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ख़ालिद मियां

8 अप्रैल 2022

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मुमताज़ ने सुबह सवेरे उठ कर हसब-ए-मामूल तीनों कमरे में झाड़ू दी। कोने खद्दरों से सिगरटों के टुकड़े, माचिस की जली हुई तीलियां और इसी तरह की और चीज़ें ढूंढ ढूंढ कर निकालें। जब तीनों कमरे अच्छी तरह साफ़ होगए तो इस ने इत्मिनान का सांस लिया।

उस की बीवी बाहर सहन में सोरही थी। बच्चा पँगोड़े में था। मुमताज़ हर सुबह सवेरे उठ कर सिर्फ़ इस लिए ख़ुद तीनों कमरों में झाड़ू देता था कि इस का लड़का ख़ालिद अब चलता फिरता था और आम बच्चों के मानिंद, हर चीज़ जो इस के सामने आए, उठा कर मुँह में डाल लेता था।

मुमताज़ हर रोज़ तीनों कमरे बड़े एहतियात से साफ़ करता मगर उस को हैरत होती जब ख़ालिद फ़र्श पर उसे अपने छोटे छोटे नाखुनों की मदद से कोई ना कोई चीज़ उठा लेता। फ़र्श का पलस्तर कई जगह उखड़ा हुआ था। जहां कूड़े क्रिकेट के छोटे छोटे ज़र्रे फंस जाते थे। मुमताज़ अपनी तरफ़ से पूरी सफ़ाई करता मगर कुछ ना कुछ बाक़ी रह जाता जो इस का पलोठी का बेटा ख़ालिद जिस की उम्र अभी एक बरस की नहीं हुई थी उठा कर अपने मुँह में डाल लेता।

मुमताज़ को सफ़ाई का ख़बत होगया था। अगर वो ख़ालिद को कोई चीज़ फ़र्श पर से उठा कर अपने मुँह में डालते देखता तो वो ख़ुद क़व्वास का मुल्ज़िम समझता। अपने आप को दिल ही दिल में कोसता कि इस ने क्यों बद एहतियाती की। ख़ालिद से उस को प्यार ही नहीं इशक़ था, लेकिन अजीब बात है कि जूं जूं ख़ालिद की पहली सालगिरा का दिन नज़दीक आता था इस का ये वहम यक़ीन की सूरत इख़तियार करता जाता था कि इस का बेटा एक साल का होने से पहले पहले मर जाएगा।

अपने इस ख़ौफ़नाक वहम का ज़िक्र मुमताज़ अपनी बीवी से भी कर चुका था। मुमताज़ के मुताल्लिक़ ये मशहूर था कि वो औहाम का बिलकुल क़ाइल नहीं। उस की बीवी ने जब पहली बार इस के मुँह से ऐसी बात सुनी तो कहा। आप और ऐसे वहम....... अल्लाह के फ़ज़ल-ओ-करम से हमारा बेटा सौ साल ज़िंदा रहेगा....... मैंने उस की पहली सालगिरा के लिए ऐसा एहतिमाम किया है कि आप दंग रह जाऐंगे।

ये सुन कर मुमताज़ के दिल को एक धक्का सा लगा था। वो कब चाहता था कि इस का बेटा ज़िंदा ना रहे लेकिन इस के वहम का क्या ईलाज था....... ख़ालिद बड़ा तंदरुस्त बच्चा था। सर्दीयों में जब नौकर एक दफ़ा उस को बाहर सैर के लिए ले गया तो वापिस आकर इस ने मुमताज़ की बीवी से कहा। बेगम साहब, आप ख़ालिद मियां के गालों पर सुर्ख़ी ना लगाया करें....... किसी की नज़र लग जाएगी।

ये सुन कर उस की बीवी बहुत हंसी थी बेवक़ूफ़ मुझे क्या ज़रूरत है सुर्ख़ी लगाने की। माशाअल्लाह इस के गाल ही क़ुदरती लाल हैं।

सर्दीयों में ख़ालिद के गाल बहुत सुर्ख़ रहते थे मगर अब गरमीयों में कुछ ज़रदी माइल होगए थे उस को पानी का बहुत शौक़ था। चुनांचे वो अंगड़ाई लेकर उठता और दूध की बोतल पी लेता तो दफ़्तर जाने से पहले मुमताज़ उस को पानी की बाल्टी में खड़ा करदेता। देर तक वो पानी के छींटे उड़ा उड़ा कर खेलता रहता। मुमताज़ और उस की बीवी ख़ालिद को देखते और बहुत ख़ुश होते। लेकिन मुमताज़ की ख़ुशी में गुम एक बर्क़ी धक्का सा ज़रूर होता। वो सोचता ख़ुदा मेरी बीवी की ज़बान मुबारक करे, लेकिन ये क्या ये कि मुझे उस की मौत का खटका रहता है....... ये वहम क्यों मेरे दिल-ओ-दिमाग़ में बैठ गया है कि ये मर जाएगा... क्यों मरेगा?... अच्छा भला सेहत मंद है। अपनी उम्र के बच्चों से कहीं ज़्यादा सेहत मंद... मैं यक़ीनन पागल हूँ। इस से मेरी हद से ज़्यादा बढ़ी हुई मोहब्बत दरअसल इस वहम का बाइस है... लेकिन मुझे इस से इतनी ज़्यादा मुहब्बत क्यों है?....... क्या सारे बाप इसी तरह बच्चों से प्यार करते हैं... क्या हर बात को अपनी औलाद की मौत का खटका लगा रहता है?....... मुझे आख़िर हो किया गया है।?

मुमताज़ ने जब हसब-ए-मामूल तीनों कमरे अच्छी तरह साफ़ कर दिए तो वो फ़र्श पर चटाई बिछा कर लेट गया। ये उस की आदत थी। सुबह उठ कर, झाड़ू वग़ैरा दे कर वो गरमीयों में ज़रूर आधे घंटे के लिए चटाई पर लेटा करता था। बग़ैर तकिए के इस तरह उस को लुत्फ़ महसूस होता था।

लेट कर वह सोचने लगा। “परसों मेरे बच्चे की पहली सालगिरा है....... अगर ये बख़ैर-ओ-आफ़ियत गुज़र जाये तो मेरे दिल का सारा बोझ हल्का हो जाएगा। ये मेरा वहम बिलकुल दूर हो जाएगा....... अल्लाह मियां ये सब तेरे हाथ में है।”

उस की आँखें बंद थीं। दफ़अतन उस ने अपने नंगे सीने पर बोझ महसूस किया। आँखें खोलीं तो देखा ख़ालिद है। उस की बीवी पास खड़ी थी। उस ने कहा “सारी रात बेचैन सा रहा है सोते में जैसे डर डर के काँपता रहा है।”

ख़ालिद, मुमताज़ के सीने पर ज़ोर से काँपा। मुमताज़ ने इस पर हाथ रखा और कहा। “ख़ुदा मेरे बेटे का मुहाफ़िज़ हो!”

