shabd-logo

मिसेज़ डी सिल्वा

8 अप्रैल 2022

13 बार देखा गया 13

बिलकुल आमने सामने फ़्लैट थे। हमारे फ़्लैट का नंबर तेरह था। उस के फ़्लैट का चौदह। कभी कोई सामने का दरवाज़ा खटखटाता तो मुझे यही मालूम होता कि हमारे दरवाज़े पर दस्तक होरही है। इसी ग़लतफ़हमी में जब मैंने एक बार दरवाज़ा खोला तो उस से मेरी पहली मुलाक़ात हूई।

यूं तो इस से पहले कई दफ़ा मैं उसे सीढ़ीयों में, बाज़ार में और बालकोनी में देख चुकी थी मगर कभी बात करने का इत्तिफ़ाक़ न हुआ था। जब मैंने दरवाज़ा खोला तो वो मेरी तरफ़ देख कर मुस्कुराई और कहने लगी। “तुम ने समझा कोई तुम्हारे घर आया है।” मैं भी जवाब में मुस्कुरा दी। चंद लम्हात तक वो अपने दरवाज़े की दहलीज़ में और मैं अपने दरवाज़े की दहलीज़ में खड़ी रही। इस के बाद वो मुझ से और में इस से अच्छी तरह वाक़िफ़ होगई।

उस का नाम मेरी या ख़ुदा मालूम किया था। मगर उस के ख़ाविंद का नाम पी एन डिसिल्वा था चुनांचे मैं उसे मिसिज़ डी सिल्वा ही कहती थी। मैं उसे मेरी ज़रूर कहती मगर वो उम्र में मुझ से कहीं बड़ी थी। मोटे मोटे नक़्श, छोटी गर्दन, अंदर धंसी हुई नाक पकौड़ा सी, सर छोटा जिस पर कटे हुए बाल हमेशा परेशान रहते थे। आँखें दवात के मुँह की तरह खुली रहती थीं। मालूम नहीं सोते में उनकी शक्ल कैसी होती होगी?

उस का ख़ाविंद मामूली शक्ल-ओ-सूरत का आदमी था। किसी दफ़्तर में काम करता था। जब शाम को घर लौटता और मुझे बाहर बालकनी में देखता तो अपने भूरे रंग का हैट उतार कर मुझे सलाम ज़रूर करता बेहद शरीफ़ आदमी था। मिसिज़ डी सिल्वा भी बहुत मिलनसार और बाअख़लाक़ औरत थी। दोनों मियां बीवी पुर-सुकून ज़िंदगी बसर करते थे।

चार पाँच बरस का एक लड़का था उस को देख कर कभी ऐसा मालूम होता था कि बाप छोटा होगया है और कभी ऐसा मालूम होता था कि माँ सिकुड़ गई है माँ बाप दोनों के नक़्श कुछ इस तरह इस बच्चे में ख़लत-मलत होगए थे कि आदमी फ़ैसला नहीं कर सकता था कि वो माँ पर है या बाप पर।

पाँच बरस में उन के यहां सिर्फ़ यही एक बच्चा था। मिसिज़ डी सिल्वा ने एक रोज़ मुझ से कहा था। “हमारा माँ भी इस मुवाफ़िक़ बच्चा दिया करता था........ पाँच बरस के पीछे एक पहले हम हुआ। पाँच बरस के पीछे हमारा भाई हुआ........ इस के पीछे हमारा एक और बहन।”

पाँच बरस की क़ैद चूँकि पूरी हो चुकी थी। इस लिए मिसिज़ डी सिल्वा अब पेट से थी उस का ख़ाविंद बहुत ख़ुश था। मुझे मिसिज़ डी सिल्वा ने बताया कि अपनी डायरी में इस ने कई तारीखें लिख रखी हैं। पहले बच्चे की पैदाइश की तारीख़। होने वाले बच्चे की पैदाइश की तारीख़ का अंदाज़ा और वो साल जिस में कि तीसरा बच्चा पैदा होगा........ ये सारा हिसाब उस ने अपनी डायरी में दर्ज कर रखा था। मिसिज़ डी सिल्वा कहती थी कि उस के ख़ाविंद को पाँच बरस की ये क़ैद अच्छी मालूम नहीं होती। उस की समझ में नहीं आता कि एक बच्चा पैदा करने के बाद वो पाँच बरस के लिए क्यों छुट्टी पर चली जाती है। मिसिज़ डी सिल्वा ख़ुद हैरान थी मगर उसे फ़ख़्र समझती थी कि वो अपनी माँ के नक़श-ए-क़दम पर चल रही है।

मैं भी कम मुतहय्यर न थी, सोचती थी या-इलाही ये पाँच बरसों का चक्कर क्या है क्यों इन दोनों में से एक गिनती नहीं भूल जाता?........ क़ुदरत ने क्या उस औरत के अन्दर ऐसी मशीन लगा दी है कि जब पाँच साल के पाँच चक्कर ख़त्म हो जाते हैं तो खट से बच्चा पैदा हो जाता है। ख़ुदा की बातें ख़ुदा ही जाने। हमारे पड़ोस में एक और औरत भी जो डेढ़ बरस से पेट से थी। डाक्टर कहते थे कि इस के रहम में कोई ख़राबी है। बच्चा मौजूद है जो पैदा हो जाएगा मगर उस की नश्व-ओ-नुमा थोड़े थोड़े वक़्फ़ों के बाद चूँकि रुक जाती है इस लिए अभी तक इतना बड़ा नहीं हुआ कि पैदा होसके।

अम्मी जान जब मुझ से ये बातें सुनती थीं तो कहा करती थीं क़ियामत आनेवाली है ख़ुदा जाने दुनिया को क्या हो गया है। पहले कभी ऐसी बातें सुनने में नहीं आती थीं। औरतें चुप चाप नौ महीने के बाद बच्चे जन दिया करती थीं। किसी को कानों कान ख़बर भी नहीं होती थी। अब किसी के बच्चा पैदा होने वाला हो तो सारे शहर को ख़बर हो जाती है। मटका सा पेट लिए बाहर जा रही हैं। सड़कों पर घूम रही हैं। लोग देख रहे हैं मगर क्या मजाल कि उन को ज़रा सी भी हया आजाए........ आजकल तो दीदों का पानी ही मर गया है।

मैं ये सुनती थी तो दिल ही दिल में हंसती थी। अम्मी जान का पेट भी कई बार फूल कर मटका बन चुका था और या मटका लिए वो घर का सारा काम काज करती थीं हर रोज़ मार्कीट जाती थीं मगर जब दूसरों को देखती थीं या उन के मुतअल्लिक़ बातें सुनती थीं तो अपनी आँख का शहतीर नहीं देखती थीं दूसरों की आँख का तिनका उन्हें फ़ौरन नज़र आजाता था।

