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पसीना

8 अप्रैल 2022

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“मेरे अल्लाह!............... आप तो पसीने में शराबोर हो रहे हैं।”

“नहीं। कोई इतना ज़्यादा तो पसीना नहीं आया।”

“ठहरिए में तौलिया ले कर आऊं।”

“तौलिए तो सारे धोबी के हाँ गए हुए हैं।”

“तो मैं अपने दोपट्टे ही से आप का पसीना पोंछ देती हूँ।”

“तुम्हारा दुपट्टा रेशमीं है। पसीना जज़्ब नहीं कर सकेगा।”

“पसीने के ये क़तरे मुझ से नहीं देखे जाते। आप का ये कहना ठीक है कि रेशमीं कपड़ा पानी जज़्ब नहीं कर सकता............ लेकिन मैं आप का तौलिया हूँ............ क्या मैं आप का पसीना ख़ुश्क नहीं कर सकती।”

“आज गर्मी ज़्यादा थी। साईकल पर यहां आते आते में क़रीब क़रीब बे-होश होगया था।”

“हाय अल्लाह!”

“नहीं............ बस मैं चंद मिनटों में ठीक होगया। एक दोस्त था, उस ने मुझे आमों का शर्बत पिला दिया।”

“आमों का शर्बत भी होता है?”

“हर शय का शर्बत बनाया जा सकता है।”

“मेरा भी?”

“तुम्हारा शर्बत तो मैं हर रोज़ पीता हूँ.......... लेकिन इस का ज़ायक़ा अच्छा नहीं होता।”

“शरीर कहीं के।”

“शरारत तो तुम्हारी होती है कि तुम मिठास में खटाई डाल देती हो।”

“खटाई तो आप डालते हैं............. मैं तो मिस्री की डली हूँ।”

“मानता हूँ............ लेकिन कभी कभी................ ”

“आप मुझ से वो ज़्यादा न कीजिए............. इधर आईए, मैं आप की टाई उतारूँ।”

“आज इतना तकल्लुफ़ क्यों किया जा रहा है?”

“आप मुहब्बत को तकल्लुफ़ कहते हैं?”

“इस के मुतअल्लिक़ में तफ़सीलात में जाना नहीं चाहता............ वैसे मैं इतना ज़रूर कह सकता हूँ कि इतनी मुहब्बत का इज़हार तुम ने पहले कभी नहीं किया।”

“आप मुहब्बत को क्या जानें।”

“इंसान अगर मुहब्बत ही को जान पहचान नहीं सकता तो मैं समझता हूँ वो हैवान भी नहीं.............. कोई बे-हिस चीज़ है.............. पत्थर है............ सड़क पर गिरा हुआ रोड़ा है।”

“इधर आईए, मैं आप की टाई आतारुं।”

“इस तकल्लुफ़ की क्या ज़रूरत है?”

“मेरी समझ में नहीं आता कि आप तकल्लुफ़ की बात क्यों करते हैं.............. मैंने कभी आप से तकल्लुफ़ बरता है?”

“आज पहली मर्तबा।”

“आप इतने ज़हीन हैं............ बताईए इस तकल्लुफ़ की वजह क्या है?”

“मैं इतना ज़हीन नहीं हूँ।”

“आप कसर-ए-नफ़्सी से काम ले रहे हैं।”

“जनाब मैं कसर-ए-नफ़्सी से काम नहीं ले रहा........... एक हक़ीक़त थी जो मैंने बयान करदी?”

“मेरे पास तो आईए, मैं आप का पसीना पोंछ दूं............ गर्मी में बे-हाल होके आरहे हैं।”

“कोई इतनी ज़्यादा बे-हाली नहीं। वैसे इस में कोई शक नहीं कि आज दर्ज-ए-हरारत बहुत बढ़ा हुआ है........ सुनने में आया है कि आज दस आदमी इस हिद्दत के बाइस मर गए हैं।”

“मैं कहती हूँ, आप इतने रुपय ख़र्च करते हैं............ क्यों नहीं घर में एक कूलर ले आते।”

“कूलर की क्या ज़रूरत है? तुम ख़ुद बहुत बड़ी कूलर हो............. इतनी गर्मी में घर आया हूँ। तुम्हारी बातों ही ने मुझे ऐसी ठंडक पहुंचा दी है जो सब से बड़ा कूलर भी नहीं पहुंचा सकता।”

“आप ने अब मेरा मज़ाक़ उड़ाना शुरू कर दिया।”

“तुम्हारी क़सम........... मैं ऐसी गुस्ताख़ी कभी नहीं कर सकता।”

“मेरी क़सम आप ने क्यों खाई है?”

