कोई यह आँसू आज माँग ले जाता!
तापों से खारे जो विषाद से श्यामल,
अपनी चितवन में छान इन्हें कर मधु-जल,
फिर इनसे रचकर एक घटा करुणा की
कोई यह जलता व्योम आज छा आता!
वर क्षार-शेष की माँग रही जो ज्वाला,
जिसको छूकर हर स्वप्न बन चला छाला,
निज स्नेह-सिक्त जीवन-बाती से कोई,
दीपक कर इसको उर-उर में पहुँचाता!
तम-कारा-बंदी सांध्य रंगों-सी चितवन;
पाषाण चुराए हैं लहरों से स्पंदन,
ये निर्मम बंधन खोल तड़ित से कर से,
चिर रंग रूपों से फिर यह शून्य बसाता!
सिकता से तुलसी साध क्षार से उर-धन,
पारस-साँसें बेमोल ले चला हर क्षण,
प्राणों के विनिमय से इनको ले कोई,
दिव का किरीट भू का शृंगार बनाता!