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परी

8 अप्रैल 2022

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कश्मीरी गेट दिल्ली के एक फ़्लैट में अनवर की मुलाक़ात परवेज़ से हुई। वो क़तअन मुतअस्सिर न हुआ। परवेज़ निहायत ही बेजान चीज़ थी। अनवर ने जब उस की तरफ़ देखा और उस को आदाब अर्ज़ कहा तो उस ने सोचा “ये क्या है औरत है या मूली”

परवेज़ इतनी सफ़ैद थी कि उस की सफेदी बेजान सी होगई थी जिस तरह मूली ठंडी होती है इसी तरह इस का सफ़ैद रंग भी ठंडा था। कमर में हल्का सा ख़म था जैसा कि अक्सर मूलियों में होता है। अनवर ने जब उस को देखा तो उस ने सबज़ दुपट्टा ओढ़ा हुआ था। ग़ालिबन यही वजह है कि उस को परवेज़ हूबहू मूली नज़र आई जिस के साथ सबज़ पत्ते लगे हों।

अनवर से हाथ मिला कर परवेज़ अपने नन्हे से कुत्ते को गोद में लेकर कुर्सी पर बैठ गई। उस के सुर्ख़ी लगे होंटों पर जो उस के सफ़ैद ठंडे चेहरे पर एक दहकता हुआ अंगारा सा लगते थे। ज़ईफ़ सी मुस्कुराहट पैदा हुई कुत्ते के बालों में अपनी लंबी लंबी उंगलीयों से कंघी करते हुए उस ने दीवार के साथ लटकती हुई अनवर के दोस्त जमील की तस्वीर की तरफ़ देखते हुए कहा। “आप से मिल कर बहुत ख़ुशी हुई।”

अनवर को उस के साथ मिल कर क़तअन ख़ुशी नहीं हुई थी। रंज भी नहीं हुआ। अगर वो सोचता तो यक़ीनी तौर पर अपने सही रद्द-ए-अमल को बयान न कर सका। दरअसल परवेज़ से मिल कर वो फ़ैसला नहीं कर सका था कि वो एक लड़की से मिला है या उसकी मुलाक़ात किसी लड़के से हुई है। या सर्दीयों में क्रिकेट के मैच देखते हुए उस ने एक मूली ख़रीद ली है।

अनवर ने उस की तरफ़ ग़ौर से देखा। उस की आँखें ख़ूबसूरत थीं। बस एक सिर्फ़ यही चीज़ थी। जिस के मुतअल्लिक़ तारीफ़ी अल्फ़ाज़ में कुछ कहा ज सकता था। इन आँखों के इलावा परवेज़ के जिस्म के हर हिस्से पर नुक्ता चीनी हो सकती थी। बाहें बहुत पतली थीं। जो छोटी आस्तीनों वाली क़मीज़ में से बहुत ही यख़ आलूद अंदाज़ में बाहर को निकली हुई थीं। अगर उस के सर पर सबज़ डोपट्टा न होता तो अनवर ने यक़ीनन उस को फ़रजडीर समझा होता जिस का रंग आम तौर पर उकता देने वाला सफ़ैद होता है।

उस के होंटों पर जीते जीते लहू जैसी सुर्ख़ी बहुत घुल रही थी। बर्फ़ के साथ आग का क्या जोड़?........ उस की छोटी आस्तीनों वाली क़मीज़ सफ़ैद कमबरक की थी। शलवार सफ़ैद लट्ठे की थी। सैंडल भी सफ़ैद थे। इस तमाम सफेदी पर इस का सबज़ डोपट्टा इतना इन्क़िलाब-अंगेज़ नहीं था। मगर उस के सुर्ख़ी लगे होंट एक अजीब सा हंगामाख़ेज़ तज़ाद बन कर उसके चेहरे के साथ चिमटे हुए थे।

सहन में जब वो चंद क़दम चल कर जमील की तरफ़ अपने नन्हे से कुत्ते को देखती हुई बढ़ी थी। तो अनवर ने महसूस किया था कि ये औरत जो कि आरही है औरत नहीं ननकारी है। उस से हाथ मिलाते वक़्त उसे ऐसा लगा था जैसे उस का हाथ किसी लाश ने पकड़ लिया है। मगर जब उस ने बातें शुरू कीं तो वो ठंडी गरन्त जो उस के हाथ के साथ चिपकी हुई थी कुछ गर्म होने लगी।

वो आवारा ख़्याल थी। उस की बातें सब की सब बेजोड़ थीं। मौसम का ज़िक्र करते करते वो अपने दर्ज़ी की तरफ़ लुढ़क गई। दर्ज़ी की बात अभी अधूरी ही थी कि उस को अपने कुत्ते की छींकों का ख़्याल आगया। कुत्ते ने छींका तो उस ने अपने ख़ाविंद के मुतअल्लिक़ ये कहना शुरू कर दिया। “वो बिलकुल मेरा ख़्याल नहीं रखते। देखिए अभी तक दफ़्तर से नहीं आए।”