आदमी अगर इस मुसीबत में गिरफ़्तार हो जाये तो क्या उसे बाहर आना जाना बिलकुल बंद करदेना चाहिए। मटका सा पेट लिए बस घर में बैठे रहो। सोफे पर से उठो चारपाई पर लेट जाओ। चारपाई से उठो तो किसी कुर्सी पर लेट जाओ। मगर आफ़त तो ये है कि मटका सा पेट लिए बैठने और लेटने में भी तो तकलीफ़ होती है। जी चाहता है कि आदमी चले फिरे ताकि बोझ कुछ हल्का हो। ये किया कि पेट में बड़ी सी फुटबाल डाले घर की चार दीवारी में क़ैद रहो। समझ में नहीं आता कि अम्मी जान हया क्यों तारी करना चाहती हैं। भई अगर कोई पेट से है तो क्या इस का क़सूर है? इस ने कोई शर्मनाक बात की है जो वो शर्म महसूस करे।

जब ख़ुदा की तरफ़ से ये मुसीबत औरतों पर आइद करदी गई कि वो एक मुक़र्ररा मुद्दत तक बच्चे को पैट में रखें तो इस में शर्माने और लज्जाने की बात ही क्या है और इस का ये मतलब भी नहीं कि सब काम छोड़कर आदमी बिलकुल निकम्मा हो जाये इस लिए कि उसे बच्चा पैदा करना है। बच्चा पैदा होता रहे। अब क्या इस के लिए बाहर आना जाना मौक़ूफ़ कर दिया जाये। लोग हंसते हैं तो हंसें, क्या उन के घर में उन की माएं और बहनें कभी पेट से नहीं होंगी। भई, मुझे तो अम्मी जान की ये मंतिक़ बड़ी अजीब सी मालूम होती है असल में उन की आदत ये है कि ख़्वाह-मख़्वाह हर बात पर अपना लैक्चर शुरू कर देती है ख़ाह किसी को बुरा लगे या अच्छा। अपनी लड़की की बात हो तो कभी कुछ न कहेंगी। पिछली दफ़ा जब आरिफ़ मेरे पैट में था और मैं हर रोज़ अपोलो बंदर सैर को जाती थी तो कसम ले लो जो उन के मुँह से मेरे ख़िलाफ़ कुछ निकला हो, पर अब चूँकि बात मिसिज़ डी सिल्वा की थी जो बेचारी सिर्फ़ इतवार की सुबह गिरजा में नमाज़ पढ़ने और शाम को सौदा सलफ़ लाने के लिए अपने ख़ाविंद के साथ बाहर निकलती थी इस लिए अम्मी जान को तो ये है बीवी, तो ये है बीवी कहने का मौक़ा मिल जाता है।

पहले बच्चे पर पेट ज़्यादा नहीं फूलता, लेकिन दूसरे बच्चे को चूँकि फैलने के लिए ज़्यादा जगह मिल जाती है। इस लिए पेट बहुत बड़ा हो जाता है।

मिसिज़ डी सिल्वा लंबा सा चुग़ा पहने जब घर में चलती फिरती थी तो उस का पेट बहुत बदनुमा मालूम होता था। क़द इस का छोटा था। पिंडुलियां जो बहुत पतली थीं और चुग्गे के नीचे आहिस्ता आहिस्ता हरकत करती थीं। बहुत ही भद्दी तस्वीर पेश करती थीं। ऐसा मालूम होता था कि घड़ौंची पर मटका रखा है सारा दिन इस लंबे चुग्गे में वो कार्टून बनी रहती थी।

शुरू शुरू में बेचारी की बहुत बुरी हालत हूई थी। हरवक़त क़ै और मतली। क़ुलफ़ी वाले की आवाज़ सुनती तो तड़प जाती उस को बुलाती लेकिन जब खाने लगती तो फ़ौरन ही जी मालिश करने लगता। सारा दिन लेमू चूसती रहती।

एक दिन दोपहर के वक़्त में इस के यहां गई। क्या देखती हूँ कि बिस्तर पर लेटी है लेकिन टांगें ऊपर उठा रखी हैं मैंने मुस्कुरा कर कहा। “मिसिज़ डी सिल्वा एक्सरसाइज़ कररही हो क्या।”

झुँझला कर बोली। “हम बहुत तंग आगया है। यूं टांगें ऊपर करता है तो हमारा तबीयत कुछ ठीक हो जाता है।”

ठंडी ठंडी दीवार के साथ पैर लगाने से उसे कुछ तसकीन होती थी। बाअज़ औक़ात उस की तबीयत घबराती थी तो ज़ोर ज़ोर से मेज़ को या बिस्तर को जहां भी वो बैठी हो मक्खियां मारना शुरू करदेती थी। और जब इस तरह घबराहट कम नहीं होती थी तो तंग आकर रोना शुरू करदेती थी।

उस की ये हालत देख कर मुझे बहुत हंसी आती थी। चुनांचे वो तमाम तकलीफें जो मुझ पर बीत चुकी थीं भूल कर इस से कहा करती थी। “मिसिज़ डी सिल्वा जानबूझ कर तुम ने ये मुसीबत क्यों मोल ली।”

इस पर वो बिगड़ कर कहती। “हम ने कब लिया। पाँच बरस के पीछे साला ये होने को ही मांगता था।”

मैं कहती। “तो मिसिज़ डी सिल्वा पांचवें साल तुम बैंगलौर क्यों न चली गईं।”

वो जवाब देती “हम चला जाता। सच्च हम जाने को एक दम तैय्यार था पर ये वार स्टार्ट होगया। हम वहां रहता हमारा साहब यहां रहता........ ख़र्च बहुत होता। सौ ये सोच कर हम न गया और साला ये आफ़त सर पर आन पड़ा।”

शुरू शुरू में मिसिज़ डी सिल्वा को ये आफ़त मालूम होती थीं पर अब वो ख़ुश थी कि दूसरा बच्चा पैदा होने वाला है। क़ै और मतली ख़त्म होगई थी। टांगें ऊपर करके लेटने की अब ज़रूरत नहीं थी क्योंकि उस की तबीयत ठीक रहती थी। ये सिलसिला सिर्फ़ पहले दो महीने तक रहा था।

अब उसे कोई तकलीफ़ नहीं थी। एक सिर्फ़ कभी कभी पेट में एंठन सी पैदा हो जाती थी या बच्चा जब पेट में फिरता था तो उसे थोड़े अर्से के लिए बेचैनी सी महसूस होती थी।

