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हरिवंशराय बच्चन की प्रसिद्ध कविताएँ

हरिवंश राय बच्चन

165 अध्याय
3 लोगों ने लाइब्रेरी में जोड़ा
39 पाठक
30 जुलाई 2022 को पूर्ण की गई
निःशुल्क

छायावादी कवि डॉ. हरिवंश राय बच्चन ने अपनी दिलकश कविताओं से लोगो का मन आकर्षित और प्रात्साहित करने की पुरजोर कोशिश की है. उनकी कृतियों में हमेशा एक आशा का दीपक जलते हुए नज़र आता है. हिंदी काव्य के समुद्र में से हरिवंश राय बच्चन जी की कुछ चुनिन्दा और ख़ास कविताएं हम आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहे है. ये सभी कविताएँ अलग-अलग विषयों पर आधारित है, पर इन्हें पढ़कर आपका मन प्रफुल्लित जरुर हो जाएगा. तो चलिए पढ़ते है हरिवंश राय बच्चन जी की कविताएँ.. 

harivnsharay bachchan ki prasiddh kavitayen

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पुस्तक के भाग

1

कोई पार नदी के गाता

30 जुलाई 2022
10
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कोई पार नदी के गाता! भंग निशा की नीरवता कर, इस देहाती गाने का स्वर, ककड़ी के खेतों से उठकर, आता जमुना पर लहराता! कोई पार नदी के गाता! होंगे भाई-बंधु निकट ही, कभी सोचते होंगे यह भी, इस तट प

2

अग्निपथ

30 जुलाई 2022
4
0
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वृक्ष हों भले खड़े, हों घने हों बड़े, एक पत्र छाँह भी, माँग मत, माँग मत, माँग मत, अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ। तू न थकेगा कभी, तू न रुकेगा कभी, तू न मुड़ेगा कभी, कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ, अग्निपथ

3

क्या है मेरी बारी में

30 जुलाई 2022
3
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क्या है मेरी बारी में। जिसे सींचना था मधुजल से सींचा खारे पानी से, नहीं उपजता कुछ भी ऐसी विधि से जीवन-क्यारी में। क्या है मेरी बारी में। आंसू-जल से सींच-सींचकर बेलि विवश हो बोता हूं, स्रष्

4

लो दिन बीता लो रात गयी

30 जुलाई 2022
3
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सूरज ढल कर पच्छिम पंहुचा, डूबा, संध्या आई, छाई, सौ संध्या सी वह संध्या थी, क्यों उठते-उठते सोचा था दिन में होगी कुछ बात नई लो दिन बीता, लो रात गई धीमे-धीमे तारे निकले, धीरे-धीरे नभ में फ़ैले,

5

क्षण भर को क्यों प्यार किया था?

30 जुलाई 2022
3
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क्षण भर को क्यों प्यार किया था? अर्द्ध रात्रि में सहसा उठकर, पलक संपुटों में मदिरा भर तुमने क्यों मेरे चरणों में अपना तन-मन वार दिया था? क्षण भर को क्यों प्यार किया था? ‘यह अधिकार कहाँ से लाय

6

क्षण भर को क्यों प्यार किया था?

30 जुलाई 2022
1
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क्षण भर को क्यों प्यार किया था? अर्द्ध रात्रि में सहसा उठकर, पलक संपुटों में मदिरा भर तुमने क्यों मेरे चरणों में अपना तन-मन वार दिया था? क्षण भर को क्यों प्यार किया था? ‘यह अधिकार कहाँ से लाय

7

ऐसे मैं मन बहलाता हूँ

30 जुलाई 2022
1
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सोचा करता बैठ अकेले, गत जीवन के सुख-दुख झेले, दंशनकारी सुधियों से मैं उर के छाले सहलाता हूँ! ऐसे मैं मन बहलाता हूँ! नहीं खोजने जाता मरहम, होकर अपने प्रति अति निर्मम, उर के घावों को आँसू के खार

8

आत्‍मपरिचय

30 जुलाई 2022
1
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मैं जग-जीवन का भार लिए फिरता हूँ, फिर भी जीवन में प्‍यार लिए फिरता हूँ; कर दिया किसी ने झंकृत जिनको छूकर मैं सासों के दो तार लिए फिरता हूँ! मैं स्‍नेह-सुरा का पान किया करता हूँ, मैं कभी न जग का

9

मैं कल रात नहीं रोया था

30 जुलाई 2022
1
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मैं कल रात नहीं रोया था दुख सब जीवन के विस्मृत कर, तेरे वक्षस्थल पर सिर धर, तेरी गोदी में चिड़िया के बच्चे-सा छिपकर सोया था! मैं कल रात नहीं रोया था! प्यार-भरे उपवन में घूमा, फल खाए, फूलों क

10

नीड का निर्माण

30 जुलाई 2022
1
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नीड़ का निर्माण फिर-फिर, नेह का आह्वान फिर-फिर! वह उठी आँधी कि नभ में छा गया सहसा अँधेरा, धूलि धूसर बादलों ने भूमि को इस भाँति घेरा, रात-सा दिन हो गया, फिर रात आ‌ई और काली, लग रहा था अब न

11

त्राहि त्राहि कर उठता जीवन

30 जुलाई 2022
1
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त्राहि, त्राहि कर उठता जीवन! जब रजनी के सूने क्षण में, तन-मन के एकाकीपन में कवि अपनी विव्हल वाणी से अपना व्याकुल मन बहलाता, त्राहि, त्राहि कर उठता जीवन! जब उर की पीडा से रोकर, फिर कुछ सोच सम

12

त्राहि त्राहि कर उठता जीवन

30 जुलाई 2022
1
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त्राहि, त्राहि कर उठता जीवन! जब रजनी के सूने क्षण में, तन-मन के एकाकीपन में कवि अपनी विव्हल वाणी से अपना व्याकुल मन बहलाता, त्राहि, त्राहि कर उठता जीवन! जब उर की पीडा से रोकर, फिर कुछ सोच सम

13

इतने मत उन्‍मत्‍त बनो

30 जुलाई 2022
1
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इतने मत उन्‍मत्‍त बनो! जीवन मधुशाला से मधु पी बनकर तन-मन-मतवाला, गीत सुनाने लगा झुमकर चुम-चुमकर मैं प्‍याला- शीश हिलाकर दुनिया बोली, पृथ्‍वी पर हो चुका बहुत यह, इतने मत उन्‍मत्‍त बनो। इतने म

14

स्वप्न था मेरा भयंकर

30 जुलाई 2022
1
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स्वप्न था मेरा भयंकर! रात का-सा था अंधेरा, बादलों का था न डेरा, किन्तु फिर भी चन्द्र-तारों से हुआ था हीन अम्बर! स्वप्न था मेरा भयंकर! क्षीण सरिता बह रही थी, कूल से यह कह रही थी शीघ्र ही मैं

15

तुम तूफान समझ पाओगे

30 जुलाई 2022
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गीले बादल, पीले रजकण, सूखे पत्ते, रूखे तृण घन लेकर चलता करता 'हरहर'--इसका गान समझ पाओगे? तुम तूफान समझ पाओगे? गंध-भरा यह मंद पवन था, लहराता इससे मधुवन था, सहसा इसका टूट गया जो स्वप्न महान, समझ

16

रात आधी खींच कर मेरी हथेली

30 जुलाई 2022
1
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रात आधी, खींच कर मेरी हथेली एक उंगली से लिखा था 'प्यार' तुमने। फ़ासला था कुछ हमारे बिस्तरों में और चारों ओर दुनिया सो रही थी, तारिकाएँ ही गगन की जानती हैं जो दशा दिल की तुम्हारे हो रही थी, मैं

17

मेघदूत के प्रति

30 जुलाई 2022
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महाकवि कालिदास के मेघदूत से साहित्यानुरागी संसार भलिभांति परिचित है, उसे पढ़ कर जो भावनाएँ ह्रदय में जाग्रत होती हैं, उन्हें ही मैंने निम्नलिखित कविता में पद्यबध्द किया है भक्त गंगा की धारा में खड़ा ह

18

साथी, साँझ लगी अब होने!

