
5.0
पंचतंत्र नीति, कथा और कहानियों का संग्रह है जिसके मशहूर भारतीय रचयिता आचार्य विष्णु शर्मा है। पंचतंत्र की कहानी में बच्चों के साथ-साथ बड़े भी रुचि लेते हैं। पंचतंत्र की कहानी के पीछे कोई ना कोई शिक्षा या मूल छिपा होता है जो हमें सीख देती है। पंचतंत्र की कहानी बच्चे बड़ी चाव से पढ़ते हैं तथा सीख लेते हैं। बच्चों के कोमल मन में बातों को गहराई तक पहुंचाने का तरीका कहानियों से बेहतर और क्या हो सकता है। खासकर, पंचतंत्र की कहानियां, जिसमें बेहतर सीख, संस्कार व जीवन में अच्छी चीजों की ओर बढ़ने की प्रेरणा मौजूद होती है। पांच भागों में बंटी पंचतंत्र की कहानियां ही हैं, जो दोस्ती की अहमियत, व्यवहारिकता व नेतृत्व जैसी अहम बातों को सरल और आसान शब्दों में बच्चों तक पहुंचा कर उन पर गहरी छाप छोड़ जाती हैं। शायद यही वजह है कि अक्सर बचपन में सुनी कहानियां और उनकी सीख जीवन के अहम पड़ाव में मार्ग दर्शक के रूप में भी काम कर जाती हैं। हम कौआ-उल्लू के बीच का बैर, दोस्ती-दुश्मनी, दोस्तों के होने का लाभ, कर्म न करने से होने वाली हानि, हड़बड़ी में कदम उठाने से होने वाले नुकसान जैसी कई पंचतंत्र की कहानियां आप तक इस प्लेटफॉर्म के जरिए लेकर आ रहे हैं।
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हमेशा सोच समझ कर काम करो

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19 जनवरी 2022
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एक बार देवशर्मा नाम के ब्राह्मण के घर जिस दिन पुत्र का जन्म हुआ उसी दिन उसके घर में रहने वाली नकुली ने भी एक नेवले को जन्म दिया । देवशर्मा की पत्‍नी बहुत दयालु स्वभाव की स्त्री थी । उसने उस छो़टे नेवल

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मस्तक पर चक्र

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एक नगर में चार ब्राह्मण पुत्र रहते थे । चारों में गहरी मैत्री थी । चारों ही निर्धन थे । निर्धनता को दूर करने के लिए चारों चिन्तित थे । उन्होंने अनुभव कर लिया था कि अपने बन्धु-बान्धवों में धनहीन जीवन व

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जब शेर जी उठा/मूर्ख वैज्ञानिक

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एक नगर में चार मित्र रहते थे । उनमें से तीन बड़े वैज्ञानिक थे, किन्तु बुद्धिरहित थे; चौथा वैज्ञानिक नहीं था, किन्तु बुद्धिमान् था । चारों ने सोचा कि विद्या का लाभ तभी हो सकता है, यदि वे विदेशों में जाक

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चार मूर्ख पंडित

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एक स्थान पर चार ब्राह्मण रहते थे । चारों विद्याभ्यास के लिये कान्यकुब्ज गये । निरन्तर १२ वर्ष तक विद्या पढ़ने के बाद वे सम्पूर्ण शास्त्रों के पारंगत विद्वान् हो गये, किन्तु व्यवहार-बुद्धि से चारों खाल

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दो मछलियाँ और एक मेंढक

19 जनवरी 2022
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एक तालाब में दो मछलियाँ रहती थीं । एक थी शतबुद्धि (सौ बुद्धियों वाली), दूसरी थी सहस्त्रबुद्धि (हजार बुद्धियों वाली) । उसी तालाब में एक मेंढक भी रहता था । उसका नाम था एकबुद्धि । उसके पास एक ही बुद्धि थ

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संगीतमय गधा

19 जनवरी 2022
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एक धोबी का गधा था। गधे का नाम था--उद्धत। वह दिन भर कपडों के गट्ठर इधर से उधर ढोने में लगा रहता। धोबी स्वयं कंजूस और निर्दयी था। अपने गधे के लिए चारे का प्रबंध नहीं करता था। बस रात को चरने के लिए खुला

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दो सिर वाला जुलाहा

19 जनवरी 2022
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एक बार मन्थरक नाम के जुलाहे के सब उपकरण, जो कपड़ा बुनने के काम आते थे, टूट गये । उपकरणों को फिर बनाने के लिये लकड़ी की जरुरत थी । लकड़ी काटने की कुल्हाड़ी लेकर वह समुद्रतट पर स्थित वन की ओर चल दिया । समुद

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ब्राह्मण का सपना

19 जनवरी 2022
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एक नगर में कोई कंजूस ब्राह्मण रहता था । उसने भिक्षा से प्राप्त सत्तुओं में से थोडे़ से खाकर शेष से एक घड़ा भर लिया था । उस घड़े को उसने रस्सी से बांधकर खूंटी पर लटका दिया और उसके नीचे पास ही खटिया डाल

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वानरराज का बदला

19 जनवरी 2022
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एक नगर के राजा चन्द्र के पुत्रों को बन्दरों से खेलने का व्यसन था । बन्दरों का सरदार भी बड़ा चतुर था । वह सब बन्दरों को नीतिशास्त्र पढ़ाया करता था । सब बन्दर उसकी आज्ञा का पालन करते थे । राजपुत्र भी उन ब

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राक्षस का भय

19 जनवरी 2022
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एक नगर में भद्रसेन नाम का राजा रहता था। उसकी कन्या रत्‍नवती बहुत रुपवती थी। उसे हर समय यही डर रहता था कि कोई राक्षस उसका अपहरण न करले । उसके महल के चारों ओर पहरा रहता था, फिर भी वह सदा डर से कांपती रह

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अंधा, कुबड़ा और त्रिस्तनी

19 जनवरी 2022
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उत्तरी प्रदेश में मधुपुर नाम का एक नगर है। वहाँ मधुसेन नाम का एक राजा था। विषय सुख भोगने वाले उस राजा मधुसेन को एक तीन स्तनों वाली कन्या उत्पन्न हुई। तीन स्तनों वाली कन्या की उत्पत्ति सुनकर राजा ने कं

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दो सिर वाला पक्षी

19 जनवरी 2022
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एक तालाब में भारण्ड नाम का एक विचित्र पक्षी रहता था । इसके मुख दो थे, किन्तु पेट एक ही था । एक दिन समुद्र के किनारे घूमते हुए उसे एक अमृतसमान मधुर फल मिला । यह फल समुद्र की लहरों ने किनारे पर फैंक दिय

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ब्राह्मण-कर्कटक

19 जनवरी 2022
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किसी नगर में ब्रह्मदत्त नामक एक ब्राह्मण रहता था। एक बार किसी काम से उसे दूसरे गाँव जाना पड़ा। उसकी माँ ने कहा, “पुत्र, तुम अकेले मत जाओ। किसीको साथ ले लो।" ब्राह्मण ने कहा, ''माँ, इस रास्ते में कोई

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