मिसिज़ डी सिल्वा बिलकुल तैय्यार थी। छोटे छोटे फ़राक़ सी कर उस ने एक छोटे से मुने बैग में रख छोड़े थे। नहालचे पोतड़े भी तैय्यार थे। उस का ख़ाविंद लोहे का एक झूला भी ले आया था। उस के लिए मिसिज़ डी सिल्वा ने पुराने तकीयों के रोटर से एक गदा भी बना लिया था। ग़रज़ कि सब सामान तैय्यार था। अब मिसिज़ डी सिल्वा को सिर्फ़ किसी हस्पताल में जा कर बच्चा जन देना था और बस।

मिस्टर डी सिल्वा ने दो महीने पहले हस्पताल में अपनी बीवी के लिए जगह बुक कर रखी थी पाँच रुपय ऐडवान्स दे दिए थे ताकि ऐन वक़्त पर गड़बड़ ना हो और हस्पताल में जगह मिल जाये। मिस्टर डी सिल्वा बहुत दूर अंदेश था। पहले बच्चे की पैदाइश पर भी इस के इंतिज़ामात ऐसे ही मुकम्मल थे।

मिसिज़ डी सिल्वा अपने ख़ाविंद से भी कहीं ज़्यादा दूर अंदेश थी जैसा कि मैं बता चुकी हूँ उस ने इन नौ महीनों के अंदर अंदर वो तमाम सामान तैय्यार कर लिया था जो बच्चे के पहले दो बरसों के लिए ज़रूरी होता है। नीचे बिछाने के लिए रबड़ के कपड़े फीडर, चसनयां, झुनझुने और दूसरे जापानी खिलौने और इसी क़िस्म की और चीज़ें सब बड़ी एहतियात से उस ने एक अलाहिदा ट्रंक में बंद कर रखी थीं। हर दूसरे तीसरे दिन वो ये ट्रंक खोल कर बैठ जाती थी और इन चीज़ों को और ज़्यादा करीने से रखने की कोशिश करती थी दरअसल वो दिन गिनती थी कि जल्दी बच्चा पैदा हो और वो उसे गोद में लेकर खिलाए दूध पिलाए। लोरियां दे और झवे में लिटा कर सुलाये। पाँच बरस की तातील के बाद अब गोया उस का स्कूल खुलने वाला था वो उतनी ही ख़ुश थी जितना कि तालिब-ए-इल्म ऐसे मौक़ों पर हुआ करते हैं।

हमारी बिल्डिंग के सामने एक पार्सी डाक्टर का मतब था। उस डाक्टर के पास मिसिज़ डी सिल्वा हर रोज़ नौकर के हाथ अपना क़ारूरा भेजती थी, कहते हैं आख़िरी दिनों में क़ारूरा देख कर डाक्टर बता सकते हैं कि बच्चा कब पैदा होगा। मिसिज़ डी सिल्वा का ख़याल था कि दिन पूरे होगए हैं। मगर ये डाक्टर कहता था कि नहीं अभी कुछ दिन बाक़ी हैं।

एक रोज़ में ग़ुसलख़ाने में नहा रही थी कि मैंने मिसिज़ डी सिल्वा की घबराई हुई आवाज़ सुनी, फिर दरवाज़ा खुला और मिसिज़ डी सिल्वा के कराहने की आवाज़ आई। मैंने खिड़की खोल कर देखा तो मिसिज़ डी सिल्वा अपने ख़ाविंद का सहारा लेकर उतरने वाली थी। रंग हल्दी की तरह ज़र्द था। मेरी तरफ़ देख कर उस ने मुस्कराने की कोशिश की। मैंने बड़ी बूढ़ी औरतों का सा अंदाज़ इख़्तियार करके कहा। “साथ ख़ैर के जाओ और साथ ख़ैर के वापिस आओ।”

मिस्टर डी सिल्वा ने जब मेरी आवाज़ सुनी तो मुस्कुरा कर अपने भूरे रंग का हैट उतार मुझे सलाम किया। मैंने उस से कहा। “मिस्टर डी सिल्वा जूंही बेबी हो मुझे ज़रूर ख़बर दीजीएगा।”

वो मुस्कुराहट जो मिस्टर डी सिल्वा के मैले होंटों पर सलाम करते वक़्त पैदा हो चुकी थी, ये सुन कर और फैल गई।

सारा दिन मेरा ध्यान मिसिज़ डी सिल्वा ही में पड़ा रहा। कई बार दरवाज़ा खोल कर देखा मगर हस्पताल से ना तो नौकर ही वापिस आया था ना मिसिज़ डी सिल्वा का ख़ाविंद, शाम होगई। ख़ुदा जाने ये लोग कहाँ ग़ायब होगए थे। मुझे कुछ दिनों के लिए माहिम जाना था जहां मेरी बहन रहती थी। मुझे लेने के लिए आदमी भी आगया मगर हस्पताल से कोई ख़बर न आई।

तीसरे रोज़ माहिम से जब में वापिस आई तो अपने घर जाने के बजाय मैंने मिसिज़ डी सिल्वा के दरवाज़े पर दस्तक दी। थोड़ी देर के बाद दरवाज़ा खुला क्या देखती हूँ कि मिसिज़ डी सिल्वा मेरे सामने खड़ी है........ मटका सा पेट लिए मैंने हैरतज़दा हो कर पूछा। “ये किया?”

वो मुझे अंदर ले गई और कहने लगी। “हम को दर्द हुआ तो हम समझा टाइम पूरा हुआ वहां हस्पताल में गया और जब नर्स ने बैड पर लिटाया तो दर्द एक दम ग़ायब होगया........ हम बड़ा हैरान हुआ। नर्स लोग तो बड़ा हंसा बोला। इतना जल्दी तुम यहां क्यों आगया। अभी कुछ दिन घर पर और ठहरो। पीछे आओ........ हम को बहुत शर्म आया।”

इस का ये बयान सुन कर में बहुत हंसी वो भी हंसी। देर तक हम दोनों हंसते रहे। इस के बाद इस ने मुझे सारा वाक़िया तफ़सील से सुनाया कि किस तरह टैक्सी में बैठ कर वो हस्पताल गई। वहां एक कमरे में उसके तमाम कपड़े उतारे गए। नाम वग़ैरा दर्ज किया गया और एक बिस्तर पर लिटा कर उसे नर्सें दूसरे कमरे में चली गईं जहां से कई दफ़ा उसे चीख़ों की आवाज़ सुनाई दी। इस बिस्तर पर वो चार पाँच घंटे तक पड़ी रही इस दौरान में पहले एक नर्स आई इस ने उसे नहाने को कहा। नहाने से फ़ारिग़ हुई तो एक नर्स आई उस ने उसे इनेमा दिया। इनेमा देने के बाद तीसरी नर्स आई जो उस के इंजैक्शन लगा गई। इस के बाद डाक्टर आई उस ने पेट वेट देखा तो झुँझला कर कहा। “तुम क्यों इतनी जल्दी यहां आगया है। अभी घर जा कर आराम करो।” सब नर्सें हँसने लगीं। वो पानी पानी होगई। कपड़े वपड़े पहन कर बाहर निकल आई जहां उस का ख़ाविंद खड़ा था।

