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क़ब्ज़

8 अप्रैल 2022

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नए लिखे हुए मुकालमे का काग़ज़ मेरे हाथ में था। ऐक्टर और डायरेक्टर कैमरे के पास सामने खड़े थे। शूटिंग में अभी कुछ देर थी। इस लिए कि स्टूडीयो के साथ वाला साबुन का कारख़ाना चल रहा था। हर रोज़ इस कारख़ाने के शोर की बदौलत हमारे सेठ साहब का काफ़ी नुक़्सान होता था। क्योंकि शूटिंग के दौरान में जब इका ईकी उस कारख़ाने की कोई मशीन चलना शुरू हो जाती। तो कई कई हज़ार फ़ुट फ़िल्म का टुकड़ा बेकार होजाता और हमें नए सिरे से कई सीनों की दुबारा शूटिंग करना पड़ती।

डायरेक्टर साहब हीरो और हीरोइन के दरमयान कैमरे के पास खड़े सिगरट पी रहे थे और मैं सुस्ताने की ख़ातिर कुर्सी पर टांगों समेत बैठा था। वो यूं कि मेरी दोनों टांगें कुर्सी की नशिस्त पर थीं और मेरा बोझ नशिस्त की बजाय उन पर था। मेरी इस आदत पर बहुत लोगों को एतराज़ है मगर ये वाक़िया है कि मुझे असली आराम सिर्फ़ इसी तरीक़े पर बैठने से मिलता है।

नेना जिस की दोनों आँखें भैंगी थीं डायरेक्टर साहब के पास आया और कहने लगा। “साहब, वो बोलता है कि थोड़ा काम बाक़ी रह गया है फिर शोर बंद हो जाएगा।”

ये रोज़मर्रा की बात थी जिस का मतलब ये था कि अभी आध घंटे तक कारख़ाने में साबुन कटते और उन पर ठप्पे लगते रहेंगे। चुनांचे डायरेक्टर साहब हीरो और हीरोइन समेत स्टूडीयो से बाहर चले गए। मेंw वहीं कुर्सी पर बैठा रहा।

सक़फ़ी लैम्प की नाकाफ़ी रोशनी में सीट पर जो चीज़ें पड़ीं थीं उन का दरमयानी फ़ासिला असली फ़ासले पर कुछ ज़्यादा दिखाई दे रहा था। और गेरवे रंग के थ्री प्लाईवुड के तख़्ते जो दीवारों की सूरत में खड़े थे पस्तक़द दिखाई देते थे। मैं इस तबदीली पर ग़ौर कर रहा था कि पास ही से आवाज़ आई “अस्सलामु अलैकुम।” मैंने जवाब दिया “वाअलैकुम अस्सलाम” और मुड़ कर देखा तो मुझे एक नई सूरत नज़र आई। मेरी आँखों में “तुम कौन हो?” का सवाल तैरने लगा। आदमी होशियार था, फ़ौरन कहने लगा। “जनाब मैं आज ही आप की कंपनी में दाख़िल हुआ हूँ.... मेरा नाम अबदुर्रहमान है। ख़ास दिल्ली शहर का रहने वाला हूँ.... आपका वतन भी तो शायद दिल्ली ही है।”

“मैंने कहा। जी नहीं........ मैं पंजाब का बाशिंदा हूँ।”

अबदुर्रहमान ने जेब से ऐनक निकाली। “माफ़ फ़रमाईएगा, चूँकि डायरेक्टर साहब ने ऐनक उतार देने का हुक्म दिया था इस लिए.... ”

इस दौरान में उस ने ऐनक बड़ी सफ़ाई से कानों में अटका ली और मेरी तरफ़ पसंदीदा निगाहों से देखना शुरू कर दिया। “वल्लाह मैं तो यही समझा था कि आप दिल्ली के हैं, यानी आप की ज़बान में क़तअन पंजाबीयत नहीं.... माशा अल्लाह क्या मुकालमा लिखा है.... क़लम तोड़ दिया है वल्लाह.... ये स्टोरी भी तो आप ही ने लिखी है?”

अबदुर्रहमान ने जब ये बातें कीं तो उस का क़द भी मेरी नज़र में थ्री प्लाईवुड के तख़्तों की तरह पस्त होगया। मैंने रूखेपन के साथ कहा। “जी नहीं।”

वो और ज़्यादा लचकीला होगया। “अजब ज़माना है साहब, जो अहलीयतों के मालिक हैं उन को कोई पूछता ही नहीं........ ये बंबई शहर भी तो मेरी समझ में बिलकुल नहीं आया। अजब ऊटपटांग ज़बान बोलते हैं यहां के लोग, पंद्रह दिन मुझे यहां आए हुए होगए हैं मगर क्या अर्ज़ करूं सख़्त परेशान होगया हूँ। आज आप से मुलाक़ात होगई........ ” इस के बाद उस ने अपने हाथ मलकर उस रोग़न की मरोड़ीयाँ बनाना शुरू करदीं जो चेहरे पर लगाते वक़्त उसके हाथों पर रह गया था।

मैंने जवाब में सिर्फ़ “जी हाँ” कर दिया और ख़ामोश होगया।

थोड़ी देर के बाद मैंने काग़ज़ खोला और रवारवी में लिखे हुए मुकालमों पर नज़रसानी शुरू करदी। चंद गलतियां थीं जिन को दुरुस्त करने के लिए मैंने अपना क़लम निकाला। अबदुर्रहमान अभी तक मेरे पास खड़ा था। मुझे उस के खड़े होने के अंदाज़ से ऐसा महसूस हुआ जैसे वो कुछ कहना चाहता है। चुनांचे मैंने पूछा। “फ़रमाईए।”

उस ने बड़ी लजाजत के साथ कहा। “मैं एक बात अर्ज़ करूं।”

“बड़े शौक़ से।”

“आप इस तरह टांगें ऊपर करके न बैठा करें।”

“क्यों?”

उस ने झुक कर कहा “बात ये है कि इस तरह बैठने से क़ब्ज़ हो जाया करता है।”

“क़ब्ज़?” मेरी हैरत की कोई इंतिहा न रही। “क़ब्ज़ कैसे हो सकता है।”

ये कह कर मेरे जी में आई कि उस से कहूं “मियां होश की दवा लो। घास तो नहीं खा गए.... मुझे इस तरह बैठते बीस बरस होगए........ आज क्या तुम्हारे कहने से मुझे क़ब्ज़ हो जाएगा।” मगर ये सोच कर चुप होगया कि बात बढ़ जाएगी और मुझे बेकार की मग़ज़ दर्दी करना पड़ेगी।

वो मुस्कुराया। ऐनक के शीशों के पीछे उस की आँखों के आस पास का गोश्त सिकुड़ गया। “आप ने मज़ाक़ समझा है हालाँकि सही बात यही है कि टांगें जोड़ कर पेट के साथ लगा कर बैठने से मेदे की हालत ख़राब हो जाती है। मैंने तो अपनी नाचीज़ राय पेश की है। मानें न मानें ये आपको इख़्तियार है।”

