दिखाते है सब हम देखो कितने डूड कुल,
पर सच कहूँ होते सब ज्वालामुखी के फूल,
चीजों को छिपाते छिपाते हो जाते हम माहिर,
की हम सब हो जाते है दर्द पीनेवाला साहिर।
कितनी बातें मनमुताबिक ना हो पाती है यहाँ,
कुछ तो खुद की तकलीफें जाये तो जाये कहाँ,
उम्र का हर पडाव हमें समझदार है बनाता जाता,
बडे होते होते इंसानियत से यकिन कम हो जाता।
हर चीज के लिए रब लिख देता हथेली में इंतजार,
उम्र निकल जाती पाने में मन में था जहाँ जो साकार,
गिले, शिकवें किससे करे कौन सुने किसकी फर्यांद,
पुकार सुनने वाले अक्सर वक्त पे बहरे गुंगे हे जाते।
क्या लिखू मैं भी हो मैं भी एक ज्वालामुखी के फूल,
नफरत है दगाबाजों से सच्चाई की उम्मीद है बेकार,
रिश्तों का मुखवटा पहने खुद की अच्छाई गिनवाते,
समय से भी पहले अपने कितने रंग नितदिन बदलते।
रब भी कहाँ पहले के जैसे सूनता है मन की आर्त पुकार,
हर एक को चूभता है सच्चा और ईमानदारी का आचार,
चापूलसी करनेवाले बडी पोस्ट पर हुकुमत शान से करते,
सच्चाई के संग चलने वाले ठोकरों में सदा के लिए पलते।
लिखने के लिए कितना है क्या क्या मैंं आपको बताऊ,
आधी छोड रही हूँ कहानी आप पढनेवालों पे मैं छोडू,
जोड पाओ जो तुम कुछ खुशी गम के ओर भी पहलू,
तो कमेंट कर पूरी कर देना अाप ही मेरी आगे के कहानी ।