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ख़ुदकुशी

8 अप्रैल 2022

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ज़ाहिद सिर्फ़ नाम ही का ज़ाहिद नहीं था, उस के ज़ुहद-ओ-तक़वा के सब क़ाइल थे, उस ने बीस पच्चीस बरस की उम्र में शादी की, उस ज़माने में उस के पास दस हज़ार के क़रीब रुपय थे, शादी पर पाँच हज़ार सर्फ़ हो गए, उतनी ही रक़म बाक़ी रह गई।

ज़ाहिद बहुत ख़ुश था उस की बीवी बड़ी ख़ुश ख़सलत और ख़ूबसूरत थी उस को इस से बे-पनाह मुहब्बत हो गई वो भी उस को दिल-ओ-जान से चाहती थी दोनों समझते थे कि जन्नत में आबाद हैं।

एक बरस के बाद उन के हाँ एक लड़की पैदा हुई जो माँ पर थी, यानी वैसी ही हसीन बड़ी बड़ी ग़िलाफ़ी आँखें, उन पर लंबी पलकें, महीन अब्रू, छोटा सा लब-ए-दहन उस लड़की का नाम सोचने में काफ़ी देर लग गई। ज़ाहिद और उस की बीवी को दूसरों के तजवीज़ किए हुए नाम पसंद नहीं आते थे, वो चाहती थी कि ख़ुद ज़ाहिद नाम बताए।

ज़ाहिद देर तक सोचता रहा लेकिन उस के दिमाग़ में ऐसा कोई मौज़ूं-ओ-मुनासिब नाम न आया जो वो अपनी बेटी के लिए मुंतख़ब करता।

उस ने अपनी बीवी से कहा “इतनी जल्दी क्या है नाम रख लिया जाएगा”

बीवी मुसिर थी कि नाम ज़रूर रख्खा जाये “मैं अपनी बेटी को इतनी देर बे-नाम नहीं रखना चाहती”

“वो कहता इस में क्या हर्ज है जब कोई अच्छा सा नाम ज़हन में आएगा तो एस गुल गोथनी के साथ टाँक देंगे”

“पर मैं इसे क्या कह कर पुकारूं? मुझे बड़ी उलझन होती है”

“फ़िलहाल बेटा कह देना काफ़ी है”

“ये काफ़ी नहीं है मेरी बिटिया का कोई नाम होना चाहिए”

“तुम ख़ुद ही कोई मुंतख़ब कर लो”

“तो थोड़े दिन इंतिज़ार करो मैं उर्दू की लुगत लाता हूँ उस को पहले सफ़े से आख़िरी सफ़े तक ग़ौर से देखूंगा यक़ीनन कोई अच्छा नाम मिल जाएगा”

“मैंने आज तक ये कभी नहीं सुना था कि लोग अपने बच्चों बच्चियों के नाम डिक्शनरियों से निकालते हैं”

“नहीं मेरी जान निकालते हैं मेरा एक दोस्त है उस के जब बच्ची पैदा हुई तो उस ने फ़ौरन उर्दू की लुगत निकाली और उस की वर्क़-गरदानी करने के बाद एक नाम चुन लिया”

“क्या नाम था”

“निकहत”

“इस के मानी क्या हैं”

“ख़ुशबू”

“बड़ा अच्छा नाम है निकहत यानी ख़ुशबू”

“तो यही नाम रख लो”

ज़ाहिद की बीवी ने अपनी बच्ची को जो सौ रही थी एक नज़र देखा और कहा “नहीं मैं अपनी बिटिया के लिए पुराना नाम नहीं चाहती कोई नया नाम तलाश कीजिए जाईए डिक्शनरी ले आईए”

“ज़ाहिद मुस्कुराया “लेकिन मेरे पास पैसे कहाँ हैं”

ज़ाहिद की बीवी भी मुस्कुराई “मेरा पर्स अलमारी में पड़ा है उस में जितने रुपय आप को चाहिऐं, निकाल लीजिए”

