shabd-logo

पीरन

8 अप्रैल 2022

18 बार देखा गया 18

ये उस ज़माने की बात है जब मैं बेहद मुफ़लिस था। बंबई में नौ रुपये माहवार की एक खोली में रहता था जिस में पानी का नल था न बिजली। एक निहायत ही ग़लीज़ कोठड़ी थी जिस की छत पर से हज़ारहा खटमल मेरे ऊपर गिरा करते थे। चूहों की भी काफ़ी बोहतात थी...... इतने बड़े चूहे मैंने फिर कभी नहीं देखे। बिल्लियां उन से डरती थीं।

चाली यानी बिल्डिंग में सिर्फ़ एक गुस्ल-ख़ाना था। जिस के दरवाज़े की कुंडी टूटी हुई थी। सुब्ह सवेरे चाली की औरतें पानी भरने के लिए इस ग़ुस्ल-ख़ाने में जमा होती थीं। यहूदी, मरहट्टी, गुजराती, क्रिस्चियन....... भांति भांति की औरतें।

मेरा ये मामूल था कि इन औरतों के इजतिमा से बहुत पहले ग़ुस्ल-ख़ाने में जाता, दरवाज़ा भेड़ता और नहाना शुरू करदेता। एक रोज़ में देर से उठा। ग़ुस्ल-ख़ाने में पहुंच कर नहाना शुरू किया तो थोड़ी देर के बाद खट से दरवाज़ा खुला। मेरी पड़ोसन थी। बग़ल में गागर दबाये उस ने मालूम नहीं क्यों एक लहज़े के लिए मुझे ग़ौर से देखा। फिर एक दम पलटी। गागर उस की बग़ल से फिसली और फ़र्श पर लुढ़कने लगी....... ऐसी भागी जैसे कोई शेर उस का तआक़ुब कर रहा है। मैं बहुत हँसा, उठ कर दरवाज़ा बंद किया और नहाना शुरू कर दिया।

थोड़ी देर के बाद फिर दरवाज़ा खुला। ब्रिज मोहन था। में नहा के फ़ारिग़ हो चुका था और कपड़े पहन रहा था। उस ने मुझ से कहा। भई मंटो आज इतवार है।

मुझे याद आगया कि ब्रिज मोहन को बांद्रा जाना था, अपनी दोस्त पीरन से मिलने के लिए। वो हर इतवार को उस से मिलने जाता था। वो एक मामूली सी शक्ल-ओ-सूरत की पार्सी लड़की थी जिस से ब्रिज मोहन का मआशिक़ा क़रीबन तीन बरस से चल रहा था।

हर इतवार को ब्रिज मोहन मुझ से आठ आने ट्रेन के किराए के लिए लेता। पीरन के घर पहुंचता। दोनों आधे घंटे तक आपस में बातें करते ब्रिज मोहन इस्टरटीड वीकली के क्रास वर्ड पज़ल के हल उस को देता और चला आता। वो बे-कार था। सारा दिन सर न्यौढ़ाये ये पज़ल अपनी दोस्त पीरन के लिए हल करता रहता था। उस को छोटे छोटे कई इनाम मिल चुके थे मगर वो सब पीरन ने वसूल किए थे। ब्रिज मोहन ने उन में से एक दमड़ी भी उस से न मांगी थी।

ब्रिज मोहन के पास पीरन की बे-शुमार तस्वीरें थीं। शलवार क़मीज़ में चुस्त पाजामे में, साड़ी में, फ़राक़ में, बैडिंग कसटीवम में, फैंसी ड्रैस में...... ग़ालिबन सौ से ऊपर होगी। पीरन क़तअन ख़ूबसूरत नहीं थी बल्कि मैं तो ये कहूंगा कि बहुत ही अदना शक्ल-ओ-सूरत की थी लेकिन मैंने अपनी इस राय का इज़हार ब्रिज मोहन से कभी नहीं किया था। मैंने पीरन के मुताअल्लिक़ कभी कुछ पूछा ही नहीं था कि वो कौन है, क्या करती है, ब्रिज मोहन से उस की मुलाक़ात कैसे हुई, इश्क़ की इब्तिदा क्यों कर हुई। क्या वो उस से शादी करने का इरादा रखता है?..... ब्रिज मोहन ने भी उस के बारे में मुझ से कभी बातचीत न की थी। बस हर इतवार को वो नाशते के बाद मुझ से आठ आने किराए के लेता और इस से मिलने के लिए बांद्रा रवाना हो जाता और दोपहर तक लूट आता।

मैंने खोली में जा कर उस को आठ आने दिए, वो चला गया। दोपहर को लौटा तो उस ने खिलाफ-ए-मामूल मुझ से कहा। आज मुआमला ख़त्म होगया।

मैंने उस से पूछा। कौनसा मुआमला? मुझे मालूम नहीं था कि वो किस मुआमले की बात कर रहा है।

ब्रिज मोहन ने सोचा जैसे उस के सीने का बोझ हल्का होगया। मुझ से कहा। पीरन से आज दो टोक फ़ैसला होगया है...... मैंने उस से कहा। जब भी तुम से मिलना शुरू करता हूँ मुझे काम नहीं मिलता। तुम बहुत मनहूस हो। उस ने कहा बेहतर है, मिलना छोड़ दो। देखूंगी तुम्हें कैसे काम मिलता है। मैं मनहूस हूँ, मगर तुम अव्वल दर्जे के निखट्टू् और काम चोर हो.... सो अब ये क़िस्सा ख़त्म होगया है और मेरा ख़्याल है इंशाअल्लाह कल ही मुझे काम मिल जाएगा। सुबह तुम मुझे चार आने देना। में सेठ नानूभाई से मिलूँगा, वो मुझे ज़रूर अपना अस्सिटेंट रख लेगा।