दोनों को चूँकि नाउम्मीदी का सामना करना पड़ा था और मिस्टर डी सिल्वा ने उस दिन की छुट्टी ले रखी थी इस लिए वो रीगल सिनेमा में मैटिनी शो देखने के लिए चले गए।

मिसिज़ डी सिल्वा को सख़्त हैरत थी कि ये हुआ क्या पिछली दफ़ा जब इस के बच्चा होने वाला था तो वो ऐन मौक़ा पर हस्पताल पहुंची थी। अब इस का अंदाज़ा ग़लत क्यों निकला। दर्द ज़रूर हुआ था और ये बिलकुल वैसा ही था जो उसे पहले बच्चे की पैदाइश से थोड़ी देर पहले हुआ था फिर ये गड़बड़ क्यों होगई?

छट्ठे रोज़ शाम को साढ़े आठ बजे के क़रीब में बालकनी में बैठी थी कि मिसिज़ डी सिल्वा का नौकर आया। दस रुपय का नोट इस के हाथ में था कहने लगा। “मेमसाहब ने छुट्टा मांगा है। वो हस्पताल जा रही है।” मैंने झप पट दस रुपय की रेज़गारी निकाली और भागी भागी वहां गई। मियां बीवी दोनों तैय्यार थे। मिसिज़ डी सिल्वा का रंग हल्दी की तरह ज़र्द था। दर्द के मारे इस का बुरा हाल होरहा था। मैंने और इस के ख़ाविंद ने सहारा देकर उसे नीचे उतारा और टैक्सी में बिठा दिया। “साथ ख़ैर के जाओ और साथ ख़ैर के वापिस आओ।” कह मैं ऊपर गई और इंतिज़ार करने लगी।

रात के बारह बजे तक में सीढ़ीयों की तरफ़ कान लगाए। बैठी रही। मगर हस्पताल से कोई वापिस न आया। थक हार कर सौ गई। सुबह उठी तो धोबी आगया इस से पंद्रह धुलाइयों का हिसाब करने में कुछ ऐसी मशग़ूल हुई कि मिसिज़ डी सिल्वा का ध्यान ही न रहा।

धोबी मैले कपड़ों की गठड़ी बांध कर बाहर निकला। मैं दरवाज़े के सामने बैठी थी। इस ने बाहर निकल कर मिसिज़ डी सिल्वा के दरवाज़े पर दस्तक दी। दरवाज़ा खुला क्या देखती हूँ कि मिसिज़ डी सिल्वा खड़ी है मटका सा पेट लिए।

मैंने क़रीब क़रीब चीख़ कर पूछा: “मिसिज़ डी सिल्वा........ फिर वापिस आगईं।”

जब इस के पास गई तो वो मुझे दूसरे कमरे में ले गई। शर्म से उस का चेहरा गहरे साँवले रंग के बावजूद सुर्ख़ होरहा था। रुक रुक कर इस ने मुझ से कहा। “कुछ समझ में नहीं आता। दर्द बिलकुल पहले के मुवाफ़िक़ होता है पर वहां नर्स लोग कहता है कि जाओ घर जाओ अभी देर है........ ये क्या हो रहा है?........ ”

ये कहते हुए उस की आँखों में आँसू आगए। बेचारी की हालत क़ाबिल-ए-रहम थी ऐसा मालूम होता था कि इस मर्तबा नर्सों ने उसे बहुत बुरी तरह झिड़का था। हैरत। शर्म और बौखलाहट ने मिल जुल कर उस को इस क़दर क़ाबिल-ए-रहम बना दिया था कि मुझे इस के साथ थोड़े अर्सा के लिए इंतिहाई हमदर्दी होगई। मैं देर तक उस से बातें करती रही। उस को समझाया कि इस में शर्म की बात ही क्या है। जब बच्चा होने वाला हो तो ऐसी गलतफहमियां हो ही जाया करती हैं। नर्सों का काम है बच्चे जनाना। उन के पास आदमी इसी लिए जाता है कि आसानी से ये मरहला तै हो जाये। उन्हें मज़ाक़ उड़ाने का कोई हक़ हासिल नहीं। और जब फ़ीस वग़ैरा दी जाएगी और ऐडवान्स दे दिया गया है तो फिर वो बेकार बातें क्यों बनाती हैं।

मिसिज़ डी सिल्वा की परेशानी कम न हुई। बात ये थी कि उस का ख़ाविंद दफ़्तर से दो दफ़ा छुट्टी ले चुका था। बड़े साहब से लेकर चपरासी तक सब को मालूम था कि बच्चा होने वाला है। अब वो मुँह दिखाने के क़ाबिल नहीं रहा था। इसी तरह मुहल्ले में सब को मालूम था कि मिसिज़ डी सिल्वा दो बार हस्पताल जा कर वापिस आचुकी है। कई औरतें इस के पास आचुकी थीं और उन सब को फ़र्दन फ़र्दन उसे बताना पड़ा था कि बच्चा अभी तक पैदा क्यों नहीं हुआ। हर एक से उस ने झूट बोला था। वो एक पक्की क्रिस्चियन औरत थी, झूट बोलने पर उसे सख़्त रुहानी तकलीफ़ होती थी। मगर क्या करती मजबूर थी।

सातवें रोज़ जब में दोपहर का खाना खाने के बाद पलंग पर लेट कर क़रीब क़रीब सौ चुकी थी। दफ़्फ़ातन मेरे कानों में बच्चे के रोने की आवाज़ आई। ये किया?........ दौड़ कर मैंने दरवाज़ा खोला। सामने फ़्लैट से मिसिज़ डी सिल्वा का नौकर घबराया हुआ बाहर निकल रहा था। उस का रंग फ़क़ था। कहने लगा। “मेमसाहब, बेबी........ मेमसाहब बेबी........ ” मैंने अंदर जा कर देखा तो मिसिज़ डी सिल्वा नीम मदहोशी की हालत में पड़ी थी, बेचारी ने अब मज़ीद नदामत के ख़ौफ़ से वहीं बच्चा जन दिया था।

61
रचनाएँ
सआदत हसन मंटो की लोकप्रिय कहानियाँ
0.0
मंटो की लोकप्रिय कहानियाँ उतनी महत्वपूर्ण है कि मंटो ने इतने बरस पहले जो कुछ लिखा उसमें आज की हकीकत सिमटी नजर आती है मंटो की लोकप्रिय कहानियाँ उतनी महत्वपूर्ण है कि मंटो ने इतने बरस पहले जो कुछ लिखा उसमें आज की हकीकत सिमटी नजर आती है
1