मैं अजब मुश्किल में फंस गया। उस को अब मैं क्या जवाब देता। क़ब्ज़.... यानी क़ब्ज़ हो जाएगा। बीस बरस के दौरान में मुझे क़ब्ज़ न हुआ लेकिन आज इस मसखरे के कहने से मुझे क़ब्ज़ हो जाएगा। क़ब्ज़ खाने पीने से होता है न कि कुर्सी या कोच पर बैठने से। जिस तरह मैं कुर्सी पर बैठता हूँ इस से तो आदमी को राहत होती है। दूसरों को न सही लेकिन मुझे तो इस से आराम मिलता है और ये सच्ची बात है कि मुझे टांगें जोड़ कर सीने के साथ लगा देने से एक ख़ास क़िस्म की फ़र्हत हासिल होती है। स्टूडीयो में आम तौर पर शूटिंग के दौरान में खड़ा रहना पड़ता है जिस से आदमी थक जाता है। दूसरे नामालूम किस तरीक़े से अपनी थकन दूर करते हैं मगर मैं तो इसी तरीक़े से दूर करता हूँ। किसी के कहने पर मैं अपनी ये आदत कभी नहीं छोड़ सकता। ख़्वाह क़ब्ज़ के बजाय मुझे सरसाम हो जाये। ये ज़िद नहीं, दरअसल बात ये है कि कुर्सी पर इस तरह बैठने का अंदाज़ मेरी आदत नहीं बल्कि मेरे जिस्म का एक जायज़ मुतालिबा है।

जैसा कि मैं इस से पहले अर्ज़ कर चुका हूँ अक्सर लोगों को मेरे इस तरह बैठने के अंदाज़ पर एतराज़ रहा है। इस एतराज़ की वजह न मैंने उन लोगों से कभी पूछी है और न उन्हों ने कभी ख़ुद बताई है। एतराज़ की वजह ख़्वाह कुछ भी हो मैं इस मुआमले में अच्छी तरह दलील सुनने के लिए भी तैय्यार नहीं। कोई आदमी मुझे क़ाइल नहीं कर सकता।

जब अबदुर्रहमान ने मुझ पर नुक्ता चीनी की तो मैं भुन्ना गया और उस का यूँ शुक्रिया अदा किया जैसे कोई ये कहे। “लानत हो तुम पर।”

इस शुक्रिया की रसीद के तौर पर उस ने अपने मोटे होंटों पर मैली सी मुस्कुराहट पैदा की और ख़ामोश होगया। इतने में डायरेक्टर हीरो और हीरोइन आगए और शूटिंग शुरू होगई। मैंने ख़ुदा का शुक्र अदा किया कि चलो इसी बहाने से अबदुर्रहमान के क़ब्ज़ से नजात हासिल हुई।

उस की पहली मुलाक़ात पर ज़ेल की बातें मेरे दिमाग़ में आईं।

1 ये एक्स्ट्रा जो कंपनी में नया भर्ती हुआ है बहुत बड़ा चुग़द है।

2 ये एक्स्ट्रा जो कंपनी में नया भर्ती हुआ है सख़्त बद-तमीज़ है।

3 ये एक्स्ट्रा जो कंपनी ने नया भर्ती किया है प्रलय दर्जा का मग़्ज़-चाट है।

4 ये एक्स्ट्रा जो कंपनी में नया दाख़िल हुआ है मुझे इस से बेहद नफ़रत पैदा होगई है।

अगर मुझे किसी शख़्स से नफ़रत पैदा हो जाये तो इस का मतलब ये है कि उस की ज़िंदगी कुछ अर्से के लिए ज़्यादा मुतहर्रिक हो जाएगी। मैं नफ़रत करने के मुआमले में काफ़ी महारत रखता हूँ। आप पूछेंगे भला नफ़रत में महारत की क्या ज़रूरत है। लेकिन मैं आप से कहूंगा कि हर काम करने के लिए एक ख़ास सलीक़े की ज़रूरत होती है और नफ़रत में चूँकि शिद्दत ज़्यादा है इस लिए इस के आमिल का माहिर होना अशद ज़रूरी है। मोहब्बत एक आम चीज़ है। हज़रत आदम से लेकर मास्टर निसार तक सब मोहब्बत करते आए हैं मगर नफ़रत बहुत कम लोगों ने की है और जिन्हों ने की है इन में से अक्सर को इस का सलीक़ा नहीं आया। नफ़रत मोहब्बत के मुक़ाबले में बहुत ज़्यादा लतीफ़ और शफ़्फ़ाफ़ है। मोहब्बत में मिठास है जो अगर ज़्यादा देर तक क़ायम रहे तो दिल का ज़ायक़ा ख़राब हो जाता है। मगर नफ़रत में एक ऐसी तुर्शी है जो दिल का क़वाम दुरसत रखती है।

मैं तो इस बात का क़ाइल हूँ कि नफ़रत इस तरीक़े से करना चाहिए कि उस में मोहब्बत करने का मज़ा मिले। शैतान से नफ़रत करने का जो सबक़ हमें मज़हब ने सिखाया है मुझे इस से सौ फ़ीसदी इत्तिफ़ाक़ है। ये एक ऐसी नफ़रत है जो शैतान की शान के ख़िलाफ़ नहीं। अगर दुनिया में शैतान नाम की कोई हस्ती मौजूद है तो वो यक़ीनन इस नफ़रत से जो कि उस के चारों तरफ़ फैली हुई है ख़ुश होती होगी और सच्च पूछिए तो ये आलमगीर नफ़रत ही शैतान की ज़िंदगी का सबूत है। अगर हमें इस से निहायत ही भोंडे तरीक़े पर नफ़रत करना सिखाया जाता तो दुनिया एक बहुत बड़ी हस्ती के तसव्वुर से ख़ाली होती।

मैंने अबदुर्रहमान से नफ़रत करना शुरू करदी जिस का नतीजा ये हुआ, कि मेरी और उस की दोनों की ज़िंदगी में हरकत पैदा होगई। स्टूडीयो में और स्टूडीयो के बाहर जहां कहीं उस से मेरी मुलाक़ात होती मैं उस की ख़ैरीयत दरयाफ़्त करता और उस से देर तक बातें करता रहता।

अबदुर्रहमान का क़द मुतवस्सित है और बदन गठा हुआ। जब वो नेकर पहन कर आता तो उस की बे-बाल पिंडलियों का गोश्त फुटबाल के नए कौर के चमड़े की तरह चमकता है। नाक मोटी जिस की कोठी उभरी हुई है। चेहरे के ख़ुतूत मंगोली हैं। माथा चौड़ा जिस पर गहरे ज़ख़्म का निशान है। उस को देख कर ऐसा मालूम होता है कि किसी शैतान लड़के ने अपने डिस्क की लक्कड़ी में चाक़ू से छोटा सा गढ़ा बना दिया है। पेट सख़्त और उभरा हो। हाफ़िज़-ए-क़ुरआन है। चुनांचे बात बात में आयतों के हवाले देता है। कंपनी के दूसरे एक्स्ट्रा उस की इस आदत को पसंद नहीं करते। इस लिए कि उन्हें एहतिराम के बाइस चुप हो जाना पड़ता है।

डायरेक्टर साहब को जब मेरी ज़बानी मालूम हुआ कि अबदुर्रहमान साफ़ ज़बान बोलता है और ग़लती नहीं करता तो उन्हों ने उसे ज़रूरत से ज़्यादा इस्तिमाल करना शुरू कर दिया। एक ही फ़िल्म में उसे दस मुख़्तलिफ़ आदमियों के भेस में लाया गया। सफ़ैद पोशाक पहना कर उसे होटल में बीरा बना कर खड़ा कर दिया गया। सर पर लंबे लंबे बाल लगा कर और चिमटा हाथ में दे कर एक जगह उस को साधू बनाया गया। चपड़ासी की ज़रूरत महसूस हुई तो उस के चेहरे पर गोंद से लंबी दाढ़ी चिपका दी गई। रेलवे प्लेटफार्म पर बड़ी मूंछें लगा कर उस को टिकट चैकर बना दिया गया.... ये सब मेरी बदौलत हुआ, इस लिए कि मुझे उस से नफ़रत पैदा होगई थी।