ये सेठ नानूभाई जो फ़िल्म डायरेक्टर था मुतअद्दिद मर्तबा ब्रिज मोहन को मुलाज़मत देने से इनकार कर चुका था। क्योंकि उस का भी पीरन की तरह यही ख़्याल था कि वो काम चोर और निकम्मा है लेकिन दूसरे रोज़ जब ब्रिज मोहन मुझ से चार आने लेकर गया तो दोपहर को उस ने मुझे ये ख़ुशख़बरी सुनाई कि सेठ नानूभाई ने बहुत ख़ुश हो कर उसे ढाई सौ रुपय माहवार पर मुलाज़िम रख लिया है। कंट्रैक्ट एक बरस का है जिस पर दस्तख़त हो चुके हैं फिर उस ने जेब में हाथ डाल कर सौ रुपय निकाले और मुझे दिखाए। ये ऐडवान्स है...... जी तो मेरा चाहता है कंट्रैक्ट और सौ रुपय लेकर बांद्रा जाऊं और पीरन से कहूं कि लो देखो, मुझे काम मिल गया है, लेकिन डर है कि नानूभाई मुझे फ़ौरन जवाब दे देगा...... मेरे साथ एक नहीं कई मर्तबा ऐसा होचुका है। इधर मुलाज़मत मिली, उधर पीरन से मुलाक़ात हुई.... मुआमला साफ़। किसी न किसी बहाने मुझे निकाल बाहर किया गया। ख़ुदा मालूम उस लड़की में ये नहूसत कहाँ से आगई। अब मैं कम अज़ कम एक बरस तक उस का मुँह नहीं देखूंगा। मेरे पास कपड़े बहुत कम रह गए हैं। एक बरस लगा कर कुछ बनवा लूं तो फिर देखा जाएगा।

छः महीने गुज़र गए। ब्रिज मोहन बराबर काम पर जा रहा था। उस ने कई नए कपड़े बनवा लिए थे। एक दर्जन रूमाल भी ख़रीद लिए थे। अब वो तमाम चीज़ें उस के पास थीं जो एक कुंवारे आदमी के आराम-ओ-आसाइश के लिए ज़रूरी होती हैं। एक रोज़ वो स्टूडीयो गया हुआ था कि उस के नाम एक ख़त आया। शाम को जब वो लौटा तो मैं उसे ये ख़त देना भूल गया। सुबह नाशते पर मुझे याद आया तो मैंने ये ख़त उस के हवाले कर दिया। लिफ़ाफ़ा पकड़ते ही वो ज़ोर से चीख़ा। “लानत!”

मैंने पूछा। “क्या हुआ?"

“वही पीरन…… अच्छी भली ज़िंदगी गुज़र रही थी।” ये कह कर उस ने चम्मच से लिफ़ाफ़ा खोल कर ख़त का काग़ज़ निकाला और मुझ से कहा। “वही कमबख़्त है...... मैं कभी उस का हैंड-राइटिंग भूल सकता हूँ।”

मैंने पूछा। “क्या लिखती है?”

“मेरा सर…… कहती है मुझ से इस इतवार को ज़रूर मिलो। तुम से कुछ कहना है।”

ये कह कर ब्रिज मोहन ने ख़त लिफाफे में डाला और जेब में रख लिया। “लो भई मंटो, नौकरी से इंशाअल्लाह कल ही जवाब मिल जाएगा।”

“क्या बकवास करते हो।”

मोहन ने बड़े वसूक़ से कहा। “नहीं मंटो तुम देख लेना। कल इतवार है। परसों नानू भाई को ज़रूर मुझ से कोई ना कोई शिकायत पैदा होगी और वो मुझे फ़ौरन निकाल बाहर करेगा।”

मैंने उस से कहा। “अगर तुम्हें इतना वसूक़ है तो मत जाओ उस से मिलने।”

“ये नहीं हो सकता…… वो बुलाए तो मुझे जाना ही पड़ता है।”

“क्यों?”

“मुलाज़मत करते करते कुछ मैं भी उकता चुका हूँ..... छः महीने से ऊपर होगए हैं।” ये कह कर वो मुस्कुराया और चला गया।

दूसरे रोज़ नाशता करके वो बांद्रा चला गया। पीरन से मुलाक़ात करके लौटा। तो उस ने इस मुलाक़ात के बारे में कोई बात ना की। मैंने उस से पूछा। “मिल आए अपने मनहूस सितारे से?”

“हाँ भई..... उस से कह दिया कि मुलाज़मत से बहुत जल्द जवाब मिल जाएगा।”

ये कह कर वो खाट पर से उठा। “चलो आओ खाना खाएँ।”

हम दोनों ने हाजी के होटल में खाना खाया। इस दौरान में पीरन की कोई बात ना हुई। रात को सोने से पहले उस ने सिर्फ़ इतना कहा। “अब देखिए कल क्या गुल खुलता है।”

मेरा ख़्याल था कि कुछ भी नहीं होगा। मगर दूसरे रोज़ ब्रिज मोहन खिलाफ-ए-मामूल स्टूडीयो से जल्दी लौट आया मुझ से मिला तो ख़ूब ज़ोर से हँसा और दोनों भाई ।

मैंने समझा मज़ाक़ कर रहा है। “हटाओ जी।”

“जो हटना था वो तो हट गया..... अब मैं कैसे हटाऊं...... सेठ नानूभाई पर टांच आगई है...... स्टूडियो सेल होगया है। मेरी वजह से ख़्वाहमख़्वाह बे-चारे नानूभाई पर भी आफ़त आई।” ये कह कर ब्रिज मोहन फिर हँसने लगा।

मैंने सिर्फ़ इतना कहा। “ये अजीब सिलसिला है!”

“देख लो....... इसे कहते हैं हाथ कंगन को आरसी क्या।” ब्रिज मोहन ने सिगरेट सुलगाया और कैमरा उठा कर बाहर घूमने चला गया।

ब्रिज मोहन अब बे-कार था। जब उस की जमा पूंजी ख़त्म होगई तो उस ने हर इतवार को फिर मुझ से बांद्रा जाने के लिए आठ आने मांगने शुरू कर दिए। मुझे अभी तक मालूम नहीं आध पौन घंटे में वो पीरन से क्या बातें करता था। वैसे वो बहुत अच्छी गुफ़्तगु करने वाला था। मगर उस लड़की से जिस की नहूसत का उस को मुकम्मल तौर पर यक़ीन था वो किस क़िस्म की बातें करता था। मैंने एक रोज़ उस से पूछा। “ब्रिज, किया पीरन को भी तुम से मुहब्बत है?”

“नहीं, वो किसी और से मुहब्बत करती है।”

“तुम से क्यों मिलती है?”

