मैं बस एक साहित्य साधक हूँ।
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<p dir="ltr">विधा - सखी छंद (द्विअर्थी रचना) <br> विधान - मात्रिक (प्रति चरण मात्रा भार - १४, दो-दो
<p dir="ltr">शीषर्क - माँ लौट आ माँ<br> विधा - गीत <br> ~~~~~~~~~~~~~~<br> माँ के लिए तो बहुतों ने ब
<div>विधा :- हरिगीतिका</div><div>मात्रा भार :- 28(16/12 पर यति) अंत लघु गुरू</div><div>मापनी :- 1121
<p dir="ltr"><u>हरिगीतिका छंद</u></p> <p dir="ltr">प्रभु रूप सुन्दर शांति शुभ<br> सम दिव्य मुख सम्मो
<p dir="ltr"><u><u>विधा - सखी छंद</u></u><br> <u><u>विधान - मात्रिक (प्रति चरण मात्रा भार - १४, दो-द
<p dir="ltr"><u>शीर्षक - बिन साजन के </u><br> विधा - गीत<br> मात्रा भार - १६</p> <p dir="ltr">समझे आ
<p dir="ltr"><u>काफ़िया - आम</u><br> <u>रदीफ़ - कर </u><u><u>देना</u></u><br> बह्र :- १२२२ १२२२ १२२२
<p dir="ltr">" मनसा वाचा कर्मणा " देखने में यह सूक्ति जितनी छोटी लग रही है, वास्तविकता में यह उतनी छ
<p><br></p> <p>आदिकाल से ही इस सृष्टि के समस्त जीवों का मात्र एक ही लक्ष्य समान रूप से सर्वमान्य है