shabd-logo

कोई यह आँसू...

24 फरवरी 2022

31 बार देखा गया 31

कोई यह आँसू आज माँग ले जाता! 


तापों से खारे जो विषाद से श्यामल, 

अपनी चितवन में छान इन्हें कर मधु-जल, 

फिर इनसे रचकर एक घटा करुणा की 

कोई यह जलता व्योम आज छा आता! 


वर क्षार-शेष की माँग रही जो ज्वाला, 

जिसको छूकर हर स्वप्न बन चला छाला, 

निज स्नेह-सिक्त जीवन-बाती से कोई, 

दीपक कर इसको उर-उर में पहुँचाता! 


तम-कारा-बंदी सांध्य रंगों-सी चितवन; 

पाषाण चुराए हैं लहरों से स्पंदन, 

ये निर्मम बंधन खोल तड़ित से कर से, 

चिर रंग रूपों से फिर यह शून्य बसाता! 


सिकता से तुलसी साध क्षार से उर-धन, 

पारस-साँसें बेमोल ले चला हर क्षण, 

प्राणों के विनिमय से इनको ले कोई, 

दिव का किरीट भू का शृंगार बनाता!  

23
रचनाएँ
महादेवी वर्मा के सुप्रसिद्ध गीत
0.0
छायावाद की प्रमुख प्रतिनिधि कवयित्री महादेवी वर्मा का नारी के प्रति विशेष दृष्टिकोण एवं भावुकता होने के कारण उनके काव्य में रहस्यवाद, वेदना भाव, अलौकिक प्रेम आदि की अभिव्यक्ति हुई है। आधुनिक गीत काव्य में महादेवी जी का स्थान सर्वोपरि है। उनकी कविता में प्रेम की पीर और भावों की तीव्रता वर्तमान होने के कारण भाव, भाषा और संगीत की जैसी त्रिवेणी उनके गीतों में प्रवाहित होती है वैसी अन्यत्र दुर्लभ है। महादेवी के गीतों की वेदना, प्रणयानुभूति, करुणा और रहस्यवाद काव्यानुरागियों को आकर्षित करते हैं। कवयित्री महादेवी वर्मा का कहना है कि मैं नीर-भरी दुःख की बदली हूँ; अर्थात् मेरा जीवन दुःख की बदलियों से घिरा हुआ है। जिस प्रकार बदली आकाश में रहती है: किन्तु र-दूर तक फैले हुए आकाश का कोई भी कोना उसका स्थायी निवास नहीं होता, वह तो इधर-उधर भ्रमण करती रहती है।
1

फिर विकल हैं प्राण मेरे!

24 फरवरी 2022
4
0
0

फिर विकल हैं प्राण मेरे!  तोड़ दो यह क्षितिज मैं भी देख लूँ उस ओर क्या है!  जा रहे जिस पंथ से युग कल्प उसका छोर क्या है?  क्यों मुझे प्राचीन बनकर  आज मेरे श्वास घेरे?  सिंधु की निःसीमता पर लघ

2

मैं नीर भरी

24 फरवरी 2022
5
0
1

मैं नीर भरी दु:ख की बदली!  स्पंदन में चिर निस्पंद बसा;  क्रंदन में आहत विश्व हँसा,  नयनों में दीपक-से जलते  पलकों में निर्झरिणी मचली!  मेरा पग-पग संगीत-भरा,  श्वासों से स्वप्न-पराग झरा,  नभ

3

इन आँखों ने देखी न राह कहीं

24 फरवरी 2022
1
0
0

इन आँखों ने देखी न राह कहीं  इन्हें धो गया नेह का नीर नहीं,  करती मिट जाने की साध कभी,  इन प्राणों को मूक अधीर नहीं,  अलि छोड़ो न जीवन की तरणी,  उस सागर में जहाँ तीर नहीं!  कभी देखा नहीं वह देश

4

बीन भी हूँ मैं तुम्हारी रागिनी भी हूँ!