मुमताज़ की बीवी ने ख़फ़गी आमेज़ लहजे में कहा। “तौबा, आप को बस वहमों ने घेर रखा है। हल्का सा बुख़ार है, इंशाअल्लाह दूर हो जाएगा।”

ये कह कर मुमताज़ की बीवी कमरे से चली गई।

मुमताज़ ने हौलेहौले बड़े प्यार से ख़ालिद को थपकना शुरू किया जो उस की छाती पर औंधा लेटा था और सोते में कभी कभी काँप उठता था। थपकने से वो जाग पड़ा। आहिस्ता आहिस्ता उस ने अपनी बड़ी बड़ी स्याह आँखें खोलीं और बाप को देख कर मुस्कुराया। मुमताज़ ने उस का मुँह चूमा। “क्यों मियां ख़ालिद क्या बात है....... आप काँपते क्यों थे।”

ख़ालिद ने मुस्कुरा कर अपना उठा हुआ सर बाप की छाती पर गिरा दिया। मुमताज़ ने फिर उस को थपकाना शुरू कर दिया। दिल में वो दुआएं मांग रहा था कि उस के बेटे की उमरदराज़ हो। उस की बीवी ने ख़ालिद की पहली सालगिरा के लिए बड़ा एहतिमाम किया था। अपनी सारी सहेलियों से कहा था कि वो इस तक़रीब पर ज़रूर आएं। दर्ज़ी से खासतौर पर उस की सालगिरा के कपड़े सिलवाए थे। दावत पर क्या क्या चीज़ होगी, ये सब सोच लिया था.......मुमताज़ को ये ठाट पसंद नहीं था। वो चाहता था कि किसी को ख़बर ना हो और सालगिरा गुज़र जाये। ख़ुद उस को भी पता न चले और उस का बेटा एक बरस का हो जाये। उस को इस बात का इल्म सिर्फ़ उस वक़्त हो जब ख़ालिद एक बरस और कुछ दिनों का होगया हो।

ख़ालिद अपने बाप की छाती पर से उठा। मुमताज़ ने उस से मुहब्बत में डूबे हुए लहजे में कहा। “ख़ालिद बेटा, सलाम नहीं करोगे अब्बा जी को।”

ख़ालिद ने मुस्कुरा कर हाथ उठाया और अपने सर पर रख दिया। मुमताज़ ने उस को दुआ दी “जीते रहो।” लेकिन ये कहते ही उस के दिल पर उस के वहम की ज़र्ब लगी और वो ग़म-ओ-फ़िक्र के समुंद्र में ग़र्क़ होगया।

ख़ालिद सलाम करके कमरे से बाहर निकल गया। दफ़्तर जाने में अभी काफ़ी वक़्त था। मुमताज़ चटाई पर लेटा रहा और अपने वहम को दिल-ओ-दिमाग़ से मह्व करने की कोशिश करता रहा। इतने में बाहर सहन से उस की बीवी की आवाज़ आई। “मुमताज़ साहब, मुमताज़ साहब....... इधर आईए।”

आवाज़ में शदीद घबराहट थी। मुमताज़ चौंक कर उठा। दौड़ कर बाहर गया। देखा कि उस की बीवी ख़ालिद को ग़ुसलख़ाने के बाहर गोद में लिए खड़ी है और वो उस की गोद में बल पे बल खा रहा है....... मुमताज़ ने उस को अपनी बाँहों में ले लिया और बीवी से जो काँप रही थी पूछा “क्या हुआ?”

उस की बीवी ने ख़ौफ़ज़दा लहजे में कहा। “मालूम नहीं....... पानी से खेल रहा था....... मैंने नाक साफ़ की तो दोहरा होगया।”

मुमताज़ की बाँहों में ख़ालिद ऐसे बल खा रहा था, जैसे कोई उसे कपड़े की तरह निचोड़ रहा है। सामने चारपाई पड़ी थी। मुमताज़ ने उस को वहां लिटा दिया। मियां बीवी सख़्त परेशान थे। वो पड़ा बल पे बल खा रहा था और इन दोनों के औसान ख़ता थे कि वो क्या करें। थपकाया, चूमा, पानी के छीन्टे मारे मगर उस का तशन्नुज दूर न हुआ। थोड़ी देर के बाद ख़ुदबख़ुद दौरा आहिस्ता आहिस्ता ख़त्म होगया और ख़ालिद पर बेहोशी सी तारी होगई। मुमताज़ ने समझा, मर गया है। चुनांचे इस ने अपनी बीवी से कहा। “ख़त्म होगया।”

वो चिलाई। “लाहौल वला....... कैसी बातें मुँह से निकालते हैं। कनोलशन थी। ख़त्म हो गई। अभी ठीक हो जाएगा।”

ख़ालिद ने अपनी मुरझाई हुई बड़ी बड़ी स्याह आँखें खोलीं और अपने बाप की तरफ़ देखा। मुमताज़ की सारी दुनिया ज़िंदा होगई। बड़े ही दर्द भरे प्यार से उस ने ख़ालिद से कहा। “क्यों ख़ालिद बेटा....... ये क्या हुआ आप को?”

ख़ालिद के होंटों पर तशन्नुज ज़दा मुस्कुराहट नमूदार हुई। मुमताज़ ने उस को गोद में उठा लिया और अंदर कमरे में ले गया। लेटाने ही वाला था कि दूसरी कनोलशन आई। ख़ालिद फिर बल खाने लगा। जिस तरह मिर्गी का दौरा होता है, ये तशन्नुज भी इसी क़िस्म का था। मुमताज़ को ऐसा महसूस होता कि ख़ालिद नहीं बल्कि वो इस अज़ीयत के शिकंजे में कसा जा रहा है।

दूसरा दौरा ख़त्म हुआ तो ख़ालिद और ज़्यादा मुरझा गया। उस की बड़ी बड़ी स्याह आँखें धँस गईं। मुमताज़ उस से बातें करने लगा।

“ख़ालिद बेटे, ये क्या होता है आप को?”

“ख़ालिद मियां, उठो ना....... चलो फ़िरौ”

“ख़ालिदी....... मक्खन खाएंगे आप?”