ज़ाहिद ने “बहुत बेहतर” कहा और अलमारी खोल कर उस में से अपनी बीवी का पर्स निकाला और दस रुपय का एक नोट लेकर बाज़ार रवाना हो गया कि लुगत ख़रीद ले।

वो कई कुतुब-फ़रोश दुकानों में गया कई लुगत देखे बाअज़ तो बहुत क़ीमती थे जिन की तीन तीन जिल्दें थीं। कुछ बड़े नाक़िस आख़िर उस ने एक लगत जिस की क़ीमत वाजिबी थी ख़रीद लिया और रास्ते में उस की वर्क़ गरदानी करता रहा ताकि नाम का मसला जल्द हल हो जाये।

जब वो अनारकली में से गुज़र रहा था तो उस को एक दोस्त मिल गया वो उसे अपनी बूटों की दुकान में ले गया वहां उसे क़रीब क़रीब एक घंटे तक बैठना पड़ा क्योंकि बहुत देर के बाद उस से मुलाक़ात हुई थी जब उस के दोस्त को दौरान-ए-गुफ़्तुगू में पता चला कि ज़ाहिद के हाँ लड़की हुई है तो वो बहुत ख़ुश हुआ। तिजोरी में से ग्यारह रुपय निकाले और ज़ाहिद से कहा : “ये इस बच्ची को दे देना कहना तुम्हारे चचा ने दिए हैं नाम क्या रख्खा है उस का?”

ज़ाहिद ने लुगत की तरफ़ देखा जिस की जिल्द लाल रंग की थी “अभी तक कोई अच्छा नाम सूझा नहीं”

उस के दोस्त ने जूते को कपड़े से साफ़ करते हुए कहा : “यार नाम रखने में दिक्कत ही क्या पेश आती है। समीना है, शाहीना है, नसरीन है, अलमास है”

ज़ाहिद ने जवाब दिया “ये सब बकवास है”

उस के दोस्त ने जूता डिब्बे में रखा “तो अब जो बकवास तुम करोगे वो भी हम सुन लेंगे” इस के बाद उठ कर उस ने ज़ाहिद को गले से लगाया। “ख़ुदा उस की उम्र-दराज़ करे नाम हो न हो इस से क्या फ़र्क़ पड़ता है”

ज़ाहिद जब दुकान से बाहर निकला तो उस ने सोचना शुरू किया कि वाक़ई नाम में क्या रख्खा है। ख़ैराती का ये मतलब तो नहीं कि वो बड़ी ख़ैरात करता है, ईदन क्या बला है और घसीटा क्या उसे लोग घसीटना शुरू कर दें और ये रुलदो शुबराती?

उस के जी में आई कि लुगत किसी गंदी मोरी में फेंक दे और घर जा कर अपनी बीवी से कहे “मेरी जान! नाम में कुछ नहीं पड़ा बस ये दुआ करो कि बच्ची की उम्र-दराज़ हो।”

वो मुख़्तलिफ़ ख़यालात में ग़र्क़ था लेकिन मालूम नहीं क्यों उस का दिल ग़ैर-मामूली तौर पर धड़क रहा था उस ने सोचा कि शायद ये उस की परागंदा ख़याली का बाइस है थोड़ी दूर चलने के बाद उस की तबीयत बहुत ज़्यादा मुज़्तरिब हो गई वो चाहता था कि उड़ कर घर पहुंचे और अपनी बच्ची की पेशानी चूमे।

बग़ल में लगत थी उस को उस ने कई बार देखने की कोशिश की मगर उस का दिल-ओ-दिमाग़ मुतवाज़िन नहीं था उस ने तेज़ तेज़ चलना शुरू कर दिया मगर थोड़ा फ़ासिला तय करने के बाद ही बहुत बुरी तरह हांपने लगा और एक दुकान के थड़े पर बैठ गया इतने में एक ख़ाली ताँगा आया उस ने उस को ठहराया और उस में बैठ कर तांगे वाले से कहा : “चलो मज़ंग ले चलो। लेकिन जल्दी पहुँचाओ मुझे वहां एक बड़ा ज़रूरी काम है”