“इस लिए कि मैं ज़हीन हूँ, उस के भद्दे चेहरे को ख़ूबसूरत बना कर पेश कर सकता हूँ। इस के लिए क्रास वर्ड पज़ल हल करता हूँ। कभी कभी उस को इनाम भी दिलवा देता हूँ..... मंटो, तुम नहीं जानते इन लड़कियों को। में ख़ूब पहचानता हूँ इन्हें..... जिस से वो मुहब्बत करती है, उस में जो कमी है, मुझ से मिल कर पूरी करलेती है। ये कह कर वो मुस्कुराया। बड़ी चार सौ बीस है!”

मैंने क़द्र-ए-हैरत से पूछा। “मगर तुम क्यों उस से मिलते हो?”

ब्रिज मोहन हँसा, चश्मे के पीछे अपनी आँखें सिकोड़ कर उस ने कहा। “मुझे मज़ा आता है।”

“किस बात का।”

“उस नहूसत का..... मैं उस का इमतिहान ले रहा हूँ। उस की नहूसत का इमतिहान...... ये नहूसत अपने इमतिहान में पूरी उत्तरी है। मैंने जब भी इस से मिलना शुरू क्या, मुझे अपने काम से जवाब मिला...... अब मेरी एक ख़ाहिश है कि इस के मनहूस असर को चकमा दे जाऊं।

मैंने इस से पूछा। “किया मतलब?”

ब्रिज मोहन ने बड़ी संजीदगी से कहा। “मेरा ये जी चाहता है कि मुलाज़मत से जवाब मिलने से पहले मुलाज़मत से अलाहिदा हो जाऊं, यानी ख़ुद अपने आक़ा को जवाब दे दूं इस से बाद में कहूं, जनाब मुझे मालूम था कि आप मुझे बरतरफ़ करने वाले हैं। इस लिए मैंने आप को ज़हमत न दी और ख़ुद अलाहिदा होगया और आप मुझे बरतरफ़ नहीं कररहे थे, ये मेरी दोस्त पीरन थी जिस की नाक कैमरे में इस तरह घुसती है जैसे तीर!”

ब्रिज मोहन मुस्कुराया। “ये मेरी एक छोटी सी ख़ाहिश है, देखो पूरी होती है या नहीं।”

मैंने कहा। “अजीब-ओ-ग़रीब ख़ाहिश है।”

“मेरी हर चीज़ अजीब-ओ-ग़रीब होती है..... पिछले इतवार मैंने पीरन के उस दोस्त के लिए जिस से वो मुहब्बत करती है, एक फ़ोटो तैय्यार करके दिया। उल्लू की दुम उसे कम्पटीशन में भेजेगा...... यक़ीनी तौर पर इनाम मिलेगा उसे।” ये कह कर वो मुस्कुराया।

ब्रिज मोहन वाक़ई अजीब-ओ-ग़रीब आदमी था। वो पीरन के दोस्त को कई बार फ़ोटो तैय्यार करके दे चुका है। इलस्ट्रेटेड वीकली में ये फ़ोटो उस के नाम से छपते थे और पीरन बहुत ख़ुश होती थी। ब्रिज मोहन उन को देखता था तो मुस्कुरा देता था। वो पीरन के दोस्त की शक्ल सूरत से ना-आशना था, पीरन ने ब्रिज मोहन से उस की मुलाक़ात तक ना कराई थी। सिर्फ़ इतना बताया था कि वो किसी मील में काम करता है और बहुत ख़ूबसूरत है।

एक इतवार को ब्रिज बांद्रा से वापिस आया तो उस ने मुझ से कहा। “लो भई मंटो, आज मुआमला ख़त्म होगया।”

मैंने उस से पूछा। “पीरन वाला?”

“हाँ भई..... कपड़े ख़त्म हो रहे थे, मैंने सोचा कि ये सिलसिला ख़त्म करो..... अब इंशाअल्लाह दिनों ही में कोई ना कोई मुलाज़मत मिल जाएगी...... मेरा ख़्याल है सेठ नियाज़ अली से मिलूं..... उस ने एक फ़िल्म बनाने का ऐलान किया है.... कल ही जाऊंगा। तुम यार ज़रा इस के दफ़्तर का पता लगा लेना।”

मैंने उस के दफ़्तर का नया फ़ोन एक दोस्त से पूछ कर ब्रिज मोहन को बता दिया। वो दूसरे रोज़ वहां गया। शाम को लौटा। इस के मुतमइन चेहरे पर मुस्कुराहट थी। “लो भई मंटो।” ये कह कर उस ने जेब से टाइप शूदा काग़ज़ निकाला और मेरी तरफ़ फेंक दिया। एक पिक्चर का कंट्रैक्ट। तनख़्वाह दो सौ रुपय माहवार। कम है।, लेकिन सेठ नियाज़ अली ने कहा है, बढ़ा दूंगा..... ठीक है!”

मैं हंसा। “अब पीरन से कब मिलोगे?”

ब्रिज मोहन मुस्कुराया। “कब मिलूँगा? मैं भी यही सोच रहा था कि मुझे उस से कब मिलना चाहिए...... मंटो यार, मैंने तुम से कहा था कि एक मेरी छोटी सी ख़्वाहिश है, बस वो पूरी हो जाये....... मेरा ख़याल है मुझे इतनी जल्दी नहीं करनी चाहिए। ज़रा मेरे तीन चार जोड़े बन जाएं। पच्चास रुपय ऐडवान्स लेकर आया हूँ पच्चीस तुम रख लो।”

पच्चीस मैंने लिए। होटल वाले का क़र्ज़ था जो फ़ौरन चुका दिया गया। हमारे दिन बड़ी ख़ुशहाली में गुज़रने लगे। सौ रुपया माहवार में कमा लेता था। दो सौ रुपय माहाना ब्रिज मोहन ले आता था। बड़े ऐश थे। पाँच महीने गुज़र गए कि अचानक एक रोज़ पीरन का ख़त ब्रिज मोहन को वसूल हुआ। “लो भई मंटो, इज़रईल साहिब तशरीफ़ ले आए।”

सही बात है कि मैंने उस वक़्त ख़त देख कर ख़ौफ़ सा महसूस किया मगर ब्रिज मोहन ने मुस्कुराते हुए लिफ़ाफ़ा चाक किया। ख़त का काग़ज़ निकाल कर पढ़ा। बिलकुल मुख़्तसर तहरीर थी।

मैंने ब्रिज से पूछा। “क्या फ़रमाती हैं?”