ख़ालिद को मक्खन बहुत पसंद था मगर उस ने ये सुन कर अपना सर हिला कर हाँ ना की, लेकिन जब मुमताज़ ने कहा। “बेटे, गुलो खाएंगे आप?” तो उस ने बड़े नहीफ़ अंदाज़ में नहीं के तौर पर अपना सर हिलाया। मुमताज़ मुस्कुराया और ख़ालिद को अपने गले से लगा लिया फिर उस को अपनी बीवी के हवाले किया और इस से कहा। तुम इस का ध्यान रखू मैं डाक्टर लेकर आता हूँ।

डाक्टर साथ लेकर आया तो मुमताज़ की बीवी के होश उड़े हुए थे। उस की ग़ैर हाज़िरी में ख़ालिद पर तशन्नुज के तीन और दौरे पड़ चुके थे। उन के बाइस वो बेजान हो गया था। डाक्टर ने उसे देखा और कहा। “तरद्दुद की कोई बात नहीं। ऐसी कनोलशन बच्चों को उमूमन आया करती है....... इस की वजह दाँत हैं। मादे में करम वग़ैरा हूँ तो वो भी इस का बाइस हो सकते हैं....... मैं दवा लिख देता हूँ। आराम आजाएगा। बुख़ार तेज़ नहीं है, आप कोई फ़िक्र न करें।”

मुमताज़ ने दफ़्तर से छुट्टी ले ली और सारा दिन ख़ालिद के पास बैठा रहा। डाक्टर के जाने के बाद उस को दो मर्तबा और दौरे पड़े। इस के बाद वो निढाल लेटा रहा। शाम होगई तो मुमताज़ ने सोचा। “शायद अब अल्लाह का फ़ज़ल होगया है....... इतने अर्से में कोई कनोलशन नहीं आई....... ख़ुदा करे रात इसी तरह कट जाये।”

मुमताज़ की बीवी भी ख़ुश थी। “अल्लाह ताला ने चाहा तो कल मेरा ख़ालिद दौड़ता फिरेगा।”

रात को चूँकि मुक़र्ररा औक़ात पर दवा देनी थी, इस लिए मुमताज़ चारपाई पर न लेटा कि शायद सौ जाये। ख़ालिद के पँगोड़े के पास आराम कुर्सी रख कर वो बैठ गया और सारी रात जागता रहा, क्योंकि ख़ालिद बेचैन था। काँप काँप कर बार बार जागता था। हरारत भी तेज़ थी।

सुबह सात बजे के क़रीब मुमताज़ ने थर्मामीटर लगा के देखा तो एक सौ चार डिग्री बुख़ार था। डाक्टर बुलाया। उस ने कहा “तरद्दुद की कोई बात नहीं, ब्रोंकाइटिस है मैं नुस्ख़ा लिख देता हूँ। तीन चार रोज़ में आराम आजाएगा।”

डाक्टर नुस्ख़ा लिख कर चला गया। मुमताज़ दवा बनवा लाया। ख़ालिद को एक ख़ुराक पिलाई मगर उस को तसकीन न हुई। दस बजे के क़रीब वो एक बड़ा डाक्टर लाया। उस ने अच्छी तरह ख़ालिद को देखा और तसल्ली दी, “घबराने की कोई बात नहीं....... सब ठीक हो जाएगा।”

सब ठीक न हुआ। बड़े डाक्टर की दवा ने कोई असर न किया। बुख़ार तेज़ होता गया।

मुमताज़ के नौकर ने कहा। “साहब, बीमारी वग़ैरा कोई नहीं....... ख़ालिद मियां को नज़रलग गई है मैं एक तावीज़ लिखवा कर लाया हूँ। अल्लाह के हुक्म से यूं चुटकियों में असर करेगा।”

सात कुंओं का पानी इकठ्ठा किया गया। उस में ये तावीज़ घोल कर ख़ालिद को पिलाया गया। कोई असर न हुआ। हमसाई आई। वो एक यूनानी दवा तजवीज़ कर गई। मुमताज़ ये दवा ले आया मगर उस ने ख़ालिद को न दी। शाम को मुमताज़ का एक रिश्ते दार आया। साथ उस के एक डाक्टर था। उस ने ख़ालिद को देखा और कहा। “मलेरीया है....... इतना बुख़ार मलेरीया ही में होता है। आप इस में बर्फ़ का पानी डालिए। मैं कौनैन का इंजैक्शन देता हूँ।”

बर्फ़ का पानी डाला गया। बुख़ार एक दम कम होगया। दर्ज-ए-हरारत अठानवे डिग्री तक आगया। मुमताज़ और उस की बीवी की जान में जान आई। लेकिन थोड़े ही अर्से में बुख़ार बहुत ही तेज़ होगया। मुमताज़ ने थरमा मीटर लगा कर देखा। दर्ज-ए-हरारत एक सौ छ तक पहुंच गया था।

हमसाई आई। उस ने ख़ालिद को मायूस नज़रों से देखा और मुमताज़ की बीवी से कहा “बच्चे की गर्दन का मुनका टूट गया है।”

मुमताज़ और उस की बीवी के दिल बैठ गए। मुमताज़ ने नीचे कारख़ाने से हस्पताल फ़ोन किया। हस्पताल वालों ने कहा मरीज़ ले आओ। मुमताज़ ने फ़ौरन टांगा मंगवाया। ख़ालिद को गोद में लिया। बीवी को साथ बिठाया और हस्पताल का रुख़ किया। सारा दिन वो पानी पीता रहा था। मगर प्यास थी कि बुझती ही नहीं थी। हस्पताल जाते हुए रास्ते में उस का हलक़ बेहद ख़ुश्क होगया। उस ने सोचा उतर कर किसी दुकान से एक गिलास पानी पीले, लेकिन ख़ुदा मालूम कहाँ से ये वह्म एक दम उस के दिमाग़ में आन टपका, देखो अगर तुम ने पानी पिया तो तुम्हारा ख़ालिद मर जाएगा।

मुमताज़ का हलक़ सूख के लकड़ी होगया मगर उस ने पानी न पिया। हस्पताल के क़रीब टांगा पहुंचा तो उस ने सिगरेट सुलगाया। वही कश लिए थे तो उस ने एक दम सिगरेट फेंक दिया। उस के दिमाग़ में ये वहम गूंजा था “मुमताज़ सिगरेट न पियो तुम्हारा बच्चा मर जाएगा।”

मुमताज़ ने टांगा ठहराया। इस ने सोचा। “ये क्या हमाक़त है....... ये वहम सब फ़ुज़ूल है। सिगरेट पीने से बच्चे पर क्या आफ़त आसकती है।”

टांगे से उतर कर उस ने सड़क पर से सिगरेट उठाया। वापिस टांगे में बैठ कर जब उस ने कश लेना चाहा तो किसी नामालूम ताक़त ने उस को रोका। “नहीं मुमताज़, ऐसा न करो। ख़ालिद मर जाएगा।”