30 जुलाई 2022
1
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फैलाया था जिन्हें गगन में, विस्तृत वसुधा के कण-कण में, उन किरणों के अस्ताचल पर पहुँच लगा है सूर्य सँजोने! साथी, साँझ लगी अब होने! खेल रही थी धूलि कणों में, लोट-लिपट गृह-तरु-चरणों में, वह छाया,

19

गीत मेरे

30 जुलाई 2022
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गीत मेरे, देहरी का दीप-सा बन। एक दुनिया है हृदय में, मानता हूँ, वह घिरी तम से, इसे भी जानता हूँ, छा रहा है किंतु बाहर भी तिमिर-घन, गीत मेरे, देहरी का द‍ीप-सा बन। प्राण की लौ से तुझे जिस काल बारुँ

20

लहर सागर का श्रृंगार नहीं

30 जुलाई 2022
1
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लहर सागर का नहीं श्रृंगार, उसकी विकलता है; अनिल अम्बर का नहीं खिलवार उसकी विकलता है; विविध रूपों में हुआ साकार, रंगो में सुरंजित, मृत्तिका का यह नहीं संसार, उसकी विकलता है। गन्ध कलिका का नही

21

आ रही रवि की सवारी

30 जुलाई 2022
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आ रही रवि की सवारी। नव-किरण का रथ सजा है, कलि-कुसुम से पथ सजा है, बादलों-से अनुचरों ने स्‍वर्ण की पोशाक धारी। आ रही रवि की सवारी। विहग, बंदी और चारण, गा रही है कीर्ति-गायन, छोड़कर मैदान भाग

22

चिडिया और चुरूंगुन

30 जुलाई 2022
1
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छोड़ घोंसला बाहर आया, देखी डालें, देखे पात, और सुनी जो पत्‍ते हिलमिल, करते हैं आपस में बात; माँ, क्‍या मुझको उड़ना आया? 'नहीं, चुरूगुन, तू भरमाया' डाली से डाली पर पहुँचा, देखी कलियाँ, देखे फू

23

पतझड़ की शाम

30 जुलाई 2022
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है यह पतझड़ की शाम, सखे ! नीलम-से पल्लव टूट ग‌ए, मरकत-से साथी छूट ग‌ए, अटके फिर भी दो पीत पात जीवन-डाली को थाम, सखे ! है यह पतझड़ की शाम, सखे ! लुक-छिप करके गानेवाली, मानव से शरमानेवाली कू

24

राष्ट्रिय ध्वज

30 जुलाई 2022
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नागाधिराज श्रृंग पर खडी हु‌ई, समुद्र की तरंग पर अडी हु‌ई, स्वदेश में जगह-जगह गडी हु‌ई, अटल ध्वजा हरी,सफेद केसरी! न साम-दाम के समक्ष यह रुकी, न द्वन्द-भेद के समक्ष यह झुकी, सगर्व आस शत्रु-शीश प

25

साजन आ‌ए, सावन आया

30 जुलाई 2022
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अब दिन बदले, घड़ियाँ बदलीं, साजन आ‌ए, सावन आया। धरती की जलती साँसों ने मेरी साँसों में ताप भरा, सरसी की छाती दरकी तो कर घाव ग‌ई मुझपर गहरा, है नियति-प्रकृति की ऋतु‌ओं में संबंध कहीं कुछ अनज

26

प्रतीक्षा

30 जुलाई 2022
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मधुर प्रतीक्षा ही जब इतनी प्रिय तुम आते तब क्या होता? मौन रात इस भान्ति कि जैसे, कोइ गत वीणा पर बज कर अभी अभी सोयी खोयी सी, सपनो में तारों पर सिर धर और दिशाओं से प्रतिध्वनियां जाग्रत सुधियों सी आ

27

चल मरदाने

30 जुलाई 2022
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चल मरदाने, सीना ताने, हाथ हिलाते, पांव बढाते, मन मुस्काते, गाते गीत । एक हमारा देश, हमारा वेश, हमारी कौम, हमारी मंज़िल, हम किससे भयभीत । चल मरदाने, सीना ताने, हाथ हिलाते, पांव बढाते, मन मु

28

आदर्श प्रेम

30 जुलाई 2022
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प्यार किसी को करना लेकिन कह कर उसे बताना क्या अपने को अर्पण करना पर और को अपनाना क्या गुण का ग्राहक बनना लेकिन गा कर उसे सुनाना क्या मन के कल्पित भावों से औरों को भ्रम में लाना क्या ले लेन

29

आज फिर से

30 जुलाई 2022
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आज फिर से तुम बुझा दीपक जलाओ । है कंहा वह आग जो मुझको जलाए, है कंहा वह ज्वाल पास मेरे आए, रागिनी, तुम आज दीपक राग गाओ; आज फिर से तुम बुझा दीपक जलाओ । तुम नई आभा नहीं मुझमें भरोगी, नव विभा

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आत्मदीप

30 जुलाई 2022
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मुझे न अपने से कुछ प्यार, मिट्टी का हूँ, छोटा दीपक, ज्योति चाहती, दुनिया जब तक, मेरी, जल-जल कर मैं उसको देने को तैयार पर यदि मेरी लौ के द्वार, दुनिया की आँखों को निद्रित, चकाचौध करते हों छिद्र

31

प्रेम गीत

30 जुलाई 2022
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जमीन है न बोलती, न आसमान बोलता.. जहान देखकर मुझे, नहीं जबान खोलता.. नहीं जगह कहीं जहां, न अजनबी गिना गया.. कहां-कहां न फिर चुका, दिमाग-दिल टटोलता.. कहां मनुष्य है कि जो, उमीद छोड़कर जिया.. इसीलिए

32

आज़ादी का गीत

30 जुलाई 2022
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हम ऐसे आज़ाद हमारा झंडा है बादल चांदी, सोने, हीरे मोती से सजती गुड़िया इनसे आतंकित करने की घडियां बीत गई इनसे सज धज कर बैठा करते हैं जो कठपुतले हमने तोड़ अभी फेंकी हैं हथकडियां परम्परागत पुरख

33

बहुत दिनों पर

30 जुलाई 2022
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मैं तो बहुत दिनों पर चेता । श्रम कर ऊबा श्रम कण डूबा सागर को खेना था मुझको रहा शिखर को खेता मैं तो बहुत दिनों पर चेता । थी मत मारी था भ्रम भारी ऊपर अम्बर गर्दीला था नीचे भंवर लपेटा मैं तो

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एकांत-संगीत

30 जुलाई 2022
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तट पर है तरुवर एकाकी, नौका है, सागर में, अंतरिक्ष में खग एकाकी, तारा है, अंबर में, भू पर वन, वारिधि पर बेड़े, नभ में उडु खग मेला, नर नारी से भरे जगत में कवि का हृदय अकेला!

35

ड्राइंग रूम में मरता हुआ गुलाब

30 जुलाई 2022
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गुलाब तू बदरंग हो गया है बदरूप हो गया है झुक गया है तेरा मुंह चुचुक गया है तू चुक गया है । ऐसा तुझे देख कर मेरा मन डरता है फूल इतना डरावाना हो कर मरता है! खुशनुमा गुलदस्ते में सजे हुए कम

36

इस पार उस पार

30 जुलाई 2022
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इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा! यह चाँद उदित होकर नभ में कुछ ताप मिटाता जीवन का, लहरालहरा यह शाखा‌एँ कुछ शोक भुला देती मन का, कल मुर्झानेवाली कलियाँ हँसकर कहती हैं मगन रहो,

37

जाओ कल्पित साथी मन के

30 जुलाई 2022
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जाओ कल्पित साथी मन के! जब नयनों में सूनापन था, जर्जर तन था, जर्जर मन था, तब तुम ही अवलम्ब हुए थे मेरे एकाकी जीवन के! जाओ कल्पित साथी मन के! सच, मैंने परमार्थ ना सीखा, लेकिन मैंने स्वार्थ ना

38

जो बीत गई सो बात गयी

30 जुलाई 2022
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जो बीत गई सो बात गई जीवन में एक सितारा था माना वह बेहद प्यारा था वह डूब गया तो डूब गया अम्बर के आनन को देखो कितने इसके तारे टूटे कितने इसके प्यारे छूटे जो छूट गए फिर कहाँ मिले पर बोलो टूटे त

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कवि की वासना

30 जुलाई 2022
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कह रहा जग वासनामय हो रहा उद्गार मेरा! १ सृष्टि के प्रारंभ में मैने उषा के गाल चूमे, बाल रवि के भाग्य वाले दीप्त भाल विशाल चूमे, प्रथम संध्या के अरुण दृग चूम कर मैने सुला‌ए, तारिका-कलि से सु