“फ़रमाती हैं, इतवार को मुझ से ज़रूर मिलो। एक अशद ज़रूरी काम है।” ब्रिज मोहन ने ख़त लिफाफे में वापिस डाल कर अपनी जेब में रख लिया।

मैंने उस से पूछा। “जाओगे?”

“जाना ही पड़ेगा……..” फिर उस ने ये फ़िल्मी गीत गाना शुरू कर दिया।

“मत भूल मुसाफ़िर तुझे जाना ही पड़ेगा!”

मैंने उस से कहा। “ब्रिज मत जाओ उस से मिलने....... बड़े अच्छे दिन गुज़र रहे हैं हमारे...... तुम नहीं जानते, मैं ख़ुदा मालूम किस तरह तुम्हें आठ आने दिया करता था।”

ब्रिज मोहन मुस्कुराया। “मुझे सब मालूम है, लेकिन अफ़सोस है कि अब वो दिन फिर आने वाले हैं। जब तुम ख़ुदा मालूम किस तरह मुझे हर इतवार आठ आने दिया करोगे!”

इतवार को ब्रिज, पीरन से मिलने बांद्रा गया। वापिस आया तो इस ने मुझ से सिर्फ़ इतना कहा। “मैंने उस से कहा, ये बारहवीं मर्तबा है मुझे तुम्हारी नहूसत की वजह से बरतरफ़ होना पड़ेगा....... तुम पर ज़हमत हो ज़रतुश्त की!”

मैंने पूछा। “उस ने ये सुन कर कुछ कहा।”

ब्रिज ने जवाब दिया। “फ़क़त ये...... तुम सिली इडियट हो!”

“तुम हो?”

“सूफ़ी सदी!” ये कह कर ब्रिज हंसा। “अब में कल सुबह दफ़्तर जाते ही अस्तीफ़ा पेश कर देने वाला हूँ। मैंने वहीं पीरन के हाँ लिख लिया था।”

ब्रिज मोहन ने मुझे इस्तीफ़े का काग़ज़ दिखाया। दूसरे रोज़ खिलाफ-ए-मामूल उस ने जल्दी जल्दी नाशता किया और दफ़्तर रवाना होगया। शाम को लौटा तो उस का चेहरा उतरा हुआ था। उस ने मुझ से कोई बात न की। मुझे ही बिल-आख़िर उस से पूछना पड़ा। “क्यों ब्रिज, क्या हुआ?”

उस ने बड़ी उम्मीदी से सर हिलाया, “कुछ नहीं….. सारा क़िस्सा ही ख़त्म होगया।”

“क्या मतलब?”

“मैंने सेठ नियाज़ अली को अपना अस्तीफ़ा पेश किया तो उस ने मुस्कुरा कर मुझे एक आफिशियल ख़त दिया। उस में ये लिखा था कि मेरी तनख़्वाह पिछले महीने से दो सौ के बजाय तीन सौ रुपय माहवार करदी गई है?”

पीरन से ब्रिज मोहन की दिलचस्पी ख़त्म होगई उस ने मुझ से एक रोज़ कहा “पीरन की नहूसत ख़त्म होने के साथ ही वो भी ख़त्म होगई....... और मेरा एक निहायत दिलचस्प मशग़ला भी ख़त्म होगया। अब कौन मुझे बेकार रखने का मूजिब होगा!”

(27 जुलाई 1950-ई.)

61
रचनाएँ
सआदत हसन मंटो की लोकप्रिय कहानियाँ
0.0
मंटो की लोकप्रिय कहानियाँ उतनी महत्वपूर्ण है कि मंटो ने इतने बरस पहले जो कुछ लिखा उसमें आज की हकीकत सिमटी नजर आती है मंटो की लोकप्रिय कहानियाँ उतनी महत्वपूर्ण है कि मंटो ने इतने बरस पहले जो कुछ लिखा उसमें आज की हकीकत सिमटी नजर आती है
1

शो शो

8 अप्रैल 2022
7
0
0

घर में बड़ी चहल पहल थी। तमाम कमरे लड़के लड़कियों, बच्चे बच्चियों और औरतों से भरे थे। और वो शोर बरपा हो रहा था। कि कान पड़ी आवाज़ सुनाई ना देती थी। अगर उस कमरे में दो तीन बच्चे अपनी माओं से लिपटे दूध पीने क

2

सहाय

8 अप्रैल 2022
2
0
0

“ये मत कहो कि एक लाख हिंदू और एक लाख मुस्लमान मरे हैं...... ये कहो कि दो लाख इंसान मरे हैं...... और ये इतनी बड़ी ट्रेजडी नहीं कि दो लाख इंसान मरे हैं, ट्रेजडी अस्ल में ये है कि मारने और मरने वाले किसी

3

हरनाम कौर

8 अप्रैल 2022
0
0
0

निहाल सिंह को बहुत ही उलझन हो रही थी। स्याह-व-सफ़ैद और पत्ली मूंछों का एक गुच्छा अपने मुँह में चूसते हुए वो बराबर दो ढाई घंटे से अपने जवान बेटे बहादुर की बाबत सोच रहा था। निहाल सिंह की अधेड़ मगर तेज़

4

हामिद का बच्चा

8 अप्रैल 2022
0
0
0

लाहौर से बाबू हरगोपाल आए तो हामिद घर का रहा ना घाट का। उन्हों ने आते ही हामिद से कहा। “लो भई फ़ौरन एक टैक्सी का बंद-ओ-बस्त करो।” हामिद ने कहा। “आप ज़रा तो आराम कर लीजिए। इतना लंबा सफ़र तय करके यहां आए ह

5

सोने कि अंगूठी

8 अप्रैल 2022
1
0
0

सोने कि अंगूठी सआदत हसन मंटो “छत्ते का छत्ता होगया आप के सर पर मेरी समझ में नहीं आता कि बाल न कटवाना कहाँ का फ़ैशन है ” “फ़ैशन वेशन कुछ नहीं तुम्हें अगर बाल कटवाने पड़ें तो क़दर-ए-आफ़ियत मालूम हो जाये