मुमताज़ ने सिगरेट ज़ोर से फेंक दिया.......टांगे वाले ने घूर के उस को देखा। मुमताज़ ने महसूस किया कि जैसे उस को उसकी दिमाग़ी कैफ़ीयत का इल्म है और वो उस का मज़ाक़ अड़ा रहा है। अपनी ख़िफ़्फ़त दूर करने की ख़ातिर उस ने टांगे वाले से कहा। “ख़राब होगया था सिगरेट” ये कह इस ने जेब से एक नया सिगरेट निकाला। सुलगाना चाहा मगर डर गया। इस के दिल-ओ-दिमाग़ में हलचल सी मच गई। इदराक कहता था कि ये औहाम सब फ़ुज़ूल हैं मगर कोई ऐसी आवाज़ थी। कोई ऐसी ताक़त थी जो उस के मंतिक़ उस के इस्तिदलाल, उस के इदराक पर ग़ालिब आजाती थी।

टांगा हस्पताल के फाटक में दाख़िल हुआ तो उस ने सिगरेट उंगलीयों में मसल कर फेंक दिया। उस को अपने ऊपर बहुत तरस आया कि औहाम का ग़ुलाम बन गया है।

हस्पताल वालों ने फ़ौरन ही ख़ालिद को दाख़िल कर लिया। डाक्टर ने देखा और कहा। “बरोनगो निमोनिया है। हालत मख़दूश है।”

ख़ालिद बेहोश था। माँ उस के सिरहाने बैठी वीरान निगाहों से उसको देख रही थी। कमरे के साथ गुसलखाना था। मुमताज़ को सख़्त प्यास लग रही थी। नल खोल कर ओक से पानी पीने लगा तो फिर वही वह्म उस के दिमाग़ में गूंजा “मुमताज़, ये क्या कर रहे हो तुम। मत पानी पियो... तुम्हारा ख़ालिद मर जाएगा।”

मुमताज़ ने दिल में इस वह्म को गाली दी और इंतिक़ामन इतना पानी पिया कि उस का पेट अफर गया। पानी पी कर ग़ुसलख़ाने से बाहर आया तो उस का ख़ालिद उसी तरह मुर्झाया हुआ बेहोश हस्पताल के आहनी पलंग पर पड़ा था। वो चाहता था कि कहीं भाग जाये....... उस के होश-ओ-हवास ग़ायब हो जाएं....... ख़ालिद अच्छा हो जाये और वो इस के बदले निमोनिया में गिरफ़्तार हो जाये।

मुमताज़ ने महसूस किया कि ख़ालिद अब पहले से ज़्यादा ज़र्द है। उस ने सोचा, ये सब उस के पानी पी लेने का बाइस है.............. अगर वो पानी न पीता तो ज़रूर ख़ालिद की हालत बेहतर हो जाती। उस को बहुत दुख हुआ। उस ने ख़ुद को बहुत लानत मलामत की मगर फिर उस को ख़्याल आया कि जिस ने ये बात सोची थी कि वो मुमताज़ नहीं कोई और था....... और कौन था?....... क्यों उस के दिमाग़ में ऐसे वह्म पैदा होते थे। प्यास लगती थी, पानी पी लिया। इस से ख़ालिद पर क्या असर पड़ सकता है....... ख़ालिद ज़रूर अच्छा हो जाएगा....... परसों उस की सालगिरा है। इंशाअल्लाह ख़ूब ठाट से मनाई जाएगी।

लेकिन फ़ौरन ही उस का दिल बैठ जाता। कोई आवाज़ उस से कहती ख़ालिद एक बरस का होने ही नहीं पाएगा....... मुमताज़ का जी चाहता कि वो इस आवाज़ की ज़बान पकड़ ले और उसे गुद्दी से निकाल दे मगर ये आवाज़ तो ख़ुद इस के दिमाग़ में पैदा होती थी ख़ुदा मालूम कैसे होती थी... क्यों होती थी।

मुमताज़ इस क़दर तंग आ गया कि उस ने दिल ही दिल में अपने औहाम से गिड़गिड़ा कर कहा। “ख़ुदा के लिए मुझ पर रहम करो....... क्यों तुम मुझ ग़रीब के पीछे पड़ गए हो!”

शाम हो चुकी थी। कई डाक्टर ख़ालिद को देख चुके थे। दवा दी जा रही थी। कई इंजैक्शन भी लग चुके थे मगर ख़ालिद अभी तक बेहोश था। दफ़अतन मुमताज़ के दिमाग़ में ये आवाज़ गूंजी “तुम यहां से चले जाओ....... फ़ौरन चले जाओ, वर्ना ख़ालिद मर जाएगा।”

मुमताज़ कमरे से बाहर चला गया। हस्पताल से बाहर चला गया। उस के दिमाग़ में आवाज़ें गूंजती रहीं। उस ने अपने आप को इन आवाज़ों के हवाले कर दिया। अपनी हर जुंबिश, अपनी हर हरकत उन के हुक्म के सपुर्द करदी... ये उसे एक होटल में ले गईं। उन्हों ने उस को शराब पीने के लिए कहा। शराब आई तो उसे फेंक देने का हुक्म दिया। मुमताज़ ने हाथ से गिलास फेंक दिया तो और मंगवाने के लिए कहा। दूसरा गिलास आया तो उसे भी फेंक देने के लिए कहा।

शराब और टूटे हुए गिलासों के बल अदा करके मुमताज़ बाहर निकला। उस को यूं महसूस होता था कि चारों तरफ़ ख़ामोशी ही ख़ामोशी है... सिर्फ़ उस का दिमाग़ है जहां शोर बरपा है। चलता चलता वो हस्पताल पहुंच गया। ख़ालिद के कमरे का रुख़ किया तो उसे हुक्म हुआ? “मत जाओ इधर....... तुम्हारा ख़ालिद मर जाएगा।”

वो लौट आया....... घास का मैदान था। वहां एक बंच पड़ी थी। उस पर लेट गया....... रात के दस बज चुके थे। मैदान में अंधेरा था। चारों तरफ़ ख़ामोशी थी। कभी कभी किसी मोटर के हॉर्न की आवाज़ इस ख़ामोशी में ख़राश पैदा करती हुई गुज़र जाती। सामने ऊंची दीवार में हस्पताल का रोशन क्लाक था....... मुमताज़, ख़ालिद के मुतअल्लिक़ सोच रहा। “क्या वो बच जाएगा....... ये बच्चे क्यों पैदा होते हैं जिन्हें मरना होता है....... वो ज़िंदगी क्यों पैदा होती है जिसे इतनी जल्दी मौत के मुँह में जाना होता है....... ख़ालिद ज़रूर.......”