शो शो

8 अप्रैल 2022
7
0
0

घर में बड़ी चहल पहल थी। तमाम कमरे लड़के लड़कियों, बच्चे बच्चियों और औरतों से भरे थे। और वो शोर बरपा हो रहा था। कि कान पड़ी आवाज़ सुनाई ना देती थी। अगर उस कमरे में दो तीन बच्चे अपनी माओं से लिपटे दूध पीने क

2

सहाय

8 अप्रैल 2022
2
0
0

“ये मत कहो कि एक लाख हिंदू और एक लाख मुस्लमान मरे हैं...... ये कहो कि दो लाख इंसान मरे हैं...... और ये इतनी बड़ी ट्रेजडी नहीं कि दो लाख इंसान मरे हैं, ट्रेजडी अस्ल में ये है कि मारने और मरने वाले किसी

3

हरनाम कौर

8 अप्रैल 2022
0
0
0

निहाल सिंह को बहुत ही उलझन हो रही थी। स्याह-व-सफ़ैद और पत्ली मूंछों का एक गुच्छा अपने मुँह में चूसते हुए वो बराबर दो ढाई घंटे से अपने जवान बेटे बहादुर की बाबत सोच रहा था। निहाल सिंह की अधेड़ मगर तेज़

4

हामिद का बच्चा

8 अप्रैल 2022
0
0
0

लाहौर से बाबू हरगोपाल आए तो हामिद घर का रहा ना घाट का। उन्हों ने आते ही हामिद से कहा। “लो भई फ़ौरन एक टैक्सी का बंद-ओ-बस्त करो।” हामिद ने कहा। “आप ज़रा तो आराम कर लीजिए। इतना लंबा सफ़र तय करके यहां आए ह

5

सोने कि अंगूठी

8 अप्रैल 2022
1
0
0

सोने कि अंगूठी सआदत हसन मंटो “छत्ते का छत्ता होगया आप के सर पर मेरी समझ में नहीं आता कि बाल न कटवाना कहाँ का फ़ैशन है ” “फ़ैशन वेशन कुछ नहीं तुम्हें अगर बाल कटवाने पड़ें तो क़दर-ए-आफ़ियत मालूम हो जाये

6

हाफ़िज़ हुसैन दीन

8 अप्रैल 2022
0
0
0

हाफ़िज़ हुसैन दीन जो दोनों आँखों से अंधा था, ज़फ़र शाह के घर में आया। पटियाले का एक दोस्त रमज़ान अली था, जिस ने ज़फ़र शाह से उस का तआरुफ़ कराया। वो हाफ़िज़ साहिब से मिल कर बहुत मुतअस्सिर हुआ। गो उन की

7

हारता चला गया

8 अप्रैल 2022
0
0
0

लोगों को सिर्फ़ जीतने में मज़ा आता है। लेकिन उसे जीत कर हार देने में लुत्फ़ आता है। जीतने में उसे कभी इतनी दिक़्क़त महसूस नहीं हुई। लेकिन हारने में अलबत्ता उसे कई दफ़ा काफ़ी तग-ओ-दो करना पड़ी। शुरू शुर

8

अंजाम-ए-नजीर

8 अप्रैल 2022
0
0
0

बटवारे के बाद जब फ़िर्का-वाराना फ़सादात शिद्दत इख़्तियार कर गए और जगह जगह हिंदूओं और मुस्लमानों के ख़ून से ज़मीन रंगी जाने लगी तो नसीम अख़तर जो दिल्ली की नौ-ख़ेज़ तवाइफ़ थी अपनी बूढ़ी माँ से कहा “चलो माँ यहां

9

अब्जी डूडू

8 अप्रैल 2022
0
0
0

“मुझे मत सताईए....... ख़ुदा की क़सम, मैं आप से कहती हूँ, मुझे मत सताईए” “तुम बहुत ज़ुल्म कर रही हो आजकल!” “जी हाँ बहुत ज़ुल्म कर रही हूँ” “ये तो कोई जवाब नहीं” “मेरी तरफ़ से साफ़ जवाब है और ये मैं आप

10

इज़्ज़त के लिए

8 अप्रैल 2022
0
0
0

चवन्नी लाल ने अपनी मोटर साईकल स्टाल के साथ रोकी और गद्दी पर बैठे बैठे सुबह के ताज़ा अख़्बारों की सुर्ख़ियों पर नज़र डाली। साईकल रुकते ही स्टाल पर बैठे हुए दोनों मुलाज़िमों ने उसे नमस्ते कही थी। जिस का जवा

11

इफ़्शा-ए-राज़

8 अप्रैल 2022
0
0
0

“मेरी लगदी किसे न वेखी वे ते टुटदी नूँ जग जाणदा” “ये आप ने गाना क्यों शुरू कर दिया है” “हर आदमी गाता और रोता है कौनसा गुनाह किया है?” “कल आप ग़ुसल-ख़ाने में भी यही गीत गा रहे थे” “ग़ुसल-ख़ाने में तो ह

12

क़ब्ज़

8 अप्रैल 2022
0
0
0

नए लिखे हुए मुकालमे का काग़ज़ मेरे हाथ में था। ऐक्टर और डायरेक्टर कैमरे के पास सामने खड़े थे। शूटिंग में अभी कुछ देर थी। इस लिए कि स्टूडीयो के साथ वाला साबुन का कारख़ाना चल रहा था। हर रोज़ इस कारख़ाने के

13

कुत्ते की दुआ

8 अप्रैल 2022
0
0
0

“आप यक़ीन नहीं करेंगे। मगर ये वाक़िया जो मैं आप को सुनाने वाला हूँ, बिलकुल सही है।” ये कह कर शेख़ साहब ने बीड़ी सुलगाई। दो तीन ज़ोर के कश लेकर उसे फेंक दिया और अपनी दास्तान सुनाना शुरू की। शेख़ साहब के म

14

कोट पतलून

8 अप्रैल 2022
0
0
0

नाज़िम जब बांद्रा में मुंतक़िल हुआ तो उसे ख़ुशक़िसमती से किराए वाली बिल्डिंग में तीन कमरे मिल गए। इस बिल्डिंग में जो बंबई की ज़बान में चाली कहलाती है, निचले दर्जे के लोग रहते थे। छोटी छोटी (बंबई की ज़बान

15

ख़ालिद मियां

8 अप्रैल 2022
1
0
0

मुमताज़ ने सुबह सवेरे उठ कर हसब-ए-मामूल तीनों कमरे में झाड़ू दी। कोने खद्दरों से सिगरटों के टुकड़े, माचिस की जली हुई तीलियां और इसी तरह की और चीज़ें ढूंढ ढूंढ कर निकालें। जब तीनों कमरे अच्छी तरह साफ़ होगए

