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कविता

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परिधि जीवन के उन्मुक्त भाव का। सागर सी लहरे भी उठते जाते। पथिक पथ पर ही-है, होती है बातें। उन्मत सी फिर है संशय की रातें। अरी लुभावनी जीवन, तू संग तो आ। मैं नव संगीत पिरोऊँ, तू प्रेम गीत तो गा।। माना

कुर्सी नहीं छोड़ूंगा सौ बार कसम खाई कुर्सी नहीं छोड़ूंगा। ताऊ कहे या ताई कुर्सी नहीं छोड़ूंगा। ।नेता हूं में तो भाई कुर्सी नहीं छोडूंगा।।सौ हेर फेर करके कुरसी मुझे मिली है। मुद्दत की को

 धुन : ऐ मेरे वतन के लोगो ज़रा आंख में भरलो पानी पैरोडी ये कुर्सी चिपकू नेता करें देश से बेईमानी। जो शहीद हुए थे उन की नहीं याद रही कुर्बानी।।लंदन पेरिस में पढ़ते, नेता अफसर के बच्

मेरे प्यार के रास्ते ऐसे ही हैंइसमे हर पल इतने उतार-चढ़ाव हैं,न जाने कितने इंतिहान हैंप्यार जैसे कोई मेहमान हैंजरूरत पे आता हैं जरूरत पे जाता हैंप्यार की मंज़िल का कहॉ पड़ाव हैंदिल को सुकून नहींबाकी कोई

न जिस्म अपनाऔर न दौलत अपनीन रिश्ते अपनेऔर न प्यार अपनाकुछ भी पूरी तरह सेअपनेपन के एहसास से भरे नही  हैं,ऐसा लगता हैंये हक़ीक़त का भरम हैं,न जीने की प्यास औरन मरने का हुनर फिर भी हम कहते हैंये

वक़्त के साथ जलते रहने की आदत है मुझेखुद को अंधेरे में रख कर दूसरों को रौशन करनेकी आदत हैं मुझेतुम क्या जलाओगे दिलमेरा ये हम सफरदिलो में मशाल बनकरजीने की आदत है मुझे।अजय निदानसर्वाधिकारसुरक्ष

आईना टूटा ही निकलातेरी चाहत काकिसे दिखाते अपनी सूरतक्योंकिदेखने वाले के पास भीचाहत को देखने कीनज़र चाहिये,कही वो भी हमें मोहराबनाकर सिर्फ इस्तेमाल नकर ले इस इरादे सेदिल के दरवाजे बंद हैंमगर अपने ज़मीर क

रोज़ गिरना तुमपानी की तरह मेरे ऊपररोज़ भीगता रहेगादामन मेरा समुन्दर की तरहआख़िर हो जायेंगेएक दिन हम पानीउस दिन गिरेंगेतेरी आँखों सेमेरे आँसूदास्ता बनकर ।अजय निदान9630819356सर्वाधिकार सुरक्षित

गुरु हीमेरा भविष्य हैंगुरु की हर कसौटी पे खरेउतरने के बादअंत मे गुरु ने गुरुदक्षिणा के रूप मेंमेरा भविष्य माँगाऔर नौजवानों कोवंचित कर दियाहर अवसर सेनाममात्र के लिएरह गये गुरुआरक्षण किसी औरको देकर

जी रहा हूँ सिर्फ तेरे प्यार के लिएमैं कहा हूँकिसी के इंतज़ार के लिएवक़्त ने दिया ही नहींमुझे कोई मौक़ामैं तो रह गया बस इनकार के लिएजब भी चाहातुझ से कहनालब न खुले मेरेइज़हार के लिएपल से बनी सदिया

हर आँख पर पर्दा इस कदर पड़ गया हैंजो देखना थाज़मानें में आया वो भी हमारी अक़्ल से छुप गया हैंअब क्या उम्मीद और क्या प्यार यहाँसब कुछ दाँव पर लगा है यारवफ़ा की बात ही क्यासब बेवफाई का हुनर ज

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वक़्त की शाख़ों सेफूल झरते ही रहे,हालातो के रंगमेरे लिए बदलते रहे,जब भी कोशिश की हमनें तोरास्ते मे अपने ही छलते रहेकिस-किस से गिला करेंअपने रंजो गम का ये दोस्तज़िंदगी ही मोम थीहर वक़्त बस पिघलते रहे।अजय न

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मेरी नई कविता#हर_हर_तिरंगा====================हर-हर तिरंगा घर-घर तिरंगा लहराएंगे फहराएंगे।मां भारती के मान को हम मां भारती के सम्मान को हम जन-जन तक पहुंचाएंगे। हर-हर तिरंगा ,,,,,,च

दिवस अंतिम मम जीवन का कब होगा, कहाॅ होगा किन हालातों में बीमारी से दुर्घटना से लगता उस दिन सांस घुटने लगेंगीं धङकन कमजोर शरीर असहाय वाणी बंद मन का क्या ठिकाना क्या सोच रहा होगा नहीं, नहीं, नहीं सच तो

रण के बाद संहार ही नहीं होता सृजन भी होता है बहुधा सृजन का आरंभ विनाश से पतन बुराई का अंत कुरीतियों का स्थापना धर्म की कब हुई बिना रण के रण चाहे रामायण का था या महाभारत का रण अनिवार्य था अपरिहार्य था

अक्सर ख्वाहिशें तकलीफ दे जाती हैं दिलों में चुभ जाती हैं नयनों में अश्रु लाती हैं ख्वाहिश थी आसमां की जमीन के साथ चलने की उसे प्रेम करने की क्षितिज को सत्य करने की ख्वाहिश आसमान की पूरी न होनी थीं दूर

मैं एक टूटा सपना हूं याद नहीं देखा किसने क्यों देख भला वह भूल गया सपनों की भीड़ लगी थी किस सपने में वह उलझ गया मैं एक टूटा सपना हूं अनाथालय की सीड़ी पर अर्धरात्रि में छोड़ गया जो माॅ के प्यार को तरसा

जिन खुशियों की तलाश में दुखों से भागते रहे कुछ अलग आश्चर्य की बात हमारी खुशियां आराम कर रहीं उन्हीं दुखों में यह धोखा ही था खुशियां तो दुखों से लिपटी थीं हम समझे दोनों अलग अलग सत्य कब है फूल के साथ का

वह विशाल वृक्ष सड़क के किनारे खड़ा तपस्या करता तपस्वी सम अब नहीं दिखा कितनी ही बार गर्मियों में हो बैहाल बिताये कुछ पल उस वृक्ष के नीचे अनुभूति कुछ वही जैसे वह वृक्ष मेरे पिता हो रोकते तीक्ष

वो लड़की और वो औरत वो लड़की जो खेलती थी गुड़ियों से गुड़ियों के बाल बनाती कपड़े तैयार करती अपनी खुद जायी गुड़िया की बन माॅ औरत बन गयी वो औरत जो जिंदा गुड्डे गुड़ियों की माॅ है उसी तरह सम्हालती बच्चों

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