6

हाफ़िज़ हुसैन दीन

8 अप्रैल 2022
0
0
0

हाफ़िज़ हुसैन दीन जो दोनों आँखों से अंधा था, ज़फ़र शाह के घर में आया। पटियाले का एक दोस्त रमज़ान अली था, जिस ने ज़फ़र शाह से उस का तआरुफ़ कराया। वो हाफ़िज़ साहिब से मिल कर बहुत मुतअस्सिर हुआ। गो उन की

7

हारता चला गया

8 अप्रैल 2022
0
0
0

लोगों को सिर्फ़ जीतने में मज़ा आता है। लेकिन उसे जीत कर हार देने में लुत्फ़ आता है। जीतने में उसे कभी इतनी दिक़्क़त महसूस नहीं हुई। लेकिन हारने में अलबत्ता उसे कई दफ़ा काफ़ी तग-ओ-दो करना पड़ी। शुरू शुर

8

अंजाम-ए-नजीर

8 अप्रैल 2022
0
0
0

बटवारे के बाद जब फ़िर्का-वाराना फ़सादात शिद्दत इख़्तियार कर गए और जगह जगह हिंदूओं और मुस्लमानों के ख़ून से ज़मीन रंगी जाने लगी तो नसीम अख़तर जो दिल्ली की नौ-ख़ेज़ तवाइफ़ थी अपनी बूढ़ी माँ से कहा “चलो माँ यहां

9

अब्जी डूडू

8 अप्रैल 2022
0
0
0

“मुझे मत सताईए....... ख़ुदा की क़सम, मैं आप से कहती हूँ, मुझे मत सताईए” “तुम बहुत ज़ुल्म कर रही हो आजकल!” “जी हाँ बहुत ज़ुल्म कर रही हूँ” “ये तो कोई जवाब नहीं” “मेरी तरफ़ से साफ़ जवाब है और ये मैं आप

10

इज़्ज़त के लिए

8 अप्रैल 2022
0
0
0

चवन्नी लाल ने अपनी मोटर साईकल स्टाल के साथ रोकी और गद्दी पर बैठे बैठे सुबह के ताज़ा अख़्बारों की सुर्ख़ियों पर नज़र डाली। साईकल रुकते ही स्टाल पर बैठे हुए दोनों मुलाज़िमों ने उसे नमस्ते कही थी। जिस का जवा

11

इफ़्शा-ए-राज़

8 अप्रैल 2022
0
0
0

“मेरी लगदी किसे न वेखी वे ते टुटदी नूँ जग जाणदा” “ये आप ने गाना क्यों शुरू कर दिया है” “हर आदमी गाता और रोता है कौनसा गुनाह किया है?” “कल आप ग़ुसल-ख़ाने में भी यही गीत गा रहे थे” “ग़ुसल-ख़ाने में तो ह

12

क़ब्ज़

8 अप्रैल 2022
0
0
0

नए लिखे हुए मुकालमे का काग़ज़ मेरे हाथ में था। ऐक्टर और डायरेक्टर कैमरे के पास सामने खड़े थे। शूटिंग में अभी कुछ देर थी। इस लिए कि स्टूडीयो के साथ वाला साबुन का कारख़ाना चल रहा था। हर रोज़ इस कारख़ाने के

13

कुत्ते की दुआ

8 अप्रैल 2022
0
0
0

“आप यक़ीन नहीं करेंगे। मगर ये वाक़िया जो मैं आप को सुनाने वाला हूँ, बिलकुल सही है।” ये कह कर शेख़ साहब ने बीड़ी सुलगाई। दो तीन ज़ोर के कश लेकर उसे फेंक दिया और अपनी दास्तान सुनाना शुरू की। शेख़ साहब के म

14

कोट पतलून

8 अप्रैल 2022
0
0
0

नाज़िम जब बांद्रा में मुंतक़िल हुआ तो उसे ख़ुशक़िसमती से किराए वाली बिल्डिंग में तीन कमरे मिल गए। इस बिल्डिंग में जो बंबई की ज़बान में चाली कहलाती है, निचले दर्जे के लोग रहते थे। छोटी छोटी (बंबई की ज़बान

15

ख़ालिद मियां

8 अप्रैल 2022
1
0
0

मुमताज़ ने सुबह सवेरे उठ कर हसब-ए-मामूल तीनों कमरे में झाड़ू दी। कोने खद्दरों से सिगरटों के टुकड़े, माचिस की जली हुई तीलियां और इसी तरह की और चीज़ें ढूंढ ढूंढ कर निकालें। जब तीनों कमरे अच्छी तरह साफ़ होगए

16

ख़ुदकुशी

8 अप्रैल 2022
0
0
0

ज़ाहिद सिर्फ़ नाम ही का ज़ाहिद नहीं था, उस के ज़ुहद-ओ-तक़वा के सब क़ाइल थे, उस ने बीस पच्चीस बरस की उम्र में शादी की, उस ज़माने में उस के पास दस हज़ार के क़रीब रुपय थे, शादी पर पाँच हज़ार सर्फ़ हो गए, उतनी ह

17

गिलगित ख़ान

8 अप्रैल 2022
0
0
0

शहबाज़ ख़ान ने एक दिन अपने मुलाज़िम जहांगीर को जो उस के होटल में अंदर बाहर का काम करता था उस की सुस्त-रवी से तंग आकर बर-तरफ़ कर दिया। असल में वो सुस्त-रो नहीं था। इस क़दर तेज़ था कि उस की हर हरकत शहबाज़ ख़ान

18

घोगा

8 अप्रैल 2022
0
0
0

मैं जब हस्पताल में दाख़िल हुआ तो छट्ठे रोज़ मेरी हालत बहुत ग़ैर होगई। कई रोज़ तक बे-होश रहा। डाक्टर जवाब दे चुके थे लेकिन ख़ुदा ने अपना करम किया और मेरी तबीयत सँभलने लगी। इस दौरान की मुझे अक्सर बातें या