अबदुर्रहमान ख़ुश था कि चंद ही दिनों में वो इतना मक़बूल होगया और मैं ख़ुश था कि दूसरे एक्स्ट्रा इस से हसद करने लगे हैं, मैंने मौक़ा देख कर सेठ से सिफ़ारिश की, चुनांचे तीसरे महीने उस की तनख़्वाह में दस रुपय का इज़ाफ़ा भी होगया। इस का ये नतीजा हुआ कि कंपनी के पच्चीस एक्स्ट्राओं की आँखों में वो ख़ार बन के खटकने लगा। लुत्फ़ ये है कि अबदुर्रहमान को इस बात की मुतलक़ ख़बर न थी कि मेरी वजह से उस की तनख़्वाह में इज़ाफ़ा हुआ है और मेरी सिफारिशों के बाइस कंपनी के दूसरे डायरेक्टर उस से काम लेने लगे हैं।

फ़िल्म कंपनी में काम करने के इलावा मैं वहां के एक मुक़ामी हफ़्तावार अख़बार को भी एडिट करता हुँ। एक रोज़ मैंने अपना अख़बार अबदुर्रहमान के हाथ में देखा। जब वो मेरे क़रीब आया तो मुस्कुरा कर उस ने पर्चे की वर्क़ गरदानी शुरू करदी। “मुंशी साहब.... ये रिसाला आप ही........ ”

मैंने फ़ौरन ही जवाब दिया। “जी हाँ।”

“माशा अल्लाह, कितना ख़ूबसूरत पर्चा निकालते हैं आप........ कल रात इत्तिफ़ाक़ से ये मेरे हाथ आगया........ बहुत दिलचस्प है, अब मैं हर हफ़्ते ख़रीदा करूंगा।”

ये उस ने इस अंदाज़ में कहा जैसे मुझ पर बड़ा एहसान कर रहा है। मैंने उस का शुक्रिया अदा कर दिया, चुनांचे बात ख़त्म होगई।

कुछ दिनों के बाद जबकि मैं स्टूडीयो के बाहर नीम के पेड़ तले एक टूटी हुई कुर्सी पर बैठा अपने अख़बार के लिए एक कालम लिख रहा था। अबदुर्रहमान आया और बड़े अदब के साथ एक तरफ़ खड़ा होगया। मैंने उसकी तरफ़ देखा और पूछा “फ़रमाईए।”

“आप फ़ारिग़ हो जाएं तो मैं.... ”

“मैं फ़ारिग़ हूँ.... फ़रमाईए आपको क्या कहना है।”

इस के जवाब उस ने एक रंगीन लिफ़ाफ़ा को खोला और अपनी तस्वीर मेरी तरफ़ बढ़ा दी। तस्वीर हाथ में लेते ही जब मेरी नज़र उस पर पड़ी तो मुझे बे-इख़्तियार हंसी आगई। ये हंसी चूँकि बे-इख़्तियार आई थी। इस लिए मैं उसे रोक न सका। बाद में जब मुझे इस बात का एहसास हुआ कि अबदुर्रहमान को ये नागवार मालूम हुई होगी तो मैंने कहा। “अबदुर्रहमान साहब इत्तिफ़ाक़ देखिए मैं सुबह से परेशान था कि टाईटल पेच के बाद का सफ़ा कैसे पुर होगा। दो तस्वीरों के बलॉक मिल गए थे। मगर एक की कमी थी........ उस वक़्त भी में यही सोच रहा था कि आप ने अपना फ़ोटो मेरी तरफ़ बढ़ा दिया........ बहुत अच्छा फ़ोटो है। बलॉक भी इस का ख़ूब बनेगा।”

अबदुर्रहमान ने अपने मोटे होंट अंदर की तरफ़ सुकेड़ लिए। “आप की बड़ी इनायत है.... तू .... तो क्या ये तस्वीर छप जाएगी?”

मैंने तस्वीर को एक नज़र और देखा और मुस्कुरा कर कहा। “क्यों नहीं। इस हफ़्ते ही के लिए तो मैं ये कह रहा था।”

इस पर अबदुर्रहमान ने दुबारा शुक्रिया अदा किया। “पर्चे में तस्वीर के साथ एक छोटा सा नोट निकल जाये तो मैं और भी ममनून हूँगा .... जैसा आप मुनासिब ख़्याल फ़रमाएं .... तू .... तो .... माफ़ कीजिए। मैं आप के काम में मुख़िल हो रहा हूँ।”

ये कह कर वो अपने हाथ आहिस्ता आहिस्ता मलता हुआ चला गया।

मैंने अब तस्वीर को ग़ौर से देखा। आड़ी मांग निकली हुई थी, एक हाथ में बंबई की भारी भरकम डायरेक्टरी थी जिस पर छपे हुए हुरूफ़ बता रहे थे कि सन सोला की ये किताब फ़ोटोग्राफ़र ने अपने ग्राहकों को तालीम याफ़ता दिखाने के लिए एक या दो आने में ख़रीदी होगी। दूसरे हाथ में जो ऊपर को उठा हुआ था एक बहुत बड़ा पाइप था। इस पाइप की टोंटी अबदुर्रहमान ने इस अंदाज़ से अपने मुँह की तरफ़ बढ़ाई थी कि मालूम होता था चाय का पियाला पकड़े है। लबों पर चाय का घूँट पीते वक़्त जो एक ख़फ़ीफ़ सा इर्तिआश पैदा हुआ करता है वो तस्वीर में उस के होंटों पर जमा हुआ दिखाई देता था। आँखें कैमरे की तरफ़ देखने के बाइस खुल गई थीं, नाक के नथुने थोड़े फूल गए थे। सीने में उभार पैदा करने की कोशिश रायगां नहीं गई थी। क्योंकि वो अच्छा ख़ासा कार्टून बन गया था। याद रहे कि अबदुर्रहमान अंग्रेज़ी लिखना पढ़ना बिलकुल नहीं जानता और तंबाकू से परहेज़ करता है।

मैंने अपनी गिरह से दाम ख़र्च करके उस के फ़ोटो का बलॉक बनवाया और वाअदे के मुताबिक़ एक तारीफ़ी नोट के साथ पर्चे में छपवा दिया।

दूसरे रोज़ दस बजे के क़रीब मैं कंपनी के ग़लीज़ रेस्टोराँ में बैठा कड़वी चाय पी रहा था कि अबदुर्रहमान ताज़ा पर्चा जिस में उसकी तस्वीर छपी थी। हाथ में लिए दाख़िल हुआ और आदाब अर्ज़ करके मेरी कुर्सी के पास खड़ा होगया। उस के होंट अंदर की तरफ़ सिमट रहे थे, आँखों के आस पास का गोश्त सिकुड़ रहा था। जिस का मतलब ये था कि वो ममनून होरहा है। बग़ल में पर्चा दबा कर उस ने हाथ भी मलने शुरू कर दिए। शुक्रये के कई फ़िक़रे उस ने दिल ही दिल में बनाए होंगे। मगर ना मौज़ूं समझ कर उन्हें मंसूख़ कर दिया होगा। जब मैंने उसे इस उधेड़बुन में देखा तो मातम पुर्सी के अंदाज़ में इस से कहा। “तस्वीर छप गई आप की?........ नोट भी पढ़ लिया आप ने?”

