दौलतजो दिया है गैरों को वोही काम आ साथ जाएगा।राजा का बेटा ताज पहन याद नहीं कर पायेगा।।डॉ. कवि कुमार निर्मल
दौलतजो दिया है गैरों को वोही काम आ साथ जाएगा।राजा का बेटा ताज पहन याद नहीं कर पायेगा।।डॉ. कवि कुमार निर्मल
'चाँद' को लख- मन को बहुत हीं सुकून मिलता है।'सूरज' को लख कर पत्थर भी पिधल बह जाता है।।डॉ. कवि कुमार निर्मल
मैं जमाने को हंसाने के काम आता हूँ .किसी का दर्द मिटाने के काम आता हूँ .मुझको अखबार पुराना समझ के फेंको न यूँ .वक़्त पड़ने पे बिछाने के काम आता हूँ .
"मुक्तक"बादल कहता सुन सखे, मैं भी हूँ मजबूर।दिया है तुमने जानकर, मुझे रोग नासूर।अपनी सुविधा के लिए, करते क्यों उत्पात-कुछ भी सड़ा गला रहें, करो प्लास्टिक दूर।।मैं अंबुद विख्यात हूँ, बरसाने को नीर।बोया जो वह काट लो, वापस करता पीर।पर्यावरण सुधार अब, हरे पेड़ मत छेद-व्यथित चाँद तारे व्यथित, व्यथितम गगन स
🌹सिंहावलोकनी दोहा मुक्तक🌹"""""""""""""""""""""""शरद ऋतु करे आगमन, मन होए उल्लास ।जूही की खुशबू उड़े, पिया मिलन की आस।।आस किसी की मैं करूँ , जो ना आएं पास ।नित देखू राह उसकी, जाता अब विश्वास ।।🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹व्यंजना आनंद ✍
मात्रिक- - 16 मात्रा भार🌷मुक्तक🌷 """"""""""""हम रुठे है वो भी रुठी। किस्मत देखों कैसे छूटी । जाने कहाँ गये प्यारे दिन, करते थे हम बातें मीठी।।ऐसे नहीं प्रेम होता है। समर्पण से क्रोध खोता है। ऐसे नहीं टीकती दोस्ती, वो दोस्त हमेशा रोता है।।🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹व्यंजना आनंद ✍
"मुक्तक"नौनिहाल का गजब रूप चंहका मन मोरा।बहुत सलोने गात अघात देखि निज छोरा।सुंदर-सुंदर हाथ साथ गूँजें किलकारी-माँ की ममता के आँचल में उछरे पोरा।।पोरी भी है साथ निहारे वीरन अपना।बापू की आँखों ने देखा सच्चा सपना।कुदरत के खलिहान का खुला पिटारा-ठुमुक चाल बलराम कृष्ण है जग से न्यारा।।महातम मिश्र, गौतम गो
सोचा न था !एक रोज़ इस मोड़ से गुजरना पड़ेगा, जिंदगी को मौत से यूँ लड़ना पड़ेगा,चलते चलते लड़खड़ायेंगे पग राहो में गिरते गिरते खुद ही सम्भलना पड़ेगा !!!डी के निवातिया
"मुक्तक"सूक्ष्म निरीक्षण से हुए, कोटि कोटि सत्काम।जल के भीतर जीव प्रिय, नभचर थलचर आम।मित्र जीव रक्षा करें, बैरी लेते प्राण-रुधिर सभी का एक सा, अलग अलग है नाम।।लघु के लक्ष्य अभेद हैं, लिए साहसी तीर।चावल पय जब भी मिले, पके माधुरी खीर।कटहल पक मीठा हुआ, लिए नुकीले छाल-काले तिल के शक्ति को, कब समझे बेपीर
"मुक्तक"गैरों ने भी रख लिया, जबसे मुँह में राम।शुद्ध आत्मा हो गई, मिला उचित अभिराम।जिह्वा रसमय हो गई, वाणी हुई सुशील-देह गेह दोनों सुखी, राघव चित आराम।।दर्शन कर अवधेश के, तरे बहुत से लोग।राम जानकी मार्ग पर, काया रहे निरोग।निर्भय होकर चल पड़ो, अंधेरी हो रात-मंजिल मिल जाती सुबह, भागे तम का रोग।।महातम म