16

ख़ुदकुशी

8 अप्रैल 2022
0
0
0

ज़ाहिद सिर्फ़ नाम ही का ज़ाहिद नहीं था, उस के ज़ुहद-ओ-तक़वा के सब क़ाइल थे, उस ने बीस पच्चीस बरस की उम्र में शादी की, उस ज़माने में उस के पास दस हज़ार के क़रीब रुपय थे, शादी पर पाँच हज़ार सर्फ़ हो गए, उतनी ह

17

गिलगित ख़ान

8 अप्रैल 2022
0
0
0

शहबाज़ ख़ान ने एक दिन अपने मुलाज़िम जहांगीर को जो उस के होटल में अंदर बाहर का काम करता था उस की सुस्त-रवी से तंग आकर बर-तरफ़ कर दिया। असल में वो सुस्त-रो नहीं था। इस क़दर तेज़ था कि उस की हर हरकत शहबाज़ ख़ान

18

घोगा

8 अप्रैल 2022
0
0
0

मैं जब हस्पताल में दाख़िल हुआ तो छट्ठे रोज़ मेरी हालत बहुत ग़ैर होगई। कई रोज़ तक बे-होश रहा। डाक्टर जवाब दे चुके थे लेकिन ख़ुदा ने अपना करम किया और मेरी तबीयत सँभलने लगी। इस दौरान की मुझे अक्सर बातें या

19

चुग़द

8 अप्रैल 2022
0
0
0

लड़कों और लड़कियों के मआशिक़ों का ज़िक्र हो रहा था। प्रकाश जो बहुत देर से ख़ामोश बैठा अंदर ही अंदर बहुत शिद्दत से सोच रहा था, एक दम फट पड़ा। सब बकवास है, सौ में से निन्नानवे मआशिक़े निहायत ही भोंडे और लचर

20

जानकी

8 अप्रैल 2022
0
0
0

पूना में रेसों का मौसम शुरू होने वाला था कि पिशावर से अज़ीज़ ने लिखा कि मैं अपनी एक जान पहचान की औरत जानकी को तुम्हारे पास भेज रहा हूँ, उस को या तो पूना में या बंबई में किसी फ़िल्म कंपनी में मुलाज़मत करा

21

तरक़्क़ी पसंद

8 अप्रैल 2022
0
0
0

जोगिंदर सिंह के अफ़साने जब मक़बूल होना शुरू हुए तो उसके दिल में ख़्वाहिश पैदा हुई कि वो मशहूर अदीबों और शाइरों को अपने घर बुलाए और उन की दावत करे। उस का ख़याल था कि यूं उस की शौहरत और मक़बूलियत और भी ज़्

22

दीवाना शायर

8 अप्रैल 2022
0
0
0

[अगर मुक़द्दस हक़ दुनिया की मुतजस्सिस निगाहों से ओझल कर दिया जाये। तो रहमत हो उस दीवाने पर जो इंसानी दिमाग़ पर सुनहरा ख़्वाब तारी कर दे।] मैं आहों का ब्योपारी हूँ, लहू की शायरी मेरा काम है, चमन की मा

23

निक्की

8 अप्रैल 2022
0
0
0

तलाक़ लेने के बाद वो बिलकुल नचनत होगई थी। अब वो हर रोज़ की वानिता कुल कुल और मार कटाई नहीं थे। निक्की बड़े आराम-ओ-इत्मिनान से अपना गुज़र औक़ात कर रही थी। ये तलाक़ पूरे दस बरस के बाद हुई थी। निक्की का श

24

परी

8 अप्रैल 2022
0
0
0

कश्मीरी गेट दिल्ली के एक फ़्लैट में अनवर की मुलाक़ात परवेज़ से हुई। वो क़तअन मुतअस्सिर न हुआ। परवेज़ निहायत ही बेजान चीज़ थी। अनवर ने जब उस की तरफ़ देखा और उस को आदाब अर्ज़ कहा तो उस ने सोचा “ये क्या है औरत

25

पसीना

8 अप्रैल 2022
0
0
0

“मेरे अल्लाह!............... आप तो पसीने में शराबोर हो रहे हैं।” “नहीं। कोई इतना ज़्यादा तो पसीना नहीं आया।” “ठहरिए में तौलिया ले कर आऊं।” “तौलिए तो सारे धोबी के हाँ गए हुए हैं।” “तो मैं अपने दोपट्

26

पढ़े कलिमा

8 अप्रैल 2022
0
0
0

ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह...... आप मुस्लमान हैं यक़ीन करें मैं जो कुछ कहूंगा, सच्च कहूंगा। पाकिस्तान का इस मुआमले से कोई तअल्लुक़ नहीं। क़ाइद-ए-आज़म जिन्नाह के लिए मैं जान देने के लिए तैय

27

पीरन

8 अप्रैल 2022
0
0
0

ये उस ज़माने की बात है जब मैं बेहद मुफ़लिस था। बंबई में नौ रुपये माहवार की एक खोली में रहता था जिस में पानी का नल था न बिजली। एक निहायत ही ग़लीज़ कोठड़ी थी जिस की छत पर से हज़ारहा खटमल मेरे ऊपर गिरा करते थ

28

पढ़े कलिमा

8 अप्रैल 2022
0
0
0

ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह...... आप मुस्लमान हैं यक़ीन करें मैं जो कुछ कहूंगा, सच्च कहूंगा। पाकिस्तान का इस मुआमले से कोई तअल्लुक़ नहीं। क़ाइद-ए-आज़म जिन्नाह के लिए मैं जान देने के लिए तैय

29

फ़रिश्ता

8 अप्रैल 2022
0
0
0

सुर्ख़ खुरदरे कम्बल में अताउल्लाह ने बड़ी मुश्किल से करवट बदली और अपनी मुंदी हुई आँखें आहिस्ता आहिस्ता खोलीं। कुहरे की दबीज़ चादर में कई चीज़ें लिपटी हुई थीं जिन के सही ख़द्द-ओ-ख़ाल नज़र नहीं आते थे। एक लं

30

फाहा

8 अप्रैल 2022
0
0
0

गोपाल की रान पर जब ये बड़ा फोड़ा निकला तो इस के औसान ख़ता हो गए। गरमियों का मौसम था। आम ख़ूब हुए थे। बाज़ारों में, गलियों में, दुकानदारों के पास, फेरी वालों के पास, जिधर देखो, आम ही आम नज़र आते। लाल, पीले

31

फुंदने

8 अप्रैल 2022
0
0
0

कोठी से मुल्हक़ा वसीअ-ओ-अरीज़ बाग़ में झाड़ियों के पीछे एक बिल्ली ने बच्चे दिए थे, जो बिल्ला खा गया था। फिर एक कुतिया ने बच्चे दिए थे जो बड़े बड़े हो गए थे और दिन रात कोठी के अंदर बाहर भौंकते और गंदगी बिखेर

