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पांचवां दृश्य

12 फरवरी 2022

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[१२ बजे रात का समय। लड़ाई ज़रा देर के लिए बंद है। दुश्मन की फ़ौज ग़ाफिल है। दरिया का किनारा। अब्बास हाथों में मशक लिए दरिया के किनारे खड़े हैं।]
अब्बास– (दिल में) हम दरिया से कितने करीब हैं। इतनी ही दूर पर यह दरिया मौजें मार रहा है, पर हम पानी के एक-एक बूंद को तरसते रहते हैं। दो दिन से किसी के मुंह में पानी का कतरा नहीं गया, बच्चे वगैरह पानी के लिए बिलबिला रहे हैं, औरतों के लब खुश्क हुए जाते हैं, खुद हजरत हुसैन का बुरा हाल हो रहा है। मगर कोई अपनी तकलीफ़ किसी से नहीं कहती। बेचारी सकीना तड़प रही थी। काश ये जालिम इसी तरह गाफ़िल पड़े रहते, और मैं मशक लिए हुए बचकर निकल जाता। जी चाहता है, दरिया-का-दरिया पी जाऊं, पर गै़रत गवारा नहीं करती कि घर के सब आदमी तो प्यासों मर रहे हों, और मैं यहीं अपनी प्यास बुझाऊं। घोड़े ने भी पानी में मुंह नहीं डाला। वफा़दार जानवर! तू हैवान होकर इतना ग़ैरतमंद है, मैं इंसान होकर बेग़ैरतमंद हो जाऊं।
[दरिया से पानी लेकर घाट पर चढ़ते हैं।]
एक सिपाही– यह कौन पानी लिए जाता है?
अब्बास– (खामोश)
कई आदमी– क्या कोई पानी ले रहा है? खड़ा रह।
[कई सिपाही अब्बास को घेर लेते हैं।]
एक– यह तो हुसैन के लश्कर का आदमी है– क्यों जी, तुम्हारा क्या नाम है?
अब्बास– मैं हजरत हुसैन का भाई अब्बास हूं।
कई आदमी– छीन लो मशक।
अब्बास– इतना आसान न समझो। एक-एक बूंद पानी के लिए एक-एक सिर देना पड़ेगा। पानी इतना महंगा कभी न बिका होगा।
[अब्बास तलवार खींचकर दुश्मनों पर झपट पड़ते हैं, और उनके घेरे से निकल जाने की कोशिश करते हैं।]
[शिमर दौड़ा हुआ आता है।]
शिमर– खबरदार, खबरदार, चारों तरफ से घेर लो, मशक में नेजे मारो, मशक में।
अब्बास– अरे जालिम, बेदर्द! तू मुसलमान होकर नबी की औलाद पर इतनी संख्तियां कर रहा है। बच्चे प्यासों तड़प रहे हैं, हज़रत हुसैन का बुरा हाल हो रहा है, और तुझे जरा दर्द नहीं आता।
शिमर– खलीफ़ा से बग़ावत करने वाला मुसलमान मुसलमान नहीं, और न उसके साथ कोई रियायत की जा सकती है। दिलेरी, बस, जंग का इसी दम खातमा है। अब्बास को लिया, फिर वहां हुसैन के सिवा और कोई बाकी न रहेगा।
[सिपाही अब्बास पर नेजे चलाते हैं, और अब्बास नेजों को तलवार से काट देते हैं।]
[साद का प्रवेश]
साद– ठहरो-ठहरो! दुश्मन को दोस्त बना लेने में जितना फायदा है, उतना कत्ल करने में नहीं। अब्बास, मैं आपसे कुछ अर्ज करना चाहता हूं। एक दम के लिए तलवार रोक दीजिए। तनी हुई तलवार मसालहत की जबान बंद कर देती है।
अब्बास– मसालहत की गुफ्तगू अगर करनी है, तो हज़रत हुसैन के पास क्यों नहीं जाते। हालांकि अब वह कुछ न सुनेंगे। दो भांजे, दो भतीजे मारे जा चुके, कितने ही अहबाब शहीद हो चुके, वह खुद जिन्दगी से बेजार हैं, मरने पर कमर बांध चुके हैं।
साद– तो ऐसी हालत में आपको अपनी जान की और भी कद्र करनी चाहिए। दुनिया में अली की कोई निशानी तो रहे। खानदान का नाम तो न मिटे।
अब्बास– भाई के बाद जीना बेकार है।
साद–

