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हरनाम कौर

8 अप्रैल 2022

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निहाल सिंह को बहुत ही उलझन हो रही थी। स्याह-व-सफ़ैद और पत्ली मूंछों का एक गुच्छा अपने मुँह में चूसते हुए वो बराबर दो ढाई घंटे से अपने जवान बेटे बहादुर की बाबत सोच रहा था।

निहाल सिंह की अधेड़ मगर तेज़ आँखों के सामने वो खुला मैदान था जिस पर वो बचपन में बंटों से कबड्डी तक तमाम खेल खेल चुका था। किसी ज़माने में वो गांव का सब से निडर और जियाला जवान था। क़िमाद और मकई के खेतों में मैं ने उस कई हटीली मुटियारों को कलाई के एक ही झटके से अपनी मर्ज़ी का ताबे बनाया। थूक फेंकता था तो पंद्रह गज़ दूर जा के गिरती थी। क्या रंगीला सजीला जवान था। लहरिया पगड़ी बांध कर और हाथ में छूरी लेकर जब मेले टेले को निकलता तो बड़े बूढ़े पुकार उठते। किसी को सुंदर जाट देखना है तो सरदार निहाल सिंह को देख ले।

सुंदर जाट तो डाकू था। बहुत बड़ा डाकू जिस के गाने अभी तक लोगों की ज़बान पर थे लेकिन निहाल सिंह डाकू नहीं था। उस की जवानी में दरअस्ल कृपाण की सी तेज़ी थी। यही वजह है कि औरतें उस पर मरती थीं। हरनाम कौर का क़िस्सा तो अभी गांव में मशहूर था कि उस बिजली ने कैसे एक दफ़ा सरदार निहाल सिंह को क़रीब क़रीब भस्म कर डाला था।

निहाल सिंह ने हरनाम कौर के मुतअल्लिक़ सोचा तो एक लहज़े के लिए उस की अधेड़ हड्डियों में बीती हुई जवानी कड़-कड़ा उठी। क्या पतली छमक जैसी नार थी। छोटे छोटे लाल होंट जिन को वो हर वक़्त चूसती रहती........ एक रोज़ जब कि बेरियों के बेर पके हुए थे। सरदार निहाल सिंह से उस की मुडभेड़ हो गई........ वो ज़मीन पर गिरे हुए बेर चुन रही थी और अपने छोटे छोटे लाल होंट चूस रही थी। निहाल सिंह ने आवाज़ा कसा........ कीहड़े यार दातता दुध पीता.... सड़गया्यं लाल बुल्लियां?

हरनाम कौर ने पत्थर उठाया और तान कर उस को मारा। निहाल सिंह ने चोट की पर्वा ना की और आगे बढ़ कर उस की कलाई पकड़ ली। लेकिन वो बिजली की सी तेज़ी से मच्छी की तरह तड़प कर अलग हो गई और ये जा वह जा। निहाल सिंघ को जैसे किसी ने चारों शाने चित्त गिरा दिया। शिकस्त का ये एहसास और भी ज़्यादा हो गया। जब ये बात सारे गांव में फैल गई।

निहाल सिंह ख़ामोश रहा। उस ने दोस्तों दुश्मनों सब की बातें सुनीं पर जवाब ना दिया। तीसरे रोज़ दूसरी बार उस की मुडभेड़ गुरुद्वारा साहिब से कुछ दूर बड़की घनी छाओं में हुई। हर नाम कौर ईंट पर बैठी अपनी गुरगाबी को कीलें अंदर ठोंक रही थी। निहाल सिंह को पास देख कर वो बिदकी। पर अब के उस ने कोई पेश ना चली।

शाम को जब लोगों ने निहाल सिंह को बहुत ख़ुश ख़ुश ऊंचे सुरों में। फ़ी हर नाम कोरे, ओ-नारे.... गाते सुना तो उन को मालूम हो गया। कौन सा क़िला सर हुआ है.... लेकिन दूसरे रोज़ निहाल सिंह ज़िना बिलजब्र के इल्ज़ाम में गिरिफ़्तार हुआ और थोड़ी सी मुक़द्दमे बाज़ी के बाद उसे छः साल की सज़ा हो गई।

छः साल के बजाय निहाल सिंह को साढे़ सात की क़ैद भुगतनी पड़ी। क्यों कि जेल में उसका दो दफ़ा झगड़ा हो गया था। लेकिन निहाल सिंह को उस की कुछ पर्वा ना थी। क़ैद काट कर जब गांव रवाना हुआ और रेल की पटड़ी तय कर के मुख़्तलिफ़ पगडंडियों से होता हुआ गुरुद्वारे के पास से गुज़र कर बढ़के घने दरख़्त के क़रीब पहुंचा तो उस ने क्या देखा कि हरनाम कौर खड़ी है........ और अपने होंट चूस रही है। इस से पेशतर कि निहाल सिंह कुछ सोचने या कहने पाए। वो आगे बढ़ी और उस की चौड़ी छाती के साथ चिमट गई।

निहाल सिंह ने उस को अपनी गोद में उठा लिया और गांव के बजाय किसी दूसरी तरफ़ चल दिया........ हर नाम कौर ने पूछा।कहाँ जा रहे हो?