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किस कर में यह वीणा धर दूँ

30 जुलाई 2022
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देवों ने था जिसे बनाया, देवों ने था जिसे बजाया, मानव के हाथों में कैसे इसको आज समर्पित कर दूँ? किस कर में यह वीणा धर दूँ? इसने स्वर्ग रिझाना सीखा, स्वर्गिक तान सुनाना सीखा, जगती को खुश करनेवाल

41

को‌ई गाता मैं सो जाता

30 जुलाई 2022
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संस्रिति के विस्तृत सागर में सपनो की नौका के अंदर दुख सुख कि लहरों मे उठ गिर बहता जाता, मैं सो जाता । आँखों में भरकर प्यार अमर आशीष हथेली में भरकर को‌ई मेरा सिर गोदी में रख सहलाता, मैं सो जात

42

साथी, सब कुछ सहना होगा

30 जुलाई 2022
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साथी, सब कुछ सहना होगा! मानव पर जगती का शासन, जगती पर संसृति का बंधन, संसृति को भी और किसी के प्रतिबंधो में रहना होगा! साथी, सब कुछ सहना होगा! हम क्या हैं जगती के सर में! जगती क्या, संसृति स

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जुगनू

30 जुलाई 2022
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अँधेरी रात में दीपक जलाए कौन बैठा है? उठी ऐसी घटा नभ में छिपे सब चांद औ' तारे, उठा तूफान वह नभ में गए बुझ दीप भी सारे, मगर इस रात में भी लौ लगाए कौन बैठा है? अँधेरी रात में दीपक जलाए कौन बैठा है

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कहते हैं तारे गाते हैं

30 जुलाई 2022
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सन्नाटा वसुधा पर छाया, नभ में हमनें कान लगाया, फ़िर भी अगणित कंठो का यह राग नहीं हम सुन पाते हैं कहते हैं तारे गाते हैं स्वर्ग सुना करता यह गाना, पृथ्वी ने तो बस यह जाना, अगणित ओस-कणों में तार

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कोई पार नदी के गाता

30 जुलाई 2022
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कोई पार नदी के गाता! भंग निशा की नीरवता कर, इस देहाती गाने का स्वर, ककड़ी के खेतों से उठकर, आता जमुना पर लहराता! कोई पार नदी के गाता! होंगे भाई-बंधु निकट ही, कभी सोचते होंगे यह भी, इस तट पर

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क्या भूलूं क्या याद करूँ मैं

30 जुलाई 2022
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अगणित उन्मादों के क्षण हैं, अगणित अवसादों के क्षण हैं, रजनी की सूनी घड़ियों को किन-किन से आबाद करूँ मैं! क्या भूलूँ, क्या याद करूँ मैं! याद सुखों की आँसू लाती, दुख की, दिल भारी कर जाती, दोष कि

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मेरा संबल

30 जुलाई 2022
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मैं जीवन की हर हल चल में कुछ पल सुखमय, अमरण अक्षय, चुन लेता हूँ। मैं जग के हर कोलाहल में कुछ स्वर मधुमय, उन्मुक्त अभय, सुन लेता हूँ। हर काल कठिन के बन्धन से ले तार तरल कुछ मुद मंगल मैं

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मुझसे चांद कहा करता है

30 जुलाई 2022
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मुझ से चाँद कहा करता है चोट कड़ी है काल प्रबल की, उसकी मुस्कानों से हल्की, राजमहल कितने सपनों का पल में नित्य ढहा करता है| मुझ से चाँद कहा करता है तू तो है लघु मानव केवल, पृथ्वी-तल का वासी न

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पथ की पहचान

30 जुलाई 2022
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पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले पुस्तकों में है नहीं छापी गई इसकी कहानी, हाल इसका ज्ञात होता है न औरों की ज़बानी, अनगिनत राही गए इस राह से, उनका पता क्या, पर गए कुछ लोग इस पर छोड़ पैरों

50

साथी साथ ना देगा दुख भी

30 जुलाई 2022
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काल छीनने दु:ख आता है जब दु:ख भी प्रिय हो जाता है नहीं चाहते जब हम दु:ख के बदले चिर सुख भी! साथी साथ ना देगा दु:ख भी! जब परवशता का कर अनुभव अश्रु बहाना पडता नीरव उसी विवशता से दुनिया में होना

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साथी साथ ना देगा दुख भी

30 जुलाई 2022
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काल छीनने दु:ख आता है जब दु:ख भी प्रिय हो जाता है नहीं चाहते जब हम दु:ख के बदले चिर सुख भी! साथी साथ ना देगा दु:ख भी! जब परवशता का कर अनुभव अश्रु बहाना पडता नीरव उसी विवशता से दुनिया में होना

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साथी साथ ना देगा दुख भी

30 जुलाई 2022
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काल छीनने दु:ख आता है जब दु:ख भी प्रिय हो जाता है नहीं चाहते जब हम दु:ख के बदले चिर सुख भी! साथी साथ ना देगा दु:ख भी! जब परवशता का कर अनुभव अश्रु बहाना पडता नीरव उसी विवशता से दुनिया में होना

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यात्रा और यात्री

30 जुलाई 2022
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साँस चलती है तुझे चलना पड़ेगा ही मुसाफिर! चल रहा है तारकों का दल गगन में गीत गाता, चल रहा आकाश भी है शून्य में भ्रमता-भ्रमाता, पाँव के नीचे पड़ी अचला नहीं, यह चंचला है, एक कण भी, एक क्षण भी

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युग की उदासी

30 जुलाई 2022
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अकारण ही मैं नहीं उदास अपने में ही सिकुड सिमट कर जी लेने का बीता अवसर जब अपना सुख दुख था, अपना ही उछाह उच्छ्वास अकारण ही मैं नहीं उदास अब अपनी सीमा में बंध कर देश काल से बचना दुष्कर यह संभव

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युग की उदासी

30 जुलाई 2022
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अकारण ही मैं नहीं उदास अपने में ही सिकुड सिमट कर जी लेने का बीता अवसर जब अपना सुख दुख था, अपना ही उछाह उच्छ्वास अकारण ही मैं नहीं उदास अब अपनी सीमा में बंध कर देश काल से बचना दुष्कर यह संभव

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आज मुझसे बोल बादल

30 जुलाई 2022
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आज मुझसे बोल, बादल! तम भरा तू, तम भरा मैं, ग़म भरा तू, ग़म भरा मैं, आज तू अपने हृदय से हृदय मेरा तोल, बादल आज मुझसे बोल, बादल! आग तुझमें, आग मुझमें, राग तुझमें, राग मुझमें, आ मिलें हम आज अप

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क्या करूँ संवेदना लेकर तुम्हारी

30 जुलाई 2022
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क्या करूँ संवेदना लेकर तुम्हारी? क्या करूँ? मैं दुखी जब-जब हुआ संवेदना तुमने दिखाई, मैं कृतज्ञ हुआ हमेशा, रीति दोनो ने निभाई, किन्तु इस आभार का अब हो उठा है बोझ भारी; क्या करूँ संवेदना लेकर

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साथी सो ना कर कुछ बात

30 जुलाई 2022
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साथी सो न कर कुछ बात। पूर्ण कर दे वह कहानी, जो शुरू की थी सुनानी, आदि जिसका हर निशा में, अन्त चिर अज्ञात साथी सो न कर कुछ बात। बात करते सो गया तू, स्वप्न में फिर खो गया तू, रह गया मैं और

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तब रोक ना पाया मैं आंसू

30 जुलाई 2022
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जिसके पीछे पागल होकर मैं दौडा अपने जीवन-भर, जब मृगजल में परिवर्तित हो मुझ पर मेरा अरमान हंसा! तब रोक न पाया मैं आंसू! जिसमें अपने प्राणों को भर कर देना चाहा अजर-अमर, जब विस्मृति के पीछे छिपकर

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तुम गा दो मेरा गान अमर हो जाये

30 जुलाई 2022
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तुम गा दो, मेरा गान अमर हो जाए! मेरे वर्ण-वर्ण विश्रंखल, चरण-चरण भरमाए, गूंज-गूंज कर मिटने वाले मैनें गीत बनाये; कूक हो गई हूक गगन की कोकिल के कंठो पर, तुम गा दो, मेरा गान अमर हो जाए!

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आज तुम मेरे लिये हो

30 जुलाई 2022
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प्राण, कह दो, आज तुम मेरे लिए हो । मैं जगत के ताप से डरता नहीं अब, मैं समय के शाप से डरता नहीं अब, आज कुंतल छाँह मुझपर तुम किए हो प्राण, कह दो, आज तुम मेरे लिए हो । रात मेरी, रात का श्रृंगार

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मनुष्य की मूर्ति

30 जुलाई 2022
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देवलोक से मिट्टी लाकर मैं मनुष्य की मूर्ति बनाता! रचता मुख जिससे निकली हो वेद-उपनिषद की वर वाणी, काव्य-माधुरी, राग-रागिनी जग-जीवन के हित कल्याणी, हिंस्र जन्तु के दाढ़ युक्त जबड़े-सा पर वह मुख

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हम ऐसे आज़ाद

30 जुलाई 2022
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हम ऐसे आज़ाद हमारा झंडा है बादल| चांदी-सोने-हीरे-मोती से सजती गुडियाँ| इनसे आतंकित करने की बीत गई घडियाँ| इनसे सज धज बैठा करते जो हैं कठपुतले| हमने तोड़ अभी फेंकी है बेडी हथकड़ियाँ|| परंपरा गत

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उस पार न जाने क्या होगा

30 जुलाई 2022
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इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा! यह चाँद उदित होकर नभ में कुछ ताप मिटाता जीवन का, लहरा लहरा यह शाखाएँ कुछ शोक भुला देती मन का, कल मुर्झानेवाली कलियाँ हँसकर कहती हैं मगन रह

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रीढ़ की हड्डी

30 जुलाई 2022
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मैं हूँ उनके साथ,खड़ी जो सीधी रखते अपनी रीढ़ कभी नही जो तज सकते हैं, अपना न्यायोचित अधिकार कभी नही जो सह सकते हैं, शीश नवाकर अत्याचार एक अकेले हों, या उनके साथ खड़ी हो भारी भीड़ मैं हूँ उनके साथ

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हिंया नहीं कोऊ हमार!

30 जुलाई 2022
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अस्‍त रवि ललौंछ रंजित पच्छिमी नभ; क्षितिज से ऊपर उठा सिर चल कर के एक तारा मद-आभा उदासी जैसे दबाए हुए अंदर आर्द्र नयनों मुस्‍कराता, एक सूने पथ पर चुपचाप एकाकी चले जाते मुसाफिर को कि जैसे कर रह

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हो गयी मौन बुलबुले-हिंद

30 जुलाई 2022
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[सरोजिनी नायडू की मृत्यु पर] हो गई मौन बुलबुले-हिंद! मधुबन की सहसा रुकी साँस, सब तरुवर-शाखाएँ उदास, अपने अंतर का स्वर खोकर बैठे हैं सब अलि विहग-वृंद! चुप हुई आज बुलबुले-हिन्द! स्वर्गिक सुख-

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गर्म लोहा

30 जुलाई 2022
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गर्म लोहा पीट, ठंडा पीटने को वक्त बहुतेरा पड़ा है। सख्त पंजा, नस कसी चौड़ी कलाई और बल्लेदार बाहें, और आँखें लाल चिंगारी सरीखी, चुस्त औ तीखी निगाहें, हाँथ में घन, और दो लोहे निहाई पर धरे तू देखता

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टूटा हुआ इंसान

30 जुलाई 2022
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(मुक्तिबोध का शव देखने की स्मृति)* ...और उसकी चेतना जब जगी मौजों के थपेड़े लग रहे थे, आर-पार-विहीन पारावार में वह आ पड़ा था, किंतु वह दिल का कड़ा था। फाड़ कर जबड़े हड़पने को तरंगो पर तरंगे उठ

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क्यों पैदा किया था?

30 जुलाई 2022
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ज़िन्दगी और ज़माने की कशमकश से घबराकर मेरे बेटे मुझसे पूछते हैं कि हमें पैदा क्यों किया था? और मेरे पास इसके सिवाय कोई जवाब नहीं है कि मेरे बाप ने मुझसे बिना पूछे मुझे क्यों पैदा किया था? और

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तीर पर कैसे रुकूँ मैं आज लहरों में निमंत्रण!

30 जुलाई 2022
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तीर पर कैसे रुकूँ मैं, आज लहरों में निमंत्रण! रात का अंतिम प्रहर है, झिलमिलाते हैं सितारे, वक्ष पर युग बाहु बाँधे, मैं खड़ा सागर किनारे वेग से बहता प्रभंजन, केश-पट मेरे उड़ाता, शून्य में भरता उदधि

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कौन मिलनातुर नहीं है ?

30 जुलाई 2022
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आक्षितिज फैली हुई मिट्टी निरन्तर पूछती है, कब कटेगा, बोल, तेरी चेतना का शाप, और तू हों लीन मुझमे फिर बनेगा शान्त ? कौन मिलनातुर नहीं है ? गगन की निर्बन्ध बहती वायु प्रति पल पूछती है, कब गिरेगी,

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क्यों जीता हूँ

30 जुलाई 2022
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आधे से ज़्यादा जीवन जी चुकने पर मैं सोच रहा हूँ क्यों जीता हूँ? लेकिन एक सवाल अहम इससे भी ज़्यादा, क्यों मैं ऎसा सोच रहा हूँ? संभवत: इसलिए कि जीवन कर्म नहीं है अब चिंतन है, काव्य नहीं है अब

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एक नया अनुभव

30 जुलाई 2022
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मैनें चिड़िया से कहा, मैं तुम पर एक कविता लिखना चाहता हूँ। चिड़िया नें मुझ से पूछा, 'तुम्हारे शब्दों में मेरे परों की रंगीनी है?' मैंने कहा, 'नहीं'। 'तुम्हारे शब्दों में मेरे कंठ का संगीत है?' '

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क़दम बढाने वाले: कलम चलाने वाले

30 जुलाई 2022
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अगर तुम्हारा मुकाबला दीवार से है, पहाड़ से है, खाई-खंदक से, झाड़-झंकाड़ से है तो दो ही रास्ते हैं- दीवार को गिराओ, पहाड़ को काटो, खाई-खंदक को पाटो, झाड़-झंकाड़ को छांटो, दूर हटाओ और एसा नहीं

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शहीद की माँ

30 जुलाई 2022
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इसी घर से एक दिन शहीद का जनाज़ा निकला था, तिरंगे में लिपटा, हज़ारों की भीड़ में। काँधा देने की होड़ में सैकड़ो के कुर्ते फटे थे, पुट्ठे छिले थे। भारत माता की जय, इंकलाब ज़िन्दाबाद, अंग्रेजी

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मौन और शब्द

30 जुलाई 2022
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एक दिन मैंने मौन में शब्द को धँसाया था और एक गहरी पीड़ा, एक गहरे आनंद में, सन्निपात-ग्रस्त सा, विवश कुछ बोला था; सुना, मेरा वह बोलना दुनिया में काव्य कहलाया था। आज शब्द में मौन को धँसाता हूँ

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नया चाँद

30 जुलाई 2022
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उगा हुआ है नया चाँद जैसे उग चुका है हज़ार बार। आ-जा रही हैं कारें साइकिलों की क़तारें; पटरियों पर दोनों ओर चले जा रहे हैं बूढ़े ढोते ज़‍िदगी का भार जवान, करते हुए प्‍यार बच्‍चे, करते खिलवार।

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शैल विहंगिनी

30 जुलाई 2022
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मत डरो ओ शैल की सुंदर, मुखर, सुखकर विहंगिनि! मैं पकड़ने को तुम्‍हें आता नहीं हूँ, जाल फैलाता नहीं हूँ, पींजरे में डाल तुमको साथ ले जाना नहीं मैं चाहता हूँ, और करना बंद ऐसे पींजरे में बंद हम ज

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चोटी की बरफ़

30 जुलाई 2022
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स्‍पटिक-निर्मल और दर्पन-स्‍वच्‍छ, हे हिम-खंड, शीतल औ' समुज्‍ज्‍वल, तुम चमकते इस तरह हो, चाँदनी जैसे जमी है या गला चाँदी तुम्‍हारे रूप में ढाली गई है। स्‍पटिक-निर्मल और दर्पन-

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युग का जुआ

30 जुलाई 2022
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युग के युवा, मत देख दाएँ, और बाएँ, और पीछे, झाँक मत बगलें, न अपनी आँख कर नीचे; अगर कुछ देखना है, देख अपने वे वृषभ कंधे जिन्हें देता निमंत्रण सामने तेरे पड़ा युग का जुआ, युग के युवा! तुझको अ

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नीम के दो पेड़

30 जुलाई 2022
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"तुम न समझोगे, शहर से आ रहे हो, हम गँवारों की गँवारी बात। श्‍हर, जिसमें हैं मदरसे और कालिज ज्ञान मद से झुमते उस्‍ताद जिनमें नित नई से नई, मोटी पुस्‍तकें पढ़ते, पढ़ाते, और लड़के

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बुद्ध और नाचघर

30 जुलाई 2022
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"बुद्धं शरणं गच्छामि, धम्मं शरणं गच्छामि, संघं शरणं गच्छामि।" बुद्ध भगवान, जहाँ था धन, वैभव, ऐश्वर्य का भंडार, जहाँ था, पल-पल पर सुख, जहाँ था पग-पग पर श्रृंगार, जहाँ रूप, रस, यौवन की थी सदा ब

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पगला मल्लाह

30 जुलाई 2022
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   डोंगा डोले,           नित गंग जमुन के तीर,          डोंगा डोले.      आया डोला,     उड़न खटोला,    एक परी पर्दे से निकली पहने पंचरंग वीर.   डोंगा डोले,  नित गंग जमुन के तीर, डोंगा डोले.