एक दम इस के दिमाग़ में एक वहम फूटा। बंच पर से उतर कर वह सजदे में गिर गया। हुक्म था इसी तरह पड़े रहो जब तक ख़ालिद ठीक न हो जाये। मुमताज़ सजदे में पड़ा रहा। वो दुआ माँगना चाहता था मगर हुक्म था कि मत मांगो। मुमताज़ की आँखों में आँसू आगए। वो ख़ालिद के लिए नहीं, अपने लिए दुआ मांगने लगा। “ख़ुदाया मुझे इस अज़ीय्यत से नजात दे....... तुझे अगर ख़ालिद को मारना है तो मार दे, ये मेरा क्या हश्र कर रहा है तू”

दफ़्फ़ातन उसे आवाज़ें सुनाई दीं। उस से कुछ दूर दूर आदमी कुर्सीयों पर बैठे खाना खा रहे थे और आपस में बातें कररहे थे।

“बच्चा बड़ा ख़ूबसूरत है।”

“माँ का हाल मुझ से तो देखा नहीं गया।”

“बेचारी हर डाक्टर के पांव पड़ रही थी।”

“हम ने अपनी तरफ़ से तो हर मुम्किन कोशिश की।”

“बचना मुहाल है।”

“मैंने यही कहा था माँ से कि दुआ करो बहन!”

एक डाक्टर ने मुमताज़ की तरफ़ देखा जो सजदे में पड़ा था। उस को ज़ोर से आवाज़ दी। “ए, क्या कररहा है तू....... इधर आ”

मुमताज़ उठ कर दोनों डाक्टरों के पास गया। एक ने उस से पूछा। “कौन हो तुम?”

मुमताज़ ने ख़ुश्क होंटों पर ज़बान फेर कर जवाब दिया। “मैं एक मरीज़.......”

डाक्टर ने सख़्ती से कहा। “मरीज़ हो तो अंदर जाओ....... यहां मैदान में डन

क्यों पेलते हो?” मुमताज़ ने कहा। “जी , मेरा बच्चा है....... उधर उस वार्ड में।”

“वो तुम्हारा बच्चा है जो....... ”

“जी हाँ... शायद आप उसी की बातें कर रहे थे... वो मेरा बच्चा है... ख़ालिद”

“आप उस के बाप हैं?”

मुमताज़ ने अपना गम-ओ-अंदोह से भरा हुआ सर हिलाया। “जी हाँ मैं उस का बाप हूँ।”

डाक्टर ने कहा। “आप यहां बैठे हैं। जाईए आप की वाइफ़ बहुत परेशान हैं।”

“जी अच्छा।” कह कर मुमताज़ वार्ड की तरफ़ रवाना हुआ। सीढ़ीयां तय करके जब ऊपर पहुंचा तो कमरे के बाहर उस का नौकर रो रहा था। मुमताज़ को देख कर और ज़्यादा रोने लगा। “साहब ख़ालिद मियां फ़ौत होगए।”

मुमताज़ अंदर कमरे में गया। उस की बीवी बेहोश पड़ी थी। एक डाक्टर और नर्स उस को होश में लाने की कोशिश कर रहे थे। मुमताज़ पलंग के पास खड़ा होगया। ख़ालिद आँखें बंद किए पड़ा था। उस के चेहरे पर मौत का सुकून था। मुमताज़ ने इस के रेशमें बालों पर हाथ फेरा और दिल चीर देने वाले लहजे में इस से पूछा। “ख़ालिद मियां....... गगो खाएंगे आप?”

ख़ालिद का सर नफ़ी में न हिला। मुमताज़ ने फिर दरख़ास्त भरे लहजे में कहा। “ख़ालिद मियां....... मेरे वह्म ले जाऐंगे अपने साथ?”

मुमताज़ को ऐसा महसूस हुआ कि जैसे ख़ालिद ने सर हिला कर हाँ की है।

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8 अप्रैल 2022
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हाफ़िज़ हुसैन दीन जो दोनों आँखों से अंधा था, ज़फ़र शाह के घर में आया। पटियाले का एक दोस्त रमज़ान अली था, जिस ने ज़फ़र शाह से उस का तआरुफ़ कराया। वो हाफ़िज़ साहिब से मिल कर बहुत मुतअस्सिर हुआ। गो उन की

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हारता चला गया

8 अप्रैल 2022
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लोगों को सिर्फ़ जीतने में मज़ा आता है। लेकिन उसे जीत कर हार देने में लुत्फ़ आता है। जीतने में उसे कभी इतनी दिक़्क़त महसूस नहीं हुई। लेकिन हारने में अलबत्ता उसे कई दफ़ा काफ़ी तग-ओ-दो करना पड़ी। शुरू शुर

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अंजाम-ए-नजीर

8 अप्रैल 2022
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बटवारे के बाद जब फ़िर्का-वाराना फ़सादात शिद्दत इख़्तियार कर गए और जगह जगह हिंदूओं और मुस्लमानों के ख़ून से ज़मीन रंगी जाने लगी तो नसीम अख़तर जो दिल्ली की नौ-ख़ेज़ तवाइफ़ थी अपनी बूढ़ी माँ से कहा “चलो माँ यहां

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अब्जी डूडू

8 अप्रैल 2022
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“मुझे मत सताईए....... ख़ुदा की क़सम, मैं आप से कहती हूँ, मुझे मत सताईए” “तुम बहुत ज़ुल्म कर रही हो आजकल!” “जी हाँ बहुत ज़ुल्म कर रही हूँ” “ये तो कोई जवाब नहीं” “मेरी तरफ़ से साफ़ जवाब है और ये मैं आप

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इज़्ज़त के लिए

8 अप्रैल 2022
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चवन्नी लाल ने अपनी मोटर साईकल स्टाल के साथ रोकी और गद्दी पर बैठे बैठे सुबह के ताज़ा अख़्बारों की सुर्ख़ियों पर नज़र डाली। साईकल रुकते ही स्टाल पर बैठे हुए दोनों मुलाज़िमों ने उसे नमस्ते कही थी। जिस का जवा

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इफ़्शा-ए-राज़

8 अप्रैल 2022
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“मेरी लगदी किसे न वेखी वे ते टुटदी नूँ जग जाणदा” “ये आप ने गाना क्यों शुरू कर दिया है” “हर आदमी गाता और रोता है कौनसा गुनाह किया है?” “कल आप ग़ुसल-ख़ाने में भी यही गीत गा रहे थे” “ग़ुसल-ख़ाने में तो ह

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क़ब्ज़

8 अप्रैल 2022
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नए लिखे हुए मुकालमे का काग़ज़ मेरे हाथ में था। ऐक्टर और डायरेक्टर कैमरे के पास सामने खड़े थे। शूटिंग में अभी कुछ देर थी। इस लिए कि स्टूडीयो के साथ वाला साबुन का कारख़ाना चल रहा था। हर रोज़ इस कारख़ाने के

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कुत्ते की दुआ

8 अप्रैल 2022
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“आप यक़ीन नहीं करेंगे। मगर ये वाक़िया जो मैं आप को सुनाने वाला हूँ, बिलकुल सही है।” ये कह कर शेख़ साहब ने बीड़ी सुलगाई। दो तीन ज़ोर के कश लेकर उसे फेंक दिया और अपनी दास्तान सुनाना शुरू की। शेख़ साहब के म