निहाल सिंह ने नारा लगाया। जो बोले सो निहाल सत सिरी अकाल। दोनों खिलखिला कर हंस पड़े।

निहाल सिंह ने हरनाम कौर से शादी कर ली और चालीस कोस के फ़ासले पर दूसरे गांव में आबाद हो गया। यहां बड़ी मिन्नतों से छः बरस के बाद बहादुर पैदा हुआ और बैसाखी के रोज़ जब कि वो अभी पूरे ढाई महीने का भी नहीं हुआ था। हर नाम कौर के माता निकली और वो मर गई।

निहाल सिंह ने बहादुर की परवरिश अपनी बेवा बहन के सपुर्द करदी जिस की चार लड़कियां थीं छोटी छोटी........ जब बहादुर आठ बरस का हुआ तो निहाल सिंह उसे अपने पास ले आया।

चार बरस हो चले थे कि बहादुर अपने बाप की निगरानी में था। शक्ल सूरत में वो बिलकुल अपनी माँ जैसा था उसी तरह दुबला पतला और नाज़ुक। कभी कभी अपने पतले पतले लाल लाल होंट चूसता तो निहाल सिंह अपनी आँखें बंद कर लेता।

निहाल सिंह को बहादुर से बहुत मोहब्बत थी। चार बरस उस ने बड़े चाओ से नहलाया धुलाया। हर रोज़ दही से ख़ुद उस के केस धोता। उसे खिलाता। बाहर सैर के लिए ले जाता। कहानियां सुनाता। वर्ज़िश कराता मगर बहादुर को इन चीज़ों से कोई रग़्बत ना थी। वह हमेशा उदास रहता। निहाल सिंह ने सोचा इतनी देर अपनी फूफी के पास जो रहा है। इस लिए उदास है। चुनांचे फिर उस को अपनी बहन के पास भेज दिया और ख़ुद फ़ौज में भर्ती हो कर लाम पर चला गया।

चार बरस और गुज़र गए। लड़ाई बंद हुई और निहाल सिंह जब वापस आया तो वो पचास बरस के बजाय साठ बासठ बरस का लगता था। इस लिए उस ने जापानियों की क़ैद में ऐसे दुख झेले थे कि सुन कर आदमी के रोंगटे खड़े होते थे।

अब बहादुर की उम्र निहाल सिंह के हिसाब के मुताबिक़ सोला के लग भग थी मगर वो बिल्कुल वैसा ही था जैसा चार बरस पहले था.... दुबला पतला.... लेकिन ख़ूबसूरत।

निहाल सिंह ने सोचा कि उस की बहन ने बहादुर की परवरिश दिल से नहीं की। अपनी चार लड़कियों का ध्यान रखा जो बछेरियों की तरह हर वक़्त आंगन में कडकड़े लगाती रहती हैं।चुनांचे झगड़ा हुआ और वो बहादुर को वहां से अपने गांव ले गया।

लाम पर जाने से उस के खेत खलियान और घर बार का सत्यानास हो गया था। चुनांचे सब से पहले निहाल सिंह ने उधर ध्यान दिया और बहुत ही थोड़े अर्से में सब ठीक ठाक कर लिया इस के बाद उस ने बहादुर की तरफ़ तवज्जे दी। इस के लिए एक भूरी भैंस ख़रीदी। मगर निहाल सिंह को इस बात का दुख ही रहा कि बहादुर को दूध, दही और मक्खन से कोई दिलचस्पी नहीं थी। जाने कैसी ऊट-पटांग चीज़ें उसे भाती थीं। कई दफ़ा निहाल सिंह को ग़ुस्सा आया मगर वो पी गया। इस लिए कि उसे अपने लड़के से बेइंतिहा मोहब्बत थी।

हालाँ कि बहादुर की परवरिश ज़्यादा तर उस की फूफी ने की थी मगर उस की बिगड़ी हुई आदतें देख कर लोग यही कहते थे कि निहाल सिंह के लाड प्यार ने इसे ख़राब किया है और यही वजह है कि वो अपने हम-उम्र नौ-जवानों की तरह मेहनत मशक़्क़त नहीं करता। गो निहाल सिंह की हरगिज़ ख़्वाहिश नहीं थी कि उस का लड़का मज़दूरों की तरह खेतों में काम करे और सुबह से लेकर दिन ढलने तक हल चलाए। वाह-गुरूजी की कृपा से स के पास बहुत कुछ था। ज़मीनें थीं। जिन से काफ़ी आमदन हो जाती थी। सरकार से जो अब पेंशन मिल रही थी। वो अलग थी। लेकिन फिर भी उस की ख़्वाहिश थी। दिली ख़्वाहिश थी कि बहादुर कुछ करे........ क्या? ये निहाल सिंह नहीं बता सकता था। चुनांचे कई बार उस ने सोचा कि वो बहादुर से क्या चाहता है। मगर हर बार बजाए इस के कि उसे कोई तसल्ली बख़्श जवाब नहीं मिलता। उस की बीती हुई जवानी के दिन एक एक कर के उस की आँखों के सामने आने लगते और वो बहादुर को भूल कर उस गुज़रे हुए ज़माने की यादों में खो जाता।

लाम से आए निहाल सिंह को दो बरस हो चले थे। बहादुर की उम्र अब अठारह के लग भग थी........ अठारह बरस का मतलब ये है कि भरपूर जवानी........ निहाल सिंह जब ये सोचता तो झुँझला जाता। चुनांचे ऐसे वक़्तों में कई दफ़ा उस ने अपना सर झटक कर बहादुर को डाँटा। नाम तेरा मैं ने बहादुर रखा है.... कभी बहादुरी तो दिखा। और बहादुर होंट चूस कर मुस्कुरा देता।