“जी हाँ.... आप.... की बड़ी नवाज़िश है।”

एक दम मेरे सीने में दर्द की टीस उठी मेरा रंग पीला पड़ गया। ये दर्द बहुत पुराना है। जिस के दौरे मुझे अक्सर पड़ते रहते हैं। मैं इस के दफ़ीअए के लिए सैंकड़ों ईलाज कर चुका हूँ। मगर ला-हासिल चाय पीते पीते ये दर्द एक दम उठा और सारे सीने में फैल गया। अबदुर्रहमान ने मेरी तरफ़ ग़ौर से देखा और घबराए हुए लहजा में कहा। “आपके दुश्मनों की तबीयत नासाज़ मालूम होती है।”

मैं उस वक़्त ऐसे मूड में था कि दुश्मनों को भी इस मूज़ी मर्ज़ का शिकार होते न देख सकता, चुनांचे मैंने बड़े रूखेपन के साथ कहा। “कुछ नहीं, मैं बिलकुल ठीक हूँ।”

“जी नहीं, आप की तबीयत नासाज़ है....वो सख़्त घबरा गया। मैं.... मैं.... मैं आप की क्या ख़िदमत कर सकता हूँ?”

“मैं बिलकुल ठीक हूँ, आप मुतलक़ फ़िक्र न करें........ सीने में मामूली सा दर्द है, अभी ठीक हो जाएगा।”

“सीने में दर्द है.... ” ये कह कर वो थोड़ी देर के लिए सोच में पड़ गया। “सीने में दर्द है तो.... तो इस का ये मतलब है कि आप को क़ब्ज़ है और क़ब्ज़........ ”

क़रीब था कि मैं भुन्ना कर उस को दो तीन गालियां सुना दूं मग़र मैं ने ज़ब्त से काम लिया। “आप........ हद करते हैं। आप........ सीने के दर्द से क़ब्ज़ का क्या तअल्लुक़?”

“जी नहीं........ क़ब्ज़ हो तो एक सौ एक बीमारी पैदा हो जाती है और सीने का दर्द तो यक़ीनन क़ब्ज़ ही का नतीजा है....आपकी आँखों की ज़रदी साफ़ ज़ाहिर करती है कि आपको पुराना क़ब्ज़ है और जनाब क़ब्ज़ का ये मतलब नहीं कि आप को एक दो रोज़ तक इजाबत न हो। जी नहीं, आप जिस को बा-फ़राग़त इजाबत समझते हैं मुम्किन है वो क़ब्ज़ हो........ सीना और पेट तो फिर बिलकुल पास पास हैं। क़ब्ज़ से तो सर में दर्द शुरू हो जाता है.... मेरा ख़याल है कि आप.... दरअसल आपकी कमज़ोरी का बाइस भी यही क़ब्ज़ है।”

अबदुर्रहमान चंद लम्हात के लिए बिलकुल ख़ामोश होगया। लेकिन फ़ौरन ही उस ने अपने लहजा में ज़्यादा चिकनाहट पैदा करके कहा। “आप ने कई डाक्टरों का ईलाज क्या होगा........ एक मामूली सा ईलाज मेरा भी देखिए .... ख़ुदा के हुक्म से ये मर्ज़ बिलकुल दूर हो जाएगा।”

मैंने पूछा। “कौन सा मर्ज़?”

अबदुर्रहमान ने ज़ोर ज़ोर से हाथ मले “यही.... यही, क़ब्ज़!”

लाहौल वला, इस बेवक़ूफ़ से किस ने कह दिया कि मुझे क़ब्ज़ है, सिर्फ़ मेरे सीने में दर्द है जोकि बहुत पुराना है और सब डाक्टरों की मुत्तफ़िक़ा राय है कि इस का बाइस आसाब की कमज़ोरी है। मगर यह नीम हकीम ख़तरा जान बराबर कहे जा रहा है कि मुझे क़ब्ज़ है, क़ब्ज़ है, क़ब्ज़ है, कहीं ऐसा न हो मैं इस के सर पर ग़ुस्से में आकर चाय का पियाला दे मारूं। अजब नामाक़ूल आदमी है, अपनी तबाबत का पिटारा खोल बैठा है और किसी की सुनता ही नहीं।

ग़ुस्से के बाइस मैं बिलकुल ख़ामोश होगया। इस ख़ामोशी का अबदुर्रहमान ने फ़ायदा उठाया और क़ब्ज़ का ईलाज बताना शुरू कर दिया। ख़ुदा मालूम इस ने क्या क्या कुछ कहा....

“बात ये है कि पेट में आप के सुद्दे पड़ गए हैं। आप को रोज़ इजाबत तो हो जाती है मगर ये सुद्दे बाहर नहीं निकलते। मेदे का फ़ेअल चूँकि दुरुस्त नहीं रहा इस लिए अंतड़ियों में ख़ुश्की पैदा होगई है। रतूबत यानी वो लेसदार माद्दा जो फ़ुज़्ले को नीचे फिसलने में मदद देता है आपके अंदर बहुत कम रह गया है। इस लिए मेरा ख़्याल है कि रफ़अ-ए-हाजत के वक़्त आप को ज़रूरत से ज़्यादा ज़ोर लगाना पड़ता होगा। क़ब्ज़ खोलने के लिए आम तौर पर जो अंग्रेज़ी मुस्हिल दवाएं बाज़ार में बिकती हैं बजाय फ़ायदे के नुक़्सान पहुंचाती हैं। इस लिए कि उन से आदत पड़ जाती है और जब आदत पड़ जाये तो आप ख़याल फ़रमाईए कि हर रोज़ पाख़ाना लाने के लिए आप को तीन आने ख़र्च करने पड़ेंगे.... यूनानी दवाएं अव़्वल तो हम लोगों के मिज़ाज के मुवाफ़िक़ होती हैं दूसरे........ ”

मैंने तंग आकर उस से कहा। “आप चाय पियेंगे?” और उस का जवाब सुने बग़ैर होटल वाले को आर्डर दिया “गुलाब, इन के लिए एक डबल चाय लाओ।”

चाय फ़ौरन ही आगई, अबदुर्रहमान कुर्सी घसीट कर बैठा तो मैं उठ खड़ा हुआ “माफ़ कीजीएगा, मुझे डायरेक्टर साहब के साथ एक सीन के मुतअल्लिक़ बातचीत करना है.... फिर कभी गुफ़्तुगू होगी।”

ये सब कुछ इस क़दर जल्दी में हुआ कि क़ब्ज़ की बाक़ी दास्तान अबदुर्रहमान की ज़बान पर मुंजमिद होगई और मैं रेस्टोरान से बाहर निकल गया। दर्द शुरू होने के बाइस मेरी तबीयत ख़राब होगई थी, उस की बातों ने उस की तकद्दुर में और भी इज़ाफ़ा कर दिया। मेरी समझ में नहीं आता था कि वो क्यों इस बात पर मूसिर है कि मुझे क़ब्ज़ है। मेरी सेहत देख कर वो कह सकता था कि मैं मदक़ूक़ हूँ जैसा कि आम लोग मेरे मुतअल्लिक़ कहते आए हैं। वो ये कह सकता था कि मुझे सिल है। मेरी अंतड़ियों में वर्म है। मेरे मेदे में रसूली है, मेरे दाँत ख़राब हैं। मुझे गठिया है मगर बार बार उस का इस बात पर ज़ोर देना क्या मानी रखता था कि मुझे क़ब्ज़ होरहा है यानी अगर मुझे वाक़ई क़ब्ज़ था तो इस का एहसास मुझे पहले होना चाहिए था न कि हाफ़िज़ अबदुर्रहमान को?........ कुछ समझ में नहीं आता था कि वो ख़्वाह-मख़्वाह मुझे क़ब्ज़ का बीमार क्यों बना रहा था।