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गंगा की लहर

30 जुलाई 2022
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गंगा की लहर अमर है,           गंगा की.                      धन्य भगीरथ           के तप का पथ. गगन कँपा थरथर है.           गंगा की, गंगा की लहर अम्र है.           नभ से उतरी           पावन प

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सोन मछरी

30 जुलाई 2022
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     स्त्री जाओ,लाओ,पिया,नदिया से सोन मछरी.        पिया, सोन मछरी; पिया,सोन मछरी. जाओ,लाओ,पिया,नदिया से सोन मछरी. जिसकी हैं नीलम की आँखे, हीरे-पन्ने की हैं पाँखे, वह मुख से उगलती है मोती की लरी.

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लाठी और बाँसुरी

30 जुलाई 2022
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     पुरुष लाडो,बाँस की बनाऊं लठिया की बंसिया?           बंसिया की लठिया?लठिया की बंसिया? लाडो,बाँस की बनाऊं लठिया की बंसिया? बंसी-धुन कानों में पड़ती, गोरी के दिल को पकड़ती, भोरी मछरी को जैसे

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खोई गुजरिया

30 जुलाई 2022
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मेले में खोई गुजरिया,          जिसे मिले मुझसे मिलाए. उसका मुखड़ा चाँद का टुकड़ा,          कोई नज़र न लगाये,          जिसे मिले मुझसे मिलाए. मेले में खोई गुजरिया,          जिसे मिले मुझसे मिल

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नील परी

30 जुलाई 2022
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सीपी में नील-परी सागर तरें,                 सीपी में. बंसी उस पार बजी, नयनों की नाव सजी, पलकों की पालें उसासें भरें,                  सीपी में. अंधड़ आकाश चढ़ा, झोंकों का जोर बढ़ा, शोर बढ़ा,बा

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महुआ के नीचे

30 जुलाई 2022
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      महुआ के, महुआ के नीचे मोती झरे,            महुआ के. यह खेल हँसी, यह फाँस फँसी, यह पीर किसी से मत कह रे,            महुआ के, महुआ के नीचे मोती झरे,            महुआ के. अब मन परबस, अब सप

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आंगन का बिरवा

30 जुलाई 2022
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आंगन के, आंगन के बिरवा मीत रे,           आंगन के! रोप गये साजन, सजीव हुआ आँगन; जीवन के बिरवा मीत रे! आंगन के, आंगन के बिरवा मीत रे,           आंगन के! पी की निशानी को देते पानी नयनों के

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फिर चुनौती

30 जुलाई 2022
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      अंतर से या कि दिगंतर से आई पुकार-- मैंने अपने पाँवों से पर्वत कुचल दिए, कदमों से रौंदे कुश-काँटों के वन बीहड़, दी तोड़ डगों से रेगिस्तानों कि पसली, दी छोड़ पगों को छाप धरा की छाती पर;      

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मिट्टी से हाथ लगाये रह

30 जुलाई 2022
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ये नियति-प्रकृति मुझको भरमाती जाएँगी, तू बस मेरी मिट्टी से हाथ लगाए रह! मैंने अक्सर यह सोचा है, यह चाक बनाई किसकी है? मैंने अक्सर यह पूछा है, यह मिट्टी लाई किसकी है?       पर सूरज,चाँद,सितारों

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तुम्हारी नाट्यशाला

30 जुलाई 2022
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काम जो तुमने कराया,कर गया; जो कुछ कहाया कह गया. यह कथानक था तुम्हारा और तुमने पात्र भी सब चुन लिये थे, किन्तु उनमे थे बहुत-से जो अलग हीं टेक अपनी धुन लिये थे,                और अपने आप को अर्प

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रात-राह-प्रीति-पीर

30 जुलाई 2022
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साँझ खिले, प्रात झड़े,     फूल हर सिंगार के;          रात महकती रही. शाम जले, भोर बुझे,     दीप द्वार-द्वार के;          राह चमकती रही. गीत रचे, गीत मिटे,     जीत और हार के;          प्

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जब नदी मर गई-जब नदी जी उठी

30 जुलाई 2022
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कौन था वह युगल जो गलती-ठिठुरती यामिनी में जबकि कैम्ब्रिज श्रांत,विस्मृत-जड़ित होकर सो गया था कैम के पुल पर खड़ा था-- पुरुष का हर अंग प्रणयांगार की गर्मी लिए मनुहार-चंचल, और नारी फ्रीजिडेयर से

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टूटे सपने

30 जुलाई 2022
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-और छाती बज्र करके सत्य तीखा आज वह स्वीकार मैंने कर लिया है, स्वप्न मेरे ध्वस्त सारे हो गए हैं! किंतु इस गतिवान जीवन का यही तो बस नहीं है. अभी तो चलना बहुत है, बहुत सहना, देखना है. अगर मिट

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चेतावनी

30 जुलाई 2022
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भारत की यह परम्परा है-- जब नारी के बालों को खींचा जाता है, धर्मराज का सिंहासन डोला करता है, क्रुद्ध भीम की भुजा फड़कती, वज्रघोष मणिपुष्पक औ'सुघोष करते है, गांडीव की प्रत्यंचा तड़पा करती है; कहने

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ताजमहल

30 जुलाई 2022
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जाड़ों के दिन थे,दोनों बच्चे अमित अजित सर्दी की छुट्टी में पहाड़ के कालेज से घर आये थे,जी में आया,सब मोटर से आगरे चलें,देखें शोभामय ताजमहल जिसकी प्रसिद्धि सारी जगती में फैली है, जिससे आकर्षित होक

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यह भी देखा:वह भी देखा

30 जुलाई 2022
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गाँधी : अन्याय अत्याचार की दासत्व सहती मूर्च्छिता-मृत जाति की जड़ शून्यता में कड़कड़ाती बिजलियों की प्रबल आँधी : ज्योति-जीवन-जागरण घन का तुमुल उल्लास! गाँधी : स्वार्थपरता,क्षुद्रता,संकीर्णता

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दानवों का शाप

30 जुलाई 2022
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देवताओं ! दानवों का शाप आगे उतरता है ! सिंधु-मंथन के समय जो छल-कपट, जो क्षुद्रता, जो धूर्तता, तुमने प्रदर्शित की पचा क्या काल पाया, भूल क्या इतिहास पाया? भले सह ली हो,विवश हो, दानवों ने;

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चल बंजारे

30 जुलाई 2022
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चल बंजारे, तुझे निमंत्रित करती धरती नई, नया ही आसमान! चल बंजारे दूर गए मधुवन रंगराते, तरू-छाया-फल से ललचाते, भृंग-विहंगम उड़ते-गाते, प्‍यारे, प्‍यारे। चल बंजारे, तुझे निमंत्रित करती धरती नई,

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नभ का निर्माण

30 जुलाई 2022
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शब्‍द के आकाश पर उड़ता रहा, पद-चिह्न पंखों पर मिलेंगे। एक दिन भोली किरण की लालिमा ने क्‍यों मुझे फुसला लिया था, एक दिन घन-मुसकराती चंचला ने क्‍यों मुझे बहका दिया था, एक राका ने सितारों से इश

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कुम्‍हार का गीत

30 जुलाई 2022
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चाक चले चाक! चाक चले चाक! अंबर दो फाँक आधे में हंस उड़े, आधे में काक! चाक चले चाक! चाक चले चाक! धरती दो फाँक- आधी में न‍ीम फले, आधी में दाख! चाक चले चाक! चाक चले चाक! दुनिया दो फाँक आधी