“इस लिए कि बड़ी लज़ीज़ है।”

“यानी आदमी को वही क़समो खानी चाहिऐं जो मज़ेदार हूँ।”

“यक़ीनन”

“आप से मैं कभी जीत नहीं सकती।”

“मैं तो हमेशा हारता रहा हूँ।”

“आप कब हारे हैं............... हार तो हमेशा मेरी ही होती रही है।”

“अच्छा, अब ज़रा मैं आराम करना चाहता हूँ.......... मेरी शलवार क़मीस निकाल दो”

“अलमारी में सिर्फ़ एक पाएजामा मौजूद है”

“बनयान होगी”

“जी नहीं........... तीन मैली पड़ी हैं जो नौकर ने अभी तक नहीं धोईं”

“ऐसी छोटी छोटी चीज़ें तो तुम्हें ख़ुद धो लेना चाहिऐं”

“आप को क्या मालूम कि साबुन कितना वाहियात होता है?...... छाले पड़ जाते हैं हाथों में।”

“नौकरों के हाथों में भी यक़ीनन छाले पड़ते होंगे।”

“आप हमेशा नौकरों की तरफ़ दारी करते हैं।”

“क्या वो इंसान नहीं?”

“ख़ैर छोड़ीए इस क़िस्से को........... इधर आईए......... मैं आप की टाई उतार दूं।”

ये कौन सी इतनी बड़ी मुहिम है, जो आप सर करना चाहती है।”

मैं आप से बहस करना नहीं चाहती........... ये बताईए कि आप को चलने में तकलीफ़ क्यों महसूस हो रही है?”

जूता ज़रा तंग है?”

“ये वही है न जो आप ने पिछले महीने लिया था।”

“हाँ, वही है............ आज पहली मर्तबा पहना है।”

“देख के नहीं लिया था।”

देख कर ही लिया था............ पहना भी था............. पर.............. ”

“छोटा कैसे हो गया।”

“जो चीज़ इस्तिमाल न की जाये, सिकुड़ जाती है।”

ये अजीब मंतिक़ है।”

“औरतों को अपने खाविंदों की हर बात अजीब मंतिक़ मालूम होती है।”

मैंने कहा: “इधर आईए, आप की टाई उतार दूं।”

“पहले तो मैं ये तकलीफ़-देह जूते उतारना चाहता हूँ।”

“बैठ जाईए........... मैं उतार देती हूँ।”

“आज तुम इतनी मेहरबान क्यों हो?........... पहले तो........... ”

“अब नख़रे न बघारिए.......... बीठिए कुर्सी पर।”

“यहां सब कुर्सियां इस काबिल कहाँ हैं कि उन पर आदमी बैठे।”

“मैंने आप से कहा था कि जब इन का बेद बिलकुल नाकारा हो जाएगा तो मैं सब की सब ठीक करा दूँगी।”

“ये तुम्हारी अजीब मंतिक़ थी जिस के मुतअल्लिक़ मैंने कुछ कहना मुनासिब नहीं समझा था कि मबादा तुम नाराज़ हो जाओ।”

“बात दरअसल ये है कि मैं चाहती थी कि जब तक ये कुर्सियां काम देती हैं, इन की मुरम्मत न कराई जाये........... क्योंकि इन्हें मुक़र्ररा वक़्त पर फिर मरम्मत तलब होना है......... जितने दिन निकल जाएं ठीक है।”

“मेरा ख़याल है, तुम भी मरम्मत तलब हो।”

“देखिए......... मैं ऐसी बातें पसंद नहीं करती......... आप बड़े बे-लगाम होते जा रहे हैं।”

“चलिए......... मैं ख़ामोश हो जाता हूँ।”

“आप ख़ामोश ही अच्छे लगते हैं।”

“आप ख़ामोश क्यों होगए?”

