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जवानी

18 अप्रैल 2022

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प्राण अन्तर में लिये, पागल जवानी !

कौन कहता है कि तू

विधवा हुई, खो आज पानी?

चल रहीं घड़ियाँ,

चले नभ के सितारे,

चल रहीं नदियाँ,

चले हिम-खंड प्यारे;

चल रही है साँस,

फिर तू ठहर जाये?

दो सदी पीछे कि

तेरी लहर जाये?

पहन ले नर-मुंड-माला,

उठ, स्वमुण्ड सुमेरु कर ले;

भूमि-सा तू पहन बाना आज धानी

प्राण तेरे साथ हैं, उठ री जवानी!

द्वार बलि का खोल

चल, भूडोल कर दें,

एक हिम-गिरि एक सिर

का मोल कर दें

मसल कर, अपने

इरादों-सी, उठा कर,

दो हथेली हैं कि

पृथ्वी गोल कर दें?

रक्त है? या है नसों में क्षुद्र पानी!

जाँच कर, तू सीस दे-देकर जवानी?

वह कली के गर्भ से, फल

रूप में, अरमान आया!

देख तो मीठा इरादा, किस

तरह, सिर तान आया!

डालियों ने भूमि रुख लटका

दिये फल, देख आली !

मस्तकों को दे रही

संकेत कैसे, वृक्ष-डाली !

फल दिये? या सिर दिये? तरु की कहानी

गूँथकर युग में, बताती चल जवानी !

श्वान के सिर हो-

चरण तो चाटता है!

भोंक ले-क्या सिंह

को वह डाँटता है?

रोटियाँ खायीं कि

साहस खा चुका है,

प्राणि हो, पर प्राण से

वह जा चुका है।

तुम न खोलो ग्राम-सिंहों मे भवानी !

विश्व की अभिमन मस्तानी जवानी !

ये न मग हैं, तव

चरण की रखियाँ हैं,

बलि दिशा की अमर

देखा-देखियाँ हैं।

विश्व पर, पद से लिखे

कृति लेख हैं ये,

धरा तीर्थों की दिशा

की मेख हैं ये।

प्राण-रेखा खींच दे, उठ बोल रानी,

री मरण के मोल की चढ़ती जवानी।

टूटता-जुड़ता समय

`भूगोल' आया,

गोद में मणियाँ समेट

खगोल आया,

क्या जले बारूद?

हिम के प्राण पाये!

क्या मिला? जो प्रलय

के सपने न आये।

धरा?- यह तरबूज

है दो फाँक कर दे,

चढ़ा दे स्वातन्त्रय-प्रभू पर अमर पानी।

विश्व माने-तू जवानी है, जवानी !

लाल चेहरा है नहीं

फिर लाल किसके?

लाल खून नहीं?

अरे, कंकाल किसके?

प्रेरणा सोयी कि

आटा-दाल किसके?

सिर न चढ़ पाया

कि छाया-माल किसके?

वेद की वाणी कि हो आकाश-वाणी,

धूल है जो जग नहीं पायी जवानी।

विश्व है असि का?

नहीं संकल्प का है;

हर प्रलय का कोण

काया-कल्प का है;

फूल गिरते, शूल

शिर ऊँचा लिये हैं;

रसों के अभिमान

को नीरस किये हैं।

खून हो जाये न तेरा देख, पानी,

मर का त्यौहार, जीवन की जवानी।

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रचनाएँ
हिमकिरीटिनी
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इस कविता का सारांश यह है कि , एक पुष्प जिसका प्राकृतिक इस्तेमाल , सुन्दर स्त्रियों पर सुशोभित होना , प्रेमिकाओं के गले की माला बनना , भगवानों की मूर्तियों पर चढ़ाया जाना और सम्राटों के शव पर डाला जाना है। वह पुष्प इस सब को छोड़ कर अपने आप को देश पर बलिदान होने वालों पर डालने के लिए माली से अपनी इच्छा प्रकट कर रहा है।
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नव स्वागत

18 अप्रैल 2022
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तुम बढ़ते ही चले, मृदुलतर जीवन की घड़ियाँ भूले, काठ छेदने लगे, सहस दल की नव पंखड़ियाँ भूले; मन्द पवन संदेश दे रहा, ह्रदय-कली पथ हेर रही, उड़ो मधुप ! नन्दन की दिशि में ज्वालाएं घर घेर रहीं; तरुण तप

