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इश्क में शायरी

16 नवम्बर 2022

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आजकल वक्त बर्बाद बहुत कर रहा हूं मैं
आजकल  तुझे  याद  बहुत कर रहा हूं मैं 
दिल  बहुत  धड़कता  है  रुकता  ही नहीं,
खुद  को  भी  बर्बाद  बहुत कर रहा हूं मैं


जब सामने से मंज़िल निकल जाती है
मानो   जान   सी    निकल  जाती   है
भाग  कर   लपक  तो   लेता  मैं   उसे,
मगर भागने  मे दम भी निकल जाती है 


रोज रोज मरना जीना क्या यही ख्वाइश है
इश्क  में  हुनर  की   यही   आजमाइश  है
दर्द  भी  दवा  नही  होता  अभी  आदिब,
दवा   को   भी   दर्द     की    गुज़ारिश  है


लायक हो तो क्या सदाकत है
वरना   ये   सब   वकालत  है
ढूंढ़ो    कोई    वकील   जल्द
सब्र  की  अपनी  अदालत है


ऊंचाई पे  बैठा  कर  गिराया  भी  जाता है
ये वक्त है  गिरे हुए को उठाया भी जाता है 
आत्मविश्वास  को   न   गिरने   दे  आदिब 
यहां     वक्त     भी     बदलाया    जाता है



चलो   इक   रोज   मरके   देखे
इक झूठ  को  सच  करके देखे
वो देखता है मुझे नज़रे फिरा कर,
चलो उसकी नज़रे बदलके देखे


           - Kumar Aadib "Fiza"




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रचनाएँ
दैनन्दिनी
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