भला ऐसे कैसे हो सकता हैं???? मैंने तुम्हें बिना किसी एक रुपए लगाए हिस्सेदार बनाया और तुम खुद आज अपनी हिस्सेदारी तोड़ना चाहते हो???क्या तुम्हारे मन में लालच आ गया या कुछ और स्पष्ट बताओ?????कहते हुए प्रेम ने अपने साले दिलीप को फटकार लगाई, गिरीश को तो जैसा अपना सब कुछ डूबते हुए नजर आया, और वह क्रोध और बनावट ही अंदाज के साथ मिश्रित तौर पर अपने बेटे को समझाने का बहाना करते हुए कहने लगा, यह क्या बात हुई, आज के जमाने में पूंजी लगाकर भी ऐसा व्यवहार नहीं मिलता, और यहां तुम्हें जमा जमाया व्यापार मिला है ,जिसका कोई हिसाब नहीं,
सब कुछ सीखने के लिए मिला, उसके बाद व्यापार भी अच्छा खासा चल रहा है, आज पहले से दो गुना व्यापार है,
न जाने तुम्हें क्या शिकायत हो गई, हमें तो कुछ समझ नहीं आता और फिर तुम्हारे विवाह के भी प्रस्ताव आ रहे हैं, भला हम क्या जवाब देंगे कि लड़के ने व्यापार छोड़ दिया????
भाई मेरे तो कुछ समझ नहीं आ रहा कि इसे क्या हुआ ,अब कुमुद तुम ही इसे समझाओ ,कहते हुए गुस्से में वह चला गया, लेकिन दिलीप है कि मानने को तैयार नहीं था, जब गिरीश और प्रेम दोनों हार कर चले गए, तब कुमुद ने एकांत देखते हुए कहा, क्या हुआ यहां कोई तुमसे हिसाब मांगता है क्या ????मैं तुम्हें दुकान का मालिक बनाने आयी हूं, व्यापार से मैं प्रेम को कोसों दूर रखती हूं, फिर चाहे तुम जितनी बचत कर लो, फिर जितना पैसा रखना है रख लो,भला कौन हिसाब मांगता है ,अरे भाई कुछ दिन और रह कर सेवा कर ले और कमा ले जितना कमाना है ,जब बीवी आ जाएगी, उसके बाद कर लेना अपनी मनमानी ......
दिलीप ने एक टूक जवाब दिया,ठीक है......नहीं करनी मुझे मनमानी, जो तुम इतना घूम रहे हो उस बुजुर्ग महिला को छोड़कर, जिनके स्वर्गीय पति ने जीजाजी को इतना बड़ा व्यापार खड़ा करके दिया, मुझ जैसे नालायक को एक व्यापारी के रूप में खड़ा कर दिया, तुम लोग उनकी भी चिंता नहीं करते, अरे कम से कम एक बार तो उस बुजुर्ग महिला का भी सोचा होता, वह अकेले बैठे बैठे दरवाजे की और आस लगाए देखते रहती है कि उसका बेटा नजर आ जाए, और तुमने तो उसे ही उनसे इतना दूर कर दिया ,कि अब मुझे भी शर्म आती है इस व्यापार की हिस्सेदारी से,
यदि तुम वादा करो कि अब दोबारा कहीं नहीं जाओगे ,और उनका ख्याल रखोगे, तो मैं भी तैयार हूं, ऐसे भले लोगों को भला कौन छोड़ना चाहेगा? कुमुद को बड़ा अचंभा हुआ कि उसने प्रेम को तो जीत लिया, लेकिन भाई का क्या करें ,लेकिन बात ज्यादा ना बिगड़े इसलिए उसने हां ठीक है कहकर बात टाल दी ....बात आई गई हो गई।
जल्द ही उनके घर एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई ,जिसके साथ उसकी दादी की अच्छी बनती थी ,और वह बच्चा भी बचपन से ही माता-पिता से ज्यादा दादी की देखरेख में था, बड़ा ही प्यारा था , बिल्कुल चंद्रमा की शीतलता, उसकी बातों में वैसा ही सुंदर और मनमोहक रूप ,उसकी बातें जैसे अनायास ही किसी को अपने में बांध ले ,बड़ा ही चंचल और चतुर , छिपना -छिपाना और फिर ढूंढने पर अपने दादी की गोद में आकर बैठ जाना , उसकी दादी का तो जैसे वह जीवन ऐसे ही बन गया था।
