कसक तेरे प्यार की (भाग 42)
सहेलियों के साथ ज़ेबा को स्टेज पर जाते हुए देख कर नदीम परेशान हो जाता है,,,अब आगे 👉
अबकी बार नदीम उसको सामने से रोक लेता है,,, और पूछता है ठहरो ज़ेबा मुझसे यूं नजरे ना चुराओ,,,,,,।
वह कभी दुल्हन को देखता है और कभी उसको,,, वह लड़की रुक कर नदीम को जवाब देती है मैं जे़बा नहीं हूं,,, बल्कि ज़ेबा की जुड़वा बहन हूं,,,, इसीलिए आप परेशान न हों,,,,,,,, आपको कोई ग़लत फैहमी हो रही है,,,।
शायद ज़ेबा ने आपको मेरे बारे में नहीं बताया होगा मेरा नाम दीबा,, है और नदीम यह सुनकर हक्का-बक्का रह गया,,, पसीने की चंद बूंदे उसके माथे पर चमक आई वह चुपचाप अपनी जगह बैठ गया,,, क़िस्मत यह क्या खेल खेल रही है मेरे साथ,,,,।
पल भर में उसने जे़बा को देखकर न जाने क्या क्या ख़्वाब बुन डाले थे,,, और वह फिर से कल्पना की उड़ान भरने लगा था ,,,,
एक बार फिर ज़ेबा को पाने की ख्वा़हिश ने ज़ोर पकड़ लिया था,,,,,पल भरमे ही उसके ख़्वाबों का महल चकना चूर हो गया था,,,,।
और वह फिर से हक़ीक़त के धरातल पर खड़ा सोच रहा था,,,,,ओह तो यह बात है यह जुड़वा बहने हैं बिल्कुल एक शक्ल वाली,,,।
अब यह कैसे पता करूं जो जो दुल्हन बनी है वह जे़बा है,,, या जो घूम रही है वह ज़ेबा है,,।
तभी उसका दिमाग़ निकाह वाली बात पर जाता है,,, मौलाना साहब ने निकाह पढ़ाते टाइम जे़बा का नाम लिया था इसका मतलब ज़ेबा की शादी हो चुकी है मुझे इस बात पर यक़ीन कर लेना चाहिए,,,।
और जो घूम रही है वह दीबा है,, कुछ देर के बाद जे़बा की रुख़सती हो गई और वह दूल्हा के साथ अपने घर चली गई,,,।
और अब नदीम के पास यह कहने के सिवा कुछ ना रहा,,, दिल के अरमां आंसुओं में बह गए हम वफा करके भी तंहा रह गए,, जैसे तैसे नदीम ने खुद को संभाला और अपने घर वापस आ गया,,,
शादी का मंजर उसकी आंखों के सामने बार-बार घूम रहा था,,, और रह-रहकर उसके दिल में जे़बा के प्यार की कसक ज़ोर पकड़ती जा रही थी,,,।
वह बार-बार यही कहता,,, मेरी क़िस्मत ही फूटी थी,,, जो यह दिन देखना पड़ा,,, सच में अपनी प्रेमिका को अपने हाथों रुख़सत करना कितना तकलीफ़ दे होता है,,,,,।
यह तकलीफ़ मैंने ज़ेबा को पहुंचाई,,, थी,, और सीमा उसका भी मैं गुनहगार हूं,,, मेरी थोड़ी सी ग़लती की वजह से यह सब हुआ है,,, मैं अपने किए पर बहुत शर्मिंदा हूं,,,।
पर अब कहीं कुछ नहीं हो सकता,,, मुझे हालात से समझौता करना ही पड़ेगा,,, जो इंसान बोता है उसको वहीं काटना पड़ता है,,,,,,, ।
मुझे मर जाना चाहिए,,ऐसी ज़िन्दगी से मौत भली,,, क्या करूंगा मैं जिंदा रहकर,,,,अब बचा ही क्या है,,, मेरे पास जीने के लिए,,,,।
आगे कहानी क्या मोड़ लेती है जानने के लिए धारावाहिक कसक तेरे प्यार की सीजन 2
👉👉👉👉👉👉👉👉
मौलिक रचना सय्यदा खा़तून ✍️
---------------🌹🌹🌹-------