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नवाँ बाब-तुम सचमुच जादूगार हो

8 फरवरी 2022

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बाबू अमृतराय के चले जाने के बाद पूर्णा कुछ देर तक बदहवासी के आलम में खड़ी रही। बाद अज़ॉँ इन ख्यालात के झुरमुट ने उसको बेकाबू कर दिया।
आखिर वो मुझसे क्या चाहते है। मैं तो उनसे कह चुके कि मै आपकी कामयाबी की कोशिश में कोई बात उठा न रखूँगी। फिर यह मुझसे क्यूँ इस क़दर मुहब्बत जताते है क्यूँ ख़ामाख़ाह मुझको गुनाहागार करते है। मैं उनकी उस मोहनी सूरत को देखकर बेबस हो जाती हूँ। हाय-आज उन्होंने चलते वक्त़ मुझको प्यारी पूर्णा कहा था और मेरे हाथों के बोस लिये थे, नारायन वह मुझसे क्या चाहते है? अफ़सोस इस मुहब्बत का नतीजा क्या होगा?
यही ख्याल करते-करते उसने नतीजा जो सोचा तो मारे शर्म के चेहरा छुपा लिया। और खुद ब खुद बोल:
ना-ना, मुझसे ऐसा होगा। अगर उनका यह बर्ताव मेरे साथ बढ़ता गया तो मेरे लिए सिवाय जान देने के और कोई इलाज नहीं है। मैं ज़रुर ज़हर खा लूँगी।
इन्हीं ख्यालात में गलताँ थी कि नींद आ गयी। सबेरा हुआ, अभी नहाने जाने की तैयारी कर ही रही थी कि बाबू अमृतराय के आदमी ने आकर बिल्लो को बाहर से ज़ोर से पुकारा और उसको एक सरबमोहर लिफ़फ़ा मय छोटे-से बक्स के दकर अपनी राह लगा। बिल्लो ताज्जुब करती हुई अन्दर आयी और पूर्णा को वह बक्स दिखाकर ख़त पढ़ने को दिया। उसने काँपते हुए हाथों से ख़त को खोला तो यह लिखा था।
प्यारी पूर्णा, जिस दिन से मैंने तुमको पहले देखा है उसी दिन से तुम्हारा शैदाई हो रहा हूँ और यह मुहब्बत अब इन्तिहा तक पहुँच गयी है। मैंन नहीं मालूम कैसे इस आग को अब तक छुपाया है। पर अब यह सुलगापा नहीं सहा जात। मैं तुमको सच्चे दिल से प्यार करता हूँ और अब मेरी तुमसे यह इल्तिजा है कि मुझको अपनी गुलामी में कुबूल करो। मैं कोई नाजयज़ इरादा नहीं रखता। नारायन, हरगिज नहीं। तुमसे बाक़ायदा तौर पर शादी किया चाहता हूँ। ऐसी शादी बेशक अनोखी मालूम होगी। मगर मेरी बात यकीन मानो की अब इस देश में ऐसी शादी कहीं-कहीं होने लगी है। इस ख़त के साथ मैं तुम्हारे लिए एक जड़ाऊ कंगन भेजता हूँ। शाम को मैं तुम्हारे दर्शन को आऊँगा। अगर कंगन तुम्हरी कलाईयों पर नज़र आया तो समझ जाऊँगा कि मेरी दरख़ास्त कुबूल हो गयी, वर्ना दूसरे दिन शायद अमृतराय फिर तुमसे मुलाकात करने के लिए जिन्दा न रहे।
तुम्हारी शैदाई
अमृतराय

पूर्णा ने इस ख़त को गौर से पढ़ा। उसको उससे ज़रा भी ताज्जुब नहीं हुआ। ऐसा मालूम होता था कि किसी की मुन्तज़िर थी। उसने ठान लिया था कि जिस दिन बाबू साहब मुझसे खुल्लमखुल्ला तअश्शुक जातायेंगे और नाजायाज़ पेश करेंगे उसी दिन मै उनसे बिलकुल क़ता कर लूँगी। उनकी तमाम चीज़े उनके हवाले कर दूँगी और फिर जैसे बीतेगा बिताऊँगी। मगर इस खत को पढ़कर उसको अपने इरादे में कमज़ोरी मालूम होने लगी। क्योंकि उसको ख्वाब में भी ख्याल न था कि बाबू साहब बाक़ायदा शादी करेगे और न उसको वहम ही था कि बेवाओं की शादियाँ होती है सबसे बढ़कर यह बात थी बरहमन और छत्री में ताल्लुक क्या? मैं बिरहमनी वो छत्री, पस मेरा उनका क्या इलाका कुछ नहीं। उनकी चालाकी है। वो मुझे घर रखा चाहते है। मगर यह मुझसे न होगा। मेरे दिल में मुहब्बत ज़रुर है। मुझे आज तक ऐसी मुहब्बत किसी और की नहीं मालूम हुई। मगर मुझसे मुहब्बत की ख़ातिर इतना बड़ा पाप न उठाया जाएगा। मेरी खुशी तो इसमें है कि उनको नज़र भर के देखा करुँ और उनकी सेहत की खुशखबर पाया करुँ। मगर हाय, इस खत के आखिर जुमले ग़ज़ब के है। कहीं मेरे इनकार से उनके दुशमनों का बाल भी बीका हुआ तो मैं बेमौत मर जाऊँगी। या ईश्वर मैं क्या करुँ मेरी तो कुछ अक़ल काम नहीं करती।
बिल्लो पूर्णा के चेहरे का चढ़ाव-उतार बड़े ग़ौर से देख रही थी। जब वो ख़त को पढ़ चुकी तो उसने पूछा—क्यूँ बहू, क्या लिखा है?
पूर्णा—(संजीदा आवाज से) क्या बताऊँ क्या लिखा है।
बिल्लो—क्यूँ ख़ैरियत तो है, काई बुरी सुनावनी तो नहीं है?
पूर्णा—हाँ बिल्लो, इससे ज़ियाद बुरी सुनावानी हो ही नहीं सकती। अमृतराय कहते हैं कि मुझसे..
उससे और कुछ न कहा गया। बिल्लो समझ गयी मगर वहीं तक पहुँची जहाँ तक उसकी अक्ल ने मदद की। वो अमृतराय की बढ़ती हुई मुहब्बत को देख-देख दिल में समझ गयी थी कि वो एक न एक दिन पूर्णा को अपने घर जरुर डालेंगे। पूर्णा उनसे मुहब्बत करती है। उन पर जान देती है। वो पहले बहुत पसोपेश करेगी। मगर आख़िर मान जाएगी। उसने सैकड़ों रईसों को देखा था कि नाइनो, कहारियों को घर डाल लिया करते है। ग़ालिबन इस हालत में भी ऐसा होगा। इसमें उसको कोई बात अनोखी नहीं मालूम होती थी। क्योंकि उसको यकीन न था कि बाबू साहब पूर्णा से सच्ची मुहब्बत करते है। मगर बेचारे सिवाय इसके और कर ही क्या सकते हैं कि उसको घर में डाल लें। चुनांचे जब उसने पूर्णा को यूँ बातें करते देखा तो ताड़ गयी कि आज़माईश का मौका है वो जानती थी कि अगर पूर्णा राज़ी हुई तो उसकी बकिया जिन्दगी बड़े आराम से कटेंगी। बाबू साहब भी निहाल हो जाएँगे और मैं बूढ़ी भी उनकी बदौलत आराम करुँगी। मगर कहीं उसने इनकार किया तो दोनों की जिन्दगी का तल्ख हो जाएगी। यह बातें सोचकर उसने पूर्णा से पूछा—तुम क्या जवाब दोगी?
पूर्णा—जवाब, इसका जवाब सिवाय इनकार के और हो ही क्या सकता है? भला विधवाओं की शादी कहीं हुई और वो भी बरहमनी की छत्री से। मैंने इस किस्म के किस्से उन किताबों में पढ़े थे जो बाबू अमृतराय मुझे दे गये हैं। मगर वो किस्से हैं, तुमने कभी ऐसा होते भी देखा है।
बिल्लो समझी थी कि बाबू अमृतराय उसको घर डालने की कोशिश में हैं। शादी का तजकिरा सूना तो हैरत में आ गयी। बोली—भला ऐसा कहीं भया है? बाल सफेद हो गयो मगर ऐसा ब्याह नहीं देखा।
पूर्णा—बिल्लो, ये शादी—ब्याह सब बहानेबाजी हैं। उनका मतलब मैं समझ गयी। मुझसे ऐसा न होगा। मैं जहर खा लूँगी।
बिल्लो—बहू, ऐसी बातें जबान से मत निकालो। वो बेचारा भी तो अपने दिल से नाचार हैं, क्या करे?