अब वह चौबीसों घंटे उसी के साथ लगे रहती, उन्हें पता ही ना चला कब धीरे धीरे कुमुद ने संपूर्ण व्यापार पर कब्जा जमाने की तैयारी कर ली ,और प्रेम को मुफ्त खोरी नशे में ढकेल दिया, यह चिंता उसे अंदर ही अंदर खाने लगी, क्योंकि इतनी कम उम्र में ही प्रेम के चेहरे पर ढलान नजर आने लगा, एक ओर कुमुद अपने भाई की शादी करा व्यापार को दो हिस्सों में बांट दिया, यह सोचकर उसका भाई दिलीप भला उसकी दुकान के मुकाबले कहां टिक पाएगा, दिलीप की शादी हो चुकी थी और उसकी पत्नी बड़ी ही सुशील और सुंदर होने के साथ-साथ संस्कारी भी थी, इसलिए उसने गिरीश की अपेक्षा प्रेम के पिता को ही अपने पिता की तरह दिलीप के कहने पर मानना स्वीकार किया, और वह उनकी देखरेख और सेवा का आनंद लेने लगी।
ठीक महाभारत में अर्जुन ने श्रीकृष्ण को अपने पक्ष में ले और दुर्योधन को चतुरंगी सेना सौंप जो समझदारी दिखाई, वहीं समझदारी दिलीप की पत्नि ने अपनाई थी, प्रेम की मां अब ज्यादातर दिलीप के ही घर रहती थी, वहीं प्रेम की दुकान पर कुमुद और गिरीश को देख लोग दिलीप की ही दुकान पर जाते थे, क्योंकि प्रेम के पिताजी ने दिलीप को अच्छा खासा व्यापार सिखा दिया था, किस प्रकार ग्राहकों को सामान बेचना है, यह सब अब दिलीप को बखूबी आने लगा था, इस तरह प्रेम के पिताजी का पूरे उम्र भर की कमाई हुई शाख का फायदा दिलीप को हुआ, लोग आते थे दिलीप के घर प्रेम की मां से मिलने और धीरे-धीरे वह दिलीप के ग्राहक बनते चले गए,
कुमुद और गिरीश अपनी कुटिल भावना के कारण यह समझ भी ना पाए और प्रेम उनकी दुकान का नौकर बन कर रह गया, उसे तो जैसे लोगों ने कहकर सुनाया, लेकिन फिर भी जैसे उसे कुमुद की बातों के अलावा और कोई बात समझ ही ना आती।
लेकिन एक दिन गिरीश और कुमुद से दिलीप की पत्नी का विवाद इस बात पर हो गया कि उसे भला प्रेम की मां से ऐसा क्या लगाव है???? जिस कारण लोग और रिश्तेदार उन्हें दोषी कहकर जाते, इस बात पर दिलीप ने खुले शब्दों में कह दिया कि यह बात मैंने पहले भी कही थी, और आज भी कहता हूं कि बात मेरे और प्रेम के व्यापार की नहीं है, यह दोनों ही आपके ससुर के व्यापार का अंश है, जिसे हमने तो सिर्फ अब तक चलाया और संवारा, अब यदि आपको या प्रेम को अपनी पिता की भावनाओं का ख्याल नहीं था, जिसने मुझे व्यापार के काबिल समझा था, हिस्सेदारी दी थी और एक अच्छे पिता की तरह छोटी-छोटी चीजें सिखाई थी।
पिता से बढ़कर प्यार किया था, और फिर अंतर ही क्या है?? हमारे पिता ने तुम्हें चुना और मैंने प्रेम के पिता को, बात बराबर..... ना तुम्हें कोई कमी महसूस होना चाहिए और ना ही मुझे ,दोनों अपना-अपना व्यापार करें, और सुखी सुखी हंसी-खुशी बुजुर्गों की देखभाल करें, अब दोबारा किसी भी प्रकार का विवाद ना हो तो ही अच्छा है, यह कहकर उसने स्पष्ट निर्णय सुना दिया, लेकिन इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि दिलीप की कोई संतान नहीं थी ,और प्रेम की मां पूरी तरह से प्रेम के बच्चे के बचपन पर ही जीवित थी , जिसे कुमुद ने बड़ी ही चालाकी से उनसे दूर कर दिया, और यह बात वह स्वीकार न कर सकी, लेकिन दिलीप और उसकी पत्नी की सेवा से प्रसन्न हो, कुछ गुप्त रहस्य दिलीप को बता उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए।
आखिर क्या रहस्य था वह??????
शेष अगले भाग में...........