19

चुग़द

8 अप्रैल 2022
0
0
0

लड़कों और लड़कियों के मआशिक़ों का ज़िक्र हो रहा था। प्रकाश जो बहुत देर से ख़ामोश बैठा अंदर ही अंदर बहुत शिद्दत से सोच रहा था, एक दम फट पड़ा। सब बकवास है, सौ में से निन्नानवे मआशिक़े निहायत ही भोंडे और लचर

20

जानकी

8 अप्रैल 2022
0
0
0

पूना में रेसों का मौसम शुरू होने वाला था कि पिशावर से अज़ीज़ ने लिखा कि मैं अपनी एक जान पहचान की औरत जानकी को तुम्हारे पास भेज रहा हूँ, उस को या तो पूना में या बंबई में किसी फ़िल्म कंपनी में मुलाज़मत करा

21

तरक़्क़ी पसंद

8 अप्रैल 2022
0
0
0

जोगिंदर सिंह के अफ़साने जब मक़बूल होना शुरू हुए तो उसके दिल में ख़्वाहिश पैदा हुई कि वो मशहूर अदीबों और शाइरों को अपने घर बुलाए और उन की दावत करे। उस का ख़याल था कि यूं उस की शौहरत और मक़बूलियत और भी ज़्

22

दीवाना शायर

8 अप्रैल 2022
0
0
0

[अगर मुक़द्दस हक़ दुनिया की मुतजस्सिस निगाहों से ओझल कर दिया जाये। तो रहमत हो उस दीवाने पर जो इंसानी दिमाग़ पर सुनहरा ख़्वाब तारी कर दे।] मैं आहों का ब्योपारी हूँ, लहू की शायरी मेरा काम है, चमन की मा

23

निक्की

8 अप्रैल 2022
0
0
0

तलाक़ लेने के बाद वो बिलकुल नचनत होगई थी। अब वो हर रोज़ की वानिता कुल कुल और मार कटाई नहीं थे। निक्की बड़े आराम-ओ-इत्मिनान से अपना गुज़र औक़ात कर रही थी। ये तलाक़ पूरे दस बरस के बाद हुई थी। निक्की का श

24

परी

8 अप्रैल 2022
0
0
0

कश्मीरी गेट दिल्ली के एक फ़्लैट में अनवर की मुलाक़ात परवेज़ से हुई। वो क़तअन मुतअस्सिर न हुआ। परवेज़ निहायत ही बेजान चीज़ थी। अनवर ने जब उस की तरफ़ देखा और उस को आदाब अर्ज़ कहा तो उस ने सोचा “ये क्या है औरत

25

पसीना

8 अप्रैल 2022
0
0
0

“मेरे अल्लाह!............... आप तो पसीने में शराबोर हो रहे हैं।” “नहीं। कोई इतना ज़्यादा तो पसीना नहीं आया।” “ठहरिए में तौलिया ले कर आऊं।” “तौलिए तो सारे धोबी के हाँ गए हुए हैं।” “तो मैं अपने दोपट्

26

पढ़े कलिमा

8 अप्रैल 2022
0
0
0

ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह...... आप मुस्लमान हैं यक़ीन करें मैं जो कुछ कहूंगा, सच्च कहूंगा। पाकिस्तान का इस मुआमले से कोई तअल्लुक़ नहीं। क़ाइद-ए-आज़म जिन्नाह के लिए मैं जान देने के लिए तैय

27

पीरन

8 अप्रैल 2022
0
0
0

ये उस ज़माने की बात है जब मैं बेहद मुफ़लिस था। बंबई में नौ रुपये माहवार की एक खोली में रहता था जिस में पानी का नल था न बिजली। एक निहायत ही ग़लीज़ कोठड़ी थी जिस की छत पर से हज़ारहा खटमल मेरे ऊपर गिरा करते थ

28

पढ़े कलिमा

8 अप्रैल 2022
0
0
0

ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह...... आप मुस्लमान हैं यक़ीन करें मैं जो कुछ कहूंगा, सच्च कहूंगा। पाकिस्तान का इस मुआमले से कोई तअल्लुक़ नहीं। क़ाइद-ए-आज़म जिन्नाह के लिए मैं जान देने के लिए तैय

29

फ़रिश्ता

8 अप्रैल 2022
0
0
0

सुर्ख़ खुरदरे कम्बल में अताउल्लाह ने बड़ी मुश्किल से करवट बदली और अपनी मुंदी हुई आँखें आहिस्ता आहिस्ता खोलीं। कुहरे की दबीज़ चादर में कई चीज़ें लिपटी हुई थीं जिन के सही ख़द्द-ओ-ख़ाल नज़र नहीं आते थे। एक लं

30

फाहा

8 अप्रैल 2022
0
0
0

गोपाल की रान पर जब ये बड़ा फोड़ा निकला तो इस के औसान ख़ता हो गए। गरमियों का मौसम था। आम ख़ूब हुए थे। बाज़ारों में, गलियों में, दुकानदारों के पास, फेरी वालों के पास, जिधर देखो, आम ही आम नज़र आते। लाल, पीले

31

फुंदने

8 अप्रैल 2022
0
0
0

कोठी से मुल्हक़ा वसीअ-ओ-अरीज़ बाग़ में झाड़ियों के पीछे एक बिल्ली ने बच्चे दिए थे, जो बिल्ला खा गया था। फिर एक कुतिया ने बच्चे दिए थे जो बड़े बड़े हो गए थे और दिन रात कोठी के अंदर बाहर भौंकते और गंदगी बिखेर

32

बलवंत सिंह मजीठिया

8 अप्रैल 2022
0
0
0

शाह साहब से जब मेरी मुलाक़ात हुई तो हम फ़ौरन बे-तकल्लुफ़ हो गए। मुझे सिर्फ़ इतना मालूम था कि वो सय्यद हैं और मेरे दूर-दराज़ के रिश्तेदार भी हैं। वो मेरे दूर या क़रीब के रिश्तेदार कैसे हो सकते थे, इस के मु

33

बाई बाई

8 अप्रैल 2022
0
0
0

नाम उस का फ़ातिमा था पर सब उसे फातो कहते थे बानिहाल के दुर्रे के उस तरफ़ उस के बाप की पन-चक्की थी जो बड़ा सादा लौह मुअम्मर आदमी था। दिन भर वो इस पन चक्की के पास बैठी रहती। पहाड़ के दामन में छोटी सी जगह थ

