जिना यहाँ मरणा यहाँ! हसना यहाँ, रोना यहाँ छोटी छोटी खुशियोमै मुस्कुराना यहाँ किसीके दुःख मे सहारा देना यहाँ जिना यहाँ मरणा यहाँ इसके सिव्हा जाना कहाँ! जीवन कि परिस्थितियोको निभाना यहाँ! खुशियोको बाटने से बढाना हे यहाँ! किसीको दुःख मत देना, आसू बहोत क
कब तक चुप रहे हम कब तक सहे हम गुलामी की जंजीरो मे जागो और जगाओ ,अलख जगाओ अब रूके न रूके कर लो ऐसी तैयारी क्योकि अब गुंज उठी रंभेरी की सहनाई ! बिलखे मोरो माई बहीनिया बिलखे मोरो माई बिलखे अब तो घर बहुरनीया कैसन वर हम पाई पापा कहलन नौकरी करे ला दुलहा
दोस्तों , आज आपको एक ऐसी सत्य घटना सुनाता हूं जो जीवन में बहुत प्रभाव छोड़ जाती है । और मेरे जीवन को बदलने में बहुत सार्थक है बात उन दिनों की है जब मैं गुजरात में एक सीमेंट कंपनी में सीनियर पेरा मेडिकल ऑफिसर के रूप में काम कार्य करता था वहा पर सीमे
(गोस्वामी तुलसीदास) 🙏🙏 जय श्री राम🙏🙏 तुलसीदास का जन्म विक्रम संवत 1554 ई० क्षवण शुक्ल पक्ष सप्तमी मे उत्तर प्रदेश के सोरो नामक ग्राम में हुआ था। तुलसीदास के पिता का नाम आत्माराम दुबे तथा माता का नाम हुलसी था। तुलसी
=🌺जिंदगी🌺= जीने का सहारा दिखाती है ।जिंदगी जीने का ढंग से सिखाती है ।....... चलने का रास्ता दिखाती है ।....... दिलों में प्रेम रस बरसाती है ।....... आगामी कल को दिखाती है। जिंदगी
एक ऐसा जन्म जिसको जन्म कहे या कोई अधूरा कार्य। इस ब्लैक में अपने आप को खोजता एक इंसान
कुछ यादें ऐसी होती हैं जो समय के साथ साथ धुंधली पड़ जाती हैं पर अकेले में जब यद् आती हैं तो हम कहीं खो से जाते हैं मेरी किताब 'यादें ' कुछ ऐसी ही यादों को अपने अन्दर समेटे हुए है
बचपन का जमाना बहुत अलग था वो लोग कुछ और ही अलग दुनिया के थे. उन्हें याद करती हूँ तो जैसे उन सबको एक बार पा जाती हूँ.
लेखक के बारे मे मेरा जन्म 9 मार्च 1992 को गाँव बिरूल बाजार, जिला बैतूल, मध्यप्रदेश मे हुआ था | जब मै 5 वर्ष का था तब मेरी मम्मी का स्वर्गवास हो गया था | इस घटना का मानसिक रूप से मुझ पर बहुत प्रभाव पड़ा | मेरा बचपन, अन्य बच्चों की तरह खेलकूद, शरारत मे
Ye bat tk ki h jb m pahali bar school gya tb m sirf 3 sal ka tha ganv ka mahaul tha mujhe nhi pta tha ki vaha kya hota h bs ghar se bahar ghumne jane Ko mil rha h ye meri Khushi ka sbse bda Karan h m jase hi school pahunch ik mere jase bachche ne bol
तुम मेरे हो इश्क की सारी दीवानगी को पर कर देने वाली कहानी तुम मेरे हो ।
भारत और बांग्लादेश के राष्ट्रीयगान के रचयेता गुरुदेव देश के पहले नोबेल पुरस्कार विजेता रहे। यह पुरस्कार उन्हें उनकी कालजयी कृति 'गीतांजलि' के लिए मिला। गीतांजलि को मूर्तरूप गुरुदेव ने यहीं उत्तराखंड के नैनीताल जिला अंतर्गत रामगढ़ में दिया। यहाँ वह 19
Jivan ke mahatva purn Anubhav ko aapke sath taaja karne ka jariya
पंडित दीनदयाल उपाध्याय का नाम भारतीय राजनीति में बड़े ही अदब से लिया जाता रहा है। वह एक मात्र ऐसे नेता थे जिन्हें पक्ष-विपक्ष दोनों ही तरफ से सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था। उन्होंने राजनीति के नये मापदंडों का सृजन किया। यही उनकी विशेष उपलब्धि मानी
भारतीय संस्कृति के पुरोधा, राजनीति में दैदीप्यमान सितारा, सरल संवेदनशील, सहृदय व्यक्तित्व, जिसने अपना सर्वस्व मां भारती को अर्पण किया, ऐसे युगपुरुष के विषय में लिखना मेरे लिए गौरव का विषय हैं। भारतीय राजनीति के शिखरपुरुष अजातशत्रु एवं पूर्व प्रधानमंत
दिवाली.... खुशियों का त्यौहार....अपनो के साथ... मनाने वाला त्यौहार...।।।।। हर वर्ष ये त्यौहार अपनों के साथ सभी बड़ी धुम धाम से.... हर्षोल्लास से मनाते हैं....।।।।आइये .....इस बार कुछ अलग करते हैं.... एक ऐसी दिवाली मनाते हैं जो सच्ची खुशी दे...।।।।।।
एक ऐसा शहर जहाँ बकौल ममता कालिया पैदल चलना किसी निरुपायता का पर्याय नहीं था। साहित्य की वह उर्वर भूमि जिसकी नमी किसी भी कलम को ऊर्जा से भर देती थी, जहाँ का सामाजिक ताना-बाना ही लेखकों-बुद्धिजीवियों से बना था। रचनात्मकता, प्रतिरोध और गंगा-जमुनी अपनेप
बेमिसाल कथाकार जोड़ी रवीन्द्र कालिया और ममता कालिया की समूचे भारतीय कथा साहित्य में अमिट जगह है। साथ रहते और लिखते हुए भी दोनों एक.दूसरे से भिन्न गद्य और कहानियाँ लिखते रहे और हिन्दी कथा साहित्य को समृद्ध करते रहे। रवीन्द्र कालिया संस्मरण लेखन के उस्त
हमारे भारत वर्ष में समय-समय पर अनेक संत-महापुरुषों का अवतरण हुआ है, जिन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन लोक हित और जन कल्याण के लिए न्यौछावर कर दिया। ऐसे संत-महात्मा निश्चित ही हमारे लिए प्रेरणा स्रोत रहे हैं, लेकिन जिस तरह से आज लोक कल्याणार्थ उनके बताये म