शब्दों के कंधों पर
छंदों के बंधों पर
नहीं आना चाहता ।
वे बहुत बोलते हैं ।
तब ?
ध्यान के यान में
सूक्ष्म उड़ान में,
रुपहीन भावों में
तत्व मात्र गात्र धर
खो जाऊँ?
अर्थ हीन प्रकाश में
लीन हो जाऊँ ।
तुम परे ही रहोगी ।
नहीं,
तुम्हीं को बुलाऊँ
शब्दों भावों में
रूपों रंगों में,
स्वप्नों चावों में,
तुम्हीं आओ
सर्वस्व हो ।
मैं न पाऊँगा
नि:स्व हो ।