वे नीरव नीलिमा घाटियाँ
स्वप्नों की हैं ।
जहाँ शोभा चलती है
अशरीरी ।
आनंद निर्झरी सी
हीरक रव ।
यहाँ शाँति की
स्वच्छ सरसी में
प्रीति नहाती है,
सुनहला परिधान खिसका
मुक्ति में डूबी।
असीम का स्वभाव,
वह शोभा की
नयन नीलिमा में बँधा
असीम ही रहता ।
सरसी में सोया भी ।
अनिमेष दृष्टि का अवाक् क्षण
शाश्वत अनुभूति है ।
ये नीलिमा घाटियाँ हैं
कालातीत
जहाँ अशरीरी शोभा
रहती,
दृष्टि परिधान हटा
आत्म मग्न,
ज्योति नग्न ।