जब सुबह जीगर उठा तो उसकी माँ शांता चिल्लाने लगी.....जीगर.....जीगर....... क्या करूँ मैं तुम्हारा हर रोज तुम देर से उठते हो और मुझसे जल्दी जल्दी काम करवाते हो और तुम्हारे पापा (मेघजीभाई ऊर्फ़े कालुजी) मुझे चाय के लिए परेशान करते है। तुम दोनों ने मिल कर मेरी जिंदगी नीरस बना दी है।
कालुजी कहते है, "अरे शांता! मैंने क्या किया कि मुझे बदनाम कर रही हो मैं तो सिर्फ चाय मांग रहा हुँ।"
"आप तो चुप ही रहिए ये सब आपकी वजह से ही हो रहा है आप अपने बेटे को सुबह सुबह उठाते नहीं है और बस बैठे रहते है अख़बार ले कर और आर्डर कर रहे है आपको इतनी भी समझ नहीं है कि थोड़ी मदद कर दी जाए", शांता गुस्से में आ कर कालुजी को कहती है।
"अरे!! मैं क्या करूँ इसमें मेरा बेटा मुझसे ज्यादा तुम्हारी बात सुनता है मैं जब भी उसे कुछ कहता हुँ व्व यही मम्मी मम्मी ही चिल्लाता है।", कालुजी शांता को कहते है।
शांता इतना सुन कर मन में बोलती है, "हर बार की बात है ये मेरा ही दोष निकालेंगे ये मुझे अब क़ुछ बोलना ही नहीं है इन लोगों से काम से काम रखना है।"
शांता इतना कहती है इतने में तो जीगर उठ कर आता है और मम्मी से नास्ता मांगता है ये सुन कर उसे गुस्सा आता है और वो फ़िर से चिल्लाने लगती है।
आपको लग रहा होगा कि ये मैं किसकी बात कर रहा हूँ कहाँ की बात कर रहा हूँ तो आइए जानते है.....
हम बात करते है साल 1999 की जब हर किसी को स्त्री के बारे में गलत सोचने की आदत पड़ गई थी, हर कोई यही समझता था कि पुरुष सही है और स्त्री गलत है। एक ऐसा दौर जहाँ स्त्री की कोई क़ीमत नहीं कर रहा था। तो बात करते है ऐसी एक घटना का जो इस बात से मिलती जुड़ती है।
गुजरात राज्य का एक छोटा सा गांव जहाँ करीबन ५००० की बस्ती होगी और उसमें रहने वाला जीगर का परिवार। जीगर का परिवार था तो बहुत ही अमीर उसके पिता मेघजीभाई की खेती की बहुत बड़ी जमीन थी। लेकिन सब उनको प्यार से कालुजी कहके ही बुलाते थे। जीगर को पढ़ने का शोख़ नहीं था लेकिन उसे पाठशाला जाने का बहुत ही शोख़ था क्योंकि वो पाठशाला पढ़ने नहीं बल्कि मस्ती करने जाता था। वो सबको परेशान करता सब उससे तंग आने लगे थे। वो सारे शिक्षकों को भी परेशान करता था लेकिन कोई उसे क़ुछ नहीं कह सकता था क्योंकि उसके पिता की गांव में अच्छी खासी इज्जत थी और वो सबकी मदद भी करते थे लेकिन जीगर उसका गलत फ़ायदा उठाता है और सारे गांव को परेशान करता फिरता है।
एक बार की बात है कालुजी और उनका दोस्त रामजीभाई के साथ में खेती का काम करते थे एक दिन खेती का काम करते समय रामजीभाई औए उनकी पत्नी को साँप ने कांट लिया। कालुजी और शांता तुरंत उनको गाँव के छोटे से अस्पताल में ले गए वहाँ उन्होंने डॉक्टर को सारी बात कही।
डॉक्टर ने कालुजी से कहा कि, "साँप का डंख देख कर तो मामला संजीदा लग रहा है लेकिन हम कोशिश जरूर करेंगे।"
कालुजी अस्पताल में सबके सामने डॉक्टर पर चिल्लाने लगे, "चाहे क़ुछ भी हो जाए लेकिन मेरे दोस्त रामजी और उनकी पत्नी की जान बचनी ही चाहिए वरना अच्छा नहीं होगा।"
डॉक्टर घबरा गया और तुरंत ही रामजी और उनकी पत्नी का इलाज करने लगा। काफ़ी समय बीत चुका था लेकिन डॉक्टर अभी तक बाहर नहीं आए थे ये देख कर कालुजी और उनकी पत्नी शांता को बहुत चिंता होने लगी।
कालुजी बार बार आपरेशन थिएटर में देख रहे थे लेकिन क़ुछ साफ़ नहीं दिखाई दे रहा था तभी अचानक दरवाज़ा खुला और डॉक्टर बाहर आए।
डॉक्टर के हावभाव देख कर कालुजी तो समझ गए थे कि मामला बहुत संजीदा हो गया है लेकिन फ़िर भी उन्होंने हौसला रख कर डॉक्टर से पूछा, "क्या हुआ डॉक्टर सब कुछ ठीक है ना?"