निहाल सिंह ने एक दफ़ा सोचा कि बहादुर की शादी कर दे। चुनांचे उस ने इधर उधर कई लड़कियां देखीं। अपने दोस्तों से बात-चीत भी की। मगर जब उसे जवानी याद आई तो उस ने फ़ैसला कर लिया कि नहीं, बहादुर मेरी तरह अपनी शादी आप करे गा। कब करे गा। ये उस को मालूम नहीं था। इस लिए कि बहादुर में अभी तक उस ने वो चमक नहीं देखी थी । जिस से वो अंदाज़ा लगाता कि उस की जवानी किस मरहले में है.... लेकिन बहादुर ख़ूबसूरत था। सुंदर जाट नहीं था। लेकिन सुंदर ज़रूर था। बड़ी बड़ी काली आँखें, पतले पतले लाल होंट, सुतवां नाक, पतली कमर। काले भौंरा ऐसे केस मगर बाल बहुत ही महीन.... गांव की जवान लड़कियां दूर से उसे घूर घूर के देखतीं। आपस में कानाफूसी करतीं मगर वो उन की तरफ़ ध्यान ना देता। बहुत सोच बिचार के बाद निहाल सिंह इस नतीजे पर पहुंचा। शायद बहादुर को ये तमाम लड़कियां पसंद नहीं और ये ख़याल आते ही उस की आँखों के सामने हरनाम कौर की तस्वीर आ गई। बहुत देर तक वह उसे देखता रहा। इस के बाद उस को हटा कर उस ने गांव की लड़कियां लीं। एक एक कर के वह उन तमाम को अपनी आँखों के सामने लाया मगर हर नाम कौर के मुक़ाबले में कोई भी पूरी ना उतरी.... निहाल सिंह की आँखें तमतमा उठीं। बहादुर मेरा बेटा है। ऐसी वैसियों की तरफ़ तो वो आँख उठा भी नहीं देखेगा।

दिन गुज़रते गए। बेरियों के बेर कई दफ़ा पके। मकई के बूटे खेतों में कई दफ़ा निहाल सिंह के क़द के बराबर जवान हुए। कई सावन आए मगर बहादुर की यारी किसी के साथ ना लगी और निहाल सिंह की उलझन फिर बढ़ने लगी।

थक हार कर निहाल सिंह दिल में एक आख़िरी फ़ैसला करके बहादुर की शादी के मुतअल्लिक़ सोच ही रहा था कि एक गड़बड़ शुरू हो गई। भांत भांत की ख़बरें गांव में दौड़ने लगीं। कोई कहता अंग्रेज़ जा रहा है। कोई कहता रूसियों का राज आने वाला है। एक ख़बर लाता कांग्रेस जीत गई है। दूसरा कहता नहीं रेडियो में आया है कि मुल्क बट जाए गा। जितने मुँह, उतनी बातें। निहाल सिंह का तो दिमाग़ चकरा गया। उसे उन ख़बरों से कोई दिलचस्पी नहीं थी। सच्च पूछिए तो उसे उस जंग से भी कोई दिलचस्पी नहीं थी। जिस में वो पूरे चार बरस शामिल रहा था। वो चाहता था कि आराम से बहादुर की शादी हो जाये और घर में उस की बहू आ जाए।

लेकिन एक दम जाने क्या हुआ। ख़बर आई कि मुल्क बट गया है। हिंदू मुस्लमान अलग अलग हो गए हैं बस फिर क्या था चारों तरफ़ भगदड़ सी मच गई। चल चलाव शुरू हो गया और फिर सुनने में आया कि हज़ारों की तादाद में लोग मारे जा रहे हैं। सैंकड़ों लड़कियां अग़वा की जा रही हैं। लाखों का माल लूटा जा रहा है।

कुछ दिन गुज़र गए तो पक्की सड़क पर क़ाफ़िलों का आना जाना शुरू हुआ। गांव वालों को जब मालूम हुआ तो मेले का समां पैदा हो गया। लोग सौ सौ, दो दो सौ की टोलियां बना कर जाते। जब लौटते तो उन के साथ कई चीज़ें होतीं। गाय, भैंस, बकरियां, घोड़े, ट्रंक, बिस्तर और जवान लड़कियां।

कई दिनों से ये सिलसिला जारी था। गांव का हर जवान कोई ना कोई कारनामा दिखा चुका था हत्ता कि खिया का नाटा और कुबड़ा लड़का दरयाम सिंह भी........ उस की पीठ पर बड़ा कोहान था। टांगें टेढ़ी थीं, मगर ये भी चार रोज़ हुए पक्की सड़क पर से गुज़रने वाले एक क़ाफ़िले पर हमला करके एक जवान लड़की उठा लाया था। निहाल सिंह ने उस लड़की को अपनी आँखों से देखा था। ख़ूबसूरत थी। बहुत ही ख़ूबसूरत थी। लेकिन निहाल सिंह ने सोचा कि हरनाम कौर जितनी ख़ूबसूरत नहीं है।

गांव में कई दिनों से ख़ूब चहल पहल थी। चारों तरफ़ जवान शराब के नशे में धुत बोलियां गाते फिरते थे। कोई लड़की भाग निकलती तो सब उस के पीछे शोर मचाते दौड़ते कभी लूटे हुए माल पर झगड़ा हो जाता तो नौबत मरने मारने पर आ जाती। चीख़-व-पुकार तो हरघड़ी सुनाई देती थी। ग़र्ज़-ये-कि बड़ा मज़ेदार हंगामा था। लेकिन बहादुर ख़ामोश घर में बैठा रहता।

शुरू शुरू में तो निहाल सिंह बहादुर की इस ख़ामोशी के मुतअल्लिक़ बिलकुल ग़ाफ़िल रहा। लेकिन जब हंगामा और ज़्यादा बढ़ गया और लोगों ने मज़ाक़िया लहजे में उस से कहना शुरू किया क्यूँ सरदार निहाल सय्यां, तेरे बहादुर ने सुना है बड़ी बहादुरियां दिखाई हैं? तो वो पानी पानी हो गया।