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जामुन चूती है

30 जुलाई 2022
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अब गाँवों में घर-घर शोर कि जामुन चूती है। सावन में बदली अंबर में मचली, भीगी-भीगी होती भोर कि जामुन चूती है। अब गाँवों में घर-घर शोर कि जामुन चूती है। मधु की पिटारी भौंरे सी कारी, बागों

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गंधर्व-ताल

30 जुलाई 2022
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छितवन की, छितवन की ओट तलैया रे, छितवन की! जल नील-नवल, शीतल, निर्मल, जल-तल पर सोन चिरैया रै, छितवन की, छितवन की ओट तलैया रे, छितवन की! सित-रक्‍त कमल झलमल-झलमल दल पर मोती चमकैया रे, छि

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मालिन बिकानेर की

30 जुलाई 2022
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फूलमाला ले लो,       लाई है मालिन बीकानेर की.            मालिन बीकानेर की. बाहर-बाहर बालू-बालू,       भीतर-भीतर बाग है, बाग-बाग में हर-हर बिरवे       धन्य हमारा भाग है; फूल-फूल पर भौंरा,डाली-

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रूपैया

30 जुलाई 2022
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  आज मँहगा है,सैंया,रुपैया. रोटी न मँहगी है, लहँगा न मँहगा,           मँहगा है,सैंया,रुपैया.           आज मँहगा है,सैंया,रुपैया. बेटी न प्यारी है, बेटा न प्यारा,           प्यारा है,सैंया,रुपैय

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वर्षाऽमंगल

30 जुलाई 2022
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पुरुष :     गोरा बादल ! स्त्री :     गोरा बादल ! दोनों :     गोरा बादल !     गोरा बादल तो बे-बरसे चला गया;     क्या काला बादल भी ब-बरसे जाएगा ? पुरुष :     बहुत दिनों से अंबर प्यासा ! स्त्री

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राष्‍ट्र-पिता के समक्ष

30 जुलाई 2022
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हे महात्मन, हे महारथ, हे महा सम्राट ! हो अपराध मेरा क्षम्य, मैं तेरे महाप्रस्थान की कर याद, या प्रति दिवस तेरा मर्मभेदी,दिल कुरेदी,पीर-टिकट अभाव अनुभव कर नहीं तेरे समक्ष खड़ा हुआ हूँ. धार कर

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आज़ादी के चौदह वर्ष

30 जुलाई 2022
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देश के बेपड़े,भोले,दीन लोगों ! आज चौदह साल से आज़ाद हो तुम. कुछ समय की माप का आभास तुमको ? नहीं; तो तुम इस तरह समझो कि जिस दिन तुम हुए स्वाधीन उस दिन राम यदि मुनि-वेष कर,शर-चाप धर वन गए होते, स

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ध्‍वस्‍त पोत

30 जुलाई 2022
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बंद होना चाहिए, यह तुमुल कोलाहल, करुण चीत्कार ,हाय पुकार, कर्कश-क्रुद्ध-स्वर आरोप बूढ़े नाविकों पर, श्वेतकेशी कर्णधारों पर, कि अपनी अबलता से,ग़लतियों से, या कि गुप्त स्वार्थप्रेरित, तीर्थयात्र

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स्‍वाध्‍याय कक्ष में वसंत

30 जुलाई 2022
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शहर का,फिर बड़े, तिसपर दफ्तरी जीवन कि बंधन करामाती जो कि हर दिन (छोड़कर इतवार को, सौ शुक्र है अल्लामियाँ का, आज को आराम वे फ़रमा गए थे) सुबह को मुर्गा बनाकर है उठाता, एक ही रफ़्तार-ढर्रे पर घु

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कलश और नींव का पत्‍थर

30 जुलाई 2022
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अभी कल ही पंचमहले पर कलश था, और चौमहले, तिमहले, दुमहले से खिसकता अब हो गया हूँ नींव का पत्थर ! काल ने धोखा दिया, या फिर दिशा ने, या कि दोनों में विपर्यय; एक ने ऊपर चढ़ाया, दूसरे ने खींच

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दैत्‍य की देन

30 जुलाई 2022
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सरलता से कुछ नहीं मुझको मिला है, जबकि चाहा है कि पानी एक चुल्लू पिऊँ, मुझको खोदना कूआँ पड़ा है. एक कलिका जो उँगलियों में पकड़ने को मुझे वन एक पूरा कंटकों का काटकर के पार करना पड़ा है औ'मधुर मध

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बुद्ध के साथ एक शाम

30 जुलाई 2022
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रक्तरंजित साँझ के आकाश का आधार लेकर एक पत्रविहीन तरु कंकाल-सा आगे खड़ा है. टुनगुनी पर नीड़ शायद चील का, खासा बड़ा है. एक मोटी डाल पर है एक भारी चील बैठी एक छोटी चिड़ी पंजों से दबाए जो कि रह

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पानी मारा एक मोती

30 जुलाई 2022
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आदमी:- जा चुका है, मर चुका है, मोतियों का वह सुभग पानी कि जिसकी मरजियों से सुन कहानी, उल्लसित-मन, उर्ज्वसित-भुज, सिंधु कि विक्षुब्ध लहरे चीर जल गंभीर में सर-सर उतरता निडर पहुँचा था अतल तक;

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तीसरा हाथ

30 जुलाई 2022
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एक दिन कातर ह्रदय से, करूण स्वर से, और उससे भी अधिक डब-डब दृगों से, था कहा मैंने कि मेरा हाथ पकड़ो क्योंकि जीवन पंथ के अब कष्ट एकाकी नहीं जाते सहे. और तुम भी तो किसी से यही कहना चाहती थी;

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दो चित्र

30 जुलाई 2022
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यह कि तुम जिस ओर जाओ चलूँ मैं भी, यह कि तुम जो राह थामो रहूँ थामे हुए मैं भी, यह कि कदमों से तुम्हारे कदम अपना मैं मिलाए रहूँ यह कि तुम खींचो जिधर को खिंचूं, जिससे तुम मुझे चाहो बचाना बचूँ:

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मरण काले

30 जुलाई 2022
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मरा मैंने गरुड़ देखा, गगन का अभिमान, धराशायी,धूलि धूसर,म्लान! मरा मैंने सिंह देखा, दिग्दिगंत दहाड़ जिसकी गूँजती थी, एक झाड़ी में पड़ा चिर-मूक, दाढ़ी-दाढ़ चिपका थूक. मरा मैंने सर्प देखा,

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कोयल

30 जुलाई 2022
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कोयल: "तुझे एक आवाज़ मिली क्या तूने सारा आसमान ही अपने सिर पर उठा लिया है- कुऊ...कुऊ...कु...! कुऊ...कुऊ...कु...! तुझे मर्मभेदी, दरर्दीला, मीठा स्वर जो मिला हुआ है, दिशा-दिशा में डाल-डाल मे

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बाढ़

30 जुलाई 2022
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बाढ़ आ गई है, बाढ़! बाढ़ आ गई है, बाढ़! वह सब नीचे बैठ गया है जो था गरू-भरू, भारी-भरकम, लोह-ठोस टन-मन वज़नदार! और ऊपर-ऊपर उतरा रहे हैं किरासिन की खालीद टिन, डालडा के डिब्बे, पोलवाले ढोल,

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हंस-मानस की नर्तकी

30 जुलाई 2022
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शब्द-बद्ध तुमको करने का मैं दु:साहस नहीं करूँगा तुमने अपने अंगों से जो गीत लिखा है- विगलित लयमय, नीरव स्वरमय सरस रंगमय छंद-गंधमय- उसके आगे मेरे शब्दों का संयोजन- अर्थ-समर्थ बहुत होकर भी-

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युग-नाद

30 जुलाई 2022
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आर्य तुंग-उतुंग पर्वतों को पद-मर्दित करते करते पार तीव्र धारायों की बर्फानी औ' तूफानी नदियाँ, और भेदते दुर्मग, दुर्गम गहन भयंकर अरण्यों को आए उन पुरियों को जो थीं समतल सुस्थित, सुपथ, सुरक्षित; ज

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जड़ की मुसकान

30 जुलाई 2022
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एक दिन तूने भी कहा था, जड़? जड़ तो जड़ ही है, जीवन से सदा डरी रही है, और यही है उसका सारा इतिहास कि ज़मीन में मुँह गड़ाए पड़ी रही है, लेकिल मैं ज़मीन से ऊपर उठा, बाहर निकला, बढ़ा हूँ, मज़बूत

