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कविता

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शहद से नैना , तेरे नैनामधु है तेरी बहना, नैनाथोड़ा पलकों को छलका नैनामहज़ थोड़ा सा मुझको पीनानैनों से बहते मेरे नैनाजुदाई को सहते मेरे नैनाजब तेरी बहना से मिले नैनानैनों मे बस, नैना ही नैनामधु के ख्या

व्योम पटल पे लिख दो,नई कहानी अपनीलहू अक्षरो से ये जवानी अपनी..हाहाकार मचे शत्रु के सीने मेंअंतर न रहे मरने जीने मेंगलत दिशा में शीश उठाने वालोनफ़रत को गले लगाने वालोशत्रु के माथे पर गढ़ दोखुद नि

प्रश्न एक था सबका लेकिन, हल सौ हल हार गए रिश्ते नाते सभी थे झूठे, जो आड़े फिर आ गए प्रश्नों की उलझन को अब ना भेदा जाता है हर एक नए प्रश्न से डर अब मुझको लगता है... देख उसे उस चौराहे

जात की कहारिन हूं मैं प्यार की ढेकेदारन हूं मैं मन की मदारिन हूं मैं मुझे बस इक तू ढूंढ़ ले, इक भिखारिन हूं मैं.... लुटाया मधुकरियो को तूने खिलाया भूखों को तूने जगाया ढिकानों को तूने..

ओ खुदा ओ खुदा ओ खुदा... बदन रोज एक लहू-लुहान है नफ़रत, देखो कैंसी महान है खूबसूरत चिड़िया जो महमान है कैंसे थमे जुल्म का शिलशिला कब थमेगा दिलो का धुआं... ओ खुदा ओ खुदा ओ खुदा...

ओ खुदा, ओ खुदा, ओ खुदा... घर की खातिर जो घर से निकल जाते है डगर पे अकेले ही चल जाते है शौंक अचानक बदल जाते है फिज़ा में जहर है घुला तितलिया हो रही गुम-सुदा...

ओ खुदा, ओ खुदा, ओ खुदा... किसी आंखों में आंसू जो दिख जाते है दूकानों में भगवां(ईश्वर)भी बिक जाते है परिंदे मोहब्बत पे टिक जाते है जो कुकर्ने लगी कुछ लबों की कथा बिखरती हुई आ रही है सदा...

आसमान का तारा हूँ मैं,चमक है फीकी सी,और कुछ बेजान,कही गुमनाम सा,तारो की भीड़ मे,खोया हुआ धूल भर सा,ही तो हूँ,मुस्कुराता हुआ – हँसता हुआ,इस खामोश आसमान मे,टिमटिमाता हूँ कभी,और कभी गुम हो जाता हूँ,दूर

टूट जाता है दिल ये तब मेरा, बेवफा लोग जब मिलते है, दर्द होता है दिल में तब मुझको, फिर भी दर्द इ दिल का मज़ा मैं लेता हूँ, पूछता हु अक्सर खुद से ही फिर कभी, कही पत्थर दिल ऐसे ही तो नहीं होते....

कह न सका, कहना था जो तुमको.... तुम्हारी आँखों में, छिपी है एक दास्ताँ.... कितना है दर्द,  बता देता गर तुमको.... जाती न कभी, छोड़ कर तुम हमको.... आएगा न कभी, दौर-ए-जुदाई का कभी.... खुला दिल मे

 मैं साधू सा आलाप कर लेता हूं।  मंदिर में कभी जाप कर लेता हूं।  मानव से देव बन न जाऊं कहीं,  यह सोचकर कुछ पाप कर लेता हूं।  मैं पाप के अंजाम से अंजान नहीं,  अगर मैं पाप न करूं तो इंसान नहीं।  नि

हर घडी मिलता हूँ, अपने उस खुदा से… छुपकर जब वो देखता है, मुझे खिड़कियों से… खोलता हूँ एक दम, जब खिड़कियों को … छुप जाता है वो उसी पल, तभी झांकता है वो, सुराखों से, रोशनदानों से, देख देख कर फिर

मां जननी है नवजीवन दायनी किस्सा ये तो हर कोई सुनाता है। ममता को विशाल मूरत है औरत हर कोई बतलाता है नवजीवन में पुरुष का हिस्सा भी है हर कोई ये क्यों भुल जाता है माना नौ महीने दर्द सहक

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मधुर पवन खुले उपवन, महकते गुलाबों की सौंधी सुगंध, खुले नयन कहे मृग मन, छू लूँ हर पल, न हो कोई बंधन...... बहकते कदम झूमे तन मन, नैनो से गिरे मोती मंद-मंद, भवरो का गुंजन, फैला गगन, छोटी

दिले नादां कहता है, कभी काफिर बनकर तो देख, तुझे मजा न दिला दूं तो फिर कहना। . बन बैठा काफिर शैतां के कहने पर जब-जब, रोया ज़ार-ज़ार खूँ के आँसू दिल मेरा तब-तब। . मिल न सका वो सूकूं दिल को कभी, क

दौड़ता हूँ अंतहीन राहो पर, बेतरतीब – बेइन्तहा... थक जाता हूँ दौड़कर जब, बैठ जाता हूँ उन्ही राहो पर.... करके बंद आंखे, फिर देखता हूँ वो सब... जो खुली आंखो से, देख न पाया कभी.... खामोशी के उस मं

अज़ान निकलती है दिल से बिना किसी आवाज़, जो सुन लेता है वो खुदा, जो कभी अज़ान है तो कभी सांस है मेरी.... 

दौड़ता हूं अंतहीन राहों पर, बेतरतीब-बेइन्तहां.... थक जाता हूं दौड़कर जब, बैठ जाता हूं उन्हीं राहों पर.... करके बंद आंखें, फिर देखता हूं वो सब.... जो खुली आंखों से, देख न पाया कभी.... खामोशी के

आता हूं रोज दर पर नमाजी बनकर, मिलते हैं कुछ नमाजी तो कुछ समाजी। . कुछ करते दिखते इबादत उसकी, कुछ करते दिखते हूज़ूरे इबलिस। . रोता हूं उनकी खातिर, जिनका मुझसे न कोई वास्ता। देखता हूं जब मैं उनक

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