“तुम ही ने तो मुझ से कहा था कि आप ख़ामोश ही अच्छे लगते हैं।”

“मैंने ये तो नहीं कहा था कि आप मुँह में घनघनियां डाल के बैठ रहें।”

“तुम मुझे कुछ खाने के लिए दो”

“मैं क्या दूँ............. आप बाहर से खा कर आरहे हैं।”

तुम ने कैसे जाना?”

“आप की पतलून बता रही है.......... सालन के दाग़ लगे हैं............ ज़रूर आप ने किसी होटल में अपने दोस्त के साथ अय्याशी की होगी।”

“अय्याशी तो ख़ैर नहीं की, लेकिन मजबूरन अपने अफ़्सर के साथ एक दावत में शरीक होना पड़ा............ और तुम जानती हो................ अच्छी तरह जानती हो कि मैं सिर्फ़ अपने घर का पका हुआ खाना पसंद करता हूँ........ वहां मैंने सिर्फ़ चंद लुक़्मे मुँह में डाले और हाथ उठा लिया............ इस लिए कि खाना बड़ा वाहियात था........... उस में तुम्हारे हाथों का नमक नहीं था।”

“लेकिन ये पतलून पर धब्बे कैसे पड़े?”

“इस लिए कि सालन वाहियात था। मुझ से दो मर्तबा चावल नीचे गिर गए।”

“चावल तो आप से हमेशा नीचे गिरते रहते हैं।”

“उस को छोड़ो.............. मुझे ये बताओ कि फ़र्श पर शर्बत किस ने गिराया था.......... और............ और............ ये गिलास........... जग............. कोई मेहमान आया था?”

“हाँ............... मेरी एक सहेली आई थी।”

“कौन?”

“आप उसे नहीं जानते................. कोएटे की थी, जो मेरे साथ पढ़ती थी। उस की हाल ही में शादी हुई है। मुझ से मिलने आई थी।”

“उस से क्या बातें हुईं?”

“मैं आप को क्यों बताऊं.............. वैसे वो अपने ख़ाविंद से बहुत ख़ुश थी।”

“हर औरत को अपने ख़ाविंद से ख़ुश होना चाहिए........... इस में उस की क्या बरतरी है?”

“नहीं........... वो........... ”

“क्या?”

“ऐसी ऐसी बातें सुनाईं जो............ जो मुझे मालूम ही नहीं थीं.............. शायद आप को भी मालूम न हों........ ”

“इस गुफ़्तुगू को छोड़िए........... आईए मैं आप के जूते उतार दूं............ ”

“ये काम में ख़ुद भी कर सकता हूँ।”

“नहीं मैं आज ख़ुद करूंगी.............. पहले टाई उतारने दीजिए।”

उतार लीजिए।”

“आप आज कितने अच्छे लगते हैं।”

“उस की वजह क्या है?............... पहले तो में तुम्हें कभी अच्छा नहीं लगा था............ आज यक-बायक ये इन्क़िलाब कैसे पैदा होगया?”

“इन्क़िलाब कैसा?............. मैं शुरू ही से आप से मुहब्बत करती हूँ............. मेरा सारा दुपट्टा गीला होगया है.............. तौबा, आप को इतना पसीना क्यों आरहा है?”

“चलिए अंदर”

“चलो”

“यहां बाहर की बनिसबत गर्मी किस क़दर कम है?”

“हाँ.............!”

“इस शू ने तो आप के पांव की उंगलियों पर चंडियाँ डाल दी हैं।”

“हर तंग चीज़ राहत का बाइस होती है।”

“मैं भी आज से तंग होगई हूँ।”

“मुझ से”

“नहीं............... मेरी सहेली ने मुझे बताया था कि उस का ख़ाविंद।.......... ख़ैर आप इस क़िस्से को छोड़िए........ उस ने बड़ी तंग और चुस्त चोली पहनी हुई थी.......... ”

“मैंने अब देखा है कि तुम भी उसी क़िस्म का बुलाउज़ पहने हो.............. कहाँ से लिया तुम ने?”