होटल से निकल कर मैं डायरेक्टर साहब के कमरे में चला गया। वो कुर्सी पर बैठे हीरो, विलेन और तीन चार एक्सटरेसों के साथ गप्पें हाँक रहे थे। आउट डोर शूटिंग चूँकि बादलों के बाइस मुल्तवी करदी गई थी। इस लिए सब को छुट्टी थी। मुझे जब हीरो के पास बैठे तीन चार मिनट गुज़र गए तो मालूम हुआ कि हाफ़िज़ अबदुर्रहमान की बातें हो रही हैं। में हमातन गोश होगया। एक एक्स्ट्रा ने इस के ख़िलाफ़ काफ़ी ज़हर उगला। दूसरे ने उस की मुख़्तलिफ़ आदात का मुज़हका उड़ाया। तीसरे ने उस के मुकालमा अदा करने की नक़ल उतारी। हीरो को हाफ़िज़ अबदुर्रहमान के ख़िलाफ़ ये शिकायत थी कि वो उस की बोल चाल में ज़बान की गलतीयां निकालता रहता है, विलेन ने डायरेक्टर साहब से कहा। “बड़ा वाहीयात आदमी है साहब, कल एक आदमी से कह रहा था कि मेरा ऐक्टिंग बिलकुल फ़ुज़ूल है। आप उस को एक बार ज़रा डांट पिला दीजीए”

डायरेक्टर साहब मुस्कुरा कर कहने लगे “तुम सब को उस के ख़िलाफ़ शिकायत है मगर उसे मेरे ख़िलाफ़ एक ज़बरदस्त शिकायत है।”

तीन चार आदमीयों ने इकट्ठे पूछा। “वो क्या।”

डायरेक्टर साहब ने पहली मुस्कुराहट को तवील बना कर कहा “वो कहता है कि मुझे दाइमी क़ब्ज़ है जिस के ईलाज की तरफ़ मैंने कभी ग़ौर नहीं किया। मैं उस को कई बार यक़ीन दिला चुका हूँ कि मुझे क़ब्ज़ वब्ज़ नहीं है लेकिन वो मानता ही नहीं, अभी तक इस बात पर अड़ा हुआ है कि मुझे क़ब्ज़ है। कई ईलाज भी मुझे बता चुका है। मैं समझता हूँ कि वो मुझे इस तरह ममनून करना चाहता है।”

मैंने पूछा। “वो कैसे?”

“ये कहने से कि मुझे क़ब्ज़ है और फिर उस का ईलाज बताने से.... वो मुझे ममनून ही तो करना चाहता है वर्ना फिर इस का क्या मतलब हो सकता है? बात दरअसल ये है कि उसे सिर्फ़ इसी मर्ज़ का ईलाज मालूम है यानी उस के पास चंद ऐसी दवाएं मौजूद हैं। जिन से क़ब्ज़ दूर हो सकता है। चूँकि मुझे वो खासतौर पर ममनून करना चाहता है इस लिए हरवक़्त इस ताक में रहता है कि जूंही मुझे क़ब्ज़ हो वो फ़ौरन ईलाज शुरू करके मुझे ठीक करदे.... आदमी दिलचस्प है।”

सारी बात मेरी समझ में आगई और मैंने ज़ोर ज़ोर से हंसना शुरू कर दिया। “डायरेक्टर साहब........ आप के इलावा हाफ़िज़ साहब की नज़र-ए-इनायत ख़ाकसार पर भी है........ मैंने कल उन का फ़ोटो अपने पर्चे में छपवाया है। इस एहसान का बदला उतारने के लिए अभी अभी होटल में उन्हों ने मुझे यक़ीन दिलाने की कोशिश की कि मुझे ज़बरदस्त क़ब्ज़ हो रहा है........ ख़ुदा का शुक्र है कि मैं उन के इस हमले से बच गया इस लिए कि मुझे क़ब्ज़ नहीं है।”

इस गुफ़्तुगू के चौथे रोज़ मुझे क़ब्ज़ होगया, ये क़ब्ज़ अभी तक जारी है यानी उस को पूरे दो महीने होगए हैं। मैं कई पेटैंट दवाएं इस्तिमाल कर चुका हूँ। मगर अभी तक इस से नजात हासिल नहीं हूई। अब मैं सोचता हूँ कि हाफ़िज़ अबदुर्रहमान को अपनी ख़्वाहिश पूरी करने का एक मौक़ा दे ही दूँ। क्या हर्ज है?........ मुझे उस से मोहब्बत तो है नहीं।

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सआदत हसन मंटो की लोकप्रिय कहानियाँ
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मंटो की लोकप्रिय कहानियाँ उतनी महत्वपूर्ण है कि मंटो ने इतने बरस पहले जो कुछ लिखा उसमें आज की हकीकत सिमटी नजर आती है मंटो की लोकप्रिय कहानियाँ उतनी महत्वपूर्ण है कि मंटो ने इतने बरस पहले जो कुछ लिखा उसमें आज की हकीकत सिमटी नजर आती है
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शो शो

8 अप्रैल 2022
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घर में बड़ी चहल पहल थी। तमाम कमरे लड़के लड़कियों, बच्चे बच्चियों और औरतों से भरे थे। और वो शोर बरपा हो रहा था। कि कान पड़ी आवाज़ सुनाई ना देती थी। अगर उस कमरे में दो तीन बच्चे अपनी माओं से लिपटे दूध पीने क

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सहाय

8 अप्रैल 2022
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“ये मत कहो कि एक लाख हिंदू और एक लाख मुस्लमान मरे हैं...... ये कहो कि दो लाख इंसान मरे हैं...... और ये इतनी बड़ी ट्रेजडी नहीं कि दो लाख इंसान मरे हैं, ट्रेजडी अस्ल में ये है कि मारने और मरने वाले किसी

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हरनाम कौर

8 अप्रैल 2022
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निहाल सिंह को बहुत ही उलझन हो रही थी। स्याह-व-सफ़ैद और पत्ली मूंछों का एक गुच्छा अपने मुँह में चूसते हुए वो बराबर दो ढाई घंटे से अपने जवान बेटे बहादुर की बाबत सोच रहा था। निहाल सिंह की अधेड़ मगर तेज़

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हामिद का बच्चा

8 अप्रैल 2022
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लाहौर से बाबू हरगोपाल आए तो हामिद घर का रहा ना घाट का। उन्हों ने आते ही हामिद से कहा। “लो भई फ़ौरन एक टैक्सी का बंद-ओ-बस्त करो।” हामिद ने कहा। “आप ज़रा तो आराम कर लीजिए। इतना लंबा सफ़र तय करके यहां आए ह

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सोने कि अंगूठी

8 अप्रैल 2022
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सोने कि अंगूठी सआदत हसन मंटो “छत्ते का छत्ता होगया आप के सर पर मेरी समझ में नहीं आता कि बाल न कटवाना कहाँ का फ़ैशन है ” “फ़ैशन वेशन कुछ नहीं तुम्हें अगर बाल कटवाने पड़ें तो क़दर-ए-आफ़ियत मालूम हो जाये

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हाफ़िज़ हुसैन दीन

8 अप्रैल 2022
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हाफ़िज़ हुसैन दीन जो दोनों आँखों से अंधा था, ज़फ़र शाह के घर में आया। पटियाले का एक दोस्त रमज़ान अली था, जिस ने ज़फ़र शाह से उस का तआरुफ़ कराया। वो हाफ़िज़ साहिब से मिल कर बहुत मुतअस्सिर हुआ। गो उन की

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हारता चला गया

8 अप्रैल 2022
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लोगों को सिर्फ़ जीतने में मज़ा आता है। लेकिन उसे जीत कर हार देने में लुत्फ़ आता है। जीतने में उसे कभी इतनी दिक़्क़त महसूस नहीं हुई। लेकिन हारने में अलबत्ता उसे कई दफ़ा काफ़ी तग-ओ-दो करना पड़ी। शुरू शुर