24 फरवरी 2022
0
0
0

बीन भी हूँ मैं तुम्हारी रागिनी भी हूँ!  नींद थी मेरी अचल निस्पंद कण-कण में,  प्रथम जागृति थी जगत् के प्रथम स्पंदन में;  प्रलय में मेरा पता पदचिह्न जीवन में,  शाप हूँ जो बन गया वरदान बंधन में; 

5

झिलमिलाती रात

24 फरवरी 2022
0
0
0

झिलमिलाती रात मेरी!  साँझ के अंतिम सुनहले  हास-सी चुपचाप आकर,  मूक चितवन की विभा—  तेरी अचानक छू गई भर;  बन गई दीपावली तब आँसुओं की पाँत मेरी!  अश्रु घन के बन रहे स्मित—  सुप्त वसुधा के अधर पर 

6

क्यों अश्रु न हों शृंगार मुझे

24 फरवरी 2022
0
0
0

क्यों अश्रु न हों शृंगार मुझे!  रंगों के बादल निस्तरंग,  रूपों के शत-शत वीचि-भंग,  किरणों की रेखाओं में भर,  अपने अनंत मानस पट पर,  तुम देते रहते हो प्रतिपल,  जाने कितने आकार मुझे!  हर छवि

7

सब आँखों के आँसू

24 फरवरी 2022
1
0
0

सब आँखों के आँसू उजले सबके सपनों में सत्य पला!  जिसने उसको ज्वाला सौंपी  उसने इसमें मकरंद भरा,  आलोक लुटाता वह घुल-घुल  देता झर यह सौरभ बिखरा!  दोनों संगी पथ एक किंतु कब दीप खिला कब फूल जला? 

8

जो तुम आ जाते एक बार

24 फरवरी 2022
0
0
0

जो तुम आ जाते एक बार!  कितनी करुणा कितने संदेश  पथ में बिछ जाते बन पराग;  गाता प्राणों का तार-तार  अनुराग भरा उन्माद राग;  आँसू लेते वे पद पखार!  हँस उठते पल में आर्द्र नयन  धुल जाता ओंठों से व

9

कौन तुम मेरे हृदय में?

24 फरवरी 2022
0
0
0

कौन तुम मेरे हृदय में?  कौन मेरी कसक में नित  मधुरता भरता अलक्षित?  कौन प्यासे लोचनों में  घुमड़ घिर झरता अपरिचित?  स्वर्ण-स्वप्नों का चितेरा  नींद के सूने निलय में!  कौन तुम मेरे हृदय में? 

10

चिर सजग आँखें

24 फरवरी 2022
0
0
0

चिर सजग आँखें उनींदी आज कैसा व्यस्त बाना!  जाग तुझको दूर जाना!  अचल हिमगिरि के हृदय में आज चाहे कंप हो ले,  या प्रलय के आँसुओं में मौन अलसित व्योम रो ले;  आज पी आलोक को डोले तिमिर की घोर छाया,

11

अब वरदान कैसा!

24 फरवरी 2022
0
0
0

देव अब वरदान कैसा!  वेध दो मेरा हृदय माला बनूँ प्रतिकूल क्या है!  मैं तुम्हें पहचान लूँ इस कूल तो उस कूल क्या है!  छीन सब मीठे क्षणों को,  इन अथक अन्वेषणों को  आज लघुता ले मुझे  दोगे निठुर प

12

टूट गया वह दर्पण निर्मम

24 फरवरी 2022
0
0
0

टूट गया वह दर्पण निर्मम  उसमें हँस दी मेरी छाया!  मुझमें रो दी ममता माया,  अश्रु-हास ने विश्व सजाया,  रहे खेलते आँखमिचौनी  प्रिय! जिसके परदे में 'मैं' 'तुम'!  टूट गया वह दर्पण निर्मम!  अप

13

शलभ मैं शापमय वर हूँ

24 फरवरी 2022
0
0
0

शलभ मैं शापमय वर हूँ!  किसी का दीप निष्ठुर हूँ!  ताज है जलती शिखा  चिनगारियाँ शृंगारमाला;  ज्वाल अक्षय कोष-सी  अंगार मेरी रंगशाला;  नाश में जीवित किसी की साध सुंदर हूँ!  नयन में रह किंतु जल