चौपाल पर एक शाम को यरक़ान के मारे हुए हलवाई बिशेशर ने दोन की फेंकी और निहाल सिंह से कहा। दो तो मेरा गंडा सिंह लाया है........ एक मैं लाया हूँ बंद बोतल, और ये कहते हुए बिशेशर ने ज़बान से पटाख़े की आवाज़ पैदा की जैसे बोतल में से काग उड़ता है। नसीबों वाला ही खोलता है ऐसी बंद बोतलें सरदार निहाल सय्यां।

निहाल सिंह का जी जल गया। क्या था बिशेशर और क्या था गंडा सिंह? एक यरक़ान का मारा हुआ, दूसरा तप-ए-दिक़ का........ मगर जब निहाल सिंह ने ठंडे दिल से सोचा तो उस को बहुत दुख हुआ। क्यों कि जो कुछ बिशेशर ने कहा हक़ीक़त थी। बिशेशर और उस का लड़का गंडा सिंह कैसे भी थे। मगर तीन जवान लड़कियां, उन के घर में वाक़ई मौजूद थीं और चूँकि बिशेशर का घर उस के पड़ोस में था। इस लिए कई दिनों से निहाल सिंह उन तीनों लड़कियों के मुसलसल रोने की आवाज़ सन रहा था।

गुरुद्वारे के पास एक रोज़ दो जवाँ बातें कर रहे थे और हंस रहे थे।

निहाल सिंह के बारे में तो बड़ी बातें मशहूर हैं।

अरे छोड़। बहादुर तेव चूड़ियां पहन कर घर में बैठा है।

निहाल सिंह से अब न रहा गया। घर पहुंच कर उस ने बहादुर को बहुत ग़ैरत दिलाई और कहा। तू ने सुना लोग क्या कहते फिरते हैं........ चूड़ियां पहन कर घर में बैठा है तो।

क़सम वाह-गुरु-जी की, तेरी उम्र का था तो सैंकड़ों लड़कीयां मेरी इन टांगों........

निहाल सिंह एक दम ख़ामोश हो गया। क्यों कि शर्म के मारे बहादुर का चेहरा लाल हो गया था। बाहर निकल कर वह देर तक सोचता चला गया और सोचता सोचता कुँवें की मुंडेर पर बैठ गया.... उस की अधेड़ मगर तेज़ आँखों के सामने वो खुला मैदान था। जिस पर ब्रंटों से ले कर कबड्डी तक तमाम खेल खेल चुका था।

बहुत देर तक निहाल सिंह इस नतीजे पर पहुंचा कि बहादुर शर्मीला है और ये शर्मीला पन उस में ग़लत परवरिश की वजह से पैदा हुआ है। चुनांचे उस ने दिल ही दिल में अपनी बहन को बहुत गालियां दीं और फ़ैसला किया कि बहादुर के शर्मीले पन को किसी ना किसी तरह तोड़ा जाये और इस के लिए निहाल सिंह के ज़हन में एक ही तरकीब आई।

ख़बर आई कि रात को कच्ची सड़क पर से एक क़ाफ़िला गुज़रने वाला है। अंधेरी रात थी। जब गांव से एक टोली उस क़ाफ़िले पर हमला करने के लिए निकली तो निहाल सिंह भी ठा-ठा बांध कर उन के साथ हो लिया।

हमला हुआ। क़ाफ़िले वाले निहत्ते थे। फिर भी थोड़ी सी झपट हुई। लेकिन फ़ौरन ही क़ाफ़िले वाले इधर उधर भागने लगे। हमला करने वाली टोली ने उस अफ़रा-तफ़री से फ़ायदा उठाया और लूट मार शुरू कर दी। लेकिन निहाल सिंह को माल-ओ-दौलत की ख़्वाहिश नहीं थी। वह किसी और ही चीज़ की ताक में था।

सख़्त अंधेरा था गो गांव वालों ने मशालें रोशन की थीं मगर भाग दौड़ और लूट खसोट में बहुत सी बुझ गई थीं। निहाल सिंह ने अंधेरे में कई औरतों के साये दौड़ते देखे मगर फ़ैसला ना कर सका कि इन में से किस पर हाथ डाले। जब काफ़ी देर हो गई और लोगों की चीख़-व-पुकार मद्धम पड़ने लगी तो निहाल सिंह ने बे-चैनी के आलम में इधर उधर दौड़ना शुरू किया। एक दम तेज़ी से एक साया बग़ल में गठड़ी दबाये उस के सामने से गुज़रा।

निहाल सिंह ने उस का तआक़्क़ुब किया। जब पास पहुंचा तो उस ने देखा कि लड़की है और जवान.... निहाल सिंह ने फ़ौरन अपने गाड़े की चादर निकाली और उस पर जाल की तरह फेंकी। वो फंस गई। निहाल सिंह ने उसे काँधों पर उठा लिया और एक ऐसे रास्ते से घर का रुख़ किया कि उसे कोई देख ना ले।

मगर घर पहुंचा तो बत्ती गुल थी। बहादुर अंदर कोठरी में सो रहा था। निहाल सिंह ने उसे जगाना मुनासिब ख़याल न किया। किवाड़ खोला। चादर में से लड़की निकाल कर अंदर धकेल, बाहर से कुंडी चढ़ा दी। फिर ज़ोर ज़ोर से किवाड़ पीटे। ताकि बहादुर जाग पड़े।

