इसे आप हिंदी की पहली मौलिक डिक्शनरी कहें, थिसॉरस, व्यंग्य निबंधों का संग्रह या कुछ और, लेकिन एक बार पढ़ना शुरू करेंगे तो बिना खत्म किए छोड़ नहीं पाएँगे। हिंदी के सामाजिक-राजनीतिक परिवेश में इस्तेमाल होनेवाले पचास प्रचलित शब्दों की निहायत ही अप्रचलित परिभाषाओं और व्याख्याओं की किताब है, कोस-कोस शब्दकोश। परिभाषाएँ कुछ ऐसी हैं कि आप हँसी रोक नहीं पाएँगे या कई जगहों पर ठहर कर गहरी सोच में डूब जाएँगे। हिंदी के आम पाठक से बोलती बतियाती ये किताब सम-सामायिक विसंगतियों पर गहरी चोट करने के साथ भरपूर मनोरंजन भी करती है।
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