काम है प्यारा , नहीं चाम है प्यारी काम परे कछु और है काम सरे कछु और! काया राखे धर्म आपनों, तुलसी भावर के परे! समय पाए तरुवर फरेे, केतक सीचो नीर! कारज धीर होत है, काहे होता अधीर। काली घटा डरावनी, धावली वरसन हार ! कारी मां के गोरे बालक, कारी मुर्गी अंडा श्वेत। काल दंड गहि काहु न मारा, हरे प्रथम बल बुद्धि विचार। कुआं में की मेढ़की, करे सिंधु की बात ! कुकुर चौक चढ़ा इये, चौकी चाटन जाय। कूप जो खोदे और को, ताको कूप तैयार। कूप भेक जानें कहां, सागर को विस्तार । - सुख मंगल सिंह
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