मगर घोड़ा बहुत ही सुस्त रफ़्तार था या शायद ज़ाहिद को ऐसा महसूस हुआ कि उस को उजलत थी। वो बर्क़ रफ़तारी से घर पहुंचना चाहता था।

उस ने कई मर्तबा तांगे वाले से सख़्त सुस्त अल्फ़ाज़ कहे जो वो बर्दाश्त करता गया आख़िर जब उस की बर्दाश्त का पैमाना लबरेज़ हो गया तो उस ने ज़ाहिद को तांगे से उतार दिया हाइकोर्ट के क़रीब उस ने ज़ाहिद से किराया भी तलब न किया।

ज़ाहिद और ज़्यादा परेशान हुआ वो जल्द घर पहुंचना चाहता था वो कुछ देर चौक में खड़ा रहा इतने में एक पिशावरी ताँगा आया उस में बैठ कर वो मज़ंग पहुंचा। किराया अदा किया और घर में दाख़िल हुआ।

क्या देखता है कि सहन में कई औरतें खड़ी हैं जो ग़ालिबन हमसाई थीं वो दरवाज़े के पास रुक गया एक औरत दूसरी औरत से कह रही थी “मुश्किल ही से बचेगी बेचारी तशन्नुज के ये दौरे बड़े ख़तर-नाक हैं”

ज़ाहिद उन औरतों की परवाह न करते हुए दीवाना वार अंदर भागा और उस के कमरे में पहुंचा जहां वो और उस की बीवी रहते थे। अंदर दाख़िल होते ही इस ने अपनी बीवी की फ़लक शिगाफ़ चीख़ सुनी।

उस की बिटिया दम तोड़ चुकी थी और उस की बीवी बे-होश पड़ी थी। ज़ाहिद ने अपना सर पीटना शुरू कर दिया। हमसाईआं पर्दे को भूल कर बे-इख़्तियार अन्दर चली आईं और ज़ाहिद को उस कमरे से बाहर निकाल दिया।

एक हमसाई के शौहर के पास मोटर थी वो एक डाक्टर ले आया। उस ने ज़ाहिद की बीवी को एक दो इंजैक्शन लगाए जिन से वो होश में आ गई।

ज़ाहिद एक ऐसे आलम में था कि उस के सोचने समझने की तमाम क़ुव्वतें मुअत्तल हो गई थीं। वो सहन में एक कुर्सी पर बैठा बग़ल में लुगत दबाये ख़ला में देख रहा था जैसे वो अपनी बच्ची के लिए कोई नाम तलाश करने में महव है।

बच्ची को दफ़नाने का वक़्त आया तो ज़ाहिद बे-होश हो गया उस ने कोई आँसू न बहाया। कफ़न में पड़ी बच्ची को उठाया और अपने दोस्तों और हमसाइयों के हमराह क़ब्रिस्तान रवाना हो गया। वहां क़ब्र पहले ही से तैय्यार करा ली गई थी। उस में उस ने ख़ुद उसे लिटाया और उस के साथ लगत रख दी।

लोगों ने समझा क़ुरआन मजीद है उन्हें बड़ी हैरत हुई कि मुरदों के साथ क़ुरआन कौन दफ़न करता है ये तो सरासर कुफ्र है लेकिन इन में से किसी ने भी ज़ाहिद से इस के मुतअल्लिक़ कुछ न कहा बस आपस में खुसर फुसर करते रहे।

बच्ची को दफ़ना कर जब घर आया तो उसे मालूम हुआ कि उस की बीवी को बहुत तेज़ बुख़ार है सरसाम की कैफ़ीयत है।

फ़ौरन डाक्टर को बुलाया गया उस ने अच्छी तरह देखा और ज़ाहिद से कहा “हालत बहुत नाज़ुक है मैं ईलाज तजवीज़ किए देता हूँ लेकिन मैं सेहत की बहाली के मुतअल्लिक़ कुछ नहीं कह सकता”

ज़ाहिद को ऐसा महसूस हुआ कि उस पर बिजली आन गिरी है लेकिन उस ने सँभल कर डाक्टर से पूछा “तकलीफ़ क्या है?”

