जिस्म को अंदर तक जमा देने वाली इस कड़कड़ाती ठंड में उस बच्चे की सुबह चार बजे से लेकर आठ बजे तक अखबार और मैगजीन की दुकान, और शाम पांच बजे से बाद रात्रि नौ बजे तक पुस्तकों की दुकान लगाना, सबके लिए आश्चर्य का विषय था, क्योंकि जिस ठंड में अच्छे अच्छों की हालत खराब हो जाए, कोई बिस्तर से निकलने को तैयार ना हो, भला कोई छोटा महज बारह तेरह वर्ष का बच्चा अखबार बेचने सुबह-सुबह कैसे आ सकता है?????क्या उसे ठंड ना लगती हो ????
लेकिन हर कोई उसके इस सिकसते मेहनत और जज़्बात को सलाम करने के साथ सुबह सुबह पास के ही चाय दुकान पर पहुंचने से पहले और कुछ समझदार और कर्मवीर जो सुबह-सुबह उसकी दुकान पर नजर बनाए रखते थे, जो आते जाते नया अखबार और तंदुरुस्त कर देने वाली मैगजीन खरीदना ना भूले।
कुछ बुजुर्ग ऐसे भी थे जो उसका साथ सुबह छः से आठ तक दुकान पर मुफ्त में अखबार और मैगजीन पढ़ने के बदले दिया करते थे, इन सबके बीच एक व्यक्ति ऐसा भी था जो निरंतर अलग-अलग भाषाओं की अखबार खरीदना और साथ में प्रतिदिन कम से कम तीन मैगजीन लेकर जाता भी था, और शाम में लौटते वक्त भी फिर उसी लड़के की दुकान से दो पुस्तकें प्रतिदिन खरीद कर ले जाता।
ऐसा निरंतर होने के कारण अब धीरे-धीरे वह लड़का सलाह के साथ उस व्यक्ति को पुस्तके बेचना, लेकिन उसके मन में भी कुछ सवाल थे, लेकिन अपना एक अच्छा ग्राहक ना छूट जाए, इस डर से कुछ ना कहता,
एक दिन वह शाम के लगभग सात बजे सेंट जॉन एंबुलेंस की प्राथमिक चिकित्सा की पुस्तक पढ़ रहा था, इतनी तल्लीनता से कि उसे पता ही ना चला कि कब वह व्यक्ति आकर दुकान पर खड़े होकर उसे काफी समय तक देखता रहा, पुस्तक लेने के इंतजार में......
आखिरकार अपनी व्यस्तता के कारण उन्हें उस बच्चे को टोककर कहा...... अरे बेटा, ऐसे तो दुकान लुट जाएगी,
क्या पढ़ रहे हो???मुझे भी बताओ ज़रा????
जो तुम्हें मेरी मौजूदगी का भी ख्याल नहीं चला, आज वही बुक मुझे खरीदना है, मैं भी उस पुस्तक में खोकर देखूं,
बच्चे ने कहा.... क,,, क,,,,,कुछ नहीं सर माफ करिएगा, ध्यान नहीं दे पाया।
उस व्यक्ति ने अपना ध्यान बढ़ाकर उस पुस्तक को देखना चाहा, जिसे उस बच्चे ने बड़ी मासूमियत और गर्व के साथ उन्हें पकड़ा दिया और कहने लगा, सर आज किस किरदार की पुस्तक आपको दूं, आप ही बताएं????
व्यक्ति मुस्कुरा कर बोला, चलो यही दे दो, ठीक है सर, लेकिन यदि आप बुरा ना माने तो यह पुस्तक आप कल ले सकते हो क्या????अभी थोड़ा पढ़ना बाकी है,
उसकी ऐसी बात सुनकर आश्चर्य के साथ , तुमने क्या पूरी पुस्तक पढ़ लिये???? हां सर मैं प्रतिदिन एक पुस्तक जरूर पढ़ता हूं, लेकिन आज इस पुस्तक के दो अध्याय अभी पढ़ने के बचे हैं,
सर रिक्वेस्ट कर रहा हूं, अच्छा...... इसका मतलब
तुम पुस्तक पढ़ पाते हो??? कुछ याद भी रहता है या नही???
इस पर वह बच्चा किसी विद्यार्थी की तरह खड़ा होकर उस पुस्तक के नवां अध्याय निकालकर उस व्यक्ति को देते हुए कहता हैं, सर इसके आगे जो चाहे पूछ लीजिए, मैं आठ अध्याय पढ़ चुका हूं, और आप कोई भी सवाल कर सकते हो?? यदि जवाब ना दिया तो यह पूरी दुकान आपकी.....