अनवर के लिए परवेज़ और उस का ख़ाविंद दोनों बिलकुल नए थे। वो परवेज़ को जानता था न उसके ख़ाविंद को। गुफ़्तुगू के दौरान में सिर्फ़ उस को इस क़दर मालूम हुआ कि परवेज़ का ख़ाविंद जमील का पड़ोसी है और एक्सपोर्ट इम्पोर्ट का काम करता है अलबत्ता उस ने ये ज़रूर महसूस किया कि परवेज़ गुफ़्तुगू के आग़ाज़ से गुफ़्तुगू के इख़्तिताम तक उस को ऐसी नज़रों से देखती थी जिन में जिन्सी बुलावा था। अनवर को हैरत थी कि एक ठंडी मूली में ये बुलावा कैसे हो सकता है।

वो उठ कर जाने लग तो उस ने गोद से अपने नन्हे कुत्ते को उतारा और उस से कहा “चलो टीनी चलें” फिर मिसिज़ जमील से जीगरोवल के बारे में कुछ पूछ कर अपने सुर्ख़ होंटों पर छदरी सी मुस्कुराहट पैदा करके अनवर की तरफ़ हाथ बढ़ा कर उस ने कहा। “मेरे हसबैंड से मिल कर आप को बहुत ख़ुशी होगी।”

एक बार फिर अनवर ने फ़रजडीटर में अपना हाथ धोया और सोचा “मुझे इस के हसबैंड से मिल कर क्या ख़ुशी होगी। जब कि ये ख़ुद उस से नाख़ुश है........ इस ने कहा था कि वो मेरा बिलकुल ख़्याल नहीं रखते।”

देर तक वो जमील और उस की बीवी से बातें करता रहा। कि शायद इन में से कोई परवेज़ के मुतअल्लिक़ बात करेगा और उस को उस औरत के बारे में कुछ मालूमात हासिल होंगी जिस को उस ने ठंडी मूली समझा था। मगर कोई ऐसी बात न हुई। जो परवेज़ की शख़्सियत पर रोशनी डालती। जीगरोदल का ज़िक्र आया तो मिसिज़ जमील ने सिर्फ़ इतना कहा। “सिर्फ़ का टैस्ट रंगों के बारे में बहुत अच्छा है।”

“परवेज़.... परी” अनवर ने सोचा “कितनी ग़लत तख़फ़ीफ़ है ये ख़स्ता सी रीढ़ की हड्डी वाली औरत जिस का रंग उकता देने वाली हद तक सफ़ैद है........ उस को परी कहा जाये क्या ये कोह-ए-क़ाफ़ की तौहीन नहीं?”

जब परवेज़ के मुतअल्लिक़ और कोई बात न हुई तो अनवर ने जमील से रुख़स्त चाही “अच्छा भाई मैं चलता हूँ” फिर वो मिसिज़ जमील से मुख़ातब हुआ। “भाभी आप की परी बड़ी दिलचस्प चीज़ है।”

मिसिज़ जमील मुस्कुराई। “क्यों”

अनवर ने यूंही कह दिया था। मिसिज़ जमील ने क्यों कहा तो उस को कोई जवाब न सूझा। थोड़े से तवक्कुफ़ के बाद वो मुस्कुराया। “क्या आप के नज़दीक वो दिलचस्प नहीं? कौन हैं ये मोहतरमा?”

मिसिज़ जमील ने कोई जवाब न दिया। जमील ने उस की तरफ़ देखा तो उस ने नज़रें झुका लें। जमील मुस्कुरा कर उठा और अनवर के कांधे को दबा कर उस ने गटक कर कहा........ “चलो तुम्हें बताता हूँ कौन हैं ये मोहतरमा........ बड़ी वाजिब-ए-ताज़ीम हस्ती हैं”

“आप को तो बस कोई मौक़ा मिलना चाहिए” मिसिज़ जमील के लहजे में झुंझलाहट थी।

जमील हंसा। “क्या मैं ग़लत कहता हूँ कि परी वाजिब-ए-ताज़ीम हस्ती नहीं”

“मैं नहीं जानती” ये कह कर मिसिज़ जमील उठी और अंदर कमरे में चली गई। जमील ने फिर अनवर का कंधा दबाया और उस से मुस्कुराते हुए कहा। “बैठ जाओ........ तुम्हारी भाभी ने हमें परी के मुतअल्लिक़ बातें करने का मौक़ा दे दिया है।”

अनवर बैठ गया। जमील ने सिगरेट सुलगाया और उस से पूछा। “तुम्हें परी में क्या दिलचस्पी नज़र आई?”

अनवर ने कुछ देर अपने दिमाग़ को कुरेदा “दिलचस्पी?........ मैं कुछ नहीं कह सकता मेरा ख़्याल है उस का ग़ैर दिलचस्प होना ही शायद इस दिलचस्पी का बाइस है।”

जमील ने चुटकी बजा कर सिगरेट की राख झाड़ी। “लफ़्ज़ों का उलट फेर नहीं चलेगा........ साफ़ साफ़ बताओ तुम्हें इस में क्या दिलचस्पी नज़र आई?”

अनवर को ये जरह पसंद न आई “मुझे जो कुछ कहना था। मैंने कह दिया है।”

जमील हंसा, फिर एक दम संजीदा हो कर उस ने सामने कमरे की तरफ़ देखा और दबी ज़बान में कहा। “बड़ी ख़तरनाक औरत है अनवर”

अनवर ने हैरत से पूछा। “क्या मतलब?”

“मतलब ये कि मोहतरमा दो आदमीयों का ख़ून करा चुकी हैं।”

अनवर की आँखों के सामने मअन परवेज़ का सफ़ैद रंग आगया। मुस्कुरा कर कहने लगा। “इसके बावजूद लहू की एक छींट भी नहीं इस में”

लेकिन फ़ौरन ही उस को मुआमले की संगीनी का ख़्याल आया तो उस ने संजीदा हो कर जमील से पूछा “क्या कहा तुम ने?........ दो आदमियों का ख़ून?”

अनवर ने चुटकी बजा कर सिगरेट की राख झाड़ी “जी हाँ........ एक कैप्टन था। दूसरा सर बहाउद्दीन का लड़का”

“कौन सर बहाउद्दीन?”

“अम्मां वही........ जो एग्रीकल्चरल डिपार्टमैंट में ख़ुदा मालूम क्या थे”

अनवर को कुछ पता न चला। बहाउद्दीन को छोड़कर उस ने जमील से पूछा।

“कैसे ख़ून हुआ इन दोनों का?”

“जैसे हुआ करता है। कॉलिज में कैप्टन साहिब से परी का याराना था। शादी करके जब वो बंबई गई तो वहां सर बहाउद्दीन के लड़के से राह-ओ-रस्म पैदा होगई। इत्तिफ़ाक़ से टरेनिंग के सिलसिले में कप्तान साहिब वहां पहुंचे। पुराने तअल्लुक़ात क़ायम करना चाहे तो सर बहाउद्दीन के लड़के आड़े आए। एक पार्टी में दोनों की चख़ हुई। दूसरे रोज़ कप्तान साहब ने पिस्तौल दाग़ दिया। रक़ीब वहीं ढेर होगए परी को बहुत अफ़सोस हुआ। सर बहाउद्दीन के लड़के की मौत के ग़म में उस ने कई दिन सोग में काटे। जब कप्तान साहब को फांसी हुई तो लोग कहते हैं। उस की आँखों ने हज़ार हा असली आँसू बहाए........ इस के बाद एक नौजवान पार्सी उस के दाम-ए-मोहब्बत में गिरफ़्तार हो गया। वस्ल की रात जब उसे पता चला कि उस की महबूबा शादीशुदा है तो उस ने अपने बाप की डिसपेंसरी से ज़हर लेकर रखा लिया”

अनवर ने कहा “ये तीन ख़ून हुए”

जमील मुस्कुराया। “नौजवान पार्सी ख़ुशक़िस्मत था उस के बाप ने उसे मौत के मुँह से बचा लिया।”

“बड़ी अजीब-ओ-ग़रीब औरत है” ये कह कर अनवर सोचने लगा कि परवेज़ जिस में कशिश नाम को भी नहीं कैसे इन हंगामों का बाइस हुई। कप्तान ने इस में क्या देखा। सर बहाउद्दीन के लड़के को इस में क्या चीज़ नज़र आई?........ और उस नौजवान पार्सी ने इस ढीली ढाली औरत में क्या दिलकशी देखी?

अनवर ने परवेज़ को तसव्वुर में नंगा करके देखा। ढीली ढाली हडीयों का एक ढांचा जिस पर सफ़ैद सफ़ैद गोश्त मंढा हुआ था। ख़ून के बग़ैर कूल्हे दुबले पुतले लड़के के कूल्हों जैसे थे। रीढ़ की हड्डी में कोई दम नहीं था। ऐसा मालूम था कि अगर उस के सर पर हाथ रख कर किसी ने दबाया तो वो दोनीम हो जाएगी। बाल कटे हुए थे जो हाईड्रोजन पर एक्साइड के इस्तिमाल से अपना क़ुदरती रंग खो चुके थे........ क्या था उस के सरापा में?........ एक फ़क़त उस की आँखें कुछ ग़नीमत थीं।

अनवर ने सोचा। “सिर्फ़ आँखें कौन चाटता फिरता है........ कोई बात होनी चाहिए........ लेकिन हैरत है कि इस ठंडी मूली ने इतने बड़े हंगामे पैदा किए। मुझ से तो जब इस ने हाथ मिलाया था। तो मैंने ख़्याल किया था कि मुझे बदबूदार डकारें आनी शुरू हो जाएंगी........ कुछ समझ में नहीं आता। लेकिन कुछ न कुछ है ज़रूर उस परी में”

जमील ने उसे बताया कि रावलपिंडी में परवेज़ के कॉलिज के रोमांस मशहूर हैं। उस ज़माने में इस के बयक-वक़्त तीन तीन चार चार लड़कों से रोमान चलते थे। छः लड़के इसी के बाइस कॉलिज बदर हुए। एक को बीमार होकर सीनेटोरीम में दाख़िल होना पड़ा।

अनवर की हैरत बढ़ गई। उस ने जमील से पूछा। “कौन है इस का ख़ाविंद?........ और ख़ुद किस की लड़की है?”

जमील ने जवाब दिया। “बहुत बड़े बाप की........ किसी ज़माने में अहमदाबाद हाईकोर्ट के चीफ़ जस्टिस थे, आज-कल रिटायर्ड हैं........ ख़ाविंद इस का हिंदू है।”

“हिंदू?”

“नहीं, अब ईसाई हो चुका है?”

“क्या करता है?”

“मेरा ख़्याल है शुरू में इस का ज़िक्र आया था। कि एक्सपोर्ट इम्पोर्ट का काम करता है।”

अनवर को याद आगया। “हाँ, हाँ कुछ ऐसी बात हुई थी........ शायद भाबी जान ने बताया था?”

जमील और अनवर थोड़ी देर ख़ामोश रहे। जमील ने सिगरेट सुलगाया और इधर उधर देख कर उसकी बीवी न सुन रही हो। अनवर का कांधा दबा कर सरगोशी में कहा। “तुम परी से ज़रूर मिलो........ देखना क्या होता है?”

अनवर ने ख़ुद से पूछा मगर जमील से कहा “क्या होगा?”

जमील के होंटों में एक शरीर सी मुस्कुराहट पैदा हुई। “वही होगा जो मंज़ूर-ए-ख़ुदा होगा।” फिर इस ने आवाज़ दबा कर कहा। “कल शाम चाय वहीं पियेंगे। उस का ख़ाविंद रात को आता है।”

प्रोग्राम तय होगया। परवेज़ के मुतअल्लिक़ इतनी बातें सुन कर उसके दिमाग़ में खुदबुद सी होरही है। वो बार बार सोचता था। “मुलाक़ात पर क्या होगा........ कोई ग़ैरमामूली चीज़ वक़ूअ पज़ीर होगी........ हो सकता है जमील ने मज़ाक़ क्या हो........ हो सकता है जमील ने जो कुछ भी इसके बारे में कहा सर-ता-पा ग़लत हो। लेकिन फिर उसे ख़्याल आता। जमील को ख़्वाह-मख़्वाह झूट बोलने की क्या ज़रूरत थी।”

दूसरे रोज़ शाम को जमील और वो दोनों परी के हाँ आगए वो ग़ुसलख़ाने में नहा रही थी। नौकर ने उन को बड़े कमरे में बिठा दिया। अनवर वोग की वर्क़ गरदानी करने लगा। दफ़ातन जमील उठा। “मैं सिगरेट भूल आया........ अभी आता हूँ ये कह कर वह चला गया।”

अनवर वोग में छपी हुई एक तस्वीर देख रहा था कि उसे कमरे में किसी और की मौजूदगी का एहसास हुआ। नज़रें उठा कर इस ने देखा तो परवेज़ थी। अनवर सटपटा गया। उस ने सफ़ैद पाजामा पहना हुआ था जो जा बजा गीला था। मलमल का कुर्ता उस के पानी से तर बदन के साथ चिपका हुआ था। मुस्कुरा कर उस ने अनवर से कहा। “आप बड़े इन्हिमाक से तस्वीरें देख रहे थे।”

पर्चा छोड़कर अनवर उठा। इस ने कुछ कहना चाहा। मगर परवेज़ उसके पास आगई। पर्चा उठा कर इस ने एक हाथ से अपने कटे हुए बालों को एक तरफ़ किया। और मुस्कुरा कर कहा “मुझे मालूम है कि आप आए हैं तो में ऐसे ही चली आई” ये कह कर उस ने अपने मलमल के गीले कुरते को देखा। जिस में दो काले धब्बे साफ़ दिखाई दे रहे थे। फिर उस ने अनवर का हाथ पकड़ा चलीए अंदर चलें।

अनवर मिनमिनाया “जमील........ जमील भी साथ था मेरे........ सिगरेट भूल आया था। लेने गया है।”

परवेज़ ने अनवर को खींचा। “वो आजाएगा........ चलीए।”

अनवर को जाना ही पड़ा। जिस कमरे में वो दाख़िल हुए उस में कोई कुर्सी नहीं थी। दो स्प्रिंगों वाले सागवानी पलंग थे। एक ड्रेसिंग टेबल थी। इसके साथ एक स्टूल पड़ा था। परी उस स्टूल पर बैठ गई और एक पलंग की तरफ़ इशारा करके अनवर से कहा। “बेठिए”

अनवर हिचकिचाते हुए बैठ गया। उस ने चाहा कि जमील आजाए क्योंकि इसे बेहद उलझन होरही थी। परवेज़ के गीले कुरते के साथ चिमटे हुए दो काले धब्बे उस को दो अंधी आँखें लगते थे जो उस के सीने को घूर घूर कर देख रही हैं। अनवर ने उठ कर जाना चाहा “मेरा ख़्याल है मैं जमील को बुला लाऊं मगर वो उस के साथ पलंग पर बैठ गई।” डरेसिन्ग टेबल पर रखे हुए फ़्रेम की तरफ़ इशारा करके उस ने अनवर से कहा। “ये मेरे हसबैंड हैं........ ” “बहुत ज़ालिम आदमी है जमील साहब।”

अनवर मिनमिनाया। “आप मज़ाक़ करती हैं।”

“जी नहीं........ मेरे और उस के मिज़ाज में ज़मीन-ओ-आसमान का फ़र्क़ है........ असल में शादी से पहले मुझे देख लेना चाहिए था कि वो समझता है कि नहीं........ जिस चीज़ का मुझे शौक़ हो उसे बिलकुल पसंद नहीं होती........ आप बताईए ये कहती हुई ओट लगा कर पलंग पर औंधी लेट गई। “इस तरह लेटने में क्या हर्ज है।”

अनवर एक कोने में सरक गया। उसे कोई जवाब न सूझा। उस ने सिर्फ़ इतना सोचा “इस का दरमयानी हिस्सा कितना ग़ैर निस्वानी है।”

परवेज़ औंधी लेटी रही “आप ने जवाब नहीं दिया मुझे........ बताईए इस तरह लेटने में क्या हर्ज है?”

अनवर का हलक़ सूखने लगा। “कोई हर्ज नहीं।”

“लेकिन उस को नापसंद है........ ख़ुदा मालूम क्यों” ये कह कर परवेज़ ने गर्दन टेढ़ी करके अनवर की तरफ़ देखा। “आदमी इस तरह लेटते तो मालूम हुआ है तेर रहा है........ में लेटूं तो ऊपर बड़ा तकिया रख लिया करती हूँ। ज़रा उठाईए ना वो तकिया और मेरे ऊपर रख दीजीए।”

अनवर का हलक़ बिलकुल ख़ुश्क होगया। उसकी समझ में नहीं आता क्या करे। उठने लगा तो परवेज़ ने अपनी पतली टांग से उस को रोका “बैठ जाईए ना”

“जी मैं जमील........ ”

वो मुस्कुराई “जमील बेवक़ूफ़ है एक दिन मुझ से बातें कररहा था। मैंने उस से कहा अपने ख़ाविंद के सिवा मेरा और किसी से वो तअल्लुक़ नहीं रहा जो एक मर्द और औरत में होता है। तो वो हँसने लगा........ मुझे तो वैसे भी उस के तअल्लुक़ से नफ़रत है........ ज़रा तकिया उठा कर रख दीजीए ना मेरे ऊपर!”

अनवर इसी बहाने उठा। तकिया दूसरे कोने में पड़ा था। उसे उठाया और परवेज़ के दरमयानी हिस्सा पर जोकि बहुत ही ग़ैर निस्वानी था रख दिया।

परवेज़ मुस्कुराई “शुक्रिया........ बेठीए अब बातें करें।”

“जी नहीं........ आप तकीए से बातें करें। मैं चला।” ये कह कर अनवर पसीना पोंछता बाहर निकल गया।

(7 जून 1950-ई.)

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पूना में रेसों का मौसम शुरू होने वाला था कि पिशावर से अज़ीज़ ने लिखा कि मैं अपनी एक जान पहचान की औरत जानकी को तुम्हारे पास भेज रहा हूँ, उस को या तो पूना में या बंबई में किसी फ़िल्म कंपनी में मुलाज़मत करा

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तरक़्क़ी पसंद

8 अप्रैल 2022
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जोगिंदर सिंह के अफ़साने जब मक़बूल होना शुरू हुए तो उसके दिल में ख़्वाहिश पैदा हुई कि वो मशहूर अदीबों और शाइरों को अपने घर बुलाए और उन की दावत करे। उस का ख़याल था कि यूं उस की शौहरत और मक़बूलियत और भी ज़्

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दीवाना शायर

8 अप्रैल 2022
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[अगर मुक़द्दस हक़ दुनिया की मुतजस्सिस निगाहों से ओझल कर दिया जाये। तो रहमत हो उस दीवाने पर जो इंसानी दिमाग़ पर सुनहरा ख़्वाब तारी कर दे।] मैं आहों का ब्योपारी हूँ, लहू की शायरी मेरा काम है, चमन की मा

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निक्की

8 अप्रैल 2022
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तलाक़ लेने के बाद वो बिलकुल नचनत होगई थी। अब वो हर रोज़ की वानिता कुल कुल और मार कटाई नहीं थे। निक्की बड़े आराम-ओ-इत्मिनान से अपना गुज़र औक़ात कर रही थी। ये तलाक़ पूरे दस बरस के बाद हुई थी। निक्की का श

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परी

8 अप्रैल 2022
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कश्मीरी गेट दिल्ली के एक फ़्लैट में अनवर की मुलाक़ात परवेज़ से हुई। वो क़तअन मुतअस्सिर न हुआ। परवेज़ निहायत ही बेजान चीज़ थी। अनवर ने जब उस की तरफ़ देखा और उस को आदाब अर्ज़ कहा तो उस ने सोचा “ये क्या है औरत

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पसीना

8 अप्रैल 2022
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“मेरे अल्लाह!............... आप तो पसीने में शराबोर हो रहे हैं।” “नहीं। कोई इतना ज़्यादा तो पसीना नहीं आया।” “ठहरिए में तौलिया ले कर आऊं।” “तौलिए तो सारे धोबी के हाँ गए हुए हैं।” “तो मैं अपने दोपट्

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पढ़े कलिमा

8 अप्रैल 2022
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ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह...... आप मुस्लमान हैं यक़ीन करें मैं जो कुछ कहूंगा, सच्च कहूंगा। पाकिस्तान का इस मुआमले से कोई तअल्लुक़ नहीं। क़ाइद-ए-आज़म जिन्नाह के लिए मैं जान देने के लिए तैय

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पीरन

8 अप्रैल 2022
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ये उस ज़माने की बात है जब मैं बेहद मुफ़लिस था। बंबई में नौ रुपये माहवार की एक खोली में रहता था जिस में पानी का नल था न बिजली। एक निहायत ही ग़लीज़ कोठड़ी थी जिस की छत पर से हज़ारहा खटमल मेरे ऊपर गिरा करते थ

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पढ़े कलिमा

8 अप्रैल 2022
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ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह...... आप मुस्लमान हैं यक़ीन करें मैं जो कुछ कहूंगा, सच्च कहूंगा। पाकिस्तान का इस मुआमले से कोई तअल्लुक़ नहीं। क़ाइद-ए-आज़म जिन्नाह के लिए मैं जान देने के लिए तैय

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फ़रिश्ता

8 अप्रैल 2022
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सुर्ख़ खुरदरे कम्बल में अताउल्लाह ने बड़ी मुश्किल से करवट बदली और अपनी मुंदी हुई आँखें आहिस्ता आहिस्ता खोलीं। कुहरे की दबीज़ चादर में कई चीज़ें लिपटी हुई थीं जिन के सही ख़द्द-ओ-ख़ाल नज़र नहीं आते थे। एक लं

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फाहा

8 अप्रैल 2022
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गोपाल की रान पर जब ये बड़ा फोड़ा निकला तो इस के औसान ख़ता हो गए। गरमियों का मौसम था। आम ख़ूब हुए थे। बाज़ारों में, गलियों में, दुकानदारों के पास, फेरी वालों के पास, जिधर देखो, आम ही आम नज़र आते। लाल, पीले

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फुंदने

8 अप्रैल 2022
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कोठी से मुल्हक़ा वसीअ-ओ-अरीज़ बाग़ में झाड़ियों के पीछे एक बिल्ली ने बच्चे दिए थे, जो बिल्ला खा गया था। फिर एक कुतिया ने बच्चे दिए थे जो बड़े बड़े हो गए थे और दिन रात कोठी के अंदर बाहर भौंकते और गंदगी बिखेर

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बलवंत सिंह मजीठिया

8 अप्रैल 2022
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शाह साहब से जब मेरी मुलाक़ात हुई तो हम फ़ौरन बे-तकल्लुफ़ हो गए। मुझे सिर्फ़ इतना मालूम था कि वो सय्यद हैं और मेरे दूर-दराज़ के रिश्तेदार भी हैं। वो मेरे दूर या क़रीब के रिश्तेदार कैसे हो सकते थे, इस के मु

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बाई बाई

8 अप्रैल 2022
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नाम उस का फ़ातिमा था पर सब उसे फातो कहते थे बानिहाल के दुर्रे के उस तरफ़ उस के बाप की पन-चक्की थी जो बड़ा सादा लौह मुअम्मर आदमी था। दिन भर वो इस पन चक्की के पास बैठी रहती। पहाड़ के दामन में छोटी सी जगह थ

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बादशाहत का ख़ात्मा

8 अप्रैल 2022
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टेलीफ़ोन की घंटी बिजी। मनमोहन पास ही बैठा था। उस ने रीसीवर उठाया और कहा “हेलो....... फ़ौर फ़ौर फ़ौर फाईव सेवन” दूसरी तरफ़ से पतली सी निस्वानी आवाज़ आई। “सोरी....... रोंग नंबर” मनमोहन ने रीसीवर रख दिया और

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बिलाउज़

8 अप्रैल 2022
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कुछ दिनों से मोमिन बहुत बेक़रार था। उस को ऐसा महसूस होता था कि इस का वजूद कच्चा फोड़ा सा बन गया था। काम करते वक़्त, बातें करते हुए हत्ता कि सोचने पर भी उसे एक अजीब क़िस्म का दर्द महसूस होता था। ऐसा दर्द

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सरकण्डों के पीछे

8 अप्रैल 2022
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कौन सा शहर था, इस के मुतअल्लिक़ जहां तक में समझता हूँ, आप को मालूम करने और मुझे बताने की कोई ज़रूरत नहीं ।बस इतना ही कह देना काफ़ी है कि वो जगह जो इस कहानी से मुतअल्लिक़ है, पेशावर के मुज़ाफ़ात में थी। सरहद

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मिसिज़ गुल

8 अप्रैल 2022
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मैंने जब उस औरत को पहली मर्तबा देखा तो मुझे ऐसा महसूस हुआ कि मैंने लेमूँ निचोड़ ने वाला खटका देखा है। बहुत दुबली पतली, लेकिन बला की तेज़। उस का सारा जिस्म सिवाए आँखों के इंतिहाई ग़ैर निस्वानी था। ये आँख

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मलबे का ढेर

8 अप्रैल 2022
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कामिनी के ब्याह को अभी एक साल भी न हुआ था कि उस का पति दिल के आरिज़े की वजह से मर गया और अपनी सारी जायदाद उस के लिए छोड़ गया। कामिनी को बहुत सदमा पहुंचा, इस लिए कि वो जवानी ही में बेवा हो गई थी। उस की

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महमूदा

8 अप्रैल 2022
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मुस्तक़ीम ने महमूदा को पहली मर्तबा अपनी शादी पर देखा। आरसी मसहफ़ की रस्म अदा हो रही थी कि अचानक उस को दो बड़ी बड़ी.......ग़ैर-मामूली तौर पर बड़ी आँखें दिखाई दीं.......ये महमूदा की आँखें थीं जो अभी तक कुंवार

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मिसेज़ डी सिल्वा

8 अप्रैल 2022
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बिलकुल आमने सामने फ़्लैट थे। हमारे फ़्लैट का नंबर तेरह था। उस के फ़्लैट का चौदह। कभी कोई सामने का दरवाज़ा खटखटाता तो मुझे यही मालूम होता कि हमारे दरवाज़े पर दस्तक होरही है। इसी ग़लतफ़हमी में जब मैंने एक

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मेरा हमसफ़र

9 अप्रैल 2022
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प्लेटफार्म पर शहाब, सईद और अब्बास ने एक शोर मचा रखा था। ये सब दोस्त मुझे स्टेशन पर छोड़ने के लिए आए थे, गाड़ी प्लेटफार्म को छोड़ कर आहिस्ता आहिस्ता चल रही थी कि शहाब ने बढ़ कर पाएदान पर चढ़ते हुए मुझ से

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मेरा और उसका इंतिक़ाम

9 अप्रैल 2022
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घर में मेरे सिवा कोई मौजूद नहीं था। पिता जी कचहरी में थे और शाम से पहले कभी घर आने के आदी न थे। माता जी लाहौर में थीं और मेरी बहन बिमला अपनी किसी सहेली के हाँ गई थी! मैं तन्हा अपने कमरे में बैठा किताब

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वह लड़की

9 अप्रैल 2022
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सवा-चार बज चुके थे लेकिन धूप में वही तमाज़त थी जो दोपहर को बारह बजे के क़रीब थी। उस ने बालकनी में आ कर बाहर देखा तो उसे एक लड़की नज़र आई जो बज़ाहिर धूप से बचने के लिए एक साया-दार दरख़्त की छांव में आलती पाल

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वो ख़त जो पोस्ट न किये गए

9 अप्रैल 2022
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हव्वा की एक बेटी के चंद ख़ुतूत जो उस ने फ़ुर्सत के वक़्त मुहल्ले के चंद लोगों को लिखे। मगर इन वजूह की बिना पर पोस्ट न किए गए जो इन ख़ुतूत में नुमायां नज़र आती हैं। (नाम और मुक़ाम फ़र्ज़ी हैं) पहला ख़त म

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शादी

9 अप्रैल 2022
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जमील को अपना शैफर लाइफ-टाइम क़लम मरम्मत के लिए देना था। उस ने टेलीफ़ोन डायरेक्ट्री में शैफर कंपनी का नंबर तलाश किया। फ़ोन करने से मालूम हुआ कि उन के एजेंट मैसर्ज़ डी, जे, समतोइर हैं जिन का दफ़्तर ग्रीन

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सड़क के किनारे

9 अप्रैल 2022
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“यही दिन थे......... आसमान उस की आँखों की तरह ऐसा ही नीला था जैसा कि आज है। धुला हुआ, निथरा हुआ......... और धूप भी ऐसी ही कनकनी थी......... सुहाने ख़्वाबों की तरह। मिट्टी की बॉस भी ऐसी ही थी जैसी कि इ

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शारदा

9 अप्रैल 2022
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नज़ीर ब्लैक मार्कीट से विस्की की बोतल लाने गया। बड़क डाकख़ाने से कुछ आगे बंदरगाह के फाटक से कुछ इधर सिगरेट वाले की दुकान से उस को स्काच मुनासिब दामों पर मिल जाती थी। जब उस ने पैंतीस रुपये अदा करके काग़

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सिराज

9 अप्रैल 2022
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नागपाड़ा पुलिस चौकी के उस तरफ़ जो छोटा सा बाग़ है। उस के बिलकुल सामने ईरानी के होटल के बाहर, बिजली के खंबे के साथ लग कर ढूंढ़ो खड़ा था। दिन ढले, मुक़र्ररा वक़्त पर वो यहां आ जाता और सुबह चार बजे तक अपने धंद

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हज्ज-ए-अकबर

9 अप्रैल 2022
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इम्तियाज़ और सग़ीर की शादी हुई तो शहर भर में धूम मच गई। आतिश बाज़ियों का रिवाज बाक़ी नहीं रहा था मगर दूल्हे के बाप ने इस पुरानी अय्याशी पर बे-दरेग़ रुपया सर्फ़ किया। जब सग़ीर ज़ेवरों से लदे फंदे सफ़ैद बुर्र

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सजदा

9 अप्रैल 2022
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गिलास पर बोतल झुकी तो एक दम हमीद की तबीयत पर बोझ सा पड़ गया। मलिक जो उसके सामने तीसरा पैग पी रहा था फ़ौरन ताड़ गया कि हमीद के अंदर रुहानी कश्मकश पैदा होगई है। वो हमीद को सात बरस से जानता था, और इन सात बर

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लाइसेंस

9 अप्रैल 2022
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अब्बू कोचवान बड़ा छैल छबीला था। उस का ताँगा घोड़ा भी शहर में नंबर वन था। कभी मामूली सवारी नहीं बिठाता था। उस के लगे बंधे गाहक थे जिन से उस को रोज़ाना दस पंद्रह रुपय वसूल हो जाते थे जो अब्बू के लिए काफ़ी थ

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हाफ़िज़ हुसैन दीन

9 अप्रैल 2022
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हाफ़िज़ हुसैन दीन जो दोनों आँखों से अंधा था, ज़फ़र शाह के घर में आया। पटियाले का एक दोस्त रमज़ान अली था, जिस ने ज़फ़र शाह से उस का तआरुफ़ कराया। वो हाफ़िज़ साहिब से मिल कर बहुत मुतअस्सिर हुआ। गो उन की

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संतर पंच

9 अप्रैल 2022
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मैं लाहौर के एक स्टूडियो में मुलाज़िम हुआ जिस का मालिक मेरा बंबई का दोस्त था उस ने मेरा इस्तिक़बाल क्या मैं उस की गाड़ी में स्टूडियो पहुंचा था बग़लगीर होने के बाद उस ने अपनी शराफ़त भरी मोंछों को जो ग़ालिबन

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शैदा

9 अप्रैल 2022
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शैदे के मुतअल्लिक़ अमृतसर में ये मशहूर था कि वो चट्टान से भी टक्कर ले सकता है उस में बला की फुर्ती और ताक़त थी गो तन-ओ-तोश के लिहाज़ से वो एक कमज़ोर इंसान दिखाई देता था लेकिन अमृतसर के सारे गुंडे उस से ख़ौ

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राम खेलावन

9 अप्रैल 2022
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खटमल मारने के बाद में ट्रंक में पुराने काग़ज़ात देख रहा था कि सईद भाई जान की तस्वीर मिल गई। मेज़ पर एक ख़ाली फ़्रेम पड़ा था....... मैंने इस तस्वीर से उस को पुर कर दिया और कुर्सी पर बैठ कर धोबी का इंतिज़ार

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रहमत-ए-खुदा-वंदी के फूल

9 अप्रैल 2022
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ज़मींदार, अख़बार में जब डाक्टर राथर पर रहमत-ए-ख़ुदा-वंदी के फूल बरसते थे तो यार दोस्तों ने ग़ुलाम रसूल का नाम डाक्टर राथर रख दिया। मालूम नहीं क्यूँ, इस लिए कि ग़ुलाम रसूल को डाक्टर राथर से कोई निसबत नह

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मिस फ़र्या

9 अप्रैल 2022
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शादी के एक महीने बाद सुहेल परेशान होगया। उस की रातों की नींद और दिन का चैन हराम हो गया। उस का ख़याल था कि बच्चा कम अज़ कम तीन साल के बाद पैदा होगा मगर अब एक दम ये मालूम करके उस के पांव तले की ज़मीन निक

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मिस अडना जैक्सन

9 अप्रैल 2022
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कॉलिज की पुरानी प्रिंसिपल के तबादले का एलान हुआ, तालिबात ने बड़ा शोर मचाया। वो नहीं चाहती थीं कि उन की महबूब प्रिंसिपल उन के कॉलेज से कहीं और चली जाये। बड़ा एहतिजाज हुआ। यहाँ तक कि चंद लड़कियों ने भूक हड़

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बुड्ढ़ा खूसट

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ये जंग-ए-अज़ीम के ख़ातमे के बाद की बात है जब मेरा अज़ीज़ तरीन दोस्त लैफ़्टीनैंट कर्नल मोहम्मद सलीम शेख़ (अब) ईरान इराक़ और दूसरे महाज़ों से होता हुआ बमबई पहुंचा। उस को अच्छी तरह मालूम था, मेरा फ़्लैट कहाँ ह

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शह नशीं पर

9 अप्रैल 2022
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वो सफ़ैद सलमा लगी साड़ी में शह-नशीन पर आई और ऐसा मालूम हुआ कि किसी ने नक़रई तारों वाला अनार छोड़ दिया है। साड़ी के थिरकते हूए रेशमी कपड़े पर जब जगह जगह सलमा का काम टिमटिमाने लगता तो मुझे जिस्म पर वो तमाम

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चुग़द

9 अप्रैल 2022
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लड़कों और लड़कियों के मआशिक़ों का ज़िक्र हो रहा था। प्रकाश जो बहुत देर से ख़ामोश बैठा अंदर ही अंदर बहुत शिद्दत से सोच रहा था, एक दम फट पड़ा। सब बकवास है, सौ में से निन्नानवे मआशिक़े निहायत ही भोंडे और लचर

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