डाक्टर ने जवाब दिया “बहुत सी तकलीफें हैं एक तो ये कि उन्हें बहुत सदमा पहुंचा दूसरी ये कि इन का दिल बहुत कमज़ोर है तीसरी ये कि उन्हें एक सौ पाँच डिग्री बुख़ार है”

डाक्टर ने चंद टीके तजवीज़ किए दो नुस्खे़ पिलाने वाली दवाओं के लिखे और चला गया।

ज़ाहिद फ़ौरन ये सब चीज़ें ले आया टीके लगाए दवाएं बड़ी मुश्किल से हलक़ में टपकाई गईं। लेकिन मरीज़ा की हालत बेहतर न हुई।

दस पंद्रह रोज़ के बाद उसे थोड़ा सा होश आया, हिज़यानी कैफ़ीयत भी दूर हो गई। ज़ाहिद ने इत्मिनान का सांस लिया। उस की प्यारी हसीन बीवी ने उसे बुलाया और बड़ी नहीफ़ आवाज़ में कहा “मेरा अब आख़िरी वक़्त आ गया है मैं चंद घड़ियों की मेहमान हूँ ”

ज़ाहिद की आँखों में आँसू आ गए “कैसी बातें करती हो तुम तुम्हें ख़ुदा-ना-ख़ास्ता अगर कुछ हो गया तो मैं कहाँ ज़िंदा रहूँगा।”

ज़ाहिद की बीवी ने अपनी बड़ी बड़ी आँखों से उस की तरफ़ देखा “ये सब कहने की बातें हैं मैं मर गई कल दूसरी आ जाएगी ख़ुदा आप की उम्र-दराज़ करे और और ”

उस ने हिचकी ली और एक सैकिण्ड के अंदर अंदर उस की रूह परवाज़ कर गई ज़ाहिद ने बड़े सब्र-ओ-तहमल से काम लिया उस के कफ़न दफ़न से फ़ारिग़ हो कर वो रात को घर से बाहर निकला और रेलवे टाइम टेबल देख कर रेलवे लाईन का रुख़ किया।

रात को साढ़े नौ बजे के क़रीब एक गाड़ी आती थी वो मुग़ल पूरा की तरफ़ रवाना हो गया ताकि वहां पटड़ी पर लेट जाये और उसे कोई देख न सके। गाड़ी आएगी तो इस का ख़ातमा हो जाएगा मुझे लंबी उम्र की कोई ख़्वाहिश नहीं ये जितनी जल्दी मुख़्तसर हो इतना ही अच्छा है मैं अब और ज़्यादा सदमे बर्दाश्त नहीं कर सकता।

जब वो रेलवे लाईन के पास पहुंचा तो उसे गाड़ी की तेज़ रोशनी जो इंजन की पेशानी पर होती है दिखाई दी लेकिन अभी वो दूर ही थी। उस ने इंतिज़ार किया कि जब क़रीब आएगी तो वो पटड़ी पर लेट जाएगा।

थोड़ी देर के बाद गाड़ी क़रीब आ गई ज़ाहिद आगे बढ़ा मगर उस ने देखा कि एक आदमी कहीं से नुमूदार हुआ और पटड़ी के ऐन दरमयान खड़ा हो गया। गाड़ी बड़ी तेज़ रफ़्तार से आ रही थी और क़रीब था कि वो आदमी उस की झपट में आ जाये वो तेज़ी से लपका और उस आदमी को धक्का दे कर पटड़ी के उस तरफ़ गिरा दिया। गाड़ी दनदनाती हुई गुज़र गई।

उस आदमी से ज़ाहिद ने कहा क्या “तुम ख़ुदकुशी करना चाहते थे?”

उस ने जवाब दिया : “जी हाँ”

“क्यों?”