14

आज तार मिला

24 फरवरी 2022
0
0
0

आज तार मिला चुकी हूँ!  सुमन में संकेत-लिपि,  चंचल विहग स्वर-ग्राम जिसके,  वात उठता, किरण के  निर्झर झुके, लय-भार जिसके,  वह अनामा रागिनी अब साँस में ठहरा चुकी हूँ!  सिंधु चलता मेघ पर,  रुकत

15

यह मंदिर का दीप इसे नीरव जलने दो

24 फरवरी 2022
0
0
0

यह मंदिर का दीप इसे नीरव जलने दो!  रजत शंख-घड़ियाल स्वर्ण वंशी-वीणा-स्वर,  गए आरती वेला को शत-शत लय से भर,  जब था कल कंठों का मेला,  विहँसे उपल तिमिर था खेला,  अब मंदिर में इष्ट अकेला,  इसे अजिर

16

सब बुझे दीपक जला लूँ

24 फरवरी 2022
0
0
0

सब बुझे दीपक जला लूँ!  घिर रहा तम आज दीपक-रागिनी अपनी जगा लूँ!  क्षितिज-कारा तोड़कर अब  गा उठी उन्मत्त आँधी,  अब घटाओं में न रुकती  लास-तन्मय तड़ित् बाँधी,  धूलि की इस वीणा पर मैं तार हर तृण क

17

पंथ होने दो अपरिचित

24 फरवरी 2022
0
0
0

पंथ होने दो अपरिचित प्राण रहने दो अकेला!  घेर ले छाया अमा बन,  आज कज्जल-अश्रुओं में रिमझिमा ले यह घिरा घन;  और होंगे नयन सूखे,  तिल बुझे औ, पलक रूखे,  आर्द्र चितवन में यहाँ  शत विद्युतों में दीप

18

मैं पथ भूली

24 फरवरी 2022
2
0
0

प्रिय सुधि भूले री मैं पथ भूली!  मेरे ही मृदु उर में हँस बस,  श्वासों में भर मादक मधु-रस,  लघु कलिका के चल परिमल से  वे नभ छाए री मैं वन फूली!  प्रिय सुधि भूले री मैं पथ भूली!  तज उनका गिर

19

अलि कहाँ संदेश

24 फरवरी 2022
0
0
0

अलि कहाँ संदेश भेजूँ?  मैं किसे संदेश भेजूँ?  एक सुधि अनजान उनकी,  दूसरी पहचान मन की,  पुलक का उपहार दूँ या अश्रु-भार अशेष भेजूँ!  चरण चिर पथ के विधाता  उर अथक गति नाम पाता,  अमर अपनी खोज क

20

विरह का जलजात

24 फरवरी 2022
1
0
0

विरह का जलजात जीवन, विरह का जलजात!  वेदना में जन्म करुणा में मिला आवास;  अश्रु चुनता दिवस इसका, अश्रु गिनती रात;  जीवन विरह का जलजात!  आँसुओं का कोष उर दृग अश्रु की टकसाल;  तरल जल-कण से बने घन-

21

कोई यह आँसू...

24 फरवरी 2022
1
1
0

कोई यह आँसू आज माँग ले जाता!  तापों से खारे जो विषाद से श्यामल,  अपनी चितवन में छान इन्हें कर मधु-जल,  फिर इनसे रचकर एक घटा करुणा की  कोई यह जलता व्योम आज छा आता!  वर क्षार-शेष की माँग रही जो

22

तू धूल भरा ही

24 फरवरी 2022
1
0
0

तू धूल भरा ही आया!  ओ चंचल जीवन-बाल! मृत्यु-जननी ने अंक लगाया!  साधों ने पथ के कण मदिरा से सींचे,  झंझा आँधी ने फिर-फिर आ दृग मींचे,  आलोक तिमिर ने क्षण का कुहक बिछाया!  अंगार-खिलौनों का था

23

नहीं हलाहल शेष

24 फरवरी 2022
4
1
0

नहीं हलाहल शेष, तरल ज्वाला से अब प्याला भरती हूँ।  विष तो मैंने पिया, सभी को व्यापी नीलकंठता मेरी;  घेरे नीला ज्वार गगन को बाँधे भू को छाँह अँधेरी;  सपने जमकर आज हो गए चलती-फिरती नील शिलाएँ, 

---

किताब पढ़िए