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घर मेरा है

18 अप्रैल 2022
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क्या कहा कि यह घर मेरा है? जिसके रवि उगें जेलों में, संध्या होवे वीरानों मे, उसके कानों में क्यों कहने आते हो? यह घर मेरा है? है नील चंदोवा तना कि झूमर झालर उसमें चमक रहे, क्यों घर की याद द

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जवानी

18 अप्रैल 2022
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प्राण अन्तर में लिये, पागल जवानी ! कौन कहता है कि तू विधवा हुई, खो आज पानी? चल रहीं घड़ियाँ, चले नभ के सितारे, चल रहीं नदियाँ, चले हिम-खंड प्यारे; चल रही है साँस, फिर तू ठहर जाये? दो सदी पी

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कैदी और कोकिला

18 अप्रैल 2022
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क्या गाती हो? क्यों रह-रह जाती हो? कोकिल बोलो तो! क्या लाती हो? सन्देशा किसका है? कोकिल बोलो तो! ऊँची काली दीवारों के घेरे में, डाकू, चोरों, बटमारों के डेरे में, जीने को देते नहीं पेट भर खान

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सिपाही

18 अप्रैल 2022
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गिनो न मेरी श्वास, छुए क्यों मुझे विपुल सम्मान? भूलो ऐ इतिहास, खरीदे हुए विश्व-ईमान !! अरि-मुड़ों का दान, रक्त-तर्पण भर का अभिमान, लड़ने तक महमान, एक पँजी है तीर-कमान! मुझे भूलने में सुख पाती,

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गिरि पर चढ़ते, धीरे-धीरे

18 अप्रैल 2022
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सूझ ! सलोनी, शारद-छौनी, यों न छका, धीरे-धीरे ! फिसल न जाऊँ, छू भर पाऊँ, री, न थका, धीरे-धीरे ! कम्पित दीठों की कमल करों में ले ले, पलकों का प्यारा रंग जरा चढ़ने दे, मत चूम! नेत्र पर आ, मत जाय

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मैं अपने से डरती हूँ सखि

18 अप्रैल 2022
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मैं अपने से डरती हूँ सखि ! पल पर पल चढ़ते जाते हैं, पद-आहट बिन, रो! चुपचाप बिना बुलाये आते हैं दिन, मास, वरस ये अपने-आप; लोग कहें चढ़ चली उमर में पर मैं नित्य उतरती हूँ सखि ! मैं अपने से डरती ह

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उपालम्भ

18 अप्रैल 2022
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क्यों मुझे तुम खींच लाये? एक गो-पद था, भला था, कब किसी के काम का था? क्षुद्ध तरलाई गरीबिन अरे कहाँ उलीच लाये? एक पौधा था, पहाड़ी पत्थरों में खेलता था, जिये कैसे, जब उखाड़ा गो अमृत से सींच

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कुंज कुटीरे यमुना तीरे

18 अप्रैल 2022
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पगली तेरा ठाट! किया है रतनांबर परिधान, अपने काबू नहीं, और यह सत्याचरण विधान! उन्मादक मीठे सपने ये, ये न अधिक अब ठहरें, साक्षी न हों, न्याय-मंदिर में कालिंदी की लहरें। डोर खींच, मत शोर मचा, मत

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सौदा

18 अप्रैल 2022
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 चांदी-सोने की आशा पर, अन्तस्तल का सौदा  हाथ-पांव जकड़े जाने को, आमिष-पूर्ण मसौदा ?  टुकड़ों पर जीवन की श्वासें ? कितनी सुन्दर दर है !  हूँ उन्मत्त, तलाश रहा हूँ कहाँ वधिक का घर है?  दमयन्ती के 'एक

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स्वागत

18 अप्रैल 2022
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'जय हो !' उषाकाल है बच्चे सोये, स्वागत कौन करे ? चरणों में मेरी कालिन्दी की, अर्पित काली लहरें । भूत काल का गौरव, भावी की उज्जवल आशाएँ ले, लाट, किला, मीनार, सभी को अपने दाएँ-बाएँ ले, इस तट पर

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वरदान या अभिशाप?

18 अप्रैल 2022
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कौन पथ भूले, कि आये ! स्नेह मुझसे दूर रहकर कौनसे वरदान पाये? यह किरन-वेला मिलन-वेला बनी अभिशाप होकर, और जागा जग, सुला अस्तित्व अपना पाप होकर; छलक ही उट्ठे, विशाल ! न उर-सदन में तुम समाये।

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