अगर तुम गुनाहगार ना होते तो क्यों ना रोक पाए अपने आप को ??????क्या सिर्फ तुम्हें ही जिस्म मिला है???? क्या पुरुष होना और प्रतिष्ठा पाना तुम्हें समाज की सारी व्यवस्था बिगाड़ने का अधिकार देता है जो तुमने ऐसा किया.....आखिर क्या दोष था बेचारी यामिनी का, कहते हुए फिर एक जोरदार टक्कर उसे छत के साथ मिली, लेकिन इस बार उसके मुंह से कराह नहीं निकली, क्योंकि वह अपने दोषों का आकलन स्वयं ही कर रहा था।
सरल, सुशील यामिनी एक गरीब घर की मेहनती लड़की, जो माता पिता के लिए अभिमान थी, पढ़ाई में तेज, सुशील, सुसंस्कारवान, सुंदरता की पराकाष्ठा, ऊंचे ख्वाब लिए नवोदय की परीक्षा पास कर उच्च विद्यालय में अच्छे अंकों को प्राप्त करने वाली और हर वर्ष पूरे विद्यालय ही नहीं वरन राज्य का भी नाम रोशन करने वाली छात्रा थी।
सभी को यामिनी पर गर्व था, लेकिन जब उसने कक्षा बाहरवीं में प्रवेश किया, तब तक वह चिर यौवन की दहलीज पर कदम रख चुकी थी, उसकी सुंदरता में चार चांद लगना स्वाभाविक था, जो भी उसे देखता बस देखते ही रह जाता, तब फिर भला विनीत की नजरों से वह कैसे बचती???
उस दुष्ट के अंतर्मन से तो जैसे अध्यापक और संस्कार की भूमिका पूर्ण रूप से नष्ट हो चुकी थी, अब उसे हर जगह सिर्फ अपनी तीखी नजरों से जिस्म की आग नजर आती थी, उसकी हरकतें दिन-ब-दिन उसके स्वभाव के अनुसार बदलने लगी, जिसकी भनक साथ में काम करने वाले लोगों को भी हो गई थी, कुछ लोगों ने उसे प्यार से समझाया तो कुछ ने उसे धमकाया भी, लेकिन अफसोस कोई सुधार नहीं और इस मनोदशा के व्यक्ति को सुधार पाना वैसे भी संभव नहीं होता।
उसके घर में पढ़ने आई उसकी भतीजिया जो अब खुद ही भ्रष्ट हो चुकी थी, उन्हीं को माध्यम बना विनीत ने यामिनी को भी अपने आगोश में लेने की योजना बनाई, उसने पहले यामिनी की कक्षा का क्लास टीचर बनने की सोचा, और बन भी गया, फिर धीरे-धीरे विनीत जबरन यामिनी की प्रशंसा करता, क्लास में ओवर टाइम तक पढ़ाना और सब बच्चों से ज्यादा उस पर ध्यान देना,
इसके कारण यामिनी उन्हें एक आदर्श शिक्षक के रूप में मानने लगी थी, क्योंकि तब तक उसके दिमाग में कोई विचार था ही नहीं और ना ही उसे विनीत की गहरी सोच का कोई अंदेशा भी था, इधर यामिनी की बढ़ती उम्र और समाज से आ रहे अच्छे रिश्तो को देखकर यामिनी के माता-पिता उसके विवाह का विचार मन में बना रहे थे, और ऐसा ही कुछ विनीत के घर में भी चल रहा था,
जैसे ही कक्षा समाप्त हुई विनीत के बड़े भाई ने अपनी बड़ी बेटी का विवाह आनन-फानन में नजदीकी गांव में कर दिया और यह सही भी था, लेकिन उसकी छोटी बेटी कुछ ज्यादा ही मनचली थी, उसने अपने मनचाहे लड़के जो स्कूल के पास ही एक जनरल स्टोर चलाता था, जो गैर बिरादरी का भी था, उससे विवाह रचा लिया, जिसका प्रतिकार कर पाना बड़ी बहन और विनीत दोनों के लिए संभव नहीं था, क्योंकि उन दोनों को भय था , कि यदि वह कुछ बोल देते तो सारे राज खुल जाते और बना बनाया परिवार बिखर जाता।
एक बार फिर विनीत घर में अकेला हो गया, और यह अकेलापन उसे रह रहकर काट रहा था, इसी के साथ जैसे तैसे उसने यह दिन अपने साथ काम करने वाली महिलाओं के साथ रंगरलिया मनाते हुए काटा, लेकिन फिर भी उसके मन में यामिनी को लेकर दबी भावनाएं उठ उठ कर सामने आ जाती।