“बस सदमे उठाते उठाते अब जीने को जी नहीं चाहता”

ज़ाहिद नासेह बन गया “भाई मेरे! ज़िंदगी ज़िंदा रहने के लिए है उस को अच्छी तरह इस्तिमाल करो, ख़ुदकुशी बहुत बड़ी बुज़दिली है अपनी जान ख़ुद लेना कहाँ की अक़्लमंदी है उठो अपने सदमों को भूल जाओ इंसान की ज़िंदगी में सदमे न हूँ तो ख़ुशियों से किया हज़ उठाएगा चलो मेरे साथ”

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टेलीफ़ोन की घंटी बिजी। मनमोहन पास ही बैठा था। उस ने रीसीवर उठाया और कहा “हेलो....... फ़ौर फ़ौर फ़ौर फाईव सेवन” दूसरी तरफ़ से पतली सी निस्वानी आवाज़ आई। “सोरी....... रोंग नंबर” मनमोहन ने रीसीवर रख दिया और

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बिलाउज़

8 अप्रैल 2022
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कुछ दिनों से मोमिन बहुत बेक़रार था। उस को ऐसा महसूस होता था कि इस का वजूद कच्चा फोड़ा सा बन गया था। काम करते वक़्त, बातें करते हुए हत्ता कि सोचने पर भी उसे एक अजीब क़िस्म का दर्द महसूस होता था। ऐसा दर्द

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सरकण्डों के पीछे

8 अप्रैल 2022
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कौन सा शहर था, इस के मुतअल्लिक़ जहां तक में समझता हूँ, आप को मालूम करने और मुझे बताने की कोई ज़रूरत नहीं ।बस इतना ही कह देना काफ़ी है कि वो जगह जो इस कहानी से मुतअल्लिक़ है, पेशावर के मुज़ाफ़ात में थी। सरहद

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मिसिज़ गुल

8 अप्रैल 2022
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मैंने जब उस औरत को पहली मर्तबा देखा तो मुझे ऐसा महसूस हुआ कि मैंने लेमूँ निचोड़ ने वाला खटका देखा है। बहुत दुबली पतली, लेकिन बला की तेज़। उस का सारा जिस्म सिवाए आँखों के इंतिहाई ग़ैर निस्वानी था। ये आँख

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मलबे का ढेर

8 अप्रैल 2022
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कामिनी के ब्याह को अभी एक साल भी न हुआ था कि उस का पति दिल के आरिज़े की वजह से मर गया और अपनी सारी जायदाद उस के लिए छोड़ गया। कामिनी को बहुत सदमा पहुंचा, इस लिए कि वो जवानी ही में बेवा हो गई थी। उस की

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महमूदा

8 अप्रैल 2022
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मुस्तक़ीम ने महमूदा को पहली मर्तबा अपनी शादी पर देखा। आरसी मसहफ़ की रस्म अदा हो रही थी कि अचानक उस को दो बड़ी बड़ी.......ग़ैर-मामूली तौर पर बड़ी आँखें दिखाई दीं.......ये महमूदा की आँखें थीं जो अभी तक कुंवार

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मिसेज़ डी सिल्वा

8 अप्रैल 2022
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बिलकुल आमने सामने फ़्लैट थे। हमारे फ़्लैट का नंबर तेरह था। उस के फ़्लैट का चौदह। कभी कोई सामने का दरवाज़ा खटखटाता तो मुझे यही मालूम होता कि हमारे दरवाज़े पर दस्तक होरही है। इसी ग़लतफ़हमी में जब मैंने एक

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मेरा हमसफ़र

9 अप्रैल 2022
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प्लेटफार्म पर शहाब, सईद और अब्बास ने एक शोर मचा रखा था। ये सब दोस्त मुझे स्टेशन पर छोड़ने के लिए आए थे, गाड़ी प्लेटफार्म को छोड़ कर आहिस्ता आहिस्ता चल रही थी कि शहाब ने बढ़ कर पाएदान पर चढ़ते हुए मुझ से

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मेरा और उसका इंतिक़ाम

9 अप्रैल 2022
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घर में मेरे सिवा कोई मौजूद नहीं था। पिता जी कचहरी में थे और शाम से पहले कभी घर आने के आदी न थे। माता जी लाहौर में थीं और मेरी बहन बिमला अपनी किसी सहेली के हाँ गई थी! मैं तन्हा अपने कमरे में बैठा किताब

