एक प्राण नदी के चारो ओर झरने, और वायु का शोर, शांत, गति में पुलकित मोर जीवन धारा करती हिलोर! शिथिल हृदय, आहत मन विस्मित चित्र, और सूनापन लगता है कि कायनात मे, लहू-लुहान हैं सबके स्वपन, हे मानव, क्या हस्ती है तेरी, डूबती, उतराती कश्ती है तेरी, पांव हुए, बैसाखी पर निर्भर, गिरे पड़े मरुस्थल में आकर, यही रहस्य है, नदी हवा का, झरने, जंगल, और, धरा का, सहते जा, ये बहती जाएगी, अविरल जैसा है इसका छोर, जीवन धारा, करती हिलोर!! 2