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माखन लाल चतुर्वेदी के बारे में

माखनलाल चतुर्वेदी का जन्म 4 अप्रैल 1889 ई. में मध्य – प्रदेश के होशंगावाद जिले में बावाई नामक स्थान पर हुआ था. इनके पिताजी का नाम नंदलाल चतुर्वेदी और माता का नाम सुंदरीबाई था. इनके पिताजी अपने ग्राम सभा में स्थित एक प्राथमिक विद्यालय में अध्यापक हुआ करते थे. प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने संस्कृत, बांग्ला, गुजराती अथवा अंग्रेजी आदि भाषाओं का ज्ञान घर पर ही प्राप्त किया था. माखनलाल जी जब 16 वर्ष के हुए तब ही स्कूल में अध्यापक बन गए थे. उन्होंने 1906 से 1910 तक एक विद्यालय में अध्यापन का कार्य किया. माखनलाल चतुर्वेदी जी एक राष्ट्र प्रेमी कवि हुआ करते थे. ये उन प्रमुख कवियों में से एक थे जिन्होंने अपना परम लक्ष्य राष्ट्र हित को माना है. राष्ट्र को समर्पित करने वाले यह स्वंत्रता संग्रामी कवि माखनलाल चतुर्वेदी जी का 30 जनवरी सन 1938 ई. को निधन हो गया था. | माखनलाल चतुर्वेदी सरल भाषा के अनूठे हिन्दी रचनाकार थे। उन्हें 'एक भारतीय आत्मा' उपनाम से भी जाना जाता था। राष्ट्रीयता माखनलाल चतुर्वेदी के काव्य का कलेवर तथा रहस्यात्मक प्रेम उनकी आत्मा रही। उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में भी सक्रिय रूप से भाग लिया। माखनलाल चतुर्वेदी जी को हिंदी साहित्य की रचनाओं का प्रवर्तक माना जाता है। माखनलाल चतुर्वेदी जी ने अपनी रचनाओं के माध्यम से ब्रिटिश शासन के खिलाफ जोरदार प्रदर्शन किया |

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माखन लाल चतुर्वेदी की पुस्तकें

माखन लाल चतुर्वेदी की प्रसिद्ध कविताएं

माखन लाल चतुर्वेदी की प्रसिद्ध कविताएं

इस कविता का सारांश यह है कि , एक पुष्प जिसका प्राकृतिक इस्तेमाल , सुन्दर स्त्रियों पर सुशोभित होना , प्रेमिकाओं के गले की माला बनना , भगवानों की मूर्तियों पर चढ़ाया जाना और सम्राटों के शव पर डाला जाना है। वह पुष्प इस सब को छोड़ कर अपने आप को देश पर ब

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माखन लाल चतुर्वेदी की प्रसिद्ध कविताएं

माखन लाल चतुर्वेदी की प्रसिद्ध कविताएं

इस कविता का सारांश यह है कि , एक पुष्प जिसका प्राकृतिक इस्तेमाल , सुन्दर स्त्रियों पर सुशोभित होना , प्रेमिकाओं के गले की माला बनना , भगवानों की मूर्तियों पर चढ़ाया जाना और सम्राटों के शव पर डाला जाना है। वह पुष्प इस सब को छोड़ कर अपने आप को देश पर ब

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हिमकिरीटिनी

हिमकिरीटिनी

इस कविता का सारांश यह है कि , एक पुष्प जिसका प्राकृतिक इस्तेमाल , सुन्दर स्त्रियों पर सुशोभित होना , प्रेमिकाओं के गले की माला बनना , भगवानों की मूर्तियों पर चढ़ाया जाना और सम्राटों के शव पर डाला जाना है। वह पुष्प इस सब को छोड़ कर अपने आप को देश पर ब

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हिमकिरीटिनी

हिमकिरीटिनी

इस कविता का सारांश यह है कि , एक पुष्प जिसका प्राकृतिक इस्तेमाल , सुन्दर स्त्रियों पर सुशोभित होना , प्रेमिकाओं के गले की माला बनना , भगवानों की मूर्तियों पर चढ़ाया जाना और सम्राटों के शव पर डाला जाना है। वह पुष्प इस सब को छोड़ कर अपने आप को देश पर ब

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हिम तरंगिनी

हिम तरंगिनी

सरल भाषा और ओजपूर्ण भावनाओं के वे अनूठे हिंदी रचनाकार थे। प्रभा और कर्मवीर जैसे प्रतिष्ठत पत्रों के संपादक के रूप में उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ जोरदार प्रचार किया और नई पीढ़ी का आह्वान किया कि वह गुलामी की जंज़ीरों को तोड़ कर बाहर आए। इसके लिये

7 पाठक
57 रचनाएँ

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हिम तरंगिनी

हिम तरंगिनी

सरल भाषा और ओजपूर्ण भावनाओं के वे अनूठे हिंदी रचनाकार थे। प्रभा और कर्मवीर जैसे प्रतिष्ठत पत्रों के संपादक के रूप में उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ जोरदार प्रचार किया और नई पीढ़ी का आह्वान किया कि वह गुलामी की जंज़ीरों को तोड़ कर बाहर आए। इसके लिये