“आज ही उस के दर्ज़ी से सिलवाया है।”

“और मैं जो साड़ी लाया हूँ।”

“वो इस से मैच नहीं करती.............. ख़ैर में आप के साथ चलूंगी और उस दुकान में कोई और साड़ी पसंद कर लूंगी।”

“उस सहेली से तुम ने क्या बातें कीं?”

“आप लेट जाईए,........ फिर आप को पसीना आरहा है.......... मैं आप को उस की तमाम बातें सुना दूंगी।”

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“तुम अपनी सहेली से ऐसी बातें हर रोज़ सुना करो………………. ताकि हमारी ज़िंदगी ख़ुश-गवार रहे……….. और तुम मेरे पसीने को अपने दोपट्टे से इसी तरह पोंछती रहो।”

“आप का पसीना तो अब मेरा लहू बन गया है।”

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[अगर मुक़द्दस हक़ दुनिया की मुतजस्सिस निगाहों से ओझल कर दिया जाये। तो रहमत हो उस दीवाने पर जो इंसानी दिमाग़ पर सुनहरा ख़्वाब तारी कर दे।] मैं आहों का ब्योपारी हूँ, लहू की शायरी मेरा काम है, चमन की मा

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ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह...... आप मुस्लमान हैं यक़ीन करें मैं जो कुछ कहूंगा, सच्च कहूंगा। पाकिस्तान का इस मुआमले से कोई तअल्लुक़ नहीं। क़ाइद-ए-आज़म जिन्नाह के लिए मैं जान देने के लिए तैय

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पढ़े कलिमा

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ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह...... आप मुस्लमान हैं यक़ीन करें मैं जो कुछ कहूंगा, सच्च कहूंगा। पाकिस्तान का इस मुआमले से कोई तअल्लुक़ नहीं। क़ाइद-ए-आज़म जिन्नाह के लिए मैं जान देने के लिए तैय

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कामिनी के ब्याह को अभी एक साल भी न हुआ था कि उस का पति दिल के आरिज़े की वजह से मर गया और अपनी सारी जायदाद उस के लिए छोड़ गया। कामिनी को बहुत सदमा पहुंचा, इस लिए कि वो जवानी ही में बेवा हो गई थी। उस की

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महमूदा

8 अप्रैल 2022
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मुस्तक़ीम ने महमूदा को पहली मर्तबा अपनी शादी पर देखा। आरसी मसहफ़ की रस्म अदा हो रही थी कि अचानक उस को दो बड़ी बड़ी.......ग़ैर-मामूली तौर पर बड़ी आँखें दिखाई दीं.......ये महमूदा की आँखें थीं जो अभी तक कुंवार

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मिसेज़ डी सिल्वा

8 अप्रैल 2022
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बिलकुल आमने सामने फ़्लैट थे। हमारे फ़्लैट का नंबर तेरह था। उस के फ़्लैट का चौदह। कभी कोई सामने का दरवाज़ा खटखटाता तो मुझे यही मालूम होता कि हमारे दरवाज़े पर दस्तक होरही है। इसी ग़लतफ़हमी में जब मैंने एक

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मेरा हमसफ़र

9 अप्रैल 2022
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प्लेटफार्म पर शहाब, सईद और अब्बास ने एक शोर मचा रखा था। ये सब दोस्त मुझे स्टेशन पर छोड़ने के लिए आए थे, गाड़ी प्लेटफार्म को छोड़ कर आहिस्ता आहिस्ता चल रही थी कि शहाब ने बढ़ कर पाएदान पर चढ़ते हुए मुझ से

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मेरा और उसका इंतिक़ाम

9 अप्रैल 2022
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घर में मेरे सिवा कोई मौजूद नहीं था। पिता जी कचहरी में थे और शाम से पहले कभी घर आने के आदी न थे। माता जी लाहौर में थीं और मेरी बहन बिमला अपनी किसी सहेली के हाँ गई थी! मैं तन्हा अपने कमरे में बैठा किताब