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महाबलिपुरम्

30 जुलाई 2022
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कौन कहता कल्पना सुकुमार, कोमल, वायवी, निस्तेज औ' निस्ताप होती? मैं महाबलीपुरम में सागर किनारे पड़ी औ' कुछ फ़ासले पर खड़ी चट्टानें चकित दृग देखता हूँ और क्षण-क्षण समा जाता हूँ उन्हीं में और जब

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ईश्‍वर

30 जुलाई 2022
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उनके पास घर-बार है, कार है, कारबार है,, सुखी परिवार है, घर में सुविधाएँ हैं, बाहर सत्कार है, उन्हें ईश्वर की इसलिए दरकार है कि प्रकट करने को उसे फूल चढ़ाएँ, डाली दें । उनके पास न मकान है न

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महानगर

30 जुलाई 2022
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महानगर यह महाराक्षस की आँतों-सा फैला-छिछड़ा दूर-दूर तक, दसों दिशा में, ऐंड़ा-बैंड़ा, उलझा-पुलझा; पथों, मार्गों, सड़कों, गलियों, उप-गलियों, कोलियों, कूचों की भूल-भुलैया, जिनमें, जिन पर मवेशियों

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पाँच मूर्तियाँ

30 जुलाई 2022
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यह विखंडित मूर्ति मथुरा की सड़क पर मिली मुझको, शीश-हत, जाँघें पसारे खुले में विपरीत-रति-रत अरे, यह तो पंश्चुली है! यह कुमारी, एक व्याभिचारी मुहल्ले की गली में गले में डाले सुमिरनी, नत-नयन,

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बूढ़ा किसान

30 जुलाई 2022
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अब समाप्त हो चुका मेरा काम। करना है बस आराम ही आराम। अब न खुरपी, न हँसिया, न पुरवट, न लढ़िया, न रतरखाव, न हर, न हेंगा। मेरी मिट्टी में जो कुछ निहित था, उसे मैंने जोत-वो, अश्रु स्वेद-रक्त से स

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एक नया अनुभव

30 जुलाई 2022
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मैनें चिड़िया से कहा, मैं तुम पर एक कविता लिखना चाहता हूँ। चिड़िया नें मुझ से पूछा, 'तुम्हारे शब्दों में मेरे परों की रंगीनी है?' मैंने कहा, 'नहीं'। 'तुम्हारे शब्दों में मेरे कंठ का संगीत है?' '

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मौन और शब्द

30 जुलाई 2022
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एक दिन मैंने मौन में शब्द को धँसाया था और एक गहरी पीड़ा, एक गहरे आनंद में, सन्निपात-ग्रस्त सा, विवश कुछ बोला था; सुना, मेरा वह बोलना दुनिया में काव्य कहलाया था। आज शब्द में मौन को धँसाता हूँ

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एक पावन मूर्ति

30 जुलाई 2022
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तीर्थाधिराज श्री जगन्‍नाथ जी की मंदिर की चौकी में जो मिथुन मूर्तियाँ लगी हुई मैं उन्‍हें एक जगह पर ठिठका हूँ- प्राकृतिक नग्‍नता की सुषमा में ढली हुई नारी घुटतनों के बल बैठी; उसकी न

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मेरा संबल

30 जुलाई 2022
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मैं जीवन की हर हल चल में कुछ पल सुखमय, अमरण अक्षय, चुन लेता हूँ। मैं जग के हर कोलाहल में कुछ स्वर मधुमय, उन्मुक्त अभय, सुन लेता हूँ। हर काल कठिन के बन्धन से ले तार तरल कुछ मुद मंगल मैं

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कड़ुआ पाठ

30 जुलाई 2022
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एक दिन मैंने प्यार पाया, किया था, और प्यार से घृणा तक उसके हर पहू को एकांत में जिया था, और बहुत कुछ किया था, जो मुझसे भाग्यवान-उभागे करते हैं, भोगते हैं, मगर छिपाते हैं; मैंने छिपाए को शब्दों मे

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ओ, उज्‍जयिनी के वाक्-जयी जगवंदन

30 जुलाई 2022
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ओ, उज्‍जयिनी के वाक्-जयी जगवंदन ! तुम विक्रम नवरत्‍नों में थे, यह इतिहास पुराना, पर अपने सच्‍चे राजा को अब जग ने पहचाना,     तुम थे वह आदित्‍य, नवग्रह     जिसके देते थे फेरे, तुमसे लज्जित

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खजुराहो के निडर कलाधर, अमर शिला में गान तुम्‍हारा

30 जुलाई 2022
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खजुराहो के निडर कलाधर, अमर शिला में गान तुम्‍हारा । पर्वत पर पद रखने वाला मैं अपने क़द का अभिमानी, मगर तुम्‍हारी कृति के आगे मैं ठिगना, बौना, बे-बानी       बुत बनकर निस्‍तेज खड़ा हूँ ।      

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याद आते हो मुझे तुम

30 जुलाई 2022
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याद आते हो मुझे तुम, ओ, लड़कपन के सवेरों के भिखारी! तुम भजन गाते, अँधेरे को भागाते रासते से थे गुज़रते, औ' तुम्‍हारे एकतारे या संरंगी के मधुर सुर थे उतरते कान में, फिर प्राण में, फिर

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श्‍यामा रानी थी पड़ी रोग की शय्या पर

30 जुलाई 2022
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श्‍यामा रानी थी पड़ी रोग की शय्या पर, दो सौ सोलह दिन कठिन कष्‍ट में थे बीते, संघर्ष मौत से बचने और बचाने का था छिड़ा हुआ, या हम जीतें या वह जीते। सहसा मुझको यह लगा, हार उसने मानी, तन डाल दिया ढ

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अंग से मेरे लगा तू अंग ऐसे,

30 जुलाई 2022
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अंग से मेरे लगा तू अंग ऐसे, आज तू ही बोल मेरे भी गले से। पाप हो या पुण्‍य हो, मैंने किया है आज तक कुछ भी नहींआधे हृदय से, औ' न आधी हार से मानी पराजय औ' न की तसकीन ही आधी विजय से; आज मैं संपूर्ण

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चाँदनी फैली गगन में, चाह मन में

30 जुलाई 2022
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चाँदनी फैली गगन में, चाह मन में। दिवस में सबके लिए बस एक जग है रात में हर एक की दुनिया अलग है, कल्‍पना करने लगी अब राह मन में; चाँदनी फैली गगन में, चाह मन में। भूमि के उर तप्‍त करता चंद्र शीत

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मैं कहाँ पर, रागिनी मेरा कहाँ पर

30 जुलाई 2022
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मैं कहाँ पर, रागिनी मेरी कहाँ पर! है मुझे संसार बाँधे, काल बाँधे है मुझे जंजीर औ' जंजाल बाँधे, किंतु मेरी कल्‍पना के मुक्‍त पर-स्‍वर; मैं कहाँ पर, रागिनी मेरी कहाँ पर! धूलि के कण शीश पर मेरे

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आज मन-वीणा, प्रिए, फिर कसो तो

30 जुलाई 2022
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आज मन-वीणा, प्रिए, फिर कसो तो। मैं नहीं पिछली अभी झंकार भूला, मैं नहीं पहले दिनों का प्‍यार भूला, गोद में ले, मोद से मुझको लसो तो; आज मन-वीणा, प्रिए, फिर कसो तो। हाथ धर दो, मैं नया वरदान पाऊँ

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आज कितनी वासनामय यामिनी है

30 जुलाई 2022
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आज कितनी वासनामय यामिनी है! दिन गया तो ले गया बातें पुरानी, याद मुझको अब भी नहीं रातें पुरानी, आज भी पहली निशा मनभावनी है; आज कितनी वासनामय यामिनी है! घूँट मधु का है, नहीं झोंका पवन का, कुछ

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हास में तेरे नहाई यह जुन्‍हाई

30 जुलाई 2022
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हास में तेरे नहाई यह जुन्‍हाई। आ उजेली रात कितनी बार भागी, सो उजेली रात कितनी बार जागी, पर छटा उसकी कभी ऐसी न छाई; हास में तेरे नहाई यह जुन्‍हाई। चाँदनी तेरे बिना जलती रही है, वह सदा संसार क

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प्राण, कह दो, आज तुम मेरे लिए हो

30 जुलाई 2022
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प्राण, कह दो, आज तुम मेरे लिए हो। मैं जगत के ताप से डरता नहीं अब, मैं समय के शाप से डरता नहीं अब, आज कुंतल छाँह मुझपर तुम किए हो; प्राण, कह दो, आज तुम मेरे लिए हो। रात मेरी, रात का श्रृंगार म

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प्‍यार के पल में जलन भी तो मधुर है

30 जुलाई 2022
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प्‍यार के पल में जलन भी तो मधुर है। जानता हूँ दूर है नगरी प्रिया की, पर परीक्षा एक दिन होनी हिया िकी, प्‍यार के पथ की थकन भी तो मधुर है; प्‍यार के पल में जलन भी तो मधुर है। आग ने मानी न बाधा

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मैं प्रतिध्‍वनि‍ सुन चुका, ध्‍वनि खोजता हूँ

30 जुलाई 2022
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मैं प्रतिध्‍वनि‍ सुन चुका, ध्‍वनि खोजता हूँ। मौन मुखरित हो गया, जय हो प्रणय की, पर नहीं परितृप्‍त है तृष्‍णा हृदय की, पा चुका स्‍वर, आज गायन खोजता हूँ; मैं प्रतिध्‍वनि‍ सुन चुका, ध्‍वनि खोजता हू

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प्‍यार, जवानी, जीवन

30 जुलाई 2022
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प्‍यार, जवानी, जीवन इनका जादू मैंने सब दिन माना। यह वह पाप जिसे करने से भेद भरा परलोक डरता, यह वह पाप जिसे कर कोई कब जग के दृग से बच पाता, यह वह पाप झगड़ती आई जिससे बुद्धि सदा मानव की, यह वह

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गरमी में प्रात:काल

30 जुलाई 2022
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गरमी में प्रात: काल पवन बेला से खेला करता जब तब याद तुम्‍हारी आती है। जब मन में लाखों बार गया- आया सुख सपनों का मेला, जब मैंने घोर प्रतीक्षा के युग का पल-पल जल-जल झेला, मिलने के उन दो यामों न

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ओ पावस के पहले बादल

30 जुलाई 2022
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ओ पावस के पहले बादल, उठ उमड़-गरज, घिर घुमड़-चमक मेरे मन-प्राणों पर बरसों। यह आशा की लतिकाएँ थीं जो बिखरीं आकुल-व्याकुल-सी, यह स्वप्नों की कलिकाएँ थीं जो खिलने से पहले झुलसीं, यह मधुवन था, ज

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खींचतीं तुम कौन ऐसे बंधनों से

30 जुलाई 2022
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खींचतीं तुम कौन ऐसे बंधनों से जो कि रुक सकता नहीं मैं काम ऐसे कौन जिसको छोड़ मैं सकता नहीं हूँ, कौन ऐसा मुँह कि जिससे मोड़ मैं सकता नहीं हूँ? आज रिश्ता और नाता जोड़ने का अर्थ क्या है? श्रृंख

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तुमको मेरे प्रिय प्राण निमंत्रण देते

30 जुलाई 2022
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तुमको मेरे प्रिय प्राण निमंत्रण देते। अतस्तल के भाव बदलते कंठस्थल के स्वर में, लो, मेरी वाणी उठती है धरती से अंबर में अर्थ और आखर के बल का कुछ मैं भी अधिकारी, तुमको मेरे मधुगान निमंत्रण देते;

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प्राण, संध्‍या झुक गई गिरि

30 जुलाई 2022
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प्राण, संध्या झुक गई गिरि, ग्राम, तरु पर, उठ रहा है क्षितिज के ऊपर सिंदूरी चाँद मेरा प्यार पहली बार लो तुम। सूर्य जब ढलने लगा था कह गया था, मानवों, खुश हो कि दिन अब जा रहा है, जा रही है स्वेद,

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सखि‍, अखिल प्रकृति की प्‍यास

30 जुलाई 2022
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सखि, अखिल प्रकृति की प्यास कि हम तुम-तुम भीगें। अकस्मात यह बात हुई क्यों जब हम-तुम मिल पाए, तभी उठी आँधी अंबर में सजल जलद घिर आए यह रिमझिम संकेत गगन का समझो या मत समझो, सखि, भीग रहा आकाश कि हम-

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सखि, यह रंगों की रात नहीं सोने की

30 जुलाई 2022
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सखि, यह रागों की रात नहीं सोने की। अंबर-अंतर गल धरती का अंचल आज भिगोता, प्यार पपीहे का पुलकित स्वर दिशि-दिशि मुखरित होता, और प्रकृति-पल्लव अवगुंठन फिर-फिर पवन उठाता, यह मदमातों की रात नहीं सो

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प्रिय, शेष बहुत है रात अभी मत जाओ

30 जुलाई 2022
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प्रिय, शेष बहुत है रात अभी मत जाओ। अरमानों की एक निशा में होती हैं कै घड़ियाँ, आग दबा रक्खी है मैंने जो छूटीं फुलझरियाँ, मेरी सीमित भाग्य परिधि को और करो मत छोटी, प्रिय, शेष बहुत है रात अभी म

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सुधि में संचित वह साँझ

30 जुलाई 2022
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सुधि में संचित वह साँझ कि जब रतनारी प्यारी सारी में, तुम, प्राण, मिलीं नत, लाज-भरी मधुऋतु-मुकुलित गुलमुहर तले। सिंदूर लुटाया था रवि ने, संध्या ने स्वर्ण लुटाया था, थे गाल गगन के लाल हुए, धरती

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जीवन की आपाधापी में

30 जुलाई 2022
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जीवन की आपाधापी में कब वक्त मिला कुछ देर कहीं पर बैठ कभी यह सोच सकूं, जो किया, कहा, माना उसमें भला बुरा क्या। जिस दिन मेरी चेतना जगी मैनें देखा, मैं खड़ा हुआ हूँ दुनिया के इस मेले में, हर एक यह

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कुदिन लगा, सरोजिनी सजा न सर

30 जुलाई 2022
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कुदिन लगा, सरोजिनी सजा न सर, सुदिन भगा, न कंज पर ठहर भ्रमर, अनय जगा, न रस विमुग्ध अधर, सदैव स्नेह के लिए विफल हृदय! कटक चला, निकुंज में हवा न चला, नगर हिला, न फूल-फूल पर मचल, ग़दर हुया, सुरभ

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समेट ली किरण कठिन दिनेश ने

30 जुलाई 2022
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समेट ली किरण कठिन दिनेश ने, सभा बादल दिया तिमिर-प्रवेश ने, सिंगार कर लिया गगन प्रदेश ने; -नटी निशीथ का पुलक उठा हिया! समीर कह चला कि प्‍यार का प्रहरे, मिली भुजा-भुजा, मिले अधर-अधर, प्रणय प्रसू

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समीर स्‍नेह-रागिनी सुना गया

30 जुलाई 2022
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समीर स्‍नेह-रागिनी सुना गया, तड़ाग में उफान-सा उठा गया, तरंग में तरंग लीन हो गई; झुकी निशा, झँपी दिशा, झुके नयन! बयार सो गई अडोल डाल पर, शिथिल हुआ सुनिल ताल पर, प्रकृति सुरम्‍य स्‍वप्‍न बीच

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पुकारता पपीहरा पि...या पि...या

30 जुलाई 2022
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पुकारता पपीहरा पि...या, पि...या, प्रतिध्‍वनित निनाद से हिया-हिया; हरेक प्‍यार की पुकार में असर, कहाँ उठी, कहाँ सुनी गई मगर! घटा अखंड आसमान में घिरी, लगी हुई अखंड भूमि पर झरी, नहा रहा पपीहरा

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सुना कि एक स्‍वर्ग शोधता रहा

30 जुलाई 2022
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सुना कि एक स्‍वर्ग शोधता रहा, सुना कि एक स्‍वप्‍न खोजता रहा, सुना कि एक लोक भोगता रहा, मुझे हरेक शक्‍ति‍ का प्रमाण है! सुना कि सत्‍या से न भक्‍ति‍ हो सकी, सुना कि स्‍वप्‍न से न मुक्‍ति‍ हो सक

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उसे न विश्‍व की विभूतियाँ दिखीं

30 जुलाई 2022
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उसे न विश्‍व की विभूतियाँ दिखीं, उसे मनुष्‍य की न खूबियाँ दिखीं, मिलीं हृदय-रहस्‍य की न झाँकियाँ, सका न खेल जो कि प्राण का जुआ! सजीव है गगन किरण-पुलक भरा, सजीव गंध से बसी वसुंधरा, पवन अभय लि

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