देखा था आखरी बार .... अपनी मुंडेर पर...! चुनती वो चावल के दाने... नन्हीं सी चोंच में ...! गिरते दानों को ... बार-बार उठाती...! फिर छोटे से मुंह को ... दो दानों से भर जाती ...! सफेद भुरे रंगों पर .... काला धार जैसे .... नजर का टीका लगाए ..…! सिर घु
एक ऐसा जन्म जिसको जन्म कहे या कोई अधूरा कार्य। इस ब्लैक में अपने आप को खोजता एक इंसान
मनुष्य की हर अवस्था के अलग-अलग कहानियां होती है मनुष्य जब बच्चा होता है, जब किशोर होता है, जब युवा होता है, जब प्रौढ़ होता है जब मुझे बूढ़ा हो जाता है। युवावस्था मनुष्य के जीवन का दौर है,जब वो सपने देखता है, जब उसे लगता है कि से किसी से प्यार हो गया
एक छोटी सी घटना गुरु गोविंद सिंह के जीवनी से..
YE jindagi ke utaar chadaav ke upar likhi hui sachi kahani hai jo ki hamare aaj ko kal se jodti hui ek jivan samri hai Jinvan me dhoop chav aate rahete hai or jate rahete hai usi usi par aadharit hai aaj ki hamari ye kahani-Ye kahani Surekha naam ki
कुछ यादें ऐसी होती हैं जो समय के साथ साथ धुंधली पड़ जाती हैं पर अकेले में जब यद् आती हैं तो हम कहीं खो से जाते हैं मेरी किताब 'यादें ' कुछ ऐसी ही यादों को अपने अन्दर समेटे हुए है
लेखक के बारे मे मेरा जन्म 9 मार्च 1992 को गाँव बिरूल बाजार, जिला बैतूल, मध्यप्रदेश मे हुआ था | जब मै 5 वर्ष का था तब मेरी मम्मी का स्वर्गवास हो गया था | इस घटना का मानसिक रूप से मुझ पर बहुत प्रभाव पड़ा | मेरा बचपन, अन्य बच्चों की तरह खेलकूद, शरारत मे
बात आज से इक्कीस वर्ष पूर्व की है। हमारी माता जी ने आबाज देकर हमें बुलाया कि तुम्हारी भाभी माँ को प्रसव पीड़ा हो रही है। हम और हमारा जुड़वां भाई दोनों मिल कर भाभी माँ को लेकर हास्पिटल पहुँच गयें। कुछ पल बाद ही एक स्टाफ नर्स एक शिशु को गोद में लियें त
तुम मेरे हो इश्क की सारी दीवानगी को पर कर देने वाली कहानी तुम मेरे हो ।
किताब के बारे मे यह किताब मेरे कॉलेज के दिनों की कहानी पर आधारित है | मेरे घर की आर्थिक स्तिथि अच्छी ना होने की वजह से बहुत सी समस्या का सामना करना पड़ा, मगर वामनकर मामाजी, बुआ, मिथिलेश भैया और अभिषेक भैया के सहयोग से मेरी हर मुश्किल आसान सी लगने लग
हमारे आंगन की शान रही चारपाई ,शान चारपाई से नहीं उस पर बैठी हमारी अम्माजी से बढ़ती थी। 95 साल की उम्र में भी अम्माजी को दिनभर बिस्तर पर लेटे पड़े रहना पसंद ना था ,और ना ही दिन भर अपने बिस्तर बिछे रहने देती । अरे हां सच में आज की तरह दिनभर बिस्तर बिछे
हर दिन एक ही ढर्रे के बीच झूलती जिंदगी से जब मन ऊबने लगता है तो मन को कुछ सुकूं भरे पलों की तलाश रहती है। इसके लिए मैं यात्राओं को सबसे अच्छा विकल्प समझती हूँ, जो थके-हारे मन और दिल को तरोताजगी से भर लेते हैं। इन यात्राओं के दौरान हमें घर से बाहर बहु
Ye bat tk ki h jb m pahali bar school gya tb m sirf 3 sal ka tha ganv ka mahaul tha mujhe nhi pta tha ki vaha kya hota h bs ghar se bahar ghumne jane Ko mil rha h ye meri Khushi ka sbse bda Karan h m jase hi school pahunch ik mere jase bachche ne bol
ज़िंदगी आइस पाइस, एक लघु कहानी संग्रह, इस पुस्तक में, निखिल अपने पाठकों को एक यात्रा के लिए साथ ले जा रहा है जो बुनियादी मानव अस्तित्व की पहेलियों को हल करने की कोशिश करता है - प्यार की पहेलियों, बचपन के खोए और पाए गए, रिश्तों के, प्यारे 90 के दशक के
एक ऐसा हादसा जिसने मेरे स्वभाव और मेरी सोच को बदल दिया..।
संघर्ष, समय और आत्मनिरीक्षण से प्रबुद्ध, नीलोत्पल अपने अनुभवों के सार को आकर्षित करते हैं और एक दिलचस्प कहानी बुनते हैं। जो वास्तव में अनगिनत सपनों की अनकही सच्ची कहानी है। जब आप इस उपन्यास को पढ़ेंगे तो आपको लगेगा कि मुखर्जी नगर में एक तीन मंजिला इम
ये कहानी एक भाई बहन की है, जिसमें उनके माता-पिता बचपन में ही गुजर गये हैं और वो लङका भी अपंग है लेकिन बाद में वह लङका अपनी मेहनत से अपनी जिंदगी बदल देता है, लेकिन कैसे आइये जानते है ।।
अश्वत्थामामहाभारत का शापित योद्धा इसे नियति की विडंबना ही कहेंगे कि महाभारत की गाथा का एक अत्यंत महत्वपूर्ण और अमर पात्र होने के बावजूद, अश्वत्थामा सदा उपेक्षित रहा है. पौराणिक साहित्य में अश्वत्थामा सहित और भी लोग हैं, जिन्हें अमर मन जाता है. परंतु
चैतन्य महाप्रभु का बचपन का नाम विश्वंभर था। उनका जन्म चंद्रग्रहण के दिन हुआ था। लोग चंद्रग्रहण के शाप के निवारणार्थ धर्म-कर्म, मंत्र आह्वान, ओ३म् आदि जप-तप में जुटे हुए थे। शायद इस धार्मिक प्रभाव के कारण ही चैतन्य बचपन से ही कृष्ण-प्रेम और जप-तप में