शीर्षक --- बिजली, सौदामनी, शया, घनप्रिया, ऐरावती, बीजुरी, चंचला, क्षणप्रभा, चपला, इन्द्र्वज्र, घनवल्ली, दामिनी, ताडित, विद्युत"मुक्तक"तुझे देख सौदामिनी, डर जाता मन नेक।तू चमके आकाश में, डरती डगर प्रत्येक।यहाँ गिरी कि वहाँ गिरी, सदमे में हैं लोग-सता रही इंसान को, चपला चिंता एक।।लहराती नागिन सरिस, कात
शीर्षक -दीवार,भीत,दीवाल"मुक्तक"किधर बनी दीवार है खोद रहे क्यूँ भीत।बहुत पुरानी नीव है, मिली जुली है रीत।छत छप्पर चित एक सा, एक सरीखा सोच-कलह सुलह सर्वत्र सम, घर साधक मनमीत।।नई नई दीवार है, दरक न जाए भीत।कौआ अपने ताव में, गाए कोयल गीत।दोनों की अपनी अदा, रूप रंग कुल एक-एक भुवन नभ एक है, इतर राग क्यों
मुक्तकमेरे ख्याल की मखमली चादर पर आएं तो कभी सुकून प्रेम का गहना है रहबर आजमाएं तो कभी इंतजार पर मौन रहता है दिल आँखें झूठ न बोलेमौसम की हवा में मौसमी लाकर इतराएं तो कभी ।।महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी
"मुक्तक"बहुत मजे से हो रहे, घृणित कर्म दुष्कर्म।करने वाले पातकी, जान न पाते मर्म।दुनिया कहती है इसे, बहुत बड़ा अपराध-संत पुजारी कह गए, पापी का क्या धर्म।।महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी
सच अभी भी मरा नहीं है , झूठ भी पर डरा नहीं है | यह भी सच है आदमी अब ,पूर्व जैसा खरा नहीं है |
"मुक्तक" चढ़ा धनुष पर बाण धनुर्धर, धरा धन्य हरियाली है।इंच इंच पर उगे धुरंधर, करती माँ रखवाली है।मुंड लिए माँ काली दौड़ी, शिव की महिमा है न्यारी नित्य प्रचंड विक्षिप्त समंदर, गुफा गुफा विकराली है।।महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी
आप व आप के पूरे परिवार को मुबारक हो फागुन की होली......."मुक्तकमुरली की बोली और राधा की झोली।गोपी का झुंड और ग्वाला की टोली।कान्हा की अदाएं व नंद जी का द्वार-पनघट का प्यार और लाला की ठिठोली।।महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी
महिला दिवस पर हार्दिक बधाई"मुक्तक"कण पराग सी कोमली, वनिता मन मुस्कान।खंजन जस आतुर नयन, माता मोह मिलान।सुख-दुख की सहभागिनी, रखती आँचल स्नेह-जगत सृष्टि परिचायिनी, देवी सकल विधान।।-1गौतम जो सम्मान से, करता महिला गान।लक्ष्मी उसके घर बसे, करे विश्व बहुमान।महिला है तो महल है, बिन महिला घर सून-घर-घर की यह
स्वागतम अभिनंदन"मुक्तक"साहसी अभिनंदन है, अभिनंदन वर्तमान।वापस आया लाल जब, तबसे हुआ गुमान।युद्ध बिना बंदी हुआ, भारत माँ का वीर-स्वागत आगत शेर का, चौतरफा बहुमान।।-1एक बार तो दिल दुखा, सुनकर बात बिछोह।कैसे यह सब हो गया, अभिनंदन से मोह।डिगा नहीं विश्वास था, आशा थी बलवान-आया माँ की गोद में, लालन निर्भय ओ