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कोट पतलून

8 अप्रैल 2022
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नाज़िम जब बांद्रा में मुंतक़िल हुआ तो उसे ख़ुशक़िसमती से किराए वाली बिल्डिंग में तीन कमरे मिल गए। इस बिल्डिंग में जो बंबई की ज़बान में चाली कहलाती है, निचले दर्जे के लोग रहते थे। छोटी छोटी (बंबई की ज़बान

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ख़ालिद मियां

8 अप्रैल 2022
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मुमताज़ ने सुबह सवेरे उठ कर हसब-ए-मामूल तीनों कमरे में झाड़ू दी। कोने खद्दरों से सिगरटों के टुकड़े, माचिस की जली हुई तीलियां और इसी तरह की और चीज़ें ढूंढ ढूंढ कर निकालें। जब तीनों कमरे अच्छी तरह साफ़ होगए

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ख़ुदकुशी

8 अप्रैल 2022
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ज़ाहिद सिर्फ़ नाम ही का ज़ाहिद नहीं था, उस के ज़ुहद-ओ-तक़वा के सब क़ाइल थे, उस ने बीस पच्चीस बरस की उम्र में शादी की, उस ज़माने में उस के पास दस हज़ार के क़रीब रुपय थे, शादी पर पाँच हज़ार सर्फ़ हो गए, उतनी ह

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गिलगित ख़ान

8 अप्रैल 2022
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शहबाज़ ख़ान ने एक दिन अपने मुलाज़िम जहांगीर को जो उस के होटल में अंदर बाहर का काम करता था उस की सुस्त-रवी से तंग आकर बर-तरफ़ कर दिया। असल में वो सुस्त-रो नहीं था। इस क़दर तेज़ था कि उस की हर हरकत शहबाज़ ख़ान

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घोगा

8 अप्रैल 2022
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मैं जब हस्पताल में दाख़िल हुआ तो छट्ठे रोज़ मेरी हालत बहुत ग़ैर होगई। कई रोज़ तक बे-होश रहा। डाक्टर जवाब दे चुके थे लेकिन ख़ुदा ने अपना करम किया और मेरी तबीयत सँभलने लगी। इस दौरान की मुझे अक्सर बातें या

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चुग़द

8 अप्रैल 2022
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लड़कों और लड़कियों के मआशिक़ों का ज़िक्र हो रहा था। प्रकाश जो बहुत देर से ख़ामोश बैठा अंदर ही अंदर बहुत शिद्दत से सोच रहा था, एक दम फट पड़ा। सब बकवास है, सौ में से निन्नानवे मआशिक़े निहायत ही भोंडे और लचर

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जानकी

8 अप्रैल 2022
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पूना में रेसों का मौसम शुरू होने वाला था कि पिशावर से अज़ीज़ ने लिखा कि मैं अपनी एक जान पहचान की औरत जानकी को तुम्हारे पास भेज रहा हूँ, उस को या तो पूना में या बंबई में किसी फ़िल्म कंपनी में मुलाज़मत करा

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तरक़्क़ी पसंद

8 अप्रैल 2022
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जोगिंदर सिंह के अफ़साने जब मक़बूल होना शुरू हुए तो उसके दिल में ख़्वाहिश पैदा हुई कि वो मशहूर अदीबों और शाइरों को अपने घर बुलाए और उन की दावत करे। उस का ख़याल था कि यूं उस की शौहरत और मक़बूलियत और भी ज़्

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दीवाना शायर

8 अप्रैल 2022
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[अगर मुक़द्दस हक़ दुनिया की मुतजस्सिस निगाहों से ओझल कर दिया जाये। तो रहमत हो उस दीवाने पर जो इंसानी दिमाग़ पर सुनहरा ख़्वाब तारी कर दे।] मैं आहों का ब्योपारी हूँ, लहू की शायरी मेरा काम है, चमन की मा

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निक्की

8 अप्रैल 2022
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तलाक़ लेने के बाद वो बिलकुल नचनत होगई थी। अब वो हर रोज़ की वानिता कुल कुल और मार कटाई नहीं थे। निक्की बड़े आराम-ओ-इत्मिनान से अपना गुज़र औक़ात कर रही थी। ये तलाक़ पूरे दस बरस के बाद हुई थी। निक्की का श

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परी

8 अप्रैल 2022
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कश्मीरी गेट दिल्ली के एक फ़्लैट में अनवर की मुलाक़ात परवेज़ से हुई। वो क़तअन मुतअस्सिर न हुआ। परवेज़ निहायत ही बेजान चीज़ थी। अनवर ने जब उस की तरफ़ देखा और उस को आदाब अर्ज़ कहा तो उस ने सोचा “ये क्या है औरत

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पसीना

8 अप्रैल 2022
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“मेरे अल्लाह!............... आप तो पसीने में शराबोर हो रहे हैं।” “नहीं। कोई इतना ज़्यादा तो पसीना नहीं आया।” “ठहरिए में तौलिया ले कर आऊं।” “तौलिए तो सारे धोबी के हाँ गए हुए हैं।” “तो मैं अपने दोपट्

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पढ़े कलिमा

8 अप्रैल 2022
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ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह...... आप मुस्लमान हैं यक़ीन करें मैं जो कुछ कहूंगा, सच्च कहूंगा। पाकिस्तान का इस मुआमले से कोई तअल्लुक़ नहीं। क़ाइद-ए-आज़म जिन्नाह के लिए मैं जान देने के लिए तैय

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पीरन

8 अप्रैल 2022
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ये उस ज़माने की बात है जब मैं बेहद मुफ़लिस था। बंबई में नौ रुपये माहवार की एक खोली में रहता था जिस में पानी का नल था न बिजली। एक निहायत ही ग़लीज़ कोठड़ी थी जिस की छत पर से हज़ारहा खटमल मेरे ऊपर गिरा करते थ

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पढ़े कलिमा

8 अप्रैल 2022
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ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह...... आप मुस्लमान हैं यक़ीन करें मैं जो कुछ कहूंगा, सच्च कहूंगा। पाकिस्तान का इस मुआमले से कोई तअल्लुक़ नहीं। क़ाइद-ए-आज़म जिन्नाह के लिए मैं जान देने के लिए तैय

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फ़रिश्ता

8 अप्रैल 2022
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सुर्ख़ खुरदरे कम्बल में अताउल्लाह ने बड़ी मुश्किल से करवट बदली और अपनी मुंदी हुई आँखें आहिस्ता आहिस्ता खोलीं। कुहरे की दबीज़ चादर में कई चीज़ें लिपटी हुई थीं जिन के सही ख़द्द-ओ-ख़ाल नज़र नहीं आते थे। एक लं