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वह लड़की

9 अप्रैल 2022
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सवा-चार बज चुके थे लेकिन धूप में वही तमाज़त थी जो दोपहर को बारह बजे के क़रीब थी। उस ने बालकनी में आ कर बाहर देखा तो उसे एक लड़की नज़र आई जो बज़ाहिर धूप से बचने के लिए एक साया-दार दरख़्त की छांव में आलती पाल

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वो ख़त जो पोस्ट न किये गए

9 अप्रैल 2022
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हव्वा की एक बेटी के चंद ख़ुतूत जो उस ने फ़ुर्सत के वक़्त मुहल्ले के चंद लोगों को लिखे। मगर इन वजूह की बिना पर पोस्ट न किए गए जो इन ख़ुतूत में नुमायां नज़र आती हैं। (नाम और मुक़ाम फ़र्ज़ी हैं) पहला ख़त म

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शादी

9 अप्रैल 2022
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जमील को अपना शैफर लाइफ-टाइम क़लम मरम्मत के लिए देना था। उस ने टेलीफ़ोन डायरेक्ट्री में शैफर कंपनी का नंबर तलाश किया। फ़ोन करने से मालूम हुआ कि उन के एजेंट मैसर्ज़ डी, जे, समतोइर हैं जिन का दफ़्तर ग्रीन

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सड़क के किनारे

9 अप्रैल 2022
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“यही दिन थे......... आसमान उस की आँखों की तरह ऐसा ही नीला था जैसा कि आज है। धुला हुआ, निथरा हुआ......... और धूप भी ऐसी ही कनकनी थी......... सुहाने ख़्वाबों की तरह। मिट्टी की बॉस भी ऐसी ही थी जैसी कि इ

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शारदा

9 अप्रैल 2022
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नज़ीर ब्लैक मार्कीट से विस्की की बोतल लाने गया। बड़क डाकख़ाने से कुछ आगे बंदरगाह के फाटक से कुछ इधर सिगरेट वाले की दुकान से उस को स्काच मुनासिब दामों पर मिल जाती थी। जब उस ने पैंतीस रुपये अदा करके काग़

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सिराज

9 अप्रैल 2022
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नागपाड़ा पुलिस चौकी के उस तरफ़ जो छोटा सा बाग़ है। उस के बिलकुल सामने ईरानी के होटल के बाहर, बिजली के खंबे के साथ लग कर ढूंढ़ो खड़ा था। दिन ढले, मुक़र्ररा वक़्त पर वो यहां आ जाता और सुबह चार बजे तक अपने धंद

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हज्ज-ए-अकबर

9 अप्रैल 2022
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इम्तियाज़ और सग़ीर की शादी हुई तो शहर भर में धूम मच गई। आतिश बाज़ियों का रिवाज बाक़ी नहीं रहा था मगर दूल्हे के बाप ने इस पुरानी अय्याशी पर बे-दरेग़ रुपया सर्फ़ किया। जब सग़ीर ज़ेवरों से लदे फंदे सफ़ैद बुर्र

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सजदा

9 अप्रैल 2022
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गिलास पर बोतल झुकी तो एक दम हमीद की तबीयत पर बोझ सा पड़ गया। मलिक जो उसके सामने तीसरा पैग पी रहा था फ़ौरन ताड़ गया कि हमीद के अंदर रुहानी कश्मकश पैदा होगई है। वो हमीद को सात बरस से जानता था, और इन सात बर

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लाइसेंस

9 अप्रैल 2022
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अब्बू कोचवान बड़ा छैल छबीला था। उस का ताँगा घोड़ा भी शहर में नंबर वन था। कभी मामूली सवारी नहीं बिठाता था। उस के लगे बंधे गाहक थे जिन से उस को रोज़ाना दस पंद्रह रुपय वसूल हो जाते थे जो अब्बू के लिए काफ़ी थ

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हाफ़िज़ हुसैन दीन

9 अप्रैल 2022
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हाफ़िज़ हुसैन दीन जो दोनों आँखों से अंधा था, ज़फ़र शाह के घर में आया। पटियाले का एक दोस्त रमज़ान अली था, जिस ने ज़फ़र शाह से उस का तआरुफ़ कराया। वो हाफ़िज़ साहिब से मिल कर बहुत मुतअस्सिर हुआ। गो उन की

