सुनो प्रिये ,
प्यार के पंख लगाकर दूर कहीं उड़ जायें
सुनहरी घाटियों के बीच "प्रेमनगर" बसायें
जहां प्रेम रूपी उपवन सबको महकाता हो
किस्मत का सूरज सबका मुकद्दर चमकाता हो
नदियां अपने वात्सल्य से सबको सींचती हो
अपनेपन की डोर एक दूसरे को खींचती हो
ईर्ष्या, द्वेष, घृणा रूपी कचरा नजर ना आये
भावनाओं के समंदर में हर दिन गुजर जाये
अहसासों की गुनगुनाती धूप मनभावन लगे
वो सपनों का शहर राधा कृष्ण का वृंदावन लगे
चारों तरफ शांति की अलबेली चांदनी रात हो
दिल से दिलों की बात हो ना घात प्रतिघात हो
गंगाजल से मीठे मीठे तराने गूंजते हो जहां
पैसों को नहीं भावनाओं को पूजते हो जहां
ऐसे शहर में हम अपना आशियाना बनायेंगे
स्नेह, ममता, प्रेम का वहां ठिकाना बनायेंगे
हरिशंकर गोयल "हरि"
5.1.22