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अंजाम-ए-नजीर

8 अप्रैल 2022
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बटवारे के बाद जब फ़िर्का-वाराना फ़सादात शिद्दत इख़्तियार कर गए और जगह जगह हिंदूओं और मुस्लमानों के ख़ून से ज़मीन रंगी जाने लगी तो नसीम अख़तर जो दिल्ली की नौ-ख़ेज़ तवाइफ़ थी अपनी बूढ़ी माँ से कहा “चलो माँ यहां

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अब्जी डूडू

8 अप्रैल 2022
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“मुझे मत सताईए....... ख़ुदा की क़सम, मैं आप से कहती हूँ, मुझे मत सताईए” “तुम बहुत ज़ुल्म कर रही हो आजकल!” “जी हाँ बहुत ज़ुल्म कर रही हूँ” “ये तो कोई जवाब नहीं” “मेरी तरफ़ से साफ़ जवाब है और ये मैं आप

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इज़्ज़त के लिए

8 अप्रैल 2022
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चवन्नी लाल ने अपनी मोटर साईकल स्टाल के साथ रोकी और गद्दी पर बैठे बैठे सुबह के ताज़ा अख़्बारों की सुर्ख़ियों पर नज़र डाली। साईकल रुकते ही स्टाल पर बैठे हुए दोनों मुलाज़िमों ने उसे नमस्ते कही थी। जिस का जवा

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इफ़्शा-ए-राज़

8 अप्रैल 2022
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“मेरी लगदी किसे न वेखी वे ते टुटदी नूँ जग जाणदा” “ये आप ने गाना क्यों शुरू कर दिया है” “हर आदमी गाता और रोता है कौनसा गुनाह किया है?” “कल आप ग़ुसल-ख़ाने में भी यही गीत गा रहे थे” “ग़ुसल-ख़ाने में तो ह

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क़ब्ज़

8 अप्रैल 2022
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नए लिखे हुए मुकालमे का काग़ज़ मेरे हाथ में था। ऐक्टर और डायरेक्टर कैमरे के पास सामने खड़े थे। शूटिंग में अभी कुछ देर थी। इस लिए कि स्टूडीयो के साथ वाला साबुन का कारख़ाना चल रहा था। हर रोज़ इस कारख़ाने के

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कुत्ते की दुआ

8 अप्रैल 2022
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“आप यक़ीन नहीं करेंगे। मगर ये वाक़िया जो मैं आप को सुनाने वाला हूँ, बिलकुल सही है।” ये कह कर शेख़ साहब ने बीड़ी सुलगाई। दो तीन ज़ोर के कश लेकर उसे फेंक दिया और अपनी दास्तान सुनाना शुरू की। शेख़ साहब के म

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कोट पतलून

8 अप्रैल 2022
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नाज़िम जब बांद्रा में मुंतक़िल हुआ तो उसे ख़ुशक़िसमती से किराए वाली बिल्डिंग में तीन कमरे मिल गए। इस बिल्डिंग में जो बंबई की ज़बान में चाली कहलाती है, निचले दर्जे के लोग रहते थे। छोटी छोटी (बंबई की ज़बान

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ख़ालिद मियां

8 अप्रैल 2022
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मुमताज़ ने सुबह सवेरे उठ कर हसब-ए-मामूल तीनों कमरे में झाड़ू दी। कोने खद्दरों से सिगरटों के टुकड़े, माचिस की जली हुई तीलियां और इसी तरह की और चीज़ें ढूंढ ढूंढ कर निकालें। जब तीनों कमरे अच्छी तरह साफ़ होगए

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ख़ुदकुशी

8 अप्रैल 2022
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ज़ाहिद सिर्फ़ नाम ही का ज़ाहिद नहीं था, उस के ज़ुहद-ओ-तक़वा के सब क़ाइल थे, उस ने बीस पच्चीस बरस की उम्र में शादी की, उस ज़माने में उस के पास दस हज़ार के क़रीब रुपय थे, शादी पर पाँच हज़ार सर्फ़ हो गए, उतनी ह

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गिलगित ख़ान

8 अप्रैल 2022
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शहबाज़ ख़ान ने एक दिन अपने मुलाज़िम जहांगीर को जो उस के होटल में अंदर बाहर का काम करता था उस की सुस्त-रवी से तंग आकर बर-तरफ़ कर दिया। असल में वो सुस्त-रो नहीं था। इस क़दर तेज़ था कि उस की हर हरकत शहबाज़ ख़ान

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घोगा

8 अप्रैल 2022
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मैं जब हस्पताल में दाख़िल हुआ तो छट्ठे रोज़ मेरी हालत बहुत ग़ैर होगई। कई रोज़ तक बे-होश रहा। डाक्टर जवाब दे चुके थे लेकिन ख़ुदा ने अपना करम किया और मेरी तबीयत सँभलने लगी। इस दौरान की मुझे अक्सर बातें या

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चुग़द

8 अप्रैल 2022
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लड़कों और लड़कियों के मआशिक़ों का ज़िक्र हो रहा था। प्रकाश जो बहुत देर से ख़ामोश बैठा अंदर ही अंदर बहुत शिद्दत से सोच रहा था, एक दम फट पड़ा। सब बकवास है, सौ में से निन्नानवे मआशिक़े निहायत ही भोंडे और लचर

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जानकी

8 अप्रैल 2022
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पूना में रेसों का मौसम शुरू होने वाला था कि पिशावर से अज़ीज़ ने लिखा कि मैं अपनी एक जान पहचान की औरत जानकी को तुम्हारे पास भेज रहा हूँ, उस को या तो पूना में या बंबई में किसी फ़िल्म कंपनी में मुलाज़मत करा

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तरक़्क़ी पसंद

8 अप्रैल 2022
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जोगिंदर सिंह के अफ़साने जब मक़बूल होना शुरू हुए तो उसके दिल में ख़्वाहिश पैदा हुई कि वो मशहूर अदीबों और शाइरों को अपने घर बुलाए और उन की दावत करे। उस का ख़याल था कि यूं उस की शौहरत और मक़बूलियत और भी ज़्

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दीवाना शायर

8 अप्रैल 2022
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[अगर मुक़द्दस हक़ दुनिया की मुतजस्सिस निगाहों से ओझल कर दिया जाये। तो रहमत हो उस दीवाने पर जो इंसानी दिमाग़ पर सुनहरा ख़्वाब तारी कर दे।] मैं आहों का ब्योपारी हूँ, लहू की शायरी मेरा काम है, चमन की मा

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निक्की

8 अप्रैल 2022
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तलाक़ लेने के बाद वो बिलकुल नचनत होगई थी। अब वो हर रोज़ की वानिता कुल कुल और मार कटाई नहीं थे। निक्की बड़े आराम-ओ-इत्मिनान से अपना गुज़र औक़ात कर रही थी। ये तलाक़ पूरे दस बरस के बाद हुई थी। निक्की का श

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परी

8 अप्रैल 2022
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कश्मीरी गेट दिल्ली के एक फ़्लैट में अनवर की मुलाक़ात परवेज़ से हुई। वो क़तअन मुतअस्सिर न हुआ। परवेज़ निहायत ही बेजान चीज़ थी। अनवर ने जब उस की तरफ़ देखा और उस को आदाब अर्ज़ कहा तो उस ने सोचा “ये क्या है औरत

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पसीना

8 अप्रैल 2022
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“मेरे अल्लाह!............... आप तो पसीने में शराबोर हो रहे हैं।” “नहीं। कोई इतना ज़्यादा तो पसीना नहीं आया।” “ठहरिए में तौलिया ले कर आऊं।” “तौलिए तो सारे धोबी के हाँ गए हुए हैं।” “तो मैं अपने दोपट्