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संतर पंच

9 अप्रैल 2022
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मैं लाहौर के एक स्टूडियो में मुलाज़िम हुआ जिस का मालिक मेरा बंबई का दोस्त था उस ने मेरा इस्तिक़बाल क्या मैं उस की गाड़ी में स्टूडियो पहुंचा था बग़लगीर होने के बाद उस ने अपनी शराफ़त भरी मोंछों को जो ग़ालिबन

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शैदा

9 अप्रैल 2022
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शैदे के मुतअल्लिक़ अमृतसर में ये मशहूर था कि वो चट्टान से भी टक्कर ले सकता है उस में बला की फुर्ती और ताक़त थी गो तन-ओ-तोश के लिहाज़ से वो एक कमज़ोर इंसान दिखाई देता था लेकिन अमृतसर के सारे गुंडे उस से ख़ौ

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राम खेलावन

9 अप्रैल 2022
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खटमल मारने के बाद में ट्रंक में पुराने काग़ज़ात देख रहा था कि सईद भाई जान की तस्वीर मिल गई। मेज़ पर एक ख़ाली फ़्रेम पड़ा था....... मैंने इस तस्वीर से उस को पुर कर दिया और कुर्सी पर बैठ कर धोबी का इंतिज़ार

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रहमत-ए-खुदा-वंदी के फूल

9 अप्रैल 2022
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ज़मींदार, अख़बार में जब डाक्टर राथर पर रहमत-ए-ख़ुदा-वंदी के फूल बरसते थे तो यार दोस्तों ने ग़ुलाम रसूल का नाम डाक्टर राथर रख दिया। मालूम नहीं क्यूँ, इस लिए कि ग़ुलाम रसूल को डाक्टर राथर से कोई निसबत नह

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मिस फ़र्या

9 अप्रैल 2022
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शादी के एक महीने बाद सुहेल परेशान होगया। उस की रातों की नींद और दिन का चैन हराम हो गया। उस का ख़याल था कि बच्चा कम अज़ कम तीन साल के बाद पैदा होगा मगर अब एक दम ये मालूम करके उस के पांव तले की ज़मीन निक

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मिस अडना जैक्सन

9 अप्रैल 2022
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कॉलिज की पुरानी प्रिंसिपल के तबादले का एलान हुआ, तालिबात ने बड़ा शोर मचाया। वो नहीं चाहती थीं कि उन की महबूब प्रिंसिपल उन के कॉलेज से कहीं और चली जाये। बड़ा एहतिजाज हुआ। यहाँ तक कि चंद लड़कियों ने भूक हड़

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बुड्ढ़ा खूसट

9 अप्रैल 2022
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ये जंग-ए-अज़ीम के ख़ातमे के बाद की बात है जब मेरा अज़ीज़ तरीन दोस्त लैफ़्टीनैंट कर्नल मोहम्मद सलीम शेख़ (अब) ईरान इराक़ और दूसरे महाज़ों से होता हुआ बमबई पहुंचा। उस को अच्छी तरह मालूम था, मेरा फ़्लैट कहाँ ह

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शह नशीं पर

9 अप्रैल 2022
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वो सफ़ैद सलमा लगी साड़ी में शह-नशीन पर आई और ऐसा मालूम हुआ कि किसी ने नक़रई तारों वाला अनार छोड़ दिया है। साड़ी के थिरकते हूए रेशमी कपड़े पर जब जगह जगह सलमा का काम टिमटिमाने लगता तो मुझे जिस्म पर वो तमाम

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चुग़द

9 अप्रैल 2022
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लड़कों और लड़कियों के मआशिक़ों का ज़िक्र हो रहा था। प्रकाश जो बहुत देर से ख़ामोश बैठा अंदर ही अंदर बहुत शिद्दत से सोच रहा था, एक दम फट पड़ा। सब बकवास है, सौ में से निन्नानवे मआशिक़े निहायत ही भोंडे और लचर

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