झीने से अवगुण्ठन के पीछे से जब तुम इस तरह मुस्कुराती हो
हाय, कसम से जान ले जाती हो
झील सी गहरी बड़ी बड़ी आंखों से
जब तुम कातिलाना वार करती हो
तब कसम से जीना मुहाल करती हो
लाल सुर्ख लबों पर खेलती हैं जब
नशीली मुस्कुराहटों की बिजलियाँ
तब नाजुक सा दिल हलाल करती हो
होठों के पास जो काला सा तिल है
उससे जब घातक प्रहार करती हो
तब, कत्लेआम कर हाहाकार करती हो
हरिशंकर गोयल "हरि"
23.10.21