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पढ़े कलिमा

8 अप्रैल 2022
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ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह...... आप मुस्लमान हैं यक़ीन करें मैं जो कुछ कहूंगा, सच्च कहूंगा। पाकिस्तान का इस मुआमले से कोई तअल्लुक़ नहीं। क़ाइद-ए-आज़म जिन्नाह के लिए मैं जान देने के लिए तैय

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पीरन

8 अप्रैल 2022
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ये उस ज़माने की बात है जब मैं बेहद मुफ़लिस था। बंबई में नौ रुपये माहवार की एक खोली में रहता था जिस में पानी का नल था न बिजली। एक निहायत ही ग़लीज़ कोठड़ी थी जिस की छत पर से हज़ारहा खटमल मेरे ऊपर गिरा करते थ

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पढ़े कलिमा

8 अप्रैल 2022
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ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह...... आप मुस्लमान हैं यक़ीन करें मैं जो कुछ कहूंगा, सच्च कहूंगा। पाकिस्तान का इस मुआमले से कोई तअल्लुक़ नहीं। क़ाइद-ए-आज़म जिन्नाह के लिए मैं जान देने के लिए तैय

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फ़रिश्ता

8 अप्रैल 2022
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सुर्ख़ खुरदरे कम्बल में अताउल्लाह ने बड़ी मुश्किल से करवट बदली और अपनी मुंदी हुई आँखें आहिस्ता आहिस्ता खोलीं। कुहरे की दबीज़ चादर में कई चीज़ें लिपटी हुई थीं जिन के सही ख़द्द-ओ-ख़ाल नज़र नहीं आते थे। एक लं

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फाहा

8 अप्रैल 2022
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गोपाल की रान पर जब ये बड़ा फोड़ा निकला तो इस के औसान ख़ता हो गए। गरमियों का मौसम था। आम ख़ूब हुए थे। बाज़ारों में, गलियों में, दुकानदारों के पास, फेरी वालों के पास, जिधर देखो, आम ही आम नज़र आते। लाल, पीले

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फुंदने

8 अप्रैल 2022
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कोठी से मुल्हक़ा वसीअ-ओ-अरीज़ बाग़ में झाड़ियों के पीछे एक बिल्ली ने बच्चे दिए थे, जो बिल्ला खा गया था। फिर एक कुतिया ने बच्चे दिए थे जो बड़े बड़े हो गए थे और दिन रात कोठी के अंदर बाहर भौंकते और गंदगी बिखेर

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बलवंत सिंह मजीठिया

8 अप्रैल 2022
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शाह साहब से जब मेरी मुलाक़ात हुई तो हम फ़ौरन बे-तकल्लुफ़ हो गए। मुझे सिर्फ़ इतना मालूम था कि वो सय्यद हैं और मेरे दूर-दराज़ के रिश्तेदार भी हैं। वो मेरे दूर या क़रीब के रिश्तेदार कैसे हो सकते थे, इस के मु

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बाई बाई

8 अप्रैल 2022
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नाम उस का फ़ातिमा था पर सब उसे फातो कहते थे बानिहाल के दुर्रे के उस तरफ़ उस के बाप की पन-चक्की थी जो बड़ा सादा लौह मुअम्मर आदमी था। दिन भर वो इस पन चक्की के पास बैठी रहती। पहाड़ के दामन में छोटी सी जगह थ

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बादशाहत का ख़ात्मा

8 अप्रैल 2022
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टेलीफ़ोन की घंटी बिजी। मनमोहन पास ही बैठा था। उस ने रीसीवर उठाया और कहा “हेलो....... फ़ौर फ़ौर फ़ौर फाईव सेवन” दूसरी तरफ़ से पतली सी निस्वानी आवाज़ आई। “सोरी....... रोंग नंबर” मनमोहन ने रीसीवर रख दिया और

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बिलाउज़

8 अप्रैल 2022
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कुछ दिनों से मोमिन बहुत बेक़रार था। उस को ऐसा महसूस होता था कि इस का वजूद कच्चा फोड़ा सा बन गया था। काम करते वक़्त, बातें करते हुए हत्ता कि सोचने पर भी उसे एक अजीब क़िस्म का दर्द महसूस होता था। ऐसा दर्द

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सरकण्डों के पीछे

8 अप्रैल 2022
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कौन सा शहर था, इस के मुतअल्लिक़ जहां तक में समझता हूँ, आप को मालूम करने और मुझे बताने की कोई ज़रूरत नहीं ।बस इतना ही कह देना काफ़ी है कि वो जगह जो इस कहानी से मुतअल्लिक़ है, पेशावर के मुज़ाफ़ात में थी। सरहद

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मिसिज़ गुल

8 अप्रैल 2022
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मैंने जब उस औरत को पहली मर्तबा देखा तो मुझे ऐसा महसूस हुआ कि मैंने लेमूँ निचोड़ ने वाला खटका देखा है। बहुत दुबली पतली, लेकिन बला की तेज़। उस का सारा जिस्म सिवाए आँखों के इंतिहाई ग़ैर निस्वानी था। ये आँख

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मलबे का ढेर

8 अप्रैल 2022
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कामिनी के ब्याह को अभी एक साल भी न हुआ था कि उस का पति दिल के आरिज़े की वजह से मर गया और अपनी सारी जायदाद उस के लिए छोड़ गया। कामिनी को बहुत सदमा पहुंचा, इस लिए कि वो जवानी ही में बेवा हो गई थी। उस की

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महमूदा

8 अप्रैल 2022
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मुस्तक़ीम ने महमूदा को पहली मर्तबा अपनी शादी पर देखा। आरसी मसहफ़ की रस्म अदा हो रही थी कि अचानक उस को दो बड़ी बड़ी.......ग़ैर-मामूली तौर पर बड़ी आँखें दिखाई दीं.......ये महमूदा की आँखें थीं जो अभी तक कुंवार

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मिसेज़ डी सिल्वा

8 अप्रैल 2022
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बिलकुल आमने सामने फ़्लैट थे। हमारे फ़्लैट का नंबर तेरह था। उस के फ़्लैट का चौदह। कभी कोई सामने का दरवाज़ा खटखटाता तो मुझे यही मालूम होता कि हमारे दरवाज़े पर दस्तक होरही है। इसी ग़लतफ़हमी में जब मैंने एक

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मेरा हमसफ़र

9 अप्रैल 2022
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प्लेटफार्म पर शहाब, सईद और अब्बास ने एक शोर मचा रखा था। ये सब दोस्त मुझे स्टेशन पर छोड़ने के लिए आए थे, गाड़ी प्लेटफार्म को छोड़ कर आहिस्ता आहिस्ता चल रही थी कि शहाब ने बढ़ कर पाएदान पर चढ़ते हुए मुझ से

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मेरा और उसका इंतिक़ाम

9 अप्रैल 2022
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घर में मेरे सिवा कोई मौजूद नहीं था। पिता जी कचहरी में थे और शाम से पहले कभी घर आने के आदी न थे। माता जी लाहौर में थीं और मेरी बहन बिमला अपनी किसी सहेली के हाँ गई थी! मैं तन्हा अपने कमरे में बैठा किताब

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वह लड़की

9 अप्रैल 2022
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सवा-चार बज चुके थे लेकिन धूप में वही तमाज़त थी जो दोपहर को बारह बजे के क़रीब थी। उस ने बालकनी में आ कर बाहर देखा तो उसे एक लड़की नज़र आई जो बज़ाहिर धूप से बचने के लिए एक साया-दार दरख़्त की छांव में आलती पाल