जब निहाल सिंह ने मकान के बाहर खटिया बिछाई। और बहादुर और उस लड़की की मुडभेड़ की कपकपाहट पैदा करने वाली बातें सोचने के लिए लेटने लगा तो उस ने देखा कि बहादुर की कोठड़ी के रोशन दानों में दिए की रोशनी टिमटिमा रही है।

निहाल सिंह उछल पड़ा। और एक लहज़े के लिए महसूस किया कि वो जवान है। क़िमाद के खेतों में मुटियारों को कलाई से पकड़ने वाला नौ-जवान।

सारी रात निहाल सिंह जागता रहा और तरह तरह की बातें सोचता रहा। सुबह जब मुर्ग़ बोलने लगे तो वह उठ कर कोठड़ी में जाने लगा। मगर डेयुढ़ी से लौट आया। उस ने सोचा कि दोनों थक कर सो चुके हों गे और हो सकता है........ निहाल सिंह के बदन पर झुरझुरी सी दौड़ गई और वह खाट पर बैठ कर मूंछों के बाल मुँह में डाल कर चूसने और मुस्कराने लगा।

जब दिन चढ़ गया और धूप निकल आई तो उस ने अंदर जा कर कुंडी खोली। सटर-पटर की आवाज़ें सी आएं। किवाड़ खोले तो उस ने देखा कि लड़की चारपाई पर केसरी दुपट्टा ओढ़े बैठी है। पीठ उस की तरफ़ थी। जिस पर ये मोटी काली चुटिया साँप की तरह लटक रही थी। जब निहाल सिंह ने कोठड़ी के अन्दर क़दम रखा तो लड़की ने पांव ऊपर उठा लिए और सिमट कर बैठ गई।

ताक़ में दिया अभी तक जल रहा था। निहाल सिंह ने फूंक मार कर उसे बुझाया और दफ़अतन उसे बहादुर का ख़याल आया........ बहादुर कहाँ है?........ उस ने कोठड़ी में इधर उधर नज़र दौड़ाई मगर वो कहीं नज़र ना आया। दो क़दम आगे बढ़ कर उस ने लड़की से पूछा। बहादुर कहाँ है?

लड़की ने कोई जवाब ना दिया। एक दम सटर-पटर सी हुई और चारपाई के नीचे से एक और लड़की निकली........ निहाल सिंह हक्का बक्का रह गया.... लेकिन उस ने देखा। उस की हैरतज़दा आँखों ने देखा कि जो लड़की चारपाई से निकल कर बिजली की सी तेज़ी के साथ बाहर दौड़ गई थी। उस के दाढ़ी थी, मुंडी हुई दाढ़ी।

निहाल सिंह चारपाई की तरफ़ बढ़ा लड़की जो कि उस पर बैठी थी और ज़्यादा सिमट गई मगर निहाल सिंह ने हाथ के एक झटके से उस का मुँह अपनी तरफ़ किया। एक चीख़ निहाल सिंह के हलक़ से निकली और दो क़दम पीछे हट गया। हरनाम कौर!

ज़नाना लिबास, सीधी मांग, काली चुटिया........ और बहादुर होंट भी चूस रहा था ।

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ज़ाहिद सिर्फ़ नाम ही का ज़ाहिद नहीं था, उस के ज़ुहद-ओ-तक़वा के सब क़ाइल थे, उस ने बीस पच्चीस बरस की उम्र में शादी की, उस ज़माने में उस के पास दस हज़ार के क़रीब रुपय थे, शादी पर पाँच हज़ार सर्फ़ हो गए, उतनी ह

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गिलगित ख़ान

8 अप्रैल 2022
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शहबाज़ ख़ान ने एक दिन अपने मुलाज़िम जहांगीर को जो उस के होटल में अंदर बाहर का काम करता था उस की सुस्त-रवी से तंग आकर बर-तरफ़ कर दिया। असल में वो सुस्त-रो नहीं था। इस क़दर तेज़ था कि उस की हर हरकत शहबाज़ ख़ान

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घोगा

8 अप्रैल 2022
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मैं जब हस्पताल में दाख़िल हुआ तो छट्ठे रोज़ मेरी हालत बहुत ग़ैर होगई। कई रोज़ तक बे-होश रहा। डाक्टर जवाब दे चुके थे लेकिन ख़ुदा ने अपना करम किया और मेरी तबीयत सँभलने लगी। इस दौरान की मुझे अक्सर बातें या

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चुग़द

8 अप्रैल 2022
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लड़कों और लड़कियों के मआशिक़ों का ज़िक्र हो रहा था। प्रकाश जो बहुत देर से ख़ामोश बैठा अंदर ही अंदर बहुत शिद्दत से सोच रहा था, एक दम फट पड़ा। सब बकवास है, सौ में से निन्नानवे मआशिक़े निहायत ही भोंडे और लचर

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जानकी

8 अप्रैल 2022
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पूना में रेसों का मौसम शुरू होने वाला था कि पिशावर से अज़ीज़ ने लिखा कि मैं अपनी एक जान पहचान की औरत जानकी को तुम्हारे पास भेज रहा हूँ, उस को या तो पूना में या बंबई में किसी फ़िल्म कंपनी में मुलाज़मत करा

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तरक़्क़ी पसंद

8 अप्रैल 2022
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जोगिंदर सिंह के अफ़साने जब मक़बूल होना शुरू हुए तो उसके दिल में ख़्वाहिश पैदा हुई कि वो मशहूर अदीबों और शाइरों को अपने घर बुलाए और उन की दावत करे। उस का ख़याल था कि यूं उस की शौहरत और मक़बूलियत और भी ज़्