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धूम्र-वलय

धूम्र-वलय

माखनलाल चतुर्वेदी की कविताएं छायावाद का सर्वोच्च रूप लिए हुए हैं इसलिए उनकी कविताएं प्रकृति के अधिक निकट हैं। उनकी लेखन भाषा भी हिंदी के उस काल का प्रतिबिम्ब है।

5 पाठक
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धूम्र-वलय

धूम्र-वलय

माखनलाल चतुर्वेदी की कविताएं छायावाद का सर्वोच्च रूप लिए हुए हैं इसलिए उनकी कविताएं प्रकृति के अधिक निकट हैं। उनकी लेखन भाषा भी हिंदी के उस काल का प्रतिबिम्ब है।

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वेणु लो गूँजे धरा

वेणु लो गूँजे धरा

वेणु लो गूँजे धरा, माखनलाल चतुर्वेदी द्वारा लिखित कविता है. तारकों-सी नृत्य ने बारात साधी है। विश्व-शिशु करता रहा प्रण-वाद जब तुमसे। क्यों विकास करे भड़कता हैं |

2 पाठक
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वेणु लो गूँजे धरा

वेणु लो गूँजे धरा

वेणु लो गूँजे धरा, माखनलाल चतुर्वेदी द्वारा लिखित कविता है. तारकों-सी नृत्य ने बारात साधी है। विश्व-शिशु करता रहा प्रण-वाद जब तुमसे। क्यों विकास करे भड़कता हैं |

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समर्पण

समर्पण

यह कविता चतुर्वेदी जी के 'युगचरण' नामक काव्य-संग्रह से संगृहीत है। प्रसंग-इन पंक्तियों में कवि ने पुष्प के माध्यम से देश पर बलिदान होने की प्रेरणा दी है। व्याख्या-कवि अपनी देशप्रेम की भावना को पुष्प की अभिलाषा के रूप में व्यक्त करते हुए कहता है कि मे

2 पाठक
78 रचनाएँ

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यह कविता चतुर्वेदी जी के 'युगचरण' नामक काव्य-संग्रह से संगृहीत है। प्रसंग-इन पंक्तियों में कवि ने पुष्प के माध्यम से देश पर बलिदान होने की प्रेरणा दी है। व्याख्या-कवि अपनी देशप्रेम की भावना को पुष्प की अभिलाषा के रूप में व्यक्त करते हुए कहता है कि मे

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साहित्य-देवता

साहित्य-देवता

इस पुस्तक के भीतर आलोचना को निमित्त मानकतर गद्य में स्वतन्त्र कविताएँ रची हैं। इस पुस्तक के भीतर आलोचना नहीं, स्वतन्त्र काव्य का रस है। यह पण्डित का तर्क नहीं, कवि की वाणी का प्रसाद है। जिस प्रकार माखनलालजी की कविता और वार्ताएँ रसपूर्ण, किन्तु धुँधली

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साहित्य-देवता

साहित्य-देवता

इस पुस्तक के भीतर आलोचना को निमित्त मानकतर गद्य में स्वतन्त्र कविताएँ रची हैं। इस पुस्तक के भीतर आलोचना नहीं, स्वतन्त्र काव्य का रस है। यह पण्डित का तर्क नहीं, कवि की वाणी का प्रसाद है। जिस प्रकार माखनलालजी की कविता और वार्ताएँ रसपूर्ण, किन्तु धुँधली

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बीजुरी काजल आँज रही

बीजुरी काजल आँज रही

सरल भाषा और ओजपूर्ण भावनाओं के वे अनूठे हिंदी रचनाकार थे। प्रभा और कर्मवीर जैसे प्रतिष्ठत पत्रों के संपादक के रूप में उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ जोरदार प्रचार किया और नई पीढ़ी का आह्वान किया हैं |

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बीजुरी काजल आँज रही

बीजुरी काजल आँज रही

सरल भाषा और ओजपूर्ण भावनाओं के वे अनूठे हिंदी रचनाकार थे। प्रभा और कर्मवीर जैसे प्रतिष्ठत पत्रों के संपादक के रूप में उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ जोरदार प्रचार किया और नई पीढ़ी का आह्वान किया हैं |

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 प्रमुख रचनाएँ

प्रमुख रचनाएँ

व्याख्या-कवि अपनी देशप्रेम की भावना को पुष्प की अभिलाषा के रूप में व्यक्त करते हुए कहता है कि मेरी इच्छा किसी देवबाला के आभूषणों में गूंथे जाने की नहीं है। मेरी इच्छा यह भी नहीं है कि मैं प्रेमियों को प्रसन्न करने के लिए प्रेमी द्वारा बनायी गयी माला

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17 रचनाएँ

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 प्रमुख रचनाएँ

प्रमुख रचनाएँ

व्याख्या-कवि अपनी देशप्रेम की भावना को पुष्प की अभिलाषा के रूप में व्यक्त करते हुए कहता है कि मेरी इच्छा किसी देवबाला के आभूषणों में गूंथे जाने की नहीं है। मेरी इच्छा यह भी नहीं है कि मैं प्रेमियों को प्रसन्न करने के लिए प्रेमी द्वारा बनायी गयी माला