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वो ख़त जो पोस्ट न किये गए

9 अप्रैल 2022
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हव्वा की एक बेटी के चंद ख़ुतूत जो उस ने फ़ुर्सत के वक़्त मुहल्ले के चंद लोगों को लिखे। मगर इन वजूह की बिना पर पोस्ट न किए गए जो इन ख़ुतूत में नुमायां नज़र आती हैं। (नाम और मुक़ाम फ़र्ज़ी हैं) पहला ख़त म

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शादी

9 अप्रैल 2022
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जमील को अपना शैफर लाइफ-टाइम क़लम मरम्मत के लिए देना था। उस ने टेलीफ़ोन डायरेक्ट्री में शैफर कंपनी का नंबर तलाश किया। फ़ोन करने से मालूम हुआ कि उन के एजेंट मैसर्ज़ डी, जे, समतोइर हैं जिन का दफ़्तर ग्रीन

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सड़क के किनारे

9 अप्रैल 2022
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“यही दिन थे......... आसमान उस की आँखों की तरह ऐसा ही नीला था जैसा कि आज है। धुला हुआ, निथरा हुआ......... और धूप भी ऐसी ही कनकनी थी......... सुहाने ख़्वाबों की तरह। मिट्टी की बॉस भी ऐसी ही थी जैसी कि इ

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शारदा

9 अप्रैल 2022
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नज़ीर ब्लैक मार्कीट से विस्की की बोतल लाने गया। बड़क डाकख़ाने से कुछ आगे बंदरगाह के फाटक से कुछ इधर सिगरेट वाले की दुकान से उस को स्काच मुनासिब दामों पर मिल जाती थी। जब उस ने पैंतीस रुपये अदा करके काग़

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सिराज

9 अप्रैल 2022
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नागपाड़ा पुलिस चौकी के उस तरफ़ जो छोटा सा बाग़ है। उस के बिलकुल सामने ईरानी के होटल के बाहर, बिजली के खंबे के साथ लग कर ढूंढ़ो खड़ा था। दिन ढले, मुक़र्ररा वक़्त पर वो यहां आ जाता और सुबह चार बजे तक अपने धंद

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हज्ज-ए-अकबर

9 अप्रैल 2022
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इम्तियाज़ और सग़ीर की शादी हुई तो शहर भर में धूम मच गई। आतिश बाज़ियों का रिवाज बाक़ी नहीं रहा था मगर दूल्हे के बाप ने इस पुरानी अय्याशी पर बे-दरेग़ रुपया सर्फ़ किया। जब सग़ीर ज़ेवरों से लदे फंदे सफ़ैद बुर्र

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सजदा

9 अप्रैल 2022
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गिलास पर बोतल झुकी तो एक दम हमीद की तबीयत पर बोझ सा पड़ गया। मलिक जो उसके सामने तीसरा पैग पी रहा था फ़ौरन ताड़ गया कि हमीद के अंदर रुहानी कश्मकश पैदा होगई है। वो हमीद को सात बरस से जानता था, और इन सात बर

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लाइसेंस

9 अप्रैल 2022
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अब्बू कोचवान बड़ा छैल छबीला था। उस का ताँगा घोड़ा भी शहर में नंबर वन था। कभी मामूली सवारी नहीं बिठाता था। उस के लगे बंधे गाहक थे जिन से उस को रोज़ाना दस पंद्रह रुपय वसूल हो जाते थे जो अब्बू के लिए काफ़ी थ

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हाफ़िज़ हुसैन दीन

9 अप्रैल 2022
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हाफ़िज़ हुसैन दीन जो दोनों आँखों से अंधा था, ज़फ़र शाह के घर में आया। पटियाले का एक दोस्त रमज़ान अली था, जिस ने ज़फ़र शाह से उस का तआरुफ़ कराया। वो हाफ़िज़ साहिब से मिल कर बहुत मुतअस्सिर हुआ। गो उन की

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संतर पंच

9 अप्रैल 2022
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मैं लाहौर के एक स्टूडियो में मुलाज़िम हुआ जिस का मालिक मेरा बंबई का दोस्त था उस ने मेरा इस्तिक़बाल क्या मैं उस की गाड़ी में स्टूडियो पहुंचा था बग़लगीर होने के बाद उस ने अपनी शराफ़त भरी मोंछों को जो ग़ालिबन

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शैदा

9 अप्रैल 2022
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शैदे के मुतअल्लिक़ अमृतसर में ये मशहूर था कि वो चट्टान से भी टक्कर ले सकता है उस में बला की फुर्ती और ताक़त थी गो तन-ओ-तोश के लिहाज़ से वो एक कमज़ोर इंसान दिखाई देता था लेकिन अमृतसर के सारे गुंडे उस से ख़ौ

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राम खेलावन

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खटमल मारने के बाद में ट्रंक में पुराने काग़ज़ात देख रहा था कि सईद भाई जान की तस्वीर मिल गई। मेज़ पर एक ख़ाली फ़्रेम पड़ा था....... मैंने इस तस्वीर से उस को पुर कर दिया और कुर्सी पर बैठ कर धोबी का इंतिज़ार

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रहमत-ए-खुदा-वंदी के फूल

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ज़मींदार, अख़बार में जब डाक्टर राथर पर रहमत-ए-ख़ुदा-वंदी के फूल बरसते थे तो यार दोस्तों ने ग़ुलाम रसूल का नाम डाक्टर राथर रख दिया। मालूम नहीं क्यूँ, इस लिए कि ग़ुलाम रसूल को डाक्टर राथर से कोई निसबत नह

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मिस फ़र्या

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शादी के एक महीने बाद सुहेल परेशान होगया। उस की रातों की नींद और दिन का चैन हराम हो गया। उस का ख़याल था कि बच्चा कम अज़ कम तीन साल के बाद पैदा होगा मगर अब एक दम ये मालूम करके उस के पांव तले की ज़मीन निक

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मिस अडना जैक्सन

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कॉलिज की पुरानी प्रिंसिपल के तबादले का एलान हुआ, तालिबात ने बड़ा शोर मचाया। वो नहीं चाहती थीं कि उन की महबूब प्रिंसिपल उन के कॉलेज से कहीं और चली जाये। बड़ा एहतिजाज हुआ। यहाँ तक कि चंद लड़कियों ने भूक हड़

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बुड्ढ़ा खूसट

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ये जंग-ए-अज़ीम के ख़ातमे के बाद की बात है जब मेरा अज़ीज़ तरीन दोस्त लैफ़्टीनैंट कर्नल मोहम्मद सलीम शेख़ (अब) ईरान इराक़ और दूसरे महाज़ों से होता हुआ बमबई पहुंचा। उस को अच्छी तरह मालूम था, मेरा फ़्लैट कहाँ ह

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शह नशीं पर

9 अप्रैल 2022
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वो सफ़ैद सलमा लगी साड़ी में शह-नशीन पर आई और ऐसा मालूम हुआ कि किसी ने नक़रई तारों वाला अनार छोड़ दिया है। साड़ी के थिरकते हूए रेशमी कपड़े पर जब जगह जगह सलमा का काम टिमटिमाने लगता तो मुझे जिस्म पर वो तमाम

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चुग़द

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लड़कों और लड़कियों के मआशिक़ों का ज़िक्र हो रहा था। प्रकाश जो बहुत देर से ख़ामोश बैठा अंदर ही अंदर बहुत शिद्दत से सोच रहा था, एक दम फट पड़ा। सब बकवास है, सौ में से निन्नानवे मआशिक़े निहायत ही भोंडे और लचर

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