32

बलवंत सिंह मजीठिया

8 अप्रैल 2022
0
0
0

शाह साहब से जब मेरी मुलाक़ात हुई तो हम फ़ौरन बे-तकल्लुफ़ हो गए। मुझे सिर्फ़ इतना मालूम था कि वो सय्यद हैं और मेरे दूर-दराज़ के रिश्तेदार भी हैं। वो मेरे दूर या क़रीब के रिश्तेदार कैसे हो सकते थे, इस के मु

33

बाई बाई

8 अप्रैल 2022
0
0
0

नाम उस का फ़ातिमा था पर सब उसे फातो कहते थे बानिहाल के दुर्रे के उस तरफ़ उस के बाप की पन-चक्की थी जो बड़ा सादा लौह मुअम्मर आदमी था। दिन भर वो इस पन चक्की के पास बैठी रहती। पहाड़ के दामन में छोटी सी जगह थ

34

बादशाहत का ख़ात्मा

8 अप्रैल 2022
0
0
0

टेलीफ़ोन की घंटी बिजी। मनमोहन पास ही बैठा था। उस ने रीसीवर उठाया और कहा “हेलो....... फ़ौर फ़ौर फ़ौर फाईव सेवन” दूसरी तरफ़ से पतली सी निस्वानी आवाज़ आई। “सोरी....... रोंग नंबर” मनमोहन ने रीसीवर रख दिया और

35

बिलाउज़

8 अप्रैल 2022
0
0
0

कुछ दिनों से मोमिन बहुत बेक़रार था। उस को ऐसा महसूस होता था कि इस का वजूद कच्चा फोड़ा सा बन गया था। काम करते वक़्त, बातें करते हुए हत्ता कि सोचने पर भी उसे एक अजीब क़िस्म का दर्द महसूस होता था। ऐसा दर्द

36

सरकण्डों के पीछे

8 अप्रैल 2022
0
0
0

कौन सा शहर था, इस के मुतअल्लिक़ जहां तक में समझता हूँ, आप को मालूम करने और मुझे बताने की कोई ज़रूरत नहीं ।बस इतना ही कह देना काफ़ी है कि वो जगह जो इस कहानी से मुतअल्लिक़ है, पेशावर के मुज़ाफ़ात में थी। सरहद

37

मिसिज़ गुल

8 अप्रैल 2022
1
0
0

मैंने जब उस औरत को पहली मर्तबा देखा तो मुझे ऐसा महसूस हुआ कि मैंने लेमूँ निचोड़ ने वाला खटका देखा है। बहुत दुबली पतली, लेकिन बला की तेज़। उस का सारा जिस्म सिवाए आँखों के इंतिहाई ग़ैर निस्वानी था। ये आँख

38

मलबे का ढेर

8 अप्रैल 2022
0
0
0

कामिनी के ब्याह को अभी एक साल भी न हुआ था कि उस का पति दिल के आरिज़े की वजह से मर गया और अपनी सारी जायदाद उस के लिए छोड़ गया। कामिनी को बहुत सदमा पहुंचा, इस लिए कि वो जवानी ही में बेवा हो गई थी। उस की

39

महमूदा

8 अप्रैल 2022
0
0
0

मुस्तक़ीम ने महमूदा को पहली मर्तबा अपनी शादी पर देखा। आरसी मसहफ़ की रस्म अदा हो रही थी कि अचानक उस को दो बड़ी बड़ी.......ग़ैर-मामूली तौर पर बड़ी आँखें दिखाई दीं.......ये महमूदा की आँखें थीं जो अभी तक कुंवार

40

मिसेज़ डी सिल्वा

8 अप्रैल 2022
1
0
0

बिलकुल आमने सामने फ़्लैट थे। हमारे फ़्लैट का नंबर तेरह था। उस के फ़्लैट का चौदह। कभी कोई सामने का दरवाज़ा खटखटाता तो मुझे यही मालूम होता कि हमारे दरवाज़े पर दस्तक होरही है। इसी ग़लतफ़हमी में जब मैंने एक

41

मेरा हमसफ़र

9 अप्रैल 2022
0
0
0

प्लेटफार्म पर शहाब, सईद और अब्बास ने एक शोर मचा रखा था। ये सब दोस्त मुझे स्टेशन पर छोड़ने के लिए आए थे, गाड़ी प्लेटफार्म को छोड़ कर आहिस्ता आहिस्ता चल रही थी कि शहाब ने बढ़ कर पाएदान पर चढ़ते हुए मुझ से

42

मेरा और उसका इंतिक़ाम

9 अप्रैल 2022
0
0
0

घर में मेरे सिवा कोई मौजूद नहीं था। पिता जी कचहरी में थे और शाम से पहले कभी घर आने के आदी न थे। माता जी लाहौर में थीं और मेरी बहन बिमला अपनी किसी सहेली के हाँ गई थी! मैं तन्हा अपने कमरे में बैठा किताब

43

वह लड़की

9 अप्रैल 2022
0
0
0

सवा-चार बज चुके थे लेकिन धूप में वही तमाज़त थी जो दोपहर को बारह बजे के क़रीब थी। उस ने बालकनी में आ कर बाहर देखा तो उसे एक लड़की नज़र आई जो बज़ाहिर धूप से बचने के लिए एक साया-दार दरख़्त की छांव में आलती पाल

44

वो ख़त जो पोस्ट न किये गए

9 अप्रैल 2022
0
0
0

हव्वा की एक बेटी के चंद ख़ुतूत जो उस ने फ़ुर्सत के वक़्त मुहल्ले के चंद लोगों को लिखे। मगर इन वजूह की बिना पर पोस्ट न किए गए जो इन ख़ुतूत में नुमायां नज़र आती हैं। (नाम और मुक़ाम फ़र्ज़ी हैं) पहला ख़त म

45

शादी

9 अप्रैल 2022
0
0
0

जमील को अपना शैफर लाइफ-टाइम क़लम मरम्मत के लिए देना था। उस ने टेलीफ़ोन डायरेक्ट्री में शैफर कंपनी का नंबर तलाश किया। फ़ोन करने से मालूम हुआ कि उन के एजेंट मैसर्ज़ डी, जे, समतोइर हैं जिन का दफ़्तर ग्रीन

46

सड़क के किनारे

9 अप्रैल 2022
0
0
0

“यही दिन थे......... आसमान उस की आँखों की तरह ऐसा ही नीला था जैसा कि आज है। धुला हुआ, निथरा हुआ......... और धूप भी ऐसी ही कनकनी थी......... सुहाने ख़्वाबों की तरह। मिट्टी की बॉस भी ऐसी ही थी जैसी कि इ

47

शारदा

9 अप्रैल 2022
0
0
0

नज़ीर ब्लैक मार्कीट से विस्की की बोतल लाने गया। बड़क डाकख़ाने से कुछ आगे बंदरगाह के फाटक से कुछ इधर सिगरेट वाले की दुकान से उस को स्काच मुनासिब दामों पर मिल जाती थी। जब उस ने पैंतीस रुपये अदा करके काग़

48

सिराज

9 अप्रैल 2022
0
0
0

नागपाड़ा पुलिस चौकी के उस तरफ़ जो छोटा सा बाग़ है। उस के बिलकुल सामने ईरानी के होटल के बाहर, बिजली के खंबे के साथ लग कर ढूंढ़ो खड़ा था। दिन ढले, मुक़र्ररा वक़्त पर वो यहां आ जाता और सुबह चार बजे तक अपने धंद

49

हज्ज-ए-अकबर

9 अप्रैल 2022
0
0
0

इम्तियाज़ और सग़ीर की शादी हुई तो शहर भर में धूम मच गई। आतिश बाज़ियों का रिवाज बाक़ी नहीं रहा था मगर दूल्हे के बाप ने इस पुरानी अय्याशी पर बे-दरेग़ रुपया सर्फ़ किया। जब सग़ीर ज़ेवरों से लदे फंदे सफ़ैद बुर्र

50

सजदा

9 अप्रैल 2022
0
0
0

गिलास पर बोतल झुकी तो एक दम हमीद की तबीयत पर बोझ सा पड़ गया। मलिक जो उसके सामने तीसरा पैग पी रहा था फ़ौरन ताड़ गया कि हमीद के अंदर रुहानी कश्मकश पैदा होगई है। वो हमीद को सात बरस से जानता था, और इन सात बर

51

लाइसेंस

9 अप्रैल 2022
0
0
0

अब्बू कोचवान बड़ा छैल छबीला था। उस का ताँगा घोड़ा भी शहर में नंबर वन था। कभी मामूली सवारी नहीं बिठाता था। उस के लगे बंधे गाहक थे जिन से उस को रोज़ाना दस पंद्रह रुपय वसूल हो जाते थे जो अब्बू के लिए काफ़ी थ

52

हाफ़िज़ हुसैन दीन

9 अप्रैल 2022
0
0
0

हाफ़िज़ हुसैन दीन जो दोनों आँखों से अंधा था, ज़फ़र शाह के घर में आया। पटियाले का एक दोस्त रमज़ान अली था, जिस ने ज़फ़र शाह से उस का तआरुफ़ कराया। वो हाफ़िज़ साहिब से मिल कर बहुत मुतअस्सिर हुआ। गो उन की

53

संतर पंच

9 अप्रैल 2022
0
0
0

मैं लाहौर के एक स्टूडियो में मुलाज़िम हुआ जिस का मालिक मेरा बंबई का दोस्त था उस ने मेरा इस्तिक़बाल क्या मैं उस की गाड़ी में स्टूडियो पहुंचा था बग़लगीर होने के बाद उस ने अपनी शराफ़त भरी मोंछों को जो ग़ालिबन

54

शैदा

9 अप्रैल 2022
0
0
0

शैदे के मुतअल्लिक़ अमृतसर में ये मशहूर था कि वो चट्टान से भी टक्कर ले सकता है उस में बला की फुर्ती और ताक़त थी गो तन-ओ-तोश के लिहाज़ से वो एक कमज़ोर इंसान दिखाई देता था लेकिन अमृतसर के सारे गुंडे उस से ख़ौ

55

राम खेलावन

9 अप्रैल 2022
0
0
0

खटमल मारने के बाद में ट्रंक में पुराने काग़ज़ात देख रहा था कि सईद भाई जान की तस्वीर मिल गई। मेज़ पर एक ख़ाली फ़्रेम पड़ा था....... मैंने इस तस्वीर से उस को पुर कर दिया और कुर्सी पर बैठ कर धोबी का इंतिज़ार

56

रहमत-ए-खुदा-वंदी के फूल

9 अप्रैल 2022
0
0
0

ज़मींदार, अख़बार में जब डाक्टर राथर पर रहमत-ए-ख़ुदा-वंदी के फूल बरसते थे तो यार दोस्तों ने ग़ुलाम रसूल का नाम डाक्टर राथर रख दिया। मालूम नहीं क्यूँ, इस लिए कि ग़ुलाम रसूल को डाक्टर राथर से कोई निसबत नह

57

मिस फ़र्या

9 अप्रैल 2022
0
0
0

शादी के एक महीने बाद सुहेल परेशान होगया। उस की रातों की नींद और दिन का चैन हराम हो गया। उस का ख़याल था कि बच्चा कम अज़ कम तीन साल के बाद पैदा होगा मगर अब एक दम ये मालूम करके उस के पांव तले की ज़मीन निक

58

मिस अडना जैक्सन

9 अप्रैल 2022
0
0
0

कॉलिज की पुरानी प्रिंसिपल के तबादले का एलान हुआ, तालिबात ने बड़ा शोर मचाया। वो नहीं चाहती थीं कि उन की महबूब प्रिंसिपल उन के कॉलेज से कहीं और चली जाये। बड़ा एहतिजाज हुआ। यहाँ तक कि चंद लड़कियों ने भूक हड़

59

बुड्ढ़ा खूसट

9 अप्रैल 2022
0
0
0

ये जंग-ए-अज़ीम के ख़ातमे के बाद की बात है जब मेरा अज़ीज़ तरीन दोस्त लैफ़्टीनैंट कर्नल मोहम्मद सलीम शेख़ (अब) ईरान इराक़ और दूसरे महाज़ों से होता हुआ बमबई पहुंचा। उस को अच्छी तरह मालूम था, मेरा फ़्लैट कहाँ ह

60

शह नशीं पर

9 अप्रैल 2022
0
0
0

वो सफ़ैद सलमा लगी साड़ी में शह-नशीन पर आई और ऐसा मालूम हुआ कि किसी ने नक़रई तारों वाला अनार छोड़ दिया है। साड़ी के थिरकते हूए रेशमी कपड़े पर जब जगह जगह सलमा का काम टिमटिमाने लगता तो मुझे जिस्म पर वो तमाम

61

चुग़द

9 अप्रैल 2022
2
0
0

लड़कों और लड़कियों के मआशिक़ों का ज़िक्र हो रहा था। प्रकाश जो बहुत देर से ख़ामोश बैठा अंदर ही अंदर बहुत शिद्दत से सोच रहा था, एक दम फट पड़ा। सब बकवास है, सौ में से निन्नानवे मआशिक़े निहायत ही भोंडे और लचर

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए