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नीलाम्बरा

महादेवी वर्मा

5 अध्याय
2 लोगों ने लाइब्रेरी में जोड़ा
7 पाठक
24 फरवरी 2022 को पूर्ण की गई
निःशुल्क

कवियत्री श्रीमती महादेवी वर्मा के काव्य में एक मार्मिक संवेदना है। सरल-सुथरे प्रतीकों के माध्यम से अपने भावों को जिस ढंग से महादेवीजी अभिव्यक्त करती हैं, वह अन्यत्र दुर्लभ है। वास्तव में उनका समूचा काव्य एक चिरन्तन और असीम प्रिय के प्रति निवेदित है जिसमें जीवन की धूप-छांह और गम्भीर चिन्तन की इन्द्रधनुषी कोमलता है। ‘नीलाम्बरा’ में संग्रहीत कविताओं के बारे में स्वयं महादेवीजी ने यह स्वीकार किया है कि इसमें मेरी ऐसी रचनाएँ संग्रहीत हैं जो मेरी जीवन-दृष्टि, दर्शन, सौन्दर्यबोध और काव्य-दृष्टि का परिचय दे सकेंगी। महीयसी महादेवी की सम्पूर्ण काव्य-यात्रा न सिर्फ़ आधुनिक हिन्दी कविता का इतिहास बनने का साक्षी है, भारतीय मनीषा की महिमा का भी वह जीवन्त प्रतीक है। उनकी कविताएँ हिन्दी साहित्य की एक सार्थक कालजयी उपलब्धि हैं। मानव किसी शून्य में जन्म न लेकर एक विशेष भौगोलिक परिवेश में जन्म और विकास पाता है, जो धरती, आकाश, नदी, पर्वत, वनस्पति आदि का संघात है। मनुष्य का शरीर, जिन पंच तत्त्वों का सानुपातिक निर्माण है, वे ही व्यापक रूप से उसके चारों ओर फैले हुए हैं। 

nilambar

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पुस्तक के भाग

1

नये घन

24 फरवरी 2022
4
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लाये कौन सँदेश नये घन ! अम्बर गर्वित हो आया नत, चिर निस्पन्द हृदय में उसके उमड़े री पलकों के सावन ! लाये कौन सँदेश नये घन ! चौंकी निद्रित, रजनी अलसित श्यामल पुलकित कम्पित कर में दमक उठे व

2

यह संध्या फूली

24 फरवरी 2022
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यह संध्या फूली सजीली ! आज बुलाती हैं विहगों को नीड़ें बिन बोले; रजनी ने नीलम-मन्दिर के वातायन खोले; एक सुनहली उर्म्मि क्षितिज से टकराई बिखरी, तम ने बढ़कर बीन लिए, वे लघु कण बिन तोले ! अनिल ने

3

हुई विद्रुम बेला नीली

24 फरवरी 2022
1
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मेरी चितवन खींच गगन के कितने रँग लाई ! शतरंगों के इन्द्रधनुष-सी स्मृति उर में छाई; राग-विरागों के दोनों तट मेरे प्राणों में, श्वासें छूतीं एक, अगर निःश्वासें छू आईं ! अधर सस्मित पलकें गीली !

4

सृष्टि मिटने पर गर्वीली

24 फरवरी 2022
1
1
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रश्मि चुभते ही तेरा अरुण बान ! बहते कन-कन से फूट-फूट, मधु के निर्झर से सजग गान ! इन कनक-रश्मियों में अथाह; लेता हिलोर तम-सिंधु जाग; बुदबुद् से बह चलते अपार, उसमें विहगों के मधुर राग; बनती

5

मुरझाया फूल

24 फरवरी 2022
3
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था कली के रूप शैशव- में अहो सूखे सुमन, मुस्कराता था, खिलाती अंक में तुझको पवन ! खिल गया जब पूर्ण तू- मंजुल सुकोमल पुष्पवर, लुब्ध मधु के हेतु मँडराते लगे आने भ्रमर ! स्निग्ध किरणें चन्द्र क

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