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मांग की सिंदूर रेखा

18 अक्टूबर 2021

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मांग की सिंदूर रेखा, तुमसे ये पूछेगी कल, 
"यूँ मुझे सर पर सजाने का तुम्हें अधिकार क्या है ?"
तुम कहोगी "वो समर्पण, बचपना था" तो कहेगी,
"गर वो सब कुछ बचपना था, तो कहो फिर प्यार क्या है ?"

कल कोई अल्हड अयाना, बावरा झोंका पवन का,
जब तुम्हारे इंगितो पर, गंध भर देगा चमन में,
या कोई चंदा धरा का, रूप का मारा बेचारा,
कल्पना के तार से नक्षत्र जड़ देगा गगन पर,
तब किसी आशीष का आँचल मचल कर पूछ लेगा,
"यह नयन-विनिमय अगर है प्यार तो व्यापार क्या है ?"

कल तुम्हरे गंधवाही-केश, जब उड़ कर किसी की,
आखँ को उल्लास का आकाश कर देंगे कहीं पर,
और सांसों के मलयवाही-झकोरे मुझ सरीखे
नव-तरू को सावनी-वातास कर देगे वहीँ पर,
तब यही बिछुए, महावर, चूड़ियाँ, गजरे कहेंगे,
"इस अमर-सौभाग्य के श्रृंगार का आधार क्या है ?"

कल कोई दिनकर विजय का, सेहरा सर पर सजाये,
जब तुम्हारी सप्तवर्णी छाँह में सोने चलेगा,
या कोई हारा-थका व्याकुल सिपाही जब तुम्हारे,
वक्ष पर धर शीश लेकर हिचकियाँ रोने चलेगा,
तब किसी तन पर कसी दो बांह जुड़ कर पूछ लेगी,
"इस प्रणय जीवन समर में जीत क्या है हार क्या है ?"

मांग की सिंदूर रेखा, तुमसे ये पूछेगी कल,
"यूँ मुझे सर पर सजाने का तुम्हें अधिकार क्या है ?"

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