माबैन लहद साथ बिरादर नहीं जाता,
भाई कोई भाई के लिए मर नहीं जाता।

अब्बास–

भाई के लिये जी से गुजर जाता है भाई?
जाता है बिरादर भी जिधर जाता है भाई?
क्या भाई हो तेगों में तो डर जाता है भाई।
आंच आती है भाई पै, तो मर जाता है भाई।

साद– आपसे तो खलीफ़ा को कोई दुश्मनी नहीं, आप उनकी बैयत क़बूल कर लें, तो आपकी हर तरह भलाई होगी। आप जो रुतबा चाहेंगे, वह आपको मिल जायेगा, और आप हजरत अली के जानशीन समझे जायेंगे।

अब्बास– जब हुसैन-जैसे सुलहपसंद आदमी ने जिसने कभी गुस्से को पास नहीं आने दिया, जिसने जंग पर कभी सबकत नहीं की, जिसने आज भी मुझसे ताक़ीत कर दी कि राह न मिले, तो दरिया पर न जाना तुम्हारी बात नहीं मानी, तो मैं जो इस औसाफ में से एक भी नहीं रखता, तुम्हारी बातें मानूंगा।
साद– तुम्हें अख्तियार है।
शिमर– टूट पड़ो, टूट पड़ो।
[एक सिपाही पीछे से आकर एक तलवार मारता है, जिससे अब्बास का दाहिना हाथ कट जाता है। अब्बास बाएं हाथ में तलवार ले लेते हैं।]
शिमर– अभी एक हाथ बाकी है, जो उसे गिरा दे, उसे एक लाख दीनार इनाम मिलेगा। चारों तरफ़ से जख्मी सिपाहियों की आहें सुनाई दे रही हैं। अब्बास सफ़ों को चीरते, सिपाहियों को गिराते हुसैन के खेमे के सामने पहुंच जाते हैं। इनमें से एक सिपाही तलवार से उनका बायां हाथ भी गिरा देता है। शिमर उनकी छाती में भाला चुभा देता है। अब्बास मशक दांतों से पकड़ लेते है। तब सिर पर एक गुर्ज पड़ता है, और अब्बास घोड़े से गिर पड़ते हैं।
अब्बास– (चिल्लाकर) भैया, तुम्हारा गुलाम अब जाता है– उसका आखिरी सलाम कबूल करो।
[हुसैन खेमे से बाहर निकलकर दौड़ते हुए आते हैं, और अब्बास के पास पहुंच कर उन्हें गोद में उठा लेते है]
हुसैन– आह! मेरे प्यारे भाई, मेरे क़बूते-बाजू, तुम्हारी मौत ने कमर तोड़ दी। हाय! अब कोई सहारा नहीं रहा। तुम्हें अपने पहलू में देखते हुए मुझे वह भरोसा होता था, जो बच्चे को अपनी मां की गोद में होता है। तुम मेरे पुश्तेपनाह थे। हाय! अब किसे देखकर दिल को ढाढ़स होगा। आह! अगर तुम्हें इतनी जल्द रुखसत होना था, तो पहले मुझी को क्यों न मर जाने दिया? आह अब तक मैंने तुम्हें इस तरह बचाया था, जैसे कोई आंधी से चिराग से बचाता है। पर क़ज़ा से कुछ बस न चला। हाय! मैं खुद क्यों न पानी लेने गया। हाय, अब खैर, भैया इतनी तस्कीन है कि फिर हमसे तुमसे मुलाकात होगी, और फिर हम क़यामत तक न जुदा होंगे। 

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रचनाएँ
कर्बला (नाटक)
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अमर कथा शिल्पी मुंशी प्रेमचंद द्वारा इस्लाम धर्म के संस्थापक हजरत मोहम्मद के नवासे हुसैन की शहादत का सजीव एवं रोमांच विवरण का एक ऐतिहासिक नाटक है | इस मार्मिक नाटक में यह दिखाया गया है कि उस काल के मुसलिम शासकों ने किस प्रकार मानवता प्रेमी व असहायों व निर्बलों की सहायता करने वाले हुसैन को परेशान किया और अमानवीय यातनाएं दे देकर उसे कत्ल कर दिया। कर्बला के मैदान में लड़ा गया यह युद्ध इतिहास में अपना विशेष महत्त्व रखता है।जब भी मुहर्रम की बात होती है तो सबसे पहले जिक्र कर्बला का किया जाता है. आज से लगभग 1400 साल पहले तारीख-ए-इस्लाम में कर्बला की जंग हुई थी. ये जंग जुल्म के खिलाफ इंसाफ के लिए लड़ी गई थी. इस जंग में पैगंबर मोहम्मद के नवासे इमाम हुसैन और उनके 72 साथी शहीद हो गए थे | प्रायः सभी जातियों के इतिहास में कुछ ऐसी महत्त्वपूर्ण घटनाएं होती हैं; जो साहित्यिक कल्पना को अनंत काल तक उत्तेजित करती रहती हैं। साहित्यिक समाज नित नये रूप में उनका उल्लेख किया करता है, छंदों में, गीतों में, निबंधों में, लोकोक्तियों में, व्याख्यानों में बारंबार उनकी आवृत्ति होती रहती है, फिर भी नये लेखकों के लिए गुंजाइश रहती है। मुसलमानों के इतिहास में कर्बला के संग्राम को भी वही स्थान प्राप्त है।
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भूमिका

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प्रायः सभी जातियों के इतिहास में कुछ ऐसी महत्वपूर्ण घटनाएँ होती हैं, जो साहित्यिक कल्पना को अनंत काल तक उत्तेजित करती रहती हैं। साहित्यिक-समाज नित नये रूप में उनका उल्लेख किया करता है, छंदों में, गीतो

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नाटक का कथानक

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हज़रत मुहम्मद की मृत्यु के बाद कुछ ऐसी परिस्थिति पैदा हुई कि ख़िलाफ़त का पद उनके चचेरे भाई और दामाद हज़रत अली को न मिलकर उमर फ़ारूक को मिला। हज़रत मुहम्मद ने स्वयं ही व्यवस्था की थी कि खल़ीफ़ा सर्व-सम

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नाटक के पात्र

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पुरुष हुसैन-हज़रत अली के बेटे और हज़रत मोहम्मद के नवासे । इन्हें फ़र्ज़न्दे-रसूल,शब्बीर,भी कहा गया है। अब्बास-हज़रत हुसैन के चचेरे भाई । अली अकबर-हजरत हुसैन के बड़े बेटे । अली असगर-हजरत हुसैन के छ

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पहला अंक

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पहला दृश्य {समय-नौ बजे रात्रि। यजीद, जुहाक, शम्स और कई दरबारी बैठे हुए हैं। शराब की सुराही और प्याला रखा हुआ है।} यजीद– नगर में मेरी खिलाफ़त का ढिंढोरा पीट दिया गया? जुहाल– कोई गली, कूचा, नाका, सड़

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दूसरा दृश्य

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{ रात का समय– मदीने का गवर्नर वलीद अपने दरबार में बैठा हुआ है। } वलीद– (स्वागत) मरवान कितना खुदगरज आदमी है। मेरा मातहत होकर भी मुझ पर रोब जमाना चाहता है। उसकी मर्जी पर चलता, तो आज सारा मदीना मेरा दुश

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तीसरा दृश्य

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(रात का वक्त– हुसैन अब्बास मसजिद में बैठे बातें कर रहे हैं। एक दीपक जल रहा है।) हुसैन– मैं जब ख़याल करता हूं कि नाना मरहूम ने तनहा बड़े-बड़े सरकश बादशाहों को पस्त कर दिया, और इतनी शानदार खिलाफत कायम

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चौथा दृश्य

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(समय– रात। वलीद का दरबार। वलीद और मरवान बैठे हुए हैं।) मरवान– अब तक नहीं आए! मैंने आपसे कहा न कि वह हरगिज नहीं आएंगे। वलीद– आएंगे, और जरूर आएंगे। मुझे उनके कौल पर पूरा भरोसा है। मरवान– कहीं ऐसा तो

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पाँचवाँ दृश्य

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(समय– आधी रात। हुसैन और अब्बास मसजिद के सहन में बैठे हुए हैं।) अब्बास– बड़ी ख़ैरियत हुई, वरना मलऊन ने दुश्मनों का काम ही तमाम कर दिया था। हुसैन– तुम लोगों की जतन बड़े मौक़े पर आई। मुझे गुमान न था कि

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छठा दृश्य

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(समय– संध्या। कूफ़ा शहर का एक मकान। अब्दुल्लाह, कमर, वहब बातें कर रहे हैं।) अब्दु०– बड़ा गजब हो रहा है। शामी फौज के सिपाही शहरवालों को पकड़-पकड़ जियाद के पास ले जा रहे हैं, और वहां जबरन उनसे बैयत ली

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सातवां दृश्य

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(अरब का एक गांव– एक विशाल मंदिर बना हुआ है, तालाब है, जिसके पक्के घाट बने हुए हैं, मनोहर बगीचा, मोर, हिरण, गाय आदि पशु-पक्षी इधर-उधर विचर रहे हैं। साहसराय और उनके बंधु तालाब के किनारे संध्या-हवन, ईश्व

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दूसरा अंक

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पहला दृश्य (हुसैन का क़ाफ़िला मक्का के निकट पहुंचता है। मक्का की पहाड़ियां नजर आ रही हैं। लोग काबा की मसजिद द्वार पर स्वागत करने को खड़े हैं।) हुसैन– यह लो, मक्का शरीफ़ आ गया। यही वह पाक मुकाम है, ज

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दूसरा दृश्य

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यजीद का दरबार– यजीद, जुहाक़, मुआबिया, रूमी, हुर और अन्य सभासद् बैठे हुए हैं। दो वेश्याएँ शराब पिला रही हैं।) यजीद– तुममें से कोई बता सकता है, जन्नत कहां है? हुर– रसूल ने तो चौथे आसमान पर फ़रमाया। श

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तीसरा दृश्य

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[कूफ़ा की अदालत– क़ाजी और अमले बैठे हुए है। काज़ी के सिर पर अमामा है, बदन पर कबा, कमर में कमरबंद, सिपाही नीचे कुरते पहने हुए हैं। अदालत से कुछ दूर पर मसजिद है मुकद्दमें में पेश हो रहे हैं। कई आदमी एक

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चौथा दृश्य

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[स्थान– काबा, मरदाना बैठक। हुसैन, जुबेर, अब्बास मुसलिम अली असगर आदि बैठे दिखाई देते हैं।] हुसैन– यह पांचवी सफ़ारत है। एक हज़ार से ज्यादा खतूत आ चुके हैं। उन पर दस्तखत करने वालों की तादाद पन्द्रह हजार

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पांचवां दृश्य

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[यजीद का दराबर। मुआबिया बेड़ियां पहने हुए बैठे हुआ है। चार गुलाम नंगी तलवारें लिए उसके चारों तरफ़ खड़े हैं। यजीद के तख्त के करीब सरजून रूमी बैठा हुआ है।] मुआ०– (दिल से) नबी की औलाद पर यह जुल्म! मुझी

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छठा दृश्य

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(संध्या का समय। सूर्यास्त हो चुका है। कूफ़ा का शहर– कोई सारवान ऊँट का गल्ला लिए दाखिल हो रहे है।) पहला– यार गलियों से चलना, नहीं तो किसी सिपाही की नज़र पड़ जाये, तो महीनों बेगार झेलनी पड़े। दूसरा– ह

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सातवाँ दृश्य

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[कूफ़ा के चौक में कई दुकानदार बातें कर रहे हैं।] पहला– सुना, आज हज़रत हुसैन तशरीफ लेनेवाले हैं। दूसरा– हां, कल मुख्तार के मकान पर बड़ा जमघट था। मक्का से कोई साहब उनके आने की खबर लाए हैं। तीसरा– खुद

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आठवां दृश्य

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[नौ बजे रात का समय। कूफ़ा की जामा मसजिद। मुसलिम, मुख्तार, सुलेमान और हानी बैठे हुए हैं। कुछ आदमी द्वार पर बैठे हुए हैं।] सुले०– अब तक लोग नहीं आए? हानी– अब जाने की कम उम्मीद है। मुस०– आज जियाद का ल

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नवाँ दृश्य

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[दोपहर का समय। हानी का मकान शरीक एक चारपाई पर पड़े हुए है। मुसलिम और हानी फ़र्श पर बैठे हैं।] शरीक– जियाद अब आता ही होगा। मुसलिम, तलवार को तेज रखना। हानी– मैं खुद उसे क़त्ल करता, पर जईफ़ी ने हाथों म

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दसवाँ दृश्य

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[संध्या का समय। जियाद का दरबार] जियाद– तुम लोगों में ऐसा एक आदमी भी नहीं है, जो मुसलिम का सुराग़ लगा सके। मैं वादा करता हूं कि पांच हजार दीनार उसकी नज़र करूंगा। एक दर०– हुजूर, कहीं सुराग नहीं मिलता।

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ग्यारहवाँ दृश्य

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[१० बजे रात का समय। जियाद के महल के सामने सड़क पर सुलेमान, मुखतार और हानी चले आ रहे हैं।] सुले०– जियाद के बर्ताव में अब कितना फर्क नज़र आता है। मुख०– हां, वरना हमें मशविरा देने के लिये क्यों बुलाता।

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बारहवाँ दृश्य

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[९ बजे रात का समय। मुसलिम एक अंधेरी गली में खड़े हैं, थोड़ी दूर पर एक चिराग़ जल रहा है। तौआ अपने मकान के दरवाज़े पर बैठी हुई है।] मुस०– (स्वागत) उफ्! इतनी गरमी मालूम होती है कि बदन का खून आग हो गया।

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तेरहवां दृश्य

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[प्रातःकाल का समय। जियाद का दरबार। मुसलिम को कई आदमी मुश्क कसे लाते हैं] मुस०– मेरा उस पर सलाम है, जो हिदायत पर चलता है, आकबत से डरता है, और सच्चे बादशाह की बंदगी करता है। चोबदार– मुसलिम! अमीर को सल

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कर्बला (भाग-2)

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तीसरा अंक पहला दृश्य [दोपहर का समय। रेगिस्तान में हुसैन के काफ़िले का पड़ाव। बगूले उड़ रहे है। हुसैन असगर को गोद में लिए अपने खेमे के द्वार पर खड़े हैं।] हुसैन– (मन में) उफ्, यह गर्मी! निगाहें जलती

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दूसरा दृश्य

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[संध्या का समय। हुसैन का काफिला रेगिस्तान में चला जा रहा है।] अब्बास– अल्लाहोअकबर। वह कूफ़ा के दरख्त नज़र आने लगे। हबीद– अभी कूफ़ा दूर है। कोई दूसरा गांव होगा। अब्बास– रसूल पाक की कसम, फौज है। भालो

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तीसरा दृश्य

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[संध्या का समय– नसीमा बगीचे में बैठी आहिस्ता-आहिस्ता गा रही है।] दफ़न करने ले चले जब मेरे घर से मुझे, काश तुम भी झांक लेते रौज़ने घर से मुझे। सांस पूरी हो चुकी दुनिया से रुख्सत हो चुका, तुम अब आए

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चौथा दृश्य

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[आधी रात का समय। अब्बास हुसैन के खेमे के सामने खड़े पहरा दे रहे हैं। हुर आहिस्ता से आकर खेमे के करीब खड़ा हो जाता है।] हुर– (दिल में) खुदा को क्या मुंह दिखाऊंगा? किस मुंह से रसूल के सामने जाऊंगा? आह,

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पांचवां दृश्य

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[रात का समय। हुसैन अपने खेमे में सोए हुए हैं। वह चौंक पड़ते हैं, और लेटे हुए, चौकन्नी आंखों से, इधर-उधर ताकते हैं।] हुसैन– (दिल में) यहां तो कोई नजर नहीं आता। मैं हूं, शमा है, और मेरा धड़कता हुआ दिल

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छठा दृश्य

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[कर्बला का मैदान। एक तरफ केरात-नदीं लहरें मार रही है। हुसैन मैदान में खड़े हैं। अब्बास और अली अकबर भी उनके साथ हैं।] अली अकबर– दरिया के किनारे खेमे लगाए जाए, वहां ठंडी हवा आएगी। अब्बास– बड़ी फ़िजा क

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[नसीमा अपने कमरे में अकेली बैठी हुई है– समय १२ बजे रात का।] नसीमा– (दिल में) वह अब तक नहीं आए। गुलाम को उन्हें साथ लाने के लिए भेजा, वह भी वहीं का हो रहा। खुदा करे, वह आते हों। दुनिया में रहते हुए हम

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पहला दृश्य [प्रातःकाल का समय। जियाद फर्श पर बैठा हुआ सोच रहा है।] जियाद– (स्वगत) उस वफ़ादारी की क्या कीमत है, जो महज जबान तक महदूद रहें? कूफ़ा के सभी सरदार, जो मुसलिम बिन अकील से जंग करते वक्त बग़ले

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तीसरा दृश्य

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[केरात-नदी के किनारे साद का लश्कर पड़ा हुआ है। केरात से दो मील के फासले पर कर्बला के मैदान में हुसैन का लश्कर है। केरात और हुसैन के लश्कर के बीच में साद ने एक लश्कर को नदी के पानी को रोकने के लिये पहर

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चौथा दृश्य

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[हुसैन के हरम की औरतें बैठी हुई बातें कर रही हैं। शाम का वक्त।] सुगरा– अम्मा, बडी प्यास लगी है। अली असगर– पानी, बूआ पानी। हंफ़ा– कुर्बान गई, बेटे कितना पानी पियोगे? अभी लाई (मश्को को जाकर देखती है,

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पांचवां दृश्य

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[८ बजे रात का समय। जियाद की खास बैठक। शिमर और जियाद बातें कर रहे हैं।] जियाद– क्या कहते हो। मैंने सख्त ताकीद कर दी थी कि दरिया पर हुसैन का कोई आदमी न आने पाए। शिमर– बजा है। मगर मैं तो हुसैन के आदमिय

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छठा दृश्य

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[प्रातःकाल। शाम का लश्कर। हुर और साद घोड़ों पर सवार फ़ौज का मुआयना कर रहे हैं।] हुर– अभी तर जियाद ने आपके खत का जबान नहीं दिया? साद-उसके इंतजार में रात-भर आंखें नहीं लगीं। जब किसी की आहट मिलती थी, त

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सातवाँ दृश्य

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[समय ८ बजे रात। हुसैन एक कुर्सी पर मैदान में बैठे हुए हैं। उनके दोस्त और अजीज सब फ़र्श पर बैठे हुए हैं। शमा जल रही है।] हुसैन– शुक्र है, खुदाए-पाक का, जिसने हमें ईमान की रोशनी अता की, ताकि हम नेक को

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आठवाँ दृश्य

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[प्रातःकाल हुसैन के लश्कर में जंग की तैयारियां हो रही हैं।] अब्बास– खेमे एक दूसरे से मिला दिए गए, और उनके चारों तरफ खंदके खोद डाली गई, उनमें लकड़ियां भर दी गई। नक्कारा बजवा दूं? हुसैन– नहीं, अभी नही

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नवाँ दृश्य

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[कूफ़ा का वक्त। कूफ़ा का एक गांव। नसीमा खजूर के बाग में जमीन पर बैठी हुई गाती है।] गीत दबे हुओं को दबाती है ऐ जमीने-लहद, यह जानती है कि दम जिस्म नातवां में नहीं। क़फस में जी नहीं लगता है आह! फिर भ

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पांचवां अंक

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पहला दृश्य [समय ९ बजे दिन। दोनों फौ़जे लड़ाई के लिये तैयार हैं।] हुर– या हजरत, मुझे मैदान में जाने की इजाजत मिले। अब शहादत का शौक रोके नहीं रुकता। हुसैन– वाह, अभी आए हो और अभी चले जाओगे। यह मेहमानन

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दूसरा दृश्य

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[समर-भूमि। साद की तरफ़ से दो पहलवान आते हैं– यसार और सालिम।] यसार– (ललकारकर) कौन निकलता है, हुर का साथ देने के लिये। चला जाए, जिसे मौत का मजा चखना हो। हम वह है, जिनकी तलवार से क़ज़ा की रूह भी क़जा हो

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तीसरा दृश्य

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[दोपहर का समय। हजरत हुसैन अब्बास के साथ खेमे के दरवाजे पर खड़े मैदाने-जंग की तरफ ताक रहे हैं।] हुसैन– कैसे-कैसे जांबाज दोस्त रुखसत हो गए और होते जा रहे हैं। प्यास से कलेजे मुंह को आ रहे हैं, और ये जा

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चौथा दृश्य

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[जैनब अपने खेमे में बैठी हुई है। शाम का वक्त] जैनब– (स्वगत) अब्बास और अली अकबर के सिवा अब भैया के कोई रकीफ़ बाकी नहीं रहे। सब लोग उन पर निसार हो गए। हाय, कासिम-सा जवान, मुसलिम के बेटे, अब्बास के भाई,

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पांचवां दृश्य

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[१२ बजे रात का समय। लड़ाई ज़रा देर के लिए बंद है। दुश्मन की फ़ौज ग़ाफिल है। दरिया का किनारा। अब्बास हाथों में मशक लिए दरिया के किनारे खड़े हैं।] अब्बास– (दिल में) हम दरिया से कितने करीब हैं। इतनी ही

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[दोपहर का समय। हुसैन अपने खेमे में खड़े है, जैनब, कुलसूम, सकीना, शहरबानू, सब उन्हें घेरे खड़े हैं।] हुसैन– जैनब, अब्बास के बाद अली अकबर दिल को तस्कीन देता था। अब किसे देखकर दिल को ढाढ़स दूं? हाय! मेर

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