डॉक्टर ने शांति से कालुजी को कहा कि, "देखिए कालुजी वैसे तो सब कुछ ठीक है हम कोशिश कर रहे है बाकी तो सबकी जिंदगी का वो (डॉक्टर आसमान की तरफ इशारा करता है) रचयिता है उसको जो मर्जी होगी वो हो कर रहेगा।"
कालुजी डॉक्टर की बात को अच्छी तरह से समझ गए उन्होंने इशारे के शांता को कहा कि, "जाओ तुम शालिनी को घर ले जाओ हम अभी आते है इतना कह कर कालुजी डॉक्टर के पीछे गए और उनको रोक लिया।"
शांता ने शालिनी को कहा कि, "चलो बेटा घर चलो थोड़ा बहुत खा पी लो औए हम अंकल के लिए भी क़ुछ ले कर आते है उनको भी भूख लगी होगी।"
शालिनी ने तुरंत शांता की बात मान ली और वो उनके साथ घर गई तभी उसने डॉक्टर और कालुजी को साथ में देखा तो वो रुक गई और शांता को कहा कि, "आंटी आप आगे चलिए मैं आती हुँ एक मिनिट में।"
शांता कहती है, ठीक है बेटा।"
जैसे ही शांता बाहर जाती है वो छुप कर कालुजी और डॉक्टर की बात सुनती है.....
डॉक्टर बड़े ही दुःख के साथ कालुजी को बताता है कि, देखिए कालुजी आप पुरुष है आप समजदार है मैं आपको बता दूं कि आपके दोस्त रामजी और उनकी पत्नी अब इस दुनिया में नहीं रहे लेकिन मैंने उनकी बेटी की हालत देखी और मुझे लगा कि उसने सुबह से क़ुछ खाया पिया नहीं है और उसकी भलाई के लिए मैंने सोचा आपको भी पहले जुठ ही बोल दु की कोशिश जारी है लेकिन आप मेरा इशारा समझ गए इस लिए मैं आपको यहाँ ले आया सच बताने के लिए।"
आपकी बात सही है डॉक्टर मैंने शालिनी को मेरी पत्नी के साथ घर भेज दिया है ताकि वो कुछ खा पी सके और उसमें ये सदमा सहन करने की शक्ति मिले।
ये सब सुन कर शालिनी बहुत जोर जोर से रोने लगी वो अपने आप को संभाल नहीं पा रही थी कालुजी और डॉक्टर तुरंत शालिनी के पास गए और उसको संभाल लिया उसको बैंच पर बैठाया पानी पिलाया तब जा कर शांत हुई वो।
शालिनी होशियार लड़कीं थी उसने अपने आप को संभाला और कालुजी से कहा कि, "अंकल मैंने डॉक्टर की बात पर अपना मन बना लिया है कि सब कुछ उसके हाथ में है हमारे हाथ में कुछ नहीं है और मम्मी पापा की जो क़ुछ भी विधि होगी वो सारी मैं करूँगी।"
कालुजी कहते है, "लेकिन तुम लड़की हो तुम नहीं कर सकती विधि हमेशा बेटे करते है तुम उसकी चिंता मत करो जीगर है वो सब संभाल लेगा।"
शालिनी चिल्ला कर बोलती है, "नहीं अंकल मैंने कहा ना मैं ही करूँगी और कोई नहीं आपको समझ नहीं आ रहा है!!"
शांता कालुजी के कान में कहती है, "सुनिए, आप अभी रहने दीजिए अब इस जमाने में क्या लड़कीं क्या लड़का अब दोनों एक ही है इसकी इच्छा है तो इसे करने दीजिए।"
लेकिन शांता समाज.....
शांता कालुजी की बात काट देती है और कहती है, "लेकिन बेकिन कुछ नहीं अगर मेरी बेटी की इच्छा है मैं उसको जरूर पूरा करने दूँगी मुझे समाज की परवाह नहीं है समाज का क्या है उनको तो सिर्फ़ बोलने का मौका चाहिए।"
कालुजी कहते है ठीक है जैसी हमारी बेटी की मर्जी वो जैसा कहेगी वैसा ही होगा।
ये सब घटना हुई तब शालिनी पांचवी कक्षा में पढ़ रही थी वो पढ़ने में बहुत ही होशियार थी इसलिए वो जो खेत में घटना हुई उसको समझ गई थी लेकिन क़ुछ कर नहीं सकती थी कालुजी भी जानते थे की शालिनि अब अकेली हो गई है तो उन्होंने अपने सर उसकी सारी जवाबदारी ले ली।
(क्रमशः)