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माता

माता

संकट के पुष्पक पर आई जिसकी पुण्य-साध की वेला! अपने पागलपन में, बेदी पर शिर जो उतार आता है ! उसकी साँस-साँस में, कसकें--'महासांस' की 'साँसें' सारी । वह अरमानों का अपनापन जी की कसकों की ध्वनि-धारा हैं |

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माता

माता

संकट के पुष्पक पर आई जिसकी पुण्य-साध की वेला! अपने पागलपन में, बेदी पर शिर जो उतार आता है ! उसकी साँस-साँस में, कसकें--'महासांस' की 'साँसें' सारी । वह अरमानों का अपनापन जी की कसकों की ध्वनि-धारा हैं |

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माखन लाल चतुर्वेदी के लेख

मत गाओ

19 अप्रैल 2022
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आरती तुम्हारी ऊँची जरा उठाओ ! गंधों को मादक होने दो, मत गाओ ! बन जायें धुएँ के कंकण धीरे-धीरे, इतने हौले-हौले घड़ियों पर छायो ! छवि के प्रभु की अलबेली मूरत बोले पुतली पर ऐसा अमृत भर-भर लायो ! क

अमर विराग निहाल-गीत

19 अप्रैल 2022
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अमर विराग निहाल ! चरण-चरण -संचरण -राग पर प्रिय के भाग निहाल ! अनबोली साँसों की जाली गूंथ-गूंथ निधि की छवि आली अनमोली कुहकन पर लिख-लिख मान भरी मीड़ें मतवाली स्वर रंगिणि, तुम्हारी वीणा पर अनुरा

छलिया

19 अप्रैल 2022
0
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तुम खड़े रहो अनहोनी चितवन के छलिया; मैं उस दुकूल पर अपनी खीजें लिख डालूँ ! गंगा के तट अपना पनघट आबाद रहे, वे रीतें, उनकी रीझें भी, कुछ लिख डालूं । ये किसने आँखें चार चुरा लीं अनजाने ! तुम लहरों पर

भूल है आराधना का

19 अप्रैल 2022
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भूल है आराधना का प्रथम यौवन भूल है आनन्द की पहली कमाई देखते ही रह गये भू से गगन तक किस तरह श्रृंगार कर-कर भूल आई ? दिशि बिदिशि साकार हरित दुकूल देखूँ? यह नये मेहमान इनको भूत देखूँ ? सीढ़ियों से

यमुना तट पर

19 अप्रैल 2022
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चाँदी की बाँहों, निशि के घूँघट पट पर ! पाषाण बोलता देखा, यमुना तट पर ! माना वंशी की टेर नहीं थी उसमें गायों की हेरा-फेर नहीं थी उसमें गोपियाँ, गोप गोविन्द न दीख रहे थे पर प्रस्तर प्रिय-पथ चढ़ना

कलेजे से कहो

19 अप्रैल 2022
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कलम की नोक से कैसी शिकायत ? कलेजे से कहो, कुछ कह सको तो ! उड़े पंछी गगन पर, सूर्य किरनें- चरण सुहला, दिखातीं विश्वास का यही हमने वहुत सीखा खुले में परंतप ! यह तुम्हारा, यह हमारा बहो मत बहक के

जलना भी कैसी छलना है-गीत

19 अप्रैल 2022
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जलना भी कैसी छलना है ? प्रणति-प्रेयसी प्राण-प्रान सँग-सँग झूलें । जलना पलना है । जलना मी कैसी छलना है ? बरसों के ले भादों-सावन बरसा कर संस्कृति पावन-धन पूछ रहे दृग-जल यमुना से कितनी दूर और

मत ढूँढ़ो कलियों में अपने अपवादों को-गीत

19 अप्रैल 2022
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मत ढूँढ़ो कलियों में अपने अपवादों को बस बंधी मूठ-सा उन्हें छुपा ही रहने दो ! चटखन के क्षण में नजरें दूर रखो रानी ! मलयज को तो मीठी सपनों-सी बहने दो ! मिट-मिट कर सहस सुगंध लुटाने वालों से पुरुषार

वे चरण

19 अप्रैल 2022
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मैंने वे चरण निहार लिये, अब देखा क्या, अनदेखा क्या ? दो बाँहों की कोमल धारा, दो नयनों की शीतल छाया, मैं ब्रह्म रूप समझा, मानो- तुम कहते रहे जिसे माया । इस सनेह-धारा के तट पर, आँसू भरे अलख पनघ

बोलो कहाँ रहें

19 अप्रैल 2022
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हम भी कुछ करते रहते हैं, उस बबूल की छांह में हम भी श्रम के गीत सुनाते हैं ढोलक पर गाँव में हम में भी आ गई हरारत, बजी आज सहनाई है केरल से काश्मीर तलक हम हैं, हम भाई-भाई रहें कावेरी, कृष्ण, की न

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