चैतन्य महाप्रभु का बचपन का नाम विश्वंभर था। उनका जन्म चंद्रग्रहण के दिन हुआ था। लोग चंद्रग्रहण के शाप के निवारणार्थ धर्म-कर्म, मंत्र आह्वान, ओ३म् आदि जप-तप में जुटे हुए थे। शायद इस धार्मिक प्रभाव के कारण ही चैतन्य बचपन से ही कृष्ण-प्रेम और जप-तप में
भारतीय संस्कृति के पुरोधा, राजनीति में दैदीप्यमान सितारा, सरल संवेदनशील, सहृदय व्यक्तित्व, जिसने अपना सर्वस्व मां भारती को अर्पण किया, ऐसे युगपुरुष के विषय में लिखना मेरे लिए गौरव का विषय हैं। भारतीय राजनीति के शिखरपुरुष अजातशत्रु एवं पूर्व प्रधानमंत
यह किताब उस सफर की कहानी है जिसमें मुसाफिर के पैदा होते ही उसका गहन संघर्ष शुरू हो जाता है। बचपन के कुछ अच्छे दिन गुजरते ही मानो उसकी जिंदगी मैं बहुत बड़ा ग्रहण लग जाता है। उसकी माता उसे एक दिन हमेशा के लिए छोड़ कर चली जाती है। खैर जैसे तैसे जीवन को
जिन्दगी एक वरदान भी, एक अभिशाप भी, एक पुण्य भी, एक पाप भी, औरों पर छोड़ी कुछ ने यहां छाप भी, जिन्दगी एक वरदान भी एक अभिशाप भी ...
भारत माँ के अमर सपूत लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक समाज-सुधारक और स्वतंत्रता संग्राम के सर्वमान्य नेता थे। उन्होंने सबसे पहले पूर्ण स्वराज की माँग उठाई। उनका कथन ‘स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूँगा’ ने स्वाधीनता सेनानियों में नया जोश भ
दिवाली.... खुशियों का त्यौहार....अपनो के साथ... मनाने वाला त्यौहार...।।।।। हर वर्ष ये त्यौहार अपनों के साथ सभी बड़ी धुम धाम से.... हर्षोल्लास से मनाते हैं....।।।।आइये .....इस बार कुछ अलग करते हैं.... एक ऐसी दिवाली मनाते हैं जो सच्ची खुशी दे...।।।।।।
एक ऐसा शहर जहाँ बकौल ममता कालिया पैदल चलना किसी निरुपायता का पर्याय नहीं था। साहित्य की वह उर्वर भूमि जिसकी नमी किसी भी कलम को ऊर्जा से भर देती थी, जहाँ का सामाजिक ताना-बाना ही लेखकों-बुद्धिजीवियों से बना था। रचनात्मकता, प्रतिरोध और गंगा-जमुनी अपनेप
बेटी से ही घर की रोशनी। बेटी से ही घर में रौनक। बेटी ही तो है जो हर हाल में अपनो का साथ देती हैं। परन्तु बेटी अपना कर्तव्य निभाते हुए ये भूल जाती हैं कि जिस घर वो विदा होके गई है। वो भी तो उसी का कब से राह देख रहा था। बेटी,बहन,और माँ का दिल से रि
कुछ रिश्तों का ...ना नाम होता हैं.... ना पहचान होती हैं... ना कोई मोल होता हैं..।
बेमिसाल कथाकार जोड़ी रवीन्द्र कालिया और ममता कालिया की समूचे भारतीय कथा साहित्य में अमिट जगह है। साथ रहते और लिखते हुए भी दोनों एक.दूसरे से भिन्न गद्य और कहानियाँ लिखते रहे और हिन्दी कथा साहित्य को समृद्ध करते रहे। रवीन्द्र कालिया संस्मरण लेखन के उस्त
हमारे भारत वर्ष में समय-समय पर अनेक संत-महापुरुषों का अवतरण हुआ है, जिन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन लोक हित और जन कल्याण के लिए न्यौछावर कर दिया। ऐसे संत-महात्मा निश्चित ही हमारे लिए प्रेरणा स्रोत रहे हैं, लेकिन जिस तरह से आज लोक कल्याणार्थ उनके बताये म
एक रात पहले मेरी माता जी अम्माने कहा -----कल बच्चो को स्कुल नही भेजना ,कल मै दिन के 2बजे चली जाऊगी। हम अम्मा के पास ही देखभाल मे लग गये। और अगले दिन की दोपहर को 2बजे सभी के सामने अम्मा के प्राण पखेरू उड गये। हम सभी जब भी इस घटना को याद करते,
ये किताब जिंदगी के अनुभवों का एक साझा संकलन है जहां के कई हिंदी के दिग्गज लेखकों ने अपने अनुभवों को साझा किया है ।
जिंदगी की परेशानियां कभी खत्म नही होतीं.... लेकिन अगर इनसे निकलना चाहते हैं तो.. अपने अंदर के बचपने को जिंदा रखिये... 🤗
खामोश अधर मेरी स्मृतियों, संस्मरणों एवं जेहन में अनायास उठने वाले ख्यालों का दस्तावेज़ है,जो मुक्तक, दोहा, चतुष्पदी, शायरी, आलेख, संस्मरण आदि के रूप में संग्रहित रहेगा। खामोश अधर में संग्रहित सामग्रियों का कोई निश्चित क्रम नही है। प्रसंगवश जो घटना या
बाज़ की जिंदगी का एक अनसुना लेकिन प्रेरणादायी सच..।
मेरी किताब नारी तेरी यही कहानी नारी जीवन पर आधारित है