विनीत से रहा नहीं गया, और वह किसी बहाने से उसके गांव जा पहुंचा, उसका स्वागत सत्कार अध्यापक होने के नाते बड़े ही भाव पूर्ण तरीके से किया गया, उसके रुकने का इंतजाम किया गया और इसी दौरान बड़ी चालाकी से उसने यामिनी के माता-पिता को उसकी पढ़ाई का हवाला देते हुए पढ़ाई जारी रखने और उसकी शादी ना करने के लिए राजी कर लिया था,
उसके घरवालों को सलाह दे उसने यामिनी का एडमिशन वहीं पास के अच्छे कॉलेज में करवाने और स्कॉलरशिप का वादा कर चला आया।
यामिनी तो यहीं चाहती थी, उसे तो सिर्फ आगे की पढ़ाई करना था , और उसके मां-बाप तैयार हो गए, जिसमें अहम भूमिका विनीत की थी, इसलिए उसकी नजरों में विनीत के लिए सम्मान और भी बड़ गया, वह तो जैसे उसकी कर्जदार हो चुकी थी अपने आगामी भविष्य निर्माण के लिए, और इतना कर विनीत बड़ी चालाकी से वापस अपने स्थान पर आ गया।
वह जानता था कि आगे की सलाह के लिए यामिनी के माता-पिता उसके पास जरूर आएंगे, और हुआ भी वही..... यामिनी के माता-पिता के आने के बाद विनीत ने उसके माता-पिता का आदर सत्कार किया।
यामिनी का एडमिशन अच्छे कॉलेज में करवाया और अच्छे हॉस्टल में यामिनी के रहने की व्यवस्था भी कर दी, वह भी स्कॉलरशिप के आधार पर, पैसे की कमी होने पर बड़े चालाकी से उसने मदद के तौर पर यामिनी के घर वालों को अपनी तरफ से कुछ पैसे दे दिए,
अब वह उस परिवार का अभिन्न अंग बन चुका था , और इसके बतौर गार्जन हॉस्टल में उसका भी नाम दर्ज हो चुका था, जिसको यामिनी को साथ लाने ले जाने की पूरी आजादी थी।
इसी क्रम में जब यह सब सामान्य हो गया तब कॉलेज की नई पीढ़ी में यामिनी की मदद करने के बहाने विनीत ने उसे शनिवार रविवार पढ़ाने के बहाने घर बुलाना शुरू किया, और इस तरह धीरे-धीरे कॉलेज की बाकी लड़कियों के सामने विनीत और यामिनी का नाम उभर कर सामने आ गया।
अब लड़कियों का मजाक धीरे-धीरे यामिनी को अच्छा लगने लगा था, अब सम्मान कहीं ना कहीं प्रेम का रूप लेने लगा था, यह शायद कहीं ना कहीं उम्र का पड़ाव था।
एक दिन जब यामिनी शनिवार को पढ़ने आई, तब अचानक जोरदार बारिश हो गई, और उसी बारिश का फायदा उठा विनीत ने यामिनी को देख पीछे से जकड़ लिया, पहले तो यामिनी ने झिझक के साथ विनीत को मना किया, लेकिन उम्र और मौसम का प्रभाव और विनीत की हरकतें सब एक होकर उसे ज्यादा देर तक स्थिर ना रख सकी, और वह भी विनीत की चाल का शिकार हो गई,
वह लगातार किसी ना किसी बहाने से आकर विनीत से मिलती, विनीत ने उसे भरोसा दिलाया था प्रथम मिलन के दौरान कि उससे विवाह करेगा, लेकिन भला क्या ऐसा व्यक्ति अपनी जगह स्थिर रहता।
यामिनी को पाने के बाद और उसका लगातार उपभोग करने के बाद उसकी नजर अब कॉलेज की बाकी लड़कियों को घूरने लगी, जो यामिनी को अच्छा न लगा और उसके विरोध करने पर विनीत नहीं माना तो, यामिनी ने अपने आप को आखिर एक दिन ख़त्म कर लिया।
जिसे कहा तो लोगों ने आत्महत्या लेकिन वास्तव में वह आत्महत्या न थी,
इतना सोचते ही एक झटके के साथ फांसी का फंदा मजबूत हुआ, ठीक उसी दर्द के साथ जिस दर्द के साथ यामिनी ने अपने प्राण त्यागे थे,
और इस तरह दूर खड़ी यामिनी की रूह यह सब तमाशा देख रही थी, अब वह संतुष्ट थीं कि खौफनाक चेहरा समाज से मिट गया, जिसने न जानें कितनी लड़कियों की जिंदगी बर्बाद कर दी, उन्हें सही राह दिखाने की बजाय खुद ही गलत रास्ते पर ले आता,
लेकिन समाज में ना जाने ऐसी कितनी ही बुराइयां कलंक के नाम पर मौजूद थी, और ना जाने कितनी यामिनी इंसाफ के लिए कायरा को गुहार लगा रही थी।
शेष अगले भाग में.......