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फाहा

8 अप्रैल 2022
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गोपाल की रान पर जब ये बड़ा फोड़ा निकला तो इस के औसान ख़ता हो गए। गरमियों का मौसम था। आम ख़ूब हुए थे। बाज़ारों में, गलियों में, दुकानदारों के पास, फेरी वालों के पास, जिधर देखो, आम ही आम नज़र आते। लाल, पीले

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फुंदने

8 अप्रैल 2022
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कोठी से मुल्हक़ा वसीअ-ओ-अरीज़ बाग़ में झाड़ियों के पीछे एक बिल्ली ने बच्चे दिए थे, जो बिल्ला खा गया था। फिर एक कुतिया ने बच्चे दिए थे जो बड़े बड़े हो गए थे और दिन रात कोठी के अंदर बाहर भौंकते और गंदगी बिखेर

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बलवंत सिंह मजीठिया

8 अप्रैल 2022
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शाह साहब से जब मेरी मुलाक़ात हुई तो हम फ़ौरन बे-तकल्लुफ़ हो गए। मुझे सिर्फ़ इतना मालूम था कि वो सय्यद हैं और मेरे दूर-दराज़ के रिश्तेदार भी हैं। वो मेरे दूर या क़रीब के रिश्तेदार कैसे हो सकते थे, इस के मु

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बाई बाई

8 अप्रैल 2022
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नाम उस का फ़ातिमा था पर सब उसे फातो कहते थे बानिहाल के दुर्रे के उस तरफ़ उस के बाप की पन-चक्की थी जो बड़ा सादा लौह मुअम्मर आदमी था। दिन भर वो इस पन चक्की के पास बैठी रहती। पहाड़ के दामन में छोटी सी जगह थ

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बादशाहत का ख़ात्मा

8 अप्रैल 2022
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टेलीफ़ोन की घंटी बिजी। मनमोहन पास ही बैठा था। उस ने रीसीवर उठाया और कहा “हेलो....... फ़ौर फ़ौर फ़ौर फाईव सेवन” दूसरी तरफ़ से पतली सी निस्वानी आवाज़ आई। “सोरी....... रोंग नंबर” मनमोहन ने रीसीवर रख दिया और

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बिलाउज़

8 अप्रैल 2022
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कुछ दिनों से मोमिन बहुत बेक़रार था। उस को ऐसा महसूस होता था कि इस का वजूद कच्चा फोड़ा सा बन गया था। काम करते वक़्त, बातें करते हुए हत्ता कि सोचने पर भी उसे एक अजीब क़िस्म का दर्द महसूस होता था। ऐसा दर्द

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सरकण्डों के पीछे

8 अप्रैल 2022
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कौन सा शहर था, इस के मुतअल्लिक़ जहां तक में समझता हूँ, आप को मालूम करने और मुझे बताने की कोई ज़रूरत नहीं ।बस इतना ही कह देना काफ़ी है कि वो जगह जो इस कहानी से मुतअल्लिक़ है, पेशावर के मुज़ाफ़ात में थी। सरहद

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मिसिज़ गुल

8 अप्रैल 2022
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मैंने जब उस औरत को पहली मर्तबा देखा तो मुझे ऐसा महसूस हुआ कि मैंने लेमूँ निचोड़ ने वाला खटका देखा है। बहुत दुबली पतली, लेकिन बला की तेज़। उस का सारा जिस्म सिवाए आँखों के इंतिहाई ग़ैर निस्वानी था। ये आँख

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मलबे का ढेर

8 अप्रैल 2022
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कामिनी के ब्याह को अभी एक साल भी न हुआ था कि उस का पति दिल के आरिज़े की वजह से मर गया और अपनी सारी जायदाद उस के लिए छोड़ गया। कामिनी को बहुत सदमा पहुंचा, इस लिए कि वो जवानी ही में बेवा हो गई थी। उस की

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महमूदा

8 अप्रैल 2022
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मुस्तक़ीम ने महमूदा को पहली मर्तबा अपनी शादी पर देखा। आरसी मसहफ़ की रस्म अदा हो रही थी कि अचानक उस को दो बड़ी बड़ी.......ग़ैर-मामूली तौर पर बड़ी आँखें दिखाई दीं.......ये महमूदा की आँखें थीं जो अभी तक कुंवार

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मिसेज़ डी सिल्वा

8 अप्रैल 2022
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बिलकुल आमने सामने फ़्लैट थे। हमारे फ़्लैट का नंबर तेरह था। उस के फ़्लैट का चौदह। कभी कोई सामने का दरवाज़ा खटखटाता तो मुझे यही मालूम होता कि हमारे दरवाज़े पर दस्तक होरही है। इसी ग़लतफ़हमी में जब मैंने एक

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मेरा हमसफ़र

9 अप्रैल 2022
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प्लेटफार्म पर शहाब, सईद और अब्बास ने एक शोर मचा रखा था। ये सब दोस्त मुझे स्टेशन पर छोड़ने के लिए आए थे, गाड़ी प्लेटफार्म को छोड़ कर आहिस्ता आहिस्ता चल रही थी कि शहाब ने बढ़ कर पाएदान पर चढ़ते हुए मुझ से

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मेरा और उसका इंतिक़ाम

9 अप्रैल 2022
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घर में मेरे सिवा कोई मौजूद नहीं था। पिता जी कचहरी में थे और शाम से पहले कभी घर आने के आदी न थे। माता जी लाहौर में थीं और मेरी बहन बिमला अपनी किसी सहेली के हाँ गई थी! मैं तन्हा अपने कमरे में बैठा किताब

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वह लड़की

9 अप्रैल 2022
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सवा-चार बज चुके थे लेकिन धूप में वही तमाज़त थी जो दोपहर को बारह बजे के क़रीब थी। उस ने बालकनी में आ कर बाहर देखा तो उसे एक लड़की नज़र आई जो बज़ाहिर धूप से बचने के लिए एक साया-दार दरख़्त की छांव में आलती पाल

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वो ख़त जो पोस्ट न किये गए

9 अप्रैल 2022
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हव्वा की एक बेटी के चंद ख़ुतूत जो उस ने फ़ुर्सत के वक़्त मुहल्ले के चंद लोगों को लिखे। मगर इन वजूह की बिना पर पोस्ट न किए गए जो इन ख़ुतूत में नुमायां नज़र आती हैं। (नाम और मुक़ाम फ़र्ज़ी हैं) पहला ख़त म

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शादी

9 अप्रैल 2022
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जमील को अपना शैफर लाइफ-टाइम क़लम मरम्मत के लिए देना था। उस ने टेलीफ़ोन डायरेक्ट्री में शैफर कंपनी का नंबर तलाश किया। फ़ोन करने से मालूम हुआ कि उन के एजेंट मैसर्ज़ डी, जे, समतोइर हैं जिन का दफ़्तर ग्रीन

