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मुक्तक

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रेड लाइट एरिया की तंग गलियो से विष्णु गुजर रहा था, हर एक घर उसे अपने अंदर समा लेना चाहता, लेकिन सौदा पक्का ना होने की बजेसे वो बस इधर उधर घूम रहा था। आखिर कार उसे वो पसंद आ गई, दरवाजे़ पर बैठ कर

वो रोज की तरहा आज भी ऑफिस को लेट हो गया था। जल्दी जल्दी भागते सासें फुलाता लिफ़्ट के पास आ गया था। कितना सेक्रेटरी के पीछे लग लग कर उसने ये सोसाइटी की लिफ़्ट चालु करवा दी थी, आखिर दसवें मजले से न

मै नारीनही हूं हारी रहता अविरल काम जारीसुबह की चाय से रात का भोजनबना कर सोचती हूं मै हू़ं किस्मत वालीबाहर भीतर की जो भी जिम्मेदारी झाडूं पोछा,चौका-बरतन  परिवार सदस्यकरती  काम सबका

मृत्यु शाश्वत सत्य है!! इसे हम सब जानते हैं?? यह हर पल हमारे साथ है, हम ऐसा कहां मानते हैं?? दुनिया की चकाचौंध में, यह भूल जाते हैं! की जीवन के साथ साथ! मृत्यु भी आई है! यह छुपकर बैठी है, हमारे तन में

हर आंखों में लाखों सपने पलते, कुछ पूरे हो जाते , कुछ सपने बन जाते, जीवन की इस रणभूमि में, सपनों का है, अंबार बिछा, जो योद्धा विश्वास लिए, इस रण में विचरण करता, उसके सपने पूरे होते, वह सपनों को जीता है

थक गई है मनुष्य की जिंदगी,किस दिशा में चली गई है जिंदगी।समय बहुत है पर समय नहीं है,दुनिया में कहां खो गई है जिंदगी।।रिश्ते अधूरे काम भी अधूरे,इंसानियत के अरमान भी अधूरे।विश्वास का गला घुटा है,हर जन पर

रत्न आभूषण गर्भ में तेरे, गिरि खड़े बन ताज है तेरे। सरिता अमृत है तेरा, खाना बन तरू खड़े भतेरे।। तेरी मिट्टी का अंश मनुज है, तेरे गर्भ से पैदा हम है। तेरी गोदी में पले बढे हम, तेरी दुनिया के खिलौने हम

अपने अंदर आग जलाओ, अपने को पहचानो तुम। एक अनोखी शक्ति हो तुम, दुनिया से अलग हो तुम।। शंखनाद घट भीतर बाजे, मौन हो रहे दुनिया के शोर से। दिल में उजाला हो जायेगा, रूबरू होंगे अन्तर्मन से।। एक अनौखी रखते

जैसा चाहा वैसा कोई मंज़र न मिला।मैं उम्र भर सफ़र में रहा घर न मिला।मैं ज़ख़्म सीने पर खाने को तैयार हूं।मगर चाहत भरा कोई खंज़र न मिला।रंज-ओ-ग़म, बेज़ार-ओ-बे'नूर हाय तौबा।दिलों के जहां में एक भी दिलबर

ज़िंदगी एक सफ़र ही तो है।सारा शहर मेरा घर ही तो है।ये शहर जला, वो कोई माराख़ैर छोड़ो ये ख़बर ही तो है।तेरी बातें खंज़र सी चुभती है।छलनी होने दो जिगर ही तो है।जाने वाले को भला मैं कैसे रोकूं।अपना नहीं

इश्क की गलियों का दीदार कर आया।किसी की जुल्फ़ों से मैं प्यार कर आया।जानता हूं उनकी हर एक बाते झूठी है।हां मगर दिल के हाथों ऐतबार कर आया।दिल के कई फसाने जमाने ने सुनाई थी।मैं भी आज दिलों का व्यापार कर

इश्क़ में मैं बदल रहा था बदला नहीं था।
सब कु

ख्वाहिशें हजार थी मगर
गुजारा कुछ एक से

आईना

मुक्तक

गरीबी का नहीं आभास होता धन के दर्पण में।

मगर अन्याय दिखता है, हर

दर्मियां-ए-आरज़ू में रहें तो बेहतर हो।

पुष्प की अभिलाषा होती,खिल कर महकुं बगिया में।हवाएं चले ऐसे पवन की,खुशबू बिखराए बगिया में।।पुष्प की अभिलाषा होती,तोड़ न ले कोई माली ऐसे।खिल कर खुशबू बिखरे ऐसे,मुरझा कर न मर जाऊं ऐसे।।पुष्प की अभिलाषा ह

उम्मीद एक भंवर है,डूबता और उतराता है।आशा और निराशा बीच,बनता और संवरता है।।उम्मीद पे दुनिया कायम,जीवन मंत्र का जाप करें।कहते हैं उम्मीद पे कायम,इस सार का उपकार हरे।।जीवन की डगमगाती राहों पे,आगे मंजिल ह

सुनो बलम सूनि तुम बिनु दुनिया है।
आओ बाट जोहत तोरी जोगनिया है।

ये जो बे-ज़ुबानों की बस्ती है।
हां ये जो इंसानों की बस्ती है।

सुनो बलम सूनि तुम बिनु दुनिया है।
आओ बाट जोहत तोरी जोगनिया है।

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