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दीवाना शायर

8 अप्रैल 2022
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[अगर मुक़द्दस हक़ दुनिया की मुतजस्सिस निगाहों से ओझल कर दिया जाये। तो रहमत हो उस दीवाने पर जो इंसानी दिमाग़ पर सुनहरा ख़्वाब तारी कर दे।] मैं आहों का ब्योपारी हूँ, लहू की शायरी मेरा काम है, चमन की मा

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निक्की

8 अप्रैल 2022
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तलाक़ लेने के बाद वो बिलकुल नचनत होगई थी। अब वो हर रोज़ की वानिता कुल कुल और मार कटाई नहीं थे। निक्की बड़े आराम-ओ-इत्मिनान से अपना गुज़र औक़ात कर रही थी। ये तलाक़ पूरे दस बरस के बाद हुई थी। निक्की का श

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परी

8 अप्रैल 2022
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कश्मीरी गेट दिल्ली के एक फ़्लैट में अनवर की मुलाक़ात परवेज़ से हुई। वो क़तअन मुतअस्सिर न हुआ। परवेज़ निहायत ही बेजान चीज़ थी। अनवर ने जब उस की तरफ़ देखा और उस को आदाब अर्ज़ कहा तो उस ने सोचा “ये क्या है औरत

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पसीना

8 अप्रैल 2022
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“मेरे अल्लाह!............... आप तो पसीने में शराबोर हो रहे हैं।” “नहीं। कोई इतना ज़्यादा तो पसीना नहीं आया।” “ठहरिए में तौलिया ले कर आऊं।” “तौलिए तो सारे धोबी के हाँ गए हुए हैं।” “तो मैं अपने दोपट्

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पढ़े कलिमा

8 अप्रैल 2022
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ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह...... आप मुस्लमान हैं यक़ीन करें मैं जो कुछ कहूंगा, सच्च कहूंगा। पाकिस्तान का इस मुआमले से कोई तअल्लुक़ नहीं। क़ाइद-ए-आज़म जिन्नाह के लिए मैं जान देने के लिए तैय

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पीरन

8 अप्रैल 2022
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ये उस ज़माने की बात है जब मैं बेहद मुफ़लिस था। बंबई में नौ रुपये माहवार की एक खोली में रहता था जिस में पानी का नल था न बिजली। एक निहायत ही ग़लीज़ कोठड़ी थी जिस की छत पर से हज़ारहा खटमल मेरे ऊपर गिरा करते थ

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पढ़े कलिमा

8 अप्रैल 2022
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ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह...... आप मुस्लमान हैं यक़ीन करें मैं जो कुछ कहूंगा, सच्च कहूंगा। पाकिस्तान का इस मुआमले से कोई तअल्लुक़ नहीं। क़ाइद-ए-आज़म जिन्नाह के लिए मैं जान देने के लिए तैय

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फ़रिश्ता

8 अप्रैल 2022
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सुर्ख़ खुरदरे कम्बल में अताउल्लाह ने बड़ी मुश्किल से करवट बदली और अपनी मुंदी हुई आँखें आहिस्ता आहिस्ता खोलीं। कुहरे की दबीज़ चादर में कई चीज़ें लिपटी हुई थीं जिन के सही ख़द्द-ओ-ख़ाल नज़र नहीं आते थे। एक लं

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फाहा

8 अप्रैल 2022
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गोपाल की रान पर जब ये बड़ा फोड़ा निकला तो इस के औसान ख़ता हो गए। गरमियों का मौसम था। आम ख़ूब हुए थे। बाज़ारों में, गलियों में, दुकानदारों के पास, फेरी वालों के पास, जिधर देखो, आम ही आम नज़र आते। लाल, पीले

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फुंदने

8 अप्रैल 2022
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कोठी से मुल्हक़ा वसीअ-ओ-अरीज़ बाग़ में झाड़ियों के पीछे एक बिल्ली ने बच्चे दिए थे, जो बिल्ला खा गया था। फिर एक कुतिया ने बच्चे दिए थे जो बड़े बड़े हो गए थे और दिन रात कोठी के अंदर बाहर भौंकते और गंदगी बिखेर

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बलवंत सिंह मजीठिया

8 अप्रैल 2022
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शाह साहब से जब मेरी मुलाक़ात हुई तो हम फ़ौरन बे-तकल्लुफ़ हो गए। मुझे सिर्फ़ इतना मालूम था कि वो सय्यद हैं और मेरे दूर-दराज़ के रिश्तेदार भी हैं। वो मेरे दूर या क़रीब के रिश्तेदार कैसे हो सकते थे, इस के मु

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बाई बाई

8 अप्रैल 2022
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नाम उस का फ़ातिमा था पर सब उसे फातो कहते थे बानिहाल के दुर्रे के उस तरफ़ उस के बाप की पन-चक्की थी जो बड़ा सादा लौह मुअम्मर आदमी था। दिन भर वो इस पन चक्की के पास बैठी रहती। पहाड़ के दामन में छोटी सी जगह थ

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बादशाहत का ख़ात्मा

8 अप्रैल 2022
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टेलीफ़ोन की घंटी बिजी। मनमोहन पास ही बैठा था। उस ने रीसीवर उठाया और कहा “हेलो....... फ़ौर फ़ौर फ़ौर फाईव सेवन” दूसरी तरफ़ से पतली सी निस्वानी आवाज़ आई। “सोरी....... रोंग नंबर” मनमोहन ने रीसीवर रख दिया और

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बिलाउज़

8 अप्रैल 2022
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कुछ दिनों से मोमिन बहुत बेक़रार था। उस को ऐसा महसूस होता था कि इस का वजूद कच्चा फोड़ा सा बन गया था। काम करते वक़्त, बातें करते हुए हत्ता कि सोचने पर भी उसे एक अजीब क़िस्म का दर्द महसूस होता था। ऐसा दर्द

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सरकण्डों के पीछे

8 अप्रैल 2022
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कौन सा शहर था, इस के मुतअल्लिक़ जहां तक में समझता हूँ, आप को मालूम करने और मुझे बताने की कोई ज़रूरत नहीं ।बस इतना ही कह देना काफ़ी है कि वो जगह जो इस कहानी से मुतअल्लिक़ है, पेशावर के मुज़ाफ़ात में थी। सरहद

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मिसिज़ गुल

8 अप्रैल 2022
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मैंने जब उस औरत को पहली मर्तबा देखा तो मुझे ऐसा महसूस हुआ कि मैंने लेमूँ निचोड़ ने वाला खटका देखा है। बहुत दुबली पतली, लेकिन बला की तेज़। उस का सारा जिस्म सिवाए आँखों के इंतिहाई ग़ैर निस्वानी था। ये आँख

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मलबे का ढेर

8 अप्रैल 2022
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कामिनी के ब्याह को अभी एक साल भी न हुआ था कि उस का पति दिल के आरिज़े की वजह से मर गया और अपनी सारी जायदाद उस के लिए छोड़ गया। कामिनी को बहुत सदमा पहुंचा, इस लिए कि वो जवानी ही में बेवा हो गई थी। उस की

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महमूदा

8 अप्रैल 2022
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मुस्तक़ीम ने महमूदा को पहली मर्तबा अपनी शादी पर देखा। आरसी मसहफ़ की रस्म अदा हो रही थी कि अचानक उस को दो बड़ी बड़ी.......ग़ैर-मामूली तौर पर बड़ी आँखें दिखाई दीं.......ये महमूदा की आँखें थीं जो अभी तक कुंवार

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मिसेज़ डी सिल्वा

8 अप्रैल 2022
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बिलकुल आमने सामने फ़्लैट थे। हमारे फ़्लैट का नंबर तेरह था। उस के फ़्लैट का चौदह। कभी कोई सामने का दरवाज़ा खटखटाता तो मुझे यही मालूम होता कि हमारे दरवाज़े पर दस्तक होरही है। इसी ग़लतफ़हमी में जब मैंने एक

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मेरा हमसफ़र

9 अप्रैल 2022
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प्लेटफार्म पर शहाब, सईद और अब्बास ने एक शोर मचा रखा था। ये सब दोस्त मुझे स्टेशन पर छोड़ने के लिए आए थे, गाड़ी प्लेटफार्म को छोड़ कर आहिस्ता आहिस्ता चल रही थी कि शहाब ने बढ़ कर पाएदान पर चढ़ते हुए मुझ से

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मेरा और उसका इंतिक़ाम

9 अप्रैल 2022
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घर में मेरे सिवा कोई मौजूद नहीं था। पिता जी कचहरी में थे और शाम से पहले कभी घर आने के आदी न थे। माता जी लाहौर में थीं और मेरी बहन बिमला अपनी किसी सहेली के हाँ गई थी! मैं तन्हा अपने कमरे में बैठा किताब

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वह लड़की

9 अप्रैल 2022
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सवा-चार बज चुके थे लेकिन धूप में वही तमाज़त थी जो दोपहर को बारह बजे के क़रीब थी। उस ने बालकनी में आ कर बाहर देखा तो उसे एक लड़की नज़र आई जो बज़ाहिर धूप से बचने के लिए एक साया-दार दरख़्त की छांव में आलती पाल

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वो ख़त जो पोस्ट न किये गए

9 अप्रैल 2022
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हव्वा की एक बेटी के चंद ख़ुतूत जो उस ने फ़ुर्सत के वक़्त मुहल्ले के चंद लोगों को लिखे। मगर इन वजूह की बिना पर पोस्ट न किए गए जो इन ख़ुतूत में नुमायां नज़र आती हैं। (नाम और मुक़ाम फ़र्ज़ी हैं) पहला ख़त म

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शादी

9 अप्रैल 2022
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जमील को अपना शैफर लाइफ-टाइम क़लम मरम्मत के लिए देना था। उस ने टेलीफ़ोन डायरेक्ट्री में शैफर कंपनी का नंबर तलाश किया। फ़ोन करने से मालूम हुआ कि उन के एजेंट मैसर्ज़ डी, जे, समतोइर हैं जिन का दफ़्तर ग्रीन

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सड़क के किनारे

9 अप्रैल 2022
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“यही दिन थे......... आसमान उस की आँखों की तरह ऐसा ही नीला था जैसा कि आज है। धुला हुआ, निथरा हुआ......... और धूप भी ऐसी ही कनकनी थी......... सुहाने ख़्वाबों की तरह। मिट्टी की बॉस भी ऐसी ही थी जैसी कि इ

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शारदा

9 अप्रैल 2022
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नज़ीर ब्लैक मार्कीट से विस्की की बोतल लाने गया। बड़क डाकख़ाने से कुछ आगे बंदरगाह के फाटक से कुछ इधर सिगरेट वाले की दुकान से उस को स्काच मुनासिब दामों पर मिल जाती थी। जब उस ने पैंतीस रुपये अदा करके काग़

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सिराज

9 अप्रैल 2022
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नागपाड़ा पुलिस चौकी के उस तरफ़ जो छोटा सा बाग़ है। उस के बिलकुल सामने ईरानी के होटल के बाहर, बिजली के खंबे के साथ लग कर ढूंढ़ो खड़ा था। दिन ढले, मुक़र्ररा वक़्त पर वो यहां आ जाता और सुबह चार बजे तक अपने धंद

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हज्ज-ए-अकबर

9 अप्रैल 2022
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इम्तियाज़ और सग़ीर की शादी हुई तो शहर भर में धूम मच गई। आतिश बाज़ियों का रिवाज बाक़ी नहीं रहा था मगर दूल्हे के बाप ने इस पुरानी अय्याशी पर बे-दरेग़ रुपया सर्फ़ किया। जब सग़ीर ज़ेवरों से लदे फंदे सफ़ैद बुर्र

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सजदा

9 अप्रैल 2022
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गिलास पर बोतल झुकी तो एक दम हमीद की तबीयत पर बोझ सा पड़ गया। मलिक जो उसके सामने तीसरा पैग पी रहा था फ़ौरन ताड़ गया कि हमीद के अंदर रुहानी कश्मकश पैदा होगई है। वो हमीद को सात बरस से जानता था, और इन सात बर

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लाइसेंस

9 अप्रैल 2022
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अब्बू कोचवान बड़ा छैल छबीला था। उस का ताँगा घोड़ा भी शहर में नंबर वन था। कभी मामूली सवारी नहीं बिठाता था। उस के लगे बंधे गाहक थे जिन से उस को रोज़ाना दस पंद्रह रुपय वसूल हो जाते थे जो अब्बू के लिए काफ़ी थ

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हाफ़िज़ हुसैन दीन

9 अप्रैल 2022
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हाफ़िज़ हुसैन दीन जो दोनों आँखों से अंधा था, ज़फ़र शाह के घर में आया। पटियाले का एक दोस्त रमज़ान अली था, जिस ने ज़फ़र शाह से उस का तआरुफ़ कराया। वो हाफ़िज़ साहिब से मिल कर बहुत मुतअस्सिर हुआ। गो उन की

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संतर पंच

9 अप्रैल 2022
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मैं लाहौर के एक स्टूडियो में मुलाज़िम हुआ जिस का मालिक मेरा बंबई का दोस्त था उस ने मेरा इस्तिक़बाल क्या मैं उस की गाड़ी में स्टूडियो पहुंचा था बग़लगीर होने के बाद उस ने अपनी शराफ़त भरी मोंछों को जो ग़ालिबन

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शैदा

9 अप्रैल 2022
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शैदे के मुतअल्लिक़ अमृतसर में ये मशहूर था कि वो चट्टान से भी टक्कर ले सकता है उस में बला की फुर्ती और ताक़त थी गो तन-ओ-तोश के लिहाज़ से वो एक कमज़ोर इंसान दिखाई देता था लेकिन अमृतसर के सारे गुंडे उस से ख़ौ

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राम खेलावन

9 अप्रैल 2022
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खटमल मारने के बाद में ट्रंक में पुराने काग़ज़ात देख रहा था कि सईद भाई जान की तस्वीर मिल गई। मेज़ पर एक ख़ाली फ़्रेम पड़ा था....... मैंने इस तस्वीर से उस को पुर कर दिया और कुर्सी पर बैठ कर धोबी का इंतिज़ार

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रहमत-ए-खुदा-वंदी के फूल

9 अप्रैल 2022
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ज़मींदार, अख़बार में जब डाक्टर राथर पर रहमत-ए-ख़ुदा-वंदी के फूल बरसते थे तो यार दोस्तों ने ग़ुलाम रसूल का नाम डाक्टर राथर रख दिया। मालूम नहीं क्यूँ, इस लिए कि ग़ुलाम रसूल को डाक्टर राथर से कोई निसबत नह

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मिस फ़र्या

9 अप्रैल 2022
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शादी के एक महीने बाद सुहेल परेशान होगया। उस की रातों की नींद और दिन का चैन हराम हो गया। उस का ख़याल था कि बच्चा कम अज़ कम तीन साल के बाद पैदा होगा मगर अब एक दम ये मालूम करके उस के पांव तले की ज़मीन निक

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मिस अडना जैक्सन

9 अप्रैल 2022
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कॉलिज की पुरानी प्रिंसिपल के तबादले का एलान हुआ, तालिबात ने बड़ा शोर मचाया। वो नहीं चाहती थीं कि उन की महबूब प्रिंसिपल उन के कॉलेज से कहीं और चली जाये। बड़ा एहतिजाज हुआ। यहाँ तक कि चंद लड़कियों ने भूक हड़

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बुड्ढ़ा खूसट

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ये जंग-ए-अज़ीम के ख़ातमे के बाद की बात है जब मेरा अज़ीज़ तरीन दोस्त लैफ़्टीनैंट कर्नल मोहम्मद सलीम शेख़ (अब) ईरान इराक़ और दूसरे महाज़ों से होता हुआ बमबई पहुंचा। उस को अच्छी तरह मालूम था, मेरा फ़्लैट कहाँ ह

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शह नशीं पर

9 अप्रैल 2022
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वो सफ़ैद सलमा लगी साड़ी में शह-नशीन पर आई और ऐसा मालूम हुआ कि किसी ने नक़रई तारों वाला अनार छोड़ दिया है। साड़ी के थिरकते हूए रेशमी कपड़े पर जब जगह जगह सलमा का काम टिमटिमाने लगता तो मुझे जिस्म पर वो तमाम

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चुग़द

9 अप्रैल 2022
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लड़कों और लड़कियों के मआशिक़ों का ज़िक्र हो रहा था। प्रकाश जो बहुत देर से ख़ामोश बैठा अंदर ही अंदर बहुत शिद्दत से सोच रहा था, एक दम फट पड़ा। सब बकवास है, सौ में से निन्नानवे मआशिक़े निहायत ही भोंडे और लचर

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