पूर्णा—हाँ बिल्लो, उनको नहीं मालूम क्यूँ मुझसे मुहब्बत हो गयी है। और मेरे दिल का हाल तो तुमसे छिपा नहीं मगर काश वो मेरी जान माँगते तो मैं अभी दे देती। ईश्वर जानता है, मैं उनके जरा-से इशारे पर अपने को निछावर कर सकती हूँ। मगर वो जो चाहे चाहते हैं, वो मुझसे नहीं होने का। उसका ख़याल करते ही मेरा कलेजा काँपने लगाता है।
बिल्लो—हाँ भलेमानुसों में तो ऐसा नहीं होता। कमीनों में डोला आता है। मगर बहूत सच तो यह है, अगर तुम इन्कार करते हो उनका दिल टूट जाएगा। मुझे तो डर है कि कहीं वो जान पर न खेल जाएँ। और ये तो मैं कह सकती हूँ कि उनसे बिछड़ने के बाद तुमसे एक दम बेरोये न रहा जाएगा। चाहे तुमको बुरा लागे या भला।
पूर्णा—यह बस तो तुम सच कहती हो पर आखिर मैं क्या करुँ। वो मुझसे झूठ-सच शादी कर लेगे। शादी क्या करेंगे, शादी का नाम करेंगे। मगर ज़माना क्या कहेगा। लोग अभी से बदनातम कर रहे है, तब तो नहीं मालूम क्या हो जायेगा। सबसे बेहतर यही है कि जान दे दूँ। न रहे बॉँस न बजे बॉँसुरी। उनको दो-चार दिन तक अफ़सोस होगा आख़िर भूल जाएँगे। मेरी तो इज्ज़त बच जाएगी। वो कहते है कि ऐसी शादियाँ कहीं-कहीं होती है। जाने कहाँ होती है, यहाँ तो होती नहीं। यहाँ की बात यहाँ है, ज़माने की बात जमाने में है।
बिल्लो—ज़रा इस बक्स को तो खोलो, देखो इसमें क्या है।
पूर्णा खत पढ़कर परेशान हो रही थी कि अभी तक बक्स को छुआ भी न था। अब जो उसको खोला तो अन्दर सब्ज मख़मल में लिपटा हुआ एक क़ीमती कंगन पाया।
बिल्लो—ओ हो, इस पर तो जड़ाऊ काम किया हुआ है
पूर्णा—उन्होंने इस ख़त में लिखा है कि मैं शाम को आऊँगा और अगर तुमको यह कंगन पहने देखूँगा तो समझ जाऊँगा कि मेरी मंजूर है नहीं तो दूसरे दिन दुश्मन जिन्दा न रहेगे।
बिल्लो—क्या आज ही शाम को आवेगे?
पूर्णा—हाँ, आज ही शाम को तो आयेगे। अब तुम्हीं बतलाओ क्या करुँ। किससे जाकर इलाज पूछूँ।
यह कहकर पूर्णा ने दोनों हाथों से अपनी परेशानी ठोंक और ख़ामोश बैठकर सोचने लगी। नहाने कौन जाता है, खाने-पीने की किसको सुध है। दोपहर तक बैठी सोचा की मगर दिमाग ने कोई क़तराई फैसला न किया। हाँ ज्यूँ-ज्यूँ शाम का वक्त़ करीब आता था त्यूँ-त्यूँ उसका दिल धड़-धड़ करता था कि उसके सामने कैसे जाऊँगी। अगर वो कलाईयों पर कंगन न देखेगे तो क्या करेंगे। कहीं जान पर न खेल ज़ायँ। मगर तबीयत का कायदा है कि जब कोई बात हद से ज़ियादा महव करनेवाली होती है तो उस पर थोड़ा देर ग़ौर करने के बाद दिमाग बिलकुल बेकार हो जाता है। पूर्णा से अब सोचा भी न जाता था। वो पेशानी पर हाथ दिये बैठी दीवार की तरफ़ ताकती रही। बिल्लो भी खामोश मन मारे हुई थी। तीन बजे होगें कि यकायक बाबू अमृतराय की मानूस आवाज़ दरवाज़े पर ‘बिल्लो—बिल्लो’ कहते हुए सुनायी दी। बिल्लो बाहर दौड़ी और पूर्णा अपने कमरे में घुस गयी और दरवाज़े भेड़ लिया और उस वक्त़ उसका दिल भर आया और ज़ारो क़तार रोने लगी। इधर बाबू अमृतराय अज़हद बेचैन थे। बिल्लो को देखते ही उनकी मुश्ताक़ निगाहें बड़ी तेजी से उसके चेहरे की तरफ़ उठीं मगर उस पर अपनी कामयाबी की कोई बाउम्मीद झलक न पाकर ज़मीन की तरफ़ गड़ गयीं दबी हुई आवाज़ में बोले—बिल्लो, तुम्हारी उदासी देखकर मेरा दिल बैठा जाता है। क्या कोई खुशख़बरी न सुनाओगी?
बिल्लो ने हसरत से आँखें नीची कर लीं और अमृतराय ने आबदीद होकर कहा—मुझे तो इसका ख़ौफ पहले ही था, किस्मत को कोई क्या करे मगर ज़रा तुम उनसे मेरी मुलाकत करा देती, मुझे उम्मीद है कि वो मुझ पर अपनी इनायत ज़रुर करेंगी। मैं उनको आख़िरी बार देख लेता।
यह कहते—कहते अमृतराय की आवाज़ बेअख्तियार काँपने लगी। बिल्लो ने उनको रोते देखा तो घर में दौड़ी गयी और बोली—बहू, बहू बेचारी खड़े रो रहे है। कहते है कि मुझसे एक दम के लिए मिल जायँ।
पूर्णा—नहीं बिल्लो, मैं उनके सामने न जाऊँगी। हाय राम—क्या वो बहुत रो रहे है?
बिल्लो—क्या बताऊँ, बेचारों की दोनों आँखें लाल हैं। रुमाल भीगा गया है, कहा है कि हमको आखिरी बार अपनी सूरत दिखा जाए।
हाय, ये वक्त़ बेचारी कमज़ोर दिलवाली पूर्णा के लिए निहायत नाजुक था। अगर कंगन पहनकर अमृतराय के सामने जाती है कि जिन्दगी के सारे अरमान पूरे होते है, सारी अम्मेदे बर आती है। अगर बिला कंगन पहने जाती है तो उनके अरमानो का खून करती है और अपनी ज़िन्दगी को तलख़। उस हालत में बदनामी है और रुसवाई, इस हालत में हसरत है और नाकामी। उसका दिल दुबधे में है। आखिर बदनामी का ख़याल ग़ालिब आया। वो घूँघट निकालकर निशस्तगाह की तरफ़ चली। बिल्लो ने देखा कि उसकी हाथ पकड़कर खेंचा और चाहा कि कंगन पहना दे मगर पूर्णा ने हाथ को झटका देकर छुड़ा लिया और दम के दम में वो बाहरवाले कमरे के अन्दरुनी दरवाज़े पर आकर खड़ी हो गयी। उसने अमृतराय की तरफ़ देखा। आँखें लाल थीं। उन्होंने उसकी तरफ देखा। चेहरे से हसरत बरस रही थीं। दोनों निगाहें मिली। अमृतराय बेअख्तियाराना जोश से उसकी तरफ़ बढ़े और उसका हाथ लेकर कहा—पूर्णा, ईश्वर के लिए मुझ पर रहम करो।
उनके मुँह से कुछ न लिकाला। आवाज़ हलक़ में फँसकर रह गयी। पूर्णा की खुद्दारी आज़ तक कभी ऐसी इम्तिहान में न पड़ी थी। उसने रोते—रोते अपना सर अमृतराय के कंधे पर रख दिया कुछ कहना चाहा मगर आवाज़ न निकली। हाय खुद्दारी का बॉँध टूट गया और वह तमाम जोश जो रुका हुआ था उबल पड़ा। अमृतराय ग़ज़ब के नब्ज़शनास थे। समझ गये कि अब म़ौका है। उन्होंने आँखें के इशारे से बिल्लो से कंगन मँगवाया। पूर्णा को आहिस्ता से कुर्सी पर बिठा दिया। वो ज़रा भी न झिझकी। उसके हाथों में कंगन पहनाया। पूर्णा ने ज़रा भी हाथ न खींचा। तब अमृतराय ने जुरअत करके उसके हाथों को चूम लिया और उनकी आँखें मारे खुशी के जगमगाने लगीं। रोती हुई पूर्णा ने मुहब्बत निगाहों से उनकी तरफ़ और बोली—प्यारे अमृतराय, तुम सचमुच जादूगर हो।
 

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