प्रेमचंद आधुनिक हिन्दी कहानी के पितामह और उपन्यास सम्राट माने जाते हैं। यों तो उनके साहित्यिक जीवन का आरंभ १९०१ से हो चुका था पर बीस वर्षों की इस अवधि में उनकी कहानियों के अनेक रंग देखने को मिलते हैं। इस उपन्यास की कथा का केन्द्र और मुख्य पात्र 'निर्मला' नाम की १५ वर्षीय सुन्दर और सुशील लड़की है। निर्मला का विवाह एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति से कर दिया जाता है। जिसके पूर्व पत्नी से तीन बेटे हैं। निर्मला का चरित्र निर्मल है, परन्तु फिर भी समाज में उसे अनादर एवं अवहेलना का शिकार होना पड़ता है। प्रेमचन्द सामाजिक जीवन को एक नई गति और दिशा प्रदान करने वाले युगचेता साहित्यकार थे। वे साहित्य को मानव की संवेदना और आन्तरिक व्यक्तित्व को बदलने का एक समर्थ औज़ार मानते थे। उन्होंने अपनी अनेक रचनाओं में नारी-जीवन से जुड़ी अनेकानेक विषमताओं को उद्घाटित किया है। तत्कालीन युग में व्याप्त दहेज प्रथा व अनमेल विवाह की त्रासदी से आहत प्रेमचन्द ने अपने ‘निर्मला’ उपन्यास में अत्यन्त व्यापकता के साथ इन समस्याओं को उठाया है। उन्होंने इस उपन्यास में भारत की निरीह, अबला नारी को केन्द्र में रखकर उसकी अमानवीय जीवन-स्थितियों को उद्घाटित करने का भरसक प्रयत्न किया है। नारी-जीवन से सम्बन्धित समस्याओं तथा उनके दुष्परिणामों के चित्रण के मूल में प्रेमचन्द्र जी का मुख्य उद्देश्य यही रहा है कि विद्रोह का नारा बुलन्द करने से पहले वे उसकी स्वीकृति के लिए उपयुक्त समाज का गठन चाहते थे।
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