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सड़क के किनारे

9 अप्रैल 2022
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“यही दिन थे......... आसमान उस की आँखों की तरह ऐसा ही नीला था जैसा कि आज है। धुला हुआ, निथरा हुआ......... और धूप भी ऐसी ही कनकनी थी......... सुहाने ख़्वाबों की तरह। मिट्टी की बॉस भी ऐसी ही थी जैसी कि इ

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शारदा

9 अप्रैल 2022
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नज़ीर ब्लैक मार्कीट से विस्की की बोतल लाने गया। बड़क डाकख़ाने से कुछ आगे बंदरगाह के फाटक से कुछ इधर सिगरेट वाले की दुकान से उस को स्काच मुनासिब दामों पर मिल जाती थी। जब उस ने पैंतीस रुपये अदा करके काग़

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सिराज

9 अप्रैल 2022
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नागपाड़ा पुलिस चौकी के उस तरफ़ जो छोटा सा बाग़ है। उस के बिलकुल सामने ईरानी के होटल के बाहर, बिजली के खंबे के साथ लग कर ढूंढ़ो खड़ा था। दिन ढले, मुक़र्ररा वक़्त पर वो यहां आ जाता और सुबह चार बजे तक अपने धंद

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हज्ज-ए-अकबर

9 अप्रैल 2022
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इम्तियाज़ और सग़ीर की शादी हुई तो शहर भर में धूम मच गई। आतिश बाज़ियों का रिवाज बाक़ी नहीं रहा था मगर दूल्हे के बाप ने इस पुरानी अय्याशी पर बे-दरेग़ रुपया सर्फ़ किया। जब सग़ीर ज़ेवरों से लदे फंदे सफ़ैद बुर्र

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सजदा

9 अप्रैल 2022
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गिलास पर बोतल झुकी तो एक दम हमीद की तबीयत पर बोझ सा पड़ गया। मलिक जो उसके सामने तीसरा पैग पी रहा था फ़ौरन ताड़ गया कि हमीद के अंदर रुहानी कश्मकश पैदा होगई है। वो हमीद को सात बरस से जानता था, और इन सात बर

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लाइसेंस

9 अप्रैल 2022
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अब्बू कोचवान बड़ा छैल छबीला था। उस का ताँगा घोड़ा भी शहर में नंबर वन था। कभी मामूली सवारी नहीं बिठाता था। उस के लगे बंधे गाहक थे जिन से उस को रोज़ाना दस पंद्रह रुपय वसूल हो जाते थे जो अब्बू के लिए काफ़ी थ

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हाफ़िज़ हुसैन दीन

9 अप्रैल 2022
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हाफ़िज़ हुसैन दीन जो दोनों आँखों से अंधा था, ज़फ़र शाह के घर में आया। पटियाले का एक दोस्त रमज़ान अली था, जिस ने ज़फ़र शाह से उस का तआरुफ़ कराया। वो हाफ़िज़ साहिब से मिल कर बहुत मुतअस्सिर हुआ। गो उन की

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संतर पंच

9 अप्रैल 2022
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मैं लाहौर के एक स्टूडियो में मुलाज़िम हुआ जिस का मालिक मेरा बंबई का दोस्त था उस ने मेरा इस्तिक़बाल क्या मैं उस की गाड़ी में स्टूडियो पहुंचा था बग़लगीर होने के बाद उस ने अपनी शराफ़त भरी मोंछों को जो ग़ालिबन

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शैदा

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शैदे के मुतअल्लिक़ अमृतसर में ये मशहूर था कि वो चट्टान से भी टक्कर ले सकता है उस में बला की फुर्ती और ताक़त थी गो तन-ओ-तोश के लिहाज़ से वो एक कमज़ोर इंसान दिखाई देता था लेकिन अमृतसर के सारे गुंडे उस से ख़ौ

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राम खेलावन

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खटमल मारने के बाद में ट्रंक में पुराने काग़ज़ात देख रहा था कि सईद भाई जान की तस्वीर मिल गई। मेज़ पर एक ख़ाली फ़्रेम पड़ा था....... मैंने इस तस्वीर से उस को पुर कर दिया और कुर्सी पर बैठ कर धोबी का इंतिज़ार

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रहमत-ए-खुदा-वंदी के फूल

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ज़मींदार, अख़बार में जब डाक्टर राथर पर रहमत-ए-ख़ुदा-वंदी के फूल बरसते थे तो यार दोस्तों ने ग़ुलाम रसूल का नाम डाक्टर राथर रख दिया। मालूम नहीं क्यूँ, इस लिए कि ग़ुलाम रसूल को डाक्टर राथर से कोई निसबत नह

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मिस फ़र्या

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शादी के एक महीने बाद सुहेल परेशान होगया। उस की रातों की नींद और दिन का चैन हराम हो गया। उस का ख़याल था कि बच्चा कम अज़ कम तीन साल के बाद पैदा होगा मगर अब एक दम ये मालूम करके उस के पांव तले की ज़मीन निक

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मिस अडना जैक्सन

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कॉलिज की पुरानी प्रिंसिपल के तबादले का एलान हुआ, तालिबात ने बड़ा शोर मचाया। वो नहीं चाहती थीं कि उन की महबूब प्रिंसिपल उन के कॉलेज से कहीं और चली जाये। बड़ा एहतिजाज हुआ। यहाँ तक कि चंद लड़कियों ने भूक हड़

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बुड्ढ़ा खूसट

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ये जंग-ए-अज़ीम के ख़ातमे के बाद की बात है जब मेरा अज़ीज़ तरीन दोस्त लैफ़्टीनैंट कर्नल मोहम्मद सलीम शेख़ (अब) ईरान इराक़ और दूसरे महाज़ों से होता हुआ बमबई पहुंचा। उस को अच्छी तरह मालूम था, मेरा फ़्लैट कहाँ ह

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शह नशीं पर

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वो सफ़ैद सलमा लगी साड़ी में शह-नशीन पर आई और ऐसा मालूम हुआ कि किसी ने नक़रई तारों वाला अनार छोड़ दिया है। साड़ी के थिरकते हूए रेशमी कपड़े पर जब जगह जगह सलमा का काम टिमटिमाने लगता तो मुझे जिस्म पर वो तमाम

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चुग़द

9 अप्रैल 2022
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लड़कों और लड़कियों के मआशिक़ों का ज़िक्र हो रहा था। प्रकाश जो बहुत देर से ख़ामोश बैठा अंदर ही अंदर बहुत शिद्दत से सोच रहा था, एक दम फट पड़ा। सब बकवास है, सौ में से निन्नानवे मआशिक़े निहायत ही भोंडे और लचर

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