34

बादशाहत का ख़ात्मा

8 अप्रैल 2022
0
0
0

टेलीफ़ोन की घंटी बिजी। मनमोहन पास ही बैठा था। उस ने रीसीवर उठाया और कहा “हेलो....... फ़ौर फ़ौर फ़ौर फाईव सेवन” दूसरी तरफ़ से पतली सी निस्वानी आवाज़ आई। “सोरी....... रोंग नंबर” मनमोहन ने रीसीवर रख दिया और

35

बिलाउज़

8 अप्रैल 2022
0
0
0

कुछ दिनों से मोमिन बहुत बेक़रार था। उस को ऐसा महसूस होता था कि इस का वजूद कच्चा फोड़ा सा बन गया था। काम करते वक़्त, बातें करते हुए हत्ता कि सोचने पर भी उसे एक अजीब क़िस्म का दर्द महसूस होता था। ऐसा दर्द

36

सरकण्डों के पीछे

8 अप्रैल 2022
0
0
0

कौन सा शहर था, इस के मुतअल्लिक़ जहां तक में समझता हूँ, आप को मालूम करने और मुझे बताने की कोई ज़रूरत नहीं ।बस इतना ही कह देना काफ़ी है कि वो जगह जो इस कहानी से मुतअल्लिक़ है, पेशावर के मुज़ाफ़ात में थी। सरहद

37

मिसिज़ गुल

8 अप्रैल 2022
1
0
0

मैंने जब उस औरत को पहली मर्तबा देखा तो मुझे ऐसा महसूस हुआ कि मैंने लेमूँ निचोड़ ने वाला खटका देखा है। बहुत दुबली पतली, लेकिन बला की तेज़। उस का सारा जिस्म सिवाए आँखों के इंतिहाई ग़ैर निस्वानी था। ये आँख

38

मलबे का ढेर

8 अप्रैल 2022
0
0
0

कामिनी के ब्याह को अभी एक साल भी न हुआ था कि उस का पति दिल के आरिज़े की वजह से मर गया और अपनी सारी जायदाद उस के लिए छोड़ गया। कामिनी को बहुत सदमा पहुंचा, इस लिए कि वो जवानी ही में बेवा हो गई थी। उस की

39

महमूदा

8 अप्रैल 2022
0
0
0

मुस्तक़ीम ने महमूदा को पहली मर्तबा अपनी शादी पर देखा। आरसी मसहफ़ की रस्म अदा हो रही थी कि अचानक उस को दो बड़ी बड़ी.......ग़ैर-मामूली तौर पर बड़ी आँखें दिखाई दीं.......ये महमूदा की आँखें थीं जो अभी तक कुंवार

40

मिसेज़ डी सिल्वा

8 अप्रैल 2022
1
0
0

बिलकुल आमने सामने फ़्लैट थे। हमारे फ़्लैट का नंबर तेरह था। उस के फ़्लैट का चौदह। कभी कोई सामने का दरवाज़ा खटखटाता तो मुझे यही मालूम होता कि हमारे दरवाज़े पर दस्तक होरही है। इसी ग़लतफ़हमी में जब मैंने एक

41

मेरा हमसफ़र

9 अप्रैल 2022
0
0
0

प्लेटफार्म पर शहाब, सईद और अब्बास ने एक शोर मचा रखा था। ये सब दोस्त मुझे स्टेशन पर छोड़ने के लिए आए थे, गाड़ी प्लेटफार्म को छोड़ कर आहिस्ता आहिस्ता चल रही थी कि शहाब ने बढ़ कर पाएदान पर चढ़ते हुए मुझ से

42

मेरा और उसका इंतिक़ाम

9 अप्रैल 2022
0
0
0

घर में मेरे सिवा कोई मौजूद नहीं था। पिता जी कचहरी में थे और शाम से पहले कभी घर आने के आदी न थे। माता जी लाहौर में थीं और मेरी बहन बिमला अपनी किसी सहेली के हाँ गई थी! मैं तन्हा अपने कमरे में बैठा किताब

43

वह लड़की

9 अप्रैल 2022
0
0
0

सवा-चार बज चुके थे लेकिन धूप में वही तमाज़त थी जो दोपहर को बारह बजे के क़रीब थी। उस ने बालकनी में आ कर बाहर देखा तो उसे एक लड़की नज़र आई जो बज़ाहिर धूप से बचने के लिए एक साया-दार दरख़्त की छांव में आलती पाल

44

वो ख़त जो पोस्ट न किये गए

9 अप्रैल 2022
0
0
0

हव्वा की एक बेटी के चंद ख़ुतूत जो उस ने फ़ुर्सत के वक़्त मुहल्ले के चंद लोगों को लिखे। मगर इन वजूह की बिना पर पोस्ट न किए गए जो इन ख़ुतूत में नुमायां नज़र आती हैं। (नाम और मुक़ाम फ़र्ज़ी हैं) पहला ख़त म

45

शादी

9 अप्रैल 2022
0
0
0

जमील को अपना शैफर लाइफ-टाइम क़लम मरम्मत के लिए देना था। उस ने टेलीफ़ोन डायरेक्ट्री में शैफर कंपनी का नंबर तलाश किया। फ़ोन करने से मालूम हुआ कि उन के एजेंट मैसर्ज़ डी, जे, समतोइर हैं जिन का दफ़्तर ग्रीन

46

सड़क के किनारे

9 अप्रैल 2022
0
0
0

“यही दिन थे......... आसमान उस की आँखों की तरह ऐसा ही नीला था जैसा कि आज है। धुला हुआ, निथरा हुआ......... और धूप भी ऐसी ही कनकनी थी......... सुहाने ख़्वाबों की तरह। मिट्टी की बॉस भी ऐसी ही थी जैसी कि इ

47

शारदा

9 अप्रैल 2022
0
0
0

नज़ीर ब्लैक मार्कीट से विस्की की बोतल लाने गया। बड़क डाकख़ाने से कुछ आगे बंदरगाह के फाटक से कुछ इधर सिगरेट वाले की दुकान से उस को स्काच मुनासिब दामों पर मिल जाती थी। जब उस ने पैंतीस रुपये अदा करके काग़

