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परिणीता

शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय

1 अध्याय
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'परिणीता' एक अनूठी प्रणय कहानी है, जिसमें दहेज प्रथा की भयावहता का चित्रण किया गया है। गुरूचरण बैंक में क्लर्क थे। उन्हें जब पाँचवी कन्या होने का संवाद मिला तो एक गहरी सी ठंड़ी साँस लेने की ताकत भी उनमें नहीं रही। पिछले वर्ष दूसरी कन्या के विवाह में उन्हें पैतृक मकान तक गिरवी रखना पड़ा था। यह उपन्यास सन १९१४ में पहली बार प्रकाशित हुआ था। यह कहानी ललिता नामक लड़की की है। ललिता एक अनाथ १३ वर्षीय लड़की है जो अपने मामा गुरुचरण बाबू के घर में रहती है। गुरुचरण बाबू की माली हालत ठीक नहीं है और इस बात से वे परेशान रहते हैं।उनके ऊपर काफी कर्जा है और अपनी बड़ी बेटियों के विवाह के लिए उन्होंने अपने घर तक को गिरवी रख दिया है।गुरुचरण बाबू के पडोसी नवीन राय हैं जो कि एक धनवान व्यापारी है।पडोसी होने के नाते नविनराय और गुरुचरण के परिवारों में बहुत स्नेह है।ललिता का भी नवीन राय के घर में भी आना जाना है। ललिता और शेखर के बीच जो प्रेम है उसका एहसास उन दोनों को तब होता है जब उन दोनों के लिए जीवन साथी ढूँढना शुरू हो जाता है क्या शेखर और ललिता एक हो पायेंगे ? क्या गुरुचरण बाबु अपने ऊपर लगा कर्जा उतार पायेंगे? गिरीन्द्र इस कहानी में किधर फिट होता है ? ललिता व शेखर एक दूसरे को बचपन से जानते है, यहाँ तक कि ललिता के जीवन में, शेखर की आज्ञा के बिना एक पत्ता तक नही हिलता। परिणीता, देवदास का सुखद संस्करण है। यदि आप हिंदी प्रेम कथाओं में दिलचस्पी रखते हैं, तो यह किताब जरूर पढें।  

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