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मद्यँतिका

18 अक्टूबर 2021

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माँ को देखा कि वो बेबस-सी परेशान सी है
अपने बेटे के छले जाने पे हैरान-सी है
वो बड़ी दूर चली आई है मुझसे मिलने
मेरी उम्मीद की झोली का फटा मुंह सिलने

उसकी आँखों में पिता मुझको दीख जाते हैं
कभी उद्धव तो कभी नंद नज़र आते हैं
वो निरी मां की तरह प्यार से दुलारती है
ज़िन्दगी कितनी अहम चीज है बतलाती है

उसको डर है कि उसका चाँद-सा प्यारा बेटा
जिसके गीतों की चूनर ओढ़ के दुनिया नाचे
जिसके होंठों की शरारत पे मुहब्बत है फ़िदा
जिसके शब्दों में सभी प्यार की गीता बांचें

उसका वो राजकुंवर ओस की बून्दों की तरह
दर्द की धूप से दुनिया से उड़ न जाये कहीं
शोहरत-ओ-प्यार की मंजिल की तरफ़ बढ़ता हुआ
शौक से मौत की राहों पे मुड़ न जाये कहीं

उसको लगता है मेरा नर्म-सा नाजुक-सा जिगर
दूरियाँ सह नहीं पाएगा बिख़र जायेगा
उसको मालूम नहीं आग में सीने की मेरी
मेरा शायर जो तपेगा तो निखर जायेगा

मुझको मालूम है दुनिया के लिए जीना है
इसलिए माँ मेरी हैरान-परेशान न हो
मेरी खुशियां तू मुझे दे न सकीं, इसके लिए
बेवजह खुद पे शर्मशार, पशेमान न हो

एक तू है, कि जिसे दर्द है दुनिया के लिए
एक वो है, कि जिसे खुद पे कोई शर्म नहीं
एक तू है, कि जिसे ममता है पत्थर तक से
एक वो पत्थर दिल, दिल में कोई मर्म नहीं

मैं उसको भूल ही जाऊंगा वायदा है मेरा
मैं उसकी हर बात जुबां पर न कभी लाऊंगा
मेरा हर जिक्र उसकी फ़िक्र से जुदा होगा
मैं उसका नाम किसी गीत में न गाऊंगा

मुझको मालूम है वादे की हक़ीक़त लेकिन
तेरा दिल रखने की खातिर ये वायदा ही सही
मुझको वो प्यार की दुनिया ना मिली ना ही सही
खुद को मैं पढ़ तो सका इतना फ़ायदा ही सही

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