इतना खतरनाक साहस देख वह दंग रह गया, लेकिन चुनौती भला किसे ठहरने को मजबूर ना कर दे, उसने रुक कर ताबड़तोड़ उस बच्चे से ना जाने कितने ही सवाल कर दिए, लेकिन सबका जवाब वह बहुत खूबसूरती से शब्द ब शब्द भावनाओं के मिश्रण के साथ दिए जा रहा था।
वह व्यक्ति हर सवाल में बच्चों की और मंत्र मुग्ध हो देखता कि तभी चंद सवाल के बाद उसने ड्राइवर की ओर इशारा किया और दो चाय लाने को कहा, और पुस्तक हाथ में ले किसी शिक्षक की तरह पेड़ की और तने से बने टेबल के ऊपर बैठ गया, उसे भी अब इस खेल में मजा आने लगा था, अंत में एक लंबी सांस लें उसने कहा, चल भाई, तुम ही जीते ।
पर एक बात बताओ??? जब इतना अच्छा पढ़ लेते हो तब फिर दुकान क्यों लगा कर बैठे हो????
लड़के ने तपाक से उत्तर दिया, पढ़ने के लिए ....हां साहब पढ़ने के लिए, जिस जगह मेरी दुकान है, वहां दिन में मेरे मौसा जी सब्जी की दुकान लगाते हैं, और उनसे मैं जगह की साफ-सफाई और दुकान दुरस्ती की शर्त पर पुस्तक की दुकान लगाने की अनुमति पा लिया, मेरे घर की माली हालत इतनी अच्छी नहीं है कि वह लगातार मेरी पढ़ाई का खर्चा उठा सके, इसलिए मेहनत कर पैसा कमाता हूं।
मैं भी चाय की दुकान खोल या अन्य काम कर पैसा कमा सकता हूं, लेकिन पढ़ाई से शायद दूर हो जाने का मन ना था, इसलिए सुबह अखबार बेचने के साथ-साथ जनरल नॉलेज के लिए मैं भी अकबार और मैगजीन पढ़ लेता हूं , और शाम में इसी खंबे के नीचे अच्छी रोशनी में जो शायद मेरे घर में नहीं,
पुस्तके बेचने के साथ एक नई पुस्तक पढ़ लेता हूं, क्या पता कब काम आ जाए।
एक छोटे बच्चे की ऐसी बात सुनकर वह वयक्ति उसे देखता रह गया, पता ही न चला हाथ में रखी चाय ठंडी हो गई, लेकिन हां उसका मन जोश से गर्म जरूर हो चुका था, इतनी अच्छी बातें उसे अपने अतीत में ले जाती है,
लेकिन हां साहब, मैं यह भी जानता हूं कि आप एक भले मनुष्य हैं, बिना कारण के मुझसे से तीन-तीन अकबार और हर इतनी व्यस्तता के बाद भी दो पुस्तक यूं ही नहीं ले जाते।
क्या आप इसलिए खरीदते हैं, कि मेरी दुकान लगाना व्यर्थ न जाये, और मेरी रोजी चलती रहे, कहकर वह मुस्कुराने लगा।
वह बोला, क्या तुम मुझे जानते हो बच्चा????
नहीं सर......
तब वह व्यक्ति ड्राइवर की ओर इशारा करते हुए बोला पुस्तकें गाड़ी में रख लो,आज हम उसके घर चल कर उसके माता-पिता से मिलकर आएंगे, कहते ही ड्राइवर किसी मशीन की तरह पूरी दुकान गाड़ी में लोड करने लगा।
बच्चा आधा डर और आधी उत्सुकता के साथ सब कुछ देख रहा था, लेकिन शायद यह उसकी आखिरी दुकान थी, उस बच्चे के घर पहुंचकर उस व्यक्ति ने अपना परिचय कांति सेठ के रूप में दिया ,जो शहर के नामी धनियों में से एक था, उस बच्चे को दूसरे ही दिन एक अच्छी स्कूल में दाखिला मिला और उसके बाद से उसकी पढ़ाई का हर खर्चा कांति ट्रस्ट से आने लगा।
उच्च शिक्षा के लिए भी उसे जब विदेश भेजा गया था, उसे एक खत मिला कि मुझसे मिलने की कोशिश मत करना, बस जब लौटकर आओ तो किसी गांव में जाकर गरीबों की सेवा के साथ अपना समय बिता, जिस अस्पताल में जाओगे वहां का सारा खर्च मेरा ट्रस्ट उठाएगा।
तुम सिर्फ़ गरीबों की सेवा पर ध्यान देना, बिना किसी भेदभाव और अहंकार के,
इसके बाद वह बच्चा मोहित डॉक्टर के रूप में इस अस्पताल का प्रधान डॉक्टर बना, जो खुद इतने वर्षों के बाद उसी व्यक्ति को पहचान ना पाया, जिसने उसकी काया कल्प को इस समाज में उचित स्थान प्रदान किया, मोहित की आंखों से आंसू बह रहें थे,
और सोनम सिस्टर इस बात से अभी भी आश्चर्यचकित थी कि आखिर यह नौ नंबर का पेशेंट कौन है??????
शेष अगले भाग में.......