48

सिराज

9 अप्रैल 2022
0
0
0

नागपाड़ा पुलिस चौकी के उस तरफ़ जो छोटा सा बाग़ है। उस के बिलकुल सामने ईरानी के होटल के बाहर, बिजली के खंबे के साथ लग कर ढूंढ़ो खड़ा था। दिन ढले, मुक़र्ररा वक़्त पर वो यहां आ जाता और सुबह चार बजे तक अपने धंद

49

हज्ज-ए-अकबर

9 अप्रैल 2022
0
0
0

इम्तियाज़ और सग़ीर की शादी हुई तो शहर भर में धूम मच गई। आतिश बाज़ियों का रिवाज बाक़ी नहीं रहा था मगर दूल्हे के बाप ने इस पुरानी अय्याशी पर बे-दरेग़ रुपया सर्फ़ किया। जब सग़ीर ज़ेवरों से लदे फंदे सफ़ैद बुर्र

50

सजदा

9 अप्रैल 2022
0
0
0

गिलास पर बोतल झुकी तो एक दम हमीद की तबीयत पर बोझ सा पड़ गया। मलिक जो उसके सामने तीसरा पैग पी रहा था फ़ौरन ताड़ गया कि हमीद के अंदर रुहानी कश्मकश पैदा होगई है। वो हमीद को सात बरस से जानता था, और इन सात बर

51

लाइसेंस

9 अप्रैल 2022
0
0
0

अब्बू कोचवान बड़ा छैल छबीला था। उस का ताँगा घोड़ा भी शहर में नंबर वन था। कभी मामूली सवारी नहीं बिठाता था। उस के लगे बंधे गाहक थे जिन से उस को रोज़ाना दस पंद्रह रुपय वसूल हो जाते थे जो अब्बू के लिए काफ़ी थ

52

हाफ़िज़ हुसैन दीन

9 अप्रैल 2022
0
0
0

हाफ़िज़ हुसैन दीन जो दोनों आँखों से अंधा था, ज़फ़र शाह के घर में आया। पटियाले का एक दोस्त रमज़ान अली था, जिस ने ज़फ़र शाह से उस का तआरुफ़ कराया। वो हाफ़िज़ साहिब से मिल कर बहुत मुतअस्सिर हुआ। गो उन की

53

संतर पंच

9 अप्रैल 2022
0
0
0

मैं लाहौर के एक स्टूडियो में मुलाज़िम हुआ जिस का मालिक मेरा बंबई का दोस्त था उस ने मेरा इस्तिक़बाल क्या मैं उस की गाड़ी में स्टूडियो पहुंचा था बग़लगीर होने के बाद उस ने अपनी शराफ़त भरी मोंछों को जो ग़ालिबन

54

शैदा

9 अप्रैल 2022
0
0
0

शैदे के मुतअल्लिक़ अमृतसर में ये मशहूर था कि वो चट्टान से भी टक्कर ले सकता है उस में बला की फुर्ती और ताक़त थी गो तन-ओ-तोश के लिहाज़ से वो एक कमज़ोर इंसान दिखाई देता था लेकिन अमृतसर के सारे गुंडे उस से ख़ौ

55

राम खेलावन

9 अप्रैल 2022
0
0
0

खटमल मारने के बाद में ट्रंक में पुराने काग़ज़ात देख रहा था कि सईद भाई जान की तस्वीर मिल गई। मेज़ पर एक ख़ाली फ़्रेम पड़ा था....... मैंने इस तस्वीर से उस को पुर कर दिया और कुर्सी पर बैठ कर धोबी का इंतिज़ार

56

रहमत-ए-खुदा-वंदी के फूल

9 अप्रैल 2022
0
0
0

ज़मींदार, अख़बार में जब डाक्टर राथर पर रहमत-ए-ख़ुदा-वंदी के फूल बरसते थे तो यार दोस्तों ने ग़ुलाम रसूल का नाम डाक्टर राथर रख दिया। मालूम नहीं क्यूँ, इस लिए कि ग़ुलाम रसूल को डाक्टर राथर से कोई निसबत नह

57

मिस फ़र्या

9 अप्रैल 2022
0
0
0

शादी के एक महीने बाद सुहेल परेशान होगया। उस की रातों की नींद और दिन का चैन हराम हो गया। उस का ख़याल था कि बच्चा कम अज़ कम तीन साल के बाद पैदा होगा मगर अब एक दम ये मालूम करके उस के पांव तले की ज़मीन निक

58

मिस अडना जैक्सन

9 अप्रैल 2022
0
0
0

कॉलिज की पुरानी प्रिंसिपल के तबादले का एलान हुआ, तालिबात ने बड़ा शोर मचाया। वो नहीं चाहती थीं कि उन की महबूब प्रिंसिपल उन के कॉलेज से कहीं और चली जाये। बड़ा एहतिजाज हुआ। यहाँ तक कि चंद लड़कियों ने भूक हड़

59

बुड्ढ़ा खूसट

9 अप्रैल 2022
0
0
0

ये जंग-ए-अज़ीम के ख़ातमे के बाद की बात है जब मेरा अज़ीज़ तरीन दोस्त लैफ़्टीनैंट कर्नल मोहम्मद सलीम शेख़ (अब) ईरान इराक़ और दूसरे महाज़ों से होता हुआ बमबई पहुंचा। उस को अच्छी तरह मालूम था, मेरा फ़्लैट कहाँ ह

60

शह नशीं पर

9 अप्रैल 2022
0
0
0

वो सफ़ैद सलमा लगी साड़ी में शह-नशीन पर आई और ऐसा मालूम हुआ कि किसी ने नक़रई तारों वाला अनार छोड़ दिया है। साड़ी के थिरकते हूए रेशमी कपड़े पर जब जगह जगह सलमा का काम टिमटिमाने लगता तो मुझे जिस्म पर वो तमाम

61

चुग़द

9 अप्रैल 2022
2
0
0

लड़कों और लड़कियों के मआशिक़ों का ज़िक्र हो रहा था। प्रकाश जो बहुत देर से ख़ामोश बैठा अंदर ही अंदर बहुत शिद्दत से सोच रहा था, एक दम फट पड़ा। सब बकवास है, सौ में से निन्नानवे मआशिक़े निहायत ही भोंडे और लचर

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए