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मुक्तक

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स्कूल कालेज बंद हुए,इस कोरोना काल में।कहां जा रहे बच्चे सारे,इस रिमझिम बरसात में।।घर में रहते और खेलते,इस कोरोना काल में।पूरी हर इच्छा मां बाप करते,इस रिमझिम बरसात में।।नाम लिया अगर तुमने,जाओ किताबों

धन का अहंकार क्यों,वह साथ नहीं जाएगा।शरीर का अहंकार क्यों,वह साथ नहीं जाएगा।।सांसों का ऐतबार क्यों,वह साथ नहीं जाएगा।उठ कर्मठ बन तू इंसा,यही साथ तेरे जाएगा।।ईश्वर की अदालत में,वकालत नहीं होती।सज़ा अगर

सुगंध से परिपूर्ण ये पुष्प,आह्लादित कर देते मन को।मन में एक विश्वास जगाते,मिलती है शांति मन को।।पुरवाई हवा चले ऐसे की,सुगंध चहुंओर फैल गई।खुशबू बिखरने लगी ऐसे,मन को आह्लादित कर गई।।प्रकृति ने भी छटा ब

आत्म विश्वास शक्ति एक,कामयाबी की ओर बड़े कदम।सफल हो जाए यह जीवन,नहीं पीछे हटे फिर कदम।।आगे बढ़ना है अगर,दूसरों की सुनना बंद करो।आत्म विश्वास जगाओ तुम,अंतर्द्वंद्व अपने में बंद करो।।सुखद जीवन जीने के ल

साथ सबका छूट गया,इस जहां को छोड़ गया।लकड़ी जब सहेजी गई,वो फिर ताबूत बन गया।।दफन हुई ऐसे जिंदगी।मिट्टी में फिर मिल गया।इस जहां को छोड़ गया,वो फिर ताबूत बन गया।।आऊंगा फिर ये कह कर,इस जहां को छोड़ गया।आत

हार मानना हमारा ऐसे,जिसमें दूसरा खुश रहे।जीत हमारी ही होती,उसकी खुशी में खुश रहे।।जिसकी जीत से कहते,मान हमारा है बड़ता।अपनापन ही होता ऐसा,जीत हमारी ही रखता।।जिंदगी भी बड़ी अजीब,सीख थी हमारी या उसकी।हा

डूब रहा हूं भगवन,बचाओ तो सही।पार तुम मेरी नैया,लगाओ तो सही।।आशा के दीप जले,आओ तो सही।पार तुम मेरी नैया,लगाओ तो सही।।तुम ही हो सहारा,आओ तो सही।पार तुम मेरी नैया,लगाओ तो सही।।तुम ही हो खेवैया,आओ तो सही।

पहचान होती है इंसा की,उसकी होती हैं कुछ बातें।होता कुछ नहीं उसके पास,सिर्फ होती धैर्य की बातें।।यूं तो होती है पहचान,स्वभाव होता क्या उसका।जब सब कुछ होता है,है उसके पास उसका।।नहीं किसी का दिल कभी,है द

आओ हम सब मिलकर,चले कहीं पिकनिक मनाएं।घर से कहीं थोड़ा दूर चले,चले हम पिकनिक मनाएं।।फुरसत के दो पल मिले,संग बच्चों के साथ गुजारे।उनको भी थोड़ा वक़्त दे,लम्हे उनके साथ गुजारे।।छोटा परिवार साथ रहे,साथ रह

खुद ही अपनी इस कदर,तारीफ करना फिजूल है।दूसरा गर कर तारीफ तो,मानते की यूं हुनरमंद है।।तारीफ गर करे फूलों की,महक उठती बगिया ऐसे।खुशबू बता देती गुलशन को,बगिया का माली हुनरमंद है।।तारीफ गर होती बच्चों की,

बदलेंगे जहां सब मिलकर,नई रौशनी देंगे हम जहां को।रौशनी फैलेगी यूं चहुंओर,नई रौशनी से भर देंगे जहां को।।स्वार्थ से है ये दुनिया भरी,नहीं ऐसे साथ होता कोई।बदलेंगे जहां को हम सभी,गर स्वार्थ से परे हो कोई।

शांत गर होते ख़ामोश चेहरे,पहरे देखो उनमें हजार होते।अशांत अंतर्मन में कई सवाल,उठते और पनपते यूं ही रहते।।हंसती आंखो में छलक उठता,आंसू बन कर कोई मोती।मोती बन जाते हैं ये आंसू,सवाल उनमें यूं हजार होते।।

समय जब आपका बुरा हो,रिश्ते जो आपके साथ हो।साथ उन लोगों का होता है,उन रिश्तों की खुद कद्र करो।।आपका साथ खुद आपसे हो,खुद आपका आप पे भरोसा हो,खुद आपका आपसे साथ हो,आप खुद अपनी कद्र करो।।परिस्थिति कैसी भी

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क्यों चली? कब से चली? किसने लागू की? यह किसी को नहीं है पता। बस पीढी दर पीढ़ी, चली आ रही है यह प्रथा। क्यों है ये? क्या जरूरत है, क्यों छुपानी पड़ती सूरत है।&nb

रिश्ते नाते यारी सब निकले कारोबारी सब उनके घर में 4 बेटियां फिर भी उन्हें दुलारी सब राजनीत की माचिस देखो देतीं है चिंगारी सब जाने किसकी नजर लगी है सूखीं हैं फुलवारी  सब जो दुनिया का चाल चलन

बाहर से शर्मिला है तब तो फिर जहरीला है चल धरती का रंग बता अंबर नीला नीला है उतने तो हम भूले बैठे जो तेरा टंडीला है तेरा पर्वत है तुझे मुबारक अपना खुद का टीला है राजनीत की गर्म हवा है प्रेम

जबसे उनसे आंखें लड़ी हैं , बिन पिए कुछ ऐसी चढी है  जलती हुई जेठ की दुपहरी लगती सावन की सी झड़ी है  धड़कनें इस कदर बढी हैं मुहब्बत की नई दासतां गढी है  ऐसा लगता है कि जिंद

🌷🌷🌷🌷वो शाम ही तो मुझे.................... हर रोज़ घुट _घुट कर मरने के लिए...................... मेरी जिंदगी में एक श्राप बनके आई थी..............!!!🥀💔😔🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🤍वो शाम ही कुछ ऐसी थी म

🌹🌹🌹जुदा तुम हुए पर बेवफ़ा हम हो गए भूल तुम गए पर भुलाने का इल्जाम हमे लगा गएएक हम थे जो तुमसे प्यार करते रहे पर तुम तो किसी और के प्यार में गुम थे.......!!💔🥺🌷🤍🌷🤍🌷🤍🌷🤍🌷💔दिल के करीब आ

🌷सारी रात जाग के मैं,,🤍यही सोचती रहतीं हुं,,🌷की क्या हम इत्ते बुरे हैं...!!🥀🥀🤍कि सब मुझे छोड़ के चले जाते हैं,,🌷मेरा मन तो करता है कि कहीं दूर,,🤍चली जाऊं जहां से कभी ना आ सकूं,,🌷कोई ऐसी जगह ज

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