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वह लड़की

9 अप्रैल 2022
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सवा-चार बज चुके थे लेकिन धूप में वही तमाज़त थी जो दोपहर को बारह बजे के क़रीब थी। उस ने बालकनी में आ कर बाहर देखा तो उसे एक लड़की नज़र आई जो बज़ाहिर धूप से बचने के लिए एक साया-दार दरख़्त की छांव में आलती पाल

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वो ख़त जो पोस्ट न किये गए

9 अप्रैल 2022
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हव्वा की एक बेटी के चंद ख़ुतूत जो उस ने फ़ुर्सत के वक़्त मुहल्ले के चंद लोगों को लिखे। मगर इन वजूह की बिना पर पोस्ट न किए गए जो इन ख़ुतूत में नुमायां नज़र आती हैं। (नाम और मुक़ाम फ़र्ज़ी हैं) पहला ख़त म

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शादी

9 अप्रैल 2022
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जमील को अपना शैफर लाइफ-टाइम क़लम मरम्मत के लिए देना था। उस ने टेलीफ़ोन डायरेक्ट्री में शैफर कंपनी का नंबर तलाश किया। फ़ोन करने से मालूम हुआ कि उन के एजेंट मैसर्ज़ डी, जे, समतोइर हैं जिन का दफ़्तर ग्रीन

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सड़क के किनारे

9 अप्रैल 2022
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“यही दिन थे......... आसमान उस की आँखों की तरह ऐसा ही नीला था जैसा कि आज है। धुला हुआ, निथरा हुआ......... और धूप भी ऐसी ही कनकनी थी......... सुहाने ख़्वाबों की तरह। मिट्टी की बॉस भी ऐसी ही थी जैसी कि इ

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शारदा

9 अप्रैल 2022
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नज़ीर ब्लैक मार्कीट से विस्की की बोतल लाने गया। बड़क डाकख़ाने से कुछ आगे बंदरगाह के फाटक से कुछ इधर सिगरेट वाले की दुकान से उस को स्काच मुनासिब दामों पर मिल जाती थी। जब उस ने पैंतीस रुपये अदा करके काग़

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सिराज

9 अप्रैल 2022
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नागपाड़ा पुलिस चौकी के उस तरफ़ जो छोटा सा बाग़ है। उस के बिलकुल सामने ईरानी के होटल के बाहर, बिजली के खंबे के साथ लग कर ढूंढ़ो खड़ा था। दिन ढले, मुक़र्ररा वक़्त पर वो यहां आ जाता और सुबह चार बजे तक अपने धंद

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हज्ज-ए-अकबर

9 अप्रैल 2022
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इम्तियाज़ और सग़ीर की शादी हुई तो शहर भर में धूम मच गई। आतिश बाज़ियों का रिवाज बाक़ी नहीं रहा था मगर दूल्हे के बाप ने इस पुरानी अय्याशी पर बे-दरेग़ रुपया सर्फ़ किया। जब सग़ीर ज़ेवरों से लदे फंदे सफ़ैद बुर्र

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सजदा

9 अप्रैल 2022
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गिलास पर बोतल झुकी तो एक दम हमीद की तबीयत पर बोझ सा पड़ गया। मलिक जो उसके सामने तीसरा पैग पी रहा था फ़ौरन ताड़ गया कि हमीद के अंदर रुहानी कश्मकश पैदा होगई है। वो हमीद को सात बरस से जानता था, और इन सात बर

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लाइसेंस

9 अप्रैल 2022
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अब्बू कोचवान बड़ा छैल छबीला था। उस का ताँगा घोड़ा भी शहर में नंबर वन था। कभी मामूली सवारी नहीं बिठाता था। उस के लगे बंधे गाहक थे जिन से उस को रोज़ाना दस पंद्रह रुपय वसूल हो जाते थे जो अब्बू के लिए काफ़ी थ

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हाफ़िज़ हुसैन दीन

9 अप्रैल 2022
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हाफ़िज़ हुसैन दीन जो दोनों आँखों से अंधा था, ज़फ़र शाह के घर में आया। पटियाले का एक दोस्त रमज़ान अली था, जिस ने ज़फ़र शाह से उस का तआरुफ़ कराया। वो हाफ़िज़ साहिब से मिल कर बहुत मुतअस्सिर हुआ। गो उन की

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संतर पंच

9 अप्रैल 2022
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मैं लाहौर के एक स्टूडियो में मुलाज़िम हुआ जिस का मालिक मेरा बंबई का दोस्त था उस ने मेरा इस्तिक़बाल क्या मैं उस की गाड़ी में स्टूडियो पहुंचा था बग़लगीर होने के बाद उस ने अपनी शराफ़त भरी मोंछों को जो ग़ालिबन

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शैदा

9 अप्रैल 2022
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शैदे के मुतअल्लिक़ अमृतसर में ये मशहूर था कि वो चट्टान से भी टक्कर ले सकता है उस में बला की फुर्ती और ताक़त थी गो तन-ओ-तोश के लिहाज़ से वो एक कमज़ोर इंसान दिखाई देता था लेकिन अमृतसर के सारे गुंडे उस से ख़ौ

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राम खेलावन

9 अप्रैल 2022
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खटमल मारने के बाद में ट्रंक में पुराने काग़ज़ात देख रहा था कि सईद भाई जान की तस्वीर मिल गई। मेज़ पर एक ख़ाली फ़्रेम पड़ा था....... मैंने इस तस्वीर से उस को पुर कर दिया और कुर्सी पर बैठ कर धोबी का इंतिज़ार

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रहमत-ए-खुदा-वंदी के फूल

9 अप्रैल 2022
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ज़मींदार, अख़बार में जब डाक्टर राथर पर रहमत-ए-ख़ुदा-वंदी के फूल बरसते थे तो यार दोस्तों ने ग़ुलाम रसूल का नाम डाक्टर राथर रख दिया। मालूम नहीं क्यूँ, इस लिए कि ग़ुलाम रसूल को डाक्टर राथर से कोई निसबत नह

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मिस फ़र्या

9 अप्रैल 2022
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शादी के एक महीने बाद सुहेल परेशान होगया। उस की रातों की नींद और दिन का चैन हराम हो गया। उस का ख़याल था कि बच्चा कम अज़ कम तीन साल के बाद पैदा होगा मगर अब एक दम ये मालूम करके उस के पांव तले की ज़मीन निक

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मिस अडना जैक्सन

9 अप्रैल 2022
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कॉलिज की पुरानी प्रिंसिपल के तबादले का एलान हुआ, तालिबात ने बड़ा शोर मचाया। वो नहीं चाहती थीं कि उन की महबूब प्रिंसिपल उन के कॉलेज से कहीं और चली जाये। बड़ा एहतिजाज हुआ। यहाँ तक कि चंद लड़कियों ने भूक हड़

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बुड्ढ़ा खूसट

9 अप्रैल 2022
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ये जंग-ए-अज़ीम के ख़ातमे के बाद की बात है जब मेरा अज़ीज़ तरीन दोस्त लैफ़्टीनैंट कर्नल मोहम्मद सलीम शेख़ (अब) ईरान इराक़ और दूसरे महाज़ों से होता हुआ बमबई पहुंचा। उस को अच्छी तरह मालूम था, मेरा फ़्लैट कहाँ ह

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शह नशीं पर

9 अप्रैल 2022
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वो सफ़ैद सलमा लगी साड़ी में शह-नशीन पर आई और ऐसा मालूम हुआ कि किसी ने नक़रई तारों वाला अनार छोड़ दिया है। साड़ी के थिरकते हूए रेशमी कपड़े पर जब जगह जगह सलमा का काम टिमटिमाने लगता तो मुझे जिस्म पर वो तमाम

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चुग़द

9 अप्रैल 2022
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लड़कों और लड़कियों के मआशिक़ों का ज़िक्र हो रहा था। प्रकाश जो बहुत देर से ख़ामोश बैठा अंदर ही अंदर बहुत शिद्दत से सोच रहा था, एक दम फट पड़ा। सब बकवास है, सौ में से निन्नानवे